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Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): November 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

सरोगेसी कानून

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत सरोगेसी का लाभ उठाने वाली महिलाओं की पात्रता के साथ उनकी वैवाहिक स्थिति के संबंध पर सवाल उठाया है।

  • याचिकाकर्त्ता ने सरोगेसी अधिनियम की धारा 2(1)(s) को चुनौती दी, जो 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच भारतीय विधवाओं या तलाकशुदा महिलाओं के सरोगेसी का लाभ उठाने के अधिकार को सीमित करती है।
  • याचिकाकर्त्ता की याचिका में उस नियम को भी चुनौती दी गई है जो एकल महिला (विधवा या तलाकशुदा) को सरोगेसी के लिये स्वयं के डिम्ब/अण्डाणु का उपयोग करने के लिये मज़बूर करता है। कई मामलों में महिला की उम्र अधिक होती है, इस स्थिति में उसके स्वयं के युग्मकों का उपयोग चिकित्सकीय रूप से अनुचित है तथा वह मादा युग्मकों के लिये एक दाता की तलाश करती है।

सरोगेसी

  • परिचय:
    • सरोगेसी एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक महिला (सरोगेट) किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) की ओर से बच्चे को जन्म देने के लिये सहमत होती है।
    • सरोगेट, जिसे कभी-कभी गर्भकालीन वाहक भी कहा जाता है, वह महिला होती है जो किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) के लिये गर्भ धारण करती है और बच्चे को जन्म देती है।
  • परोपकारी सरोगेसी:
    • इसमें गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज़ के अतिरिक्त सरोगेट माँ के लिये किसी मौद्रिक मुआवज़े को शामिल नहीं किया गया है।
  • वाणिज्यिक सरोगेसी:
    • इसमें बुनियादी चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज़ से अधिक मौद्रिक लाभ या इनाम (नकद या वस्तु के रूप में) के लिये की गई सरोगेसी या उससे संबंधित प्रक्रियाएँ शामिल हैं।

सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021

  • प्रावधान:
    • सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अनुसार, 35 से 45 वर्ष के बीच की आयु की विधवा या तलाकशुदा महिला तथा कानूनी रूप से विवाहित महिला और पुरुष के रूप में परिभाषित युगल सरोगेसी का लाभ उठा सकते है। 
    • सरोगेसी के लिये इच्छित जोड़ा कानूनी रूप से विवाहित भारतीय पुरुष एवं महिला का होगा, पुरुष की आयु 26-55 वर्ष के बीच होगी तथा महिला की आयु 25-50 वर्ष के बीच होगी और उनका पहले से कोई जैविक, गोद लिया हुआ या सरोगेट बच्चा नहीं होगा।
    • यह व्यावसायिक सरोगेसी पर भी प्रतिबंध लगाता है, जिसके लिये 10 वर्ष का काराग्रह और 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।  
    • कानून केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है जहांँ कोई पैसे का आदान-प्रदान नहीं होता है, साथ ही सरोगेट मांँ का/की आनुवंशिक रूप से बच्चे की तलाश करने वालों के साथ कोई सम्बन्ध/ जान-पहचान होनी चाहिये। 
  • चुनौतियाँ:
    • सरोगेट और बच्चे का शोषण: व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से आवश्यकता-आधारित दृष्टिकोण की ओर बढ़ता है, जिससे महिलाओं की अपने प्रजनन संबंधी निर्णय लेने की स्वायत्तता और मातृत्त्व का अधिकार समाप्त हो जाता है। यद्यपि कोई यह तर्क दे सकता है कि राज्य को सरोगेसी के तहत गरीब महिलाओं का शोषण रोकना चाहिये और बच्चे के जन्म के अधिकार की रक्षा करनी चाहिये। हालाँकि वर्तमान अधिनियम इन दोनों हितों को संतुलित करने में विफल रहे हैं।
    • पितृसत्तात्मक मानदंडों की सुदृढ़ता: यह अधिनियम हमारे समाज के पारंपरिक पितृसत्तात्मक मानदंडों को सुदृढ़ करता है जो महिलाओं के कार्य को कोई आर्थिक मूल्य नहीं देते हैं और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन के लिये महिलाओं के मौलिक अधिकारों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
    • भावनात्मक जटिलताएँ: परोपकारी सरोगेसी में सरोगेट माँ के रूप में कोई दोस्त अथवा रिश्तेदार न केवल भावी माता-पिता के लिये बल्कि सरोगेट बच्चे के लिये भी भावनात्मक जटिलताएँ उत्पन्न कर सकता है क्योंकि सरोगेसी की अवधि और जन्म के बाद बच्चे से उनके रिश्ते को लेकर समस्याएँ हो सकती हैं।
    • परोपकारी सरोगेसी इच्छुक दंपत्ति के लिये सरोगेट माँ चुनने के विकल्प को भी सीमित कर देती है क्योंकि बहुत ही सीमित रिश्तेदार इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिये तैयार होंगे।
    • तीसरे पक्ष की भागीदारी न होना: परोपकारी सरोगेसी में किसी तीसरे पक्ष की भागीदारी नहीं होती है। तीसरे पक्ष की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि इच्छित युगल सरोगेसी प्रक्रिया के दौरान चिकित्सा और अन्य विविध खर्चों को वहन करेगा तथा उसका समर्थन करेगा।
    • कुल मिलाकर, एक तीसरा पक्ष इच्छित युगल और सरोगेट माँ दोनों को जटिल प्रक्रिया से गुज़रने में मदद करता है, जो परोपकारी सरोगेसी के मामले में संभव नहीं हो सकता है।
  • सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने से संबंधित कुछ शर्तें:
    • सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने के लिये अविवाहित महिलाओं, एकल पुरुषों, लिव-इन पार्टनर्स और समान-लिंग वाले युग्मों को बाहर रखा गया है।
    • यह वैवाहिक स्थिति लिंग एवं यौन रुझान के आधार पर भेदभाव है और उन्हें अपनी इच्छा का परिवार बनाने के अधिकार से वंचित करता है।

आगे की राह 

समावेशिता, नैतिकता और चिकित्सा प्रगति पर ध्यान केंद्रित करके भारत सरोगेसी के लिये एक ऐसा मज़बूत कानूनी ढाँचा स्थापित कर सकता है जो व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान करता है, इसमें शामिल सभी पक्षों की भलाई सुनिश्चित करता है तथा सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से परिवार शुरू करने के इच्छुक लोगों का समर्थन करता है।


विश्व क्षय रोग रिपोर्ट, 2023

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने विश्व क्षय रोग रिपोर्ट, 2023 (Global TB Report 2023) जारी की है, जिसमें वर्ष 2022 में विश्वभर में क्षय रोग के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को उजागर किया गया है।

  • वर्ष 2022 में विश्वभर में क्षय रोग के सर्वाधिक मामले (2.8 मिलियन टी.बी. मामले) भारत में पाए गए थे, यह अर्थव्यवस्था पर क्षय रोग के कारण पड़ने वाले वैश्विक बोझ का 27% है।

विश्व क्षय रोग रिपोर्ट 2023 के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • क्षयरोग का बोझ: 
    • कोविड-19 के बाद वर्ष 2022 में विश्वभर में होने वाली मौतों का दूसरा प्रमुख कारण क्षय रोग था।
    • क्षयरोग के कारण ह्यूमन इम्यूनोडेफिशियेंसी वायरस (HIV)/एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम स्टेज (AIDS) की तुलना में लगभग दोगुनी मौतें होती हैं। प्रत्येक वर्ष 10 मिलियन से अधिक लोग क्षय रोग से पीड़ित होते हैं।
    • वर्ष 2022 में विश्वभर में कुल मामलों में क्षय रोग से प्रभावित होने वाले शीर्ष 30 देशों की सामूहिक भागीदारी 87% थी।
    • शीर्ष देशों में भारत के अतिरिक्त, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य शामिल हैं।
  • क्षय रोग निदान में वृद्धि:
    • वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 7.5 मिलियन TB से पीड़ित लोगों का निदान किया गया, जो वर्ष 1995 से WHO द्वारा वैश्विक TB निगरानी शुरू करने के बाद से दर्ज किया गया सबसे बड़ा आँकड़ा है।
  • उपचार की कमी के कारण उच्च मृत्यु दर:
    • क्षय रोगों में उपचार की कमी के कारण मृत्यु दर लगभग 50% अधिक है।
    • हालाँकि वर्तमान में WHO द्वारा अनुशंसित उपचार (क्षयरोग-रोधी दवाओं का 4-6 महीने का कोर्स) से क्षय रोग से पीड़ित लगभग 85% लोगों के स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है।
  • TB निदान एवं उपचार में वैश्विक पुनर्प्राप्ति:
    • दो वर्षों के कोविड-19 से संबंधित व्यवधानों के बाद वर्ष 2022 में T.B से पीड़ित तथा उपचार किये गए लोगों की संख्या में सकारात्मक वैश्विक सुधार हुआ है।
    • भारत, इंडोनेशिया तथा फिलीपींस जैसे देशों की वैश्विक कटौती में 60% से अधिक की हिस्सेदारी है।
  • TB की घटना दर: 
    • TB की घटना दर, जो प्रति वर्ष प्रति 100,000 जनसंख्या पर नए मामलों का आंकलन करती है, में वर्ष 2020 से 2022 के बीच 3.9% की वृद्धि हुई है।
    • इस वृद्धि ने प्रति वर्ष लगभग 2% की गिरावट की प्रवृत्ति को उलट दिया जो पिछले दो दशकों से देखी जा रही थी।

भारत से संबंधित क्या निष्कर्ष हैं?

  • भारत में TB के मामले में मृत्यु दर का अनुपात: 
    • भारत में TB के मामलों में मृत्यु दर का अनुपात 12% बताया गया है, जो दर्शाता है कि देश में TB के 12% मामलों में मृत्यु हुई।
    • रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2022 में भारत में TB से संबंधित 3,42,000 मृत्यु हुईं, जिनमें HIV-नकारात्मक व्यक्तियों में 3,31,000 तथा HIV वाले 11,000 लोग शामिल थे।
  • मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट TB (MDR-TB): 
    • भारत में वर्ष 2022 में मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट TB (MDR-TB) के 1.1 लाख मामले दर्ज किये गए, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में MDR-TB की निरंतर चुनौती को प्रदर्शित करते हैं।

रिपोर्ट की सिफारिशें क्या हैं?

  • वर्ष 2030 तक वैश्विक TB महामारी को समाप्त करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है जो संयुक्त राष्ट्र (UN) और WHO के सभी सदस्य राष्ट्रों द्वारा अपनाया गया एक लक्ष्य है।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (UHC) यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि जिन सभी लोगों को TB रोग या संक्रमण के इलाज की आवश्यकता है, वे इन उपचारों तक पहुँच सकें।
  • गरीबी, अल्पपोषण, HIV संक्रमण, धूम्रपान और मधुमेह से ग्रसित TB के संभावित निर्धारकों को इस रोग से बचाव के लिये बहुक्षेत्रीय कार्रवाई की भी आवश्यकता है ताकि TB रोग से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या को कम किया जा सके।

क्षय रोग (Tuberculosis) क्या है?

  • परिचय:
    • क्षय रोग माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होने वाला एक संक्रमण है। यह व्यावहारिक रूप से शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। इनमें सबसे आम हैं फेफड़े, फुस्फुस (फेफड़ों के चारों ओर की परत), लिम्फ नोड्स, आँत, रीढ़ और मस्तिष्क।
  • ट्रांसमिशन:
    • यह एक वायवीय संक्रमण है जो संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क से फैलता है,  विशेषकर खराब वेंटिलेशन वाले घनी आबादी वाले स्थानों में।
  • लक्षण:
    • TB के सामान्य लक्षण हैं बलगम वाली खाँसी और कभी-कभी खून आना, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वज़न कम होना, बुखार तथा रात में पसीना आना।
  • इलाज:
    • TB एक इलाज योग्य उपचारात्मक बीमारी है। इसका इलाज 4 रोगाणुरोधी दवाओं के 6 महीने के मानक पाठ्यक्रम के साथ किया जाता है जिसके तहत एक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता या प्रशिक्षित स्वयंसेवक द्वारा रोगी को जानकारी, पर्यवेक्षण एवं सहायता प्रदान की जाती है।
    • TB-रोधी दवाओं का उपयोग दशकों से किया जा रहा है और सर्वेक्षण किये गए प्रत्येक देश में एक या अधिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी उपभेदों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है।
  • बहुऔषधि- रोधी क्षय रोग (MDR-TB):
    • MDR-TB का उपचार बेडाक्विलिन जैसी दूसरी पंक्ति की दवाओं के उपयोग से संभव है।
    • व्यापक रूप से औषधि- रोधी क्षय रोग (XDR-TB) MDR-TB का एक अधिक गंभीर रूप है जो बैक्टीरिया के कारण होता है, जिस पर दूसरी सबसे प्रभावी क्षय रोग प्रतिरोधी दवाओं का प्रभाव नहीं पड़ता है जिसके कारण रोगियों के पास आमतौर पर उपचार का अन्य कोई विकल्प नहीं बचता है।
    • यह बैक्टीरिया के कारण होने वाली TB का एक रूप है जिस पर आइसोनियाज़िड और रिफैम्पिसिन जैसी सबसे प्रभावशाली क्षय रोग प्रतिरोधी औषधियों का कोई असर नहीं होता है।

शैक्षिक केन्द्रों में आत्महत्या के मामले

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) ने एक सर्वेक्षण किया है, जिसमें कोटा में बढ़ती छात्र आत्महत्याओं के चिंताजनक मुद्दे पर प्रकाश डाला गया है। 

  • लोकनीति-CSDS सर्वेक्षण को हिंदी में एक संरचित प्रश्नावली का उपयोग करके आमने-सामने आयोजित किया गया था, जिसमें अक्तूबर 2023 में 1,000 से अधिक छात्र शामिल थे। सैंपल में 30% लड़कियाँ शामिल थीं।  
  • कोटा के कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश से आते हैं। उनमें से लगभग आधे छोटे शहरों और कस्बों से हैं; केवल 14% गाँवों से आते हैं।

अधिक छात्रों के कोटा जाने के क्या कारण हैं?

  • परिवार और रिश्तेदारों का प्रभाव:
    • बड़ी संख्या में छात्रों के परिवार के सदस्य या रिश्तेदार कोटा में पढ़ते हैं, जिससे कोटा आने का उनका निर्णय प्रभावित हुआ।
    • सोशल मीडिया और दोस्तों तथा माता-पिता की सिफारिशें भी उनके निर्णय में भूमिका निभाती हैं।
  • प्रवेश परीक्षा पर फोकस:
    • कोटा में छात्र मुख्य रूप से NEET (मेडिकल प्रवेश परीक्षा) और JEE (इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा) की तैयारी करते हैं।
    • NEET लड़कियों के बीच अधिक लोकप्रिय है, जबकि JEE को लड़कों द्वारा पसंद किया जाता है।
  • नियमित उपस्थिति के बिना प्रतिरूपी  स्कूल: 
    • प्रवेश परीक्षा के लिये बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करना एक शर्त है। कोटा में अधिकांश छात्र 'प्रतिरूपी स्कूलों' में नामांकित हैं, जिन्हें नियमित उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है और केवल बोर्ड परीक्षा में बैठने की सुविधा होती है।

NCRB की ADSI रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में आत्महत्याओं की स्थिति क्या है?

  • समग्र आत्महत्या स्थिति:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्याएँ (ADSI) 2021 के अनुसार, वर्ष 2021 के दौरान देश में कुल 1,64,033 आत्महत्याएँ हुईं, जो वर्ष 2020 की तुलना में 7.2% की वृद्धि दर्शाती हैं।
    • वर्ष 2021 में भारत में आत्महत्या की दर 12.0% थी।

Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): November 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

  • छात्रों में आत्महत्या की स्थिति:
    • भारत में वर्ष 2021 में प्रतिदिन 35 से अधिक की दर से 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई, वर्ष 2020 में 12,526 मृत्यु के साथ 4.5% की वृद्धि हुई, 10,732 आत्महत्याओं में से 864 मामलों में परीक्षा में विफलता ज़िम्मेदार है।
    • रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि वर्ष 2021 में छात्राओं की आत्महत्या का प्रतिशत पाँच वर्ष के निचले स्तर यानी 43.49% पर था, जबकि छात्रों के मामले में यह कुल छात्र आत्महत्याओं का 56.51% थी।
    • वर्ष 2017 में 4,711 छात्राओं ने आत्महत्या की, जबकि वर्ष 2021 में यह आँकड़ा  बढ़कर 5,693 हो गया।

शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाने वाले कारक कौन-से हैं?

  • शैक्षणिक दबाव:
    • माता-पिता, शिक्षकों और समाज की उच्च अपेक्षाओं के अनुरूप परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने के लिये अत्यधिक तनाव और दबाव इसका कारण बन सकता है।
    • असफल होने का यह दबाव कुछ छात्रों पर भारी पड़ सकता है, जिससे असफलता और निराशा की भावना पैदा होती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या:  
    • अवसाद, चिंता और बाईपोलर विकार जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का कारण हो सकती हैं।
    • ये स्थितियाँ तनाव, अकेलापन और समर्थन की कमी से और भी बदतर हो सकती हैं।
  • अलगाव और अकेलापन:  
    • शैक्षिक केंद्रों में कई छात्र दूर-दूर से आते हैं और अपने परिवार तथा दोस्तों से दूर रहते हैं।
    • यह अलगाव और अकेलेपन की भावना को जन्म दे सकता है, जो एक अपरिचित और प्रतिस्पर्द्धी माहौल में विशेष रूप से कठिन परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • वित्तीय चिंताएँ:  
    • वित्तीय कठिनाइयाँ, जैसे ट्यूशन फीस या रहने का खर्च वहन करने में सक्षम न होना, छात्रों के लिये बहुत अधिक तनाव और चिंता पैदा कर सकता है।
    • इससे निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती है। 
  • समर्थन की कमी:  
    • शिक्षण संस्थानों में कई छात्र कठिनाइयों का सामना करते समय सहायता लेने में संकोच करते हैं। 
    • यह मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों, अपमान या न्याय के डर के कारण हो सकता है। 
    • समर्थन की इस कमी से निराशा और हताशा की भावना पैदा हो सकती हैं। 
  • विफलता की निंदा:
    • भारतीय समाज में प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलता के चलते अक्सर विद्यार्थियों की निंदा की जाती है। छात्रों को अपने संघर्षों को स्वीकार करने या अपने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करने में शर्म महसूस हो सकती है, जिससे उन्हें समर्थन की कमी महसूस हो सकती है।

आगे की राह

  • छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, परामर्श सेवाओं, सहायता समूहों और मनोरोग सेवाओं जैसे संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने से आत्महत्या को रोकने में मदद मिल सकती है। इसके अतिरिक्त स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा में शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्रों को प्रशिक्षित करना चाहिये।
  • मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के बारे में खुली चर्चा के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और मदद मांगने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देना चाहिये।
  • छात्रों के समग्र कल्याण में सुधार और तनाव, चिंता एवं अवसाद को कम करने हेतु गरीबी, बेघर तथा बेरोज़गारी जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित किया जाना चाहिये।

मानसिक स्वास्थ्य के लिये भारतीय सेना के सक्रिय उपाय

चर्चा में क्यों?

भारतीय सेना द्वारा अपने रैंकों के अंतर्गत आत्महत्या तथा भ्रातृहत्या के गंभीर मुद्दे को स्वीकार करते हुए अपने कर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये महत्त्व पूर्ण कदम उठाए गए हैं।

  • डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजिकल रिसर्च (DIPR) के सहयोग से अगस्त 2023 में शुरू किये गए एक व्यापक अध्ययन में सेना सैनिकों तथा उनके परिवारों को प्रभावित करने वाले तनाव कारकों को समझने एवं कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
  • DIPR भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के अधीन एक संस्थान है, जो रक्षा तथा सुरक्षा क्षेत्र का समर्थन करने के लिये मनोविज्ञान व मानव व्यवहार के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिये कार्य करता है।

सेना कर्मियों को किन तनावों का सामना करना पड़ता है?

  • सर्विस थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI) ने एक अध्ययन में पाया कि पिछले दो दशकों में ऑपरेशनल और नॉन-ऑपरेशनल तनाव के कारण सेना के जवानों के बीच तनाव के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • ऑपरेशनल तनाव: सैन्य सेवा की प्रकृति और शर्तों से संबंधित, जैसे
  • उग्रवाद-विरोधी और आतंकवाद-विरोधी (CI/CT) वातावरण में लंबे समय तक संपर्क में रहना, जिसमें उच्च जोखिम, अनिश्चितता तथा हिंसा शामिल है।
  • बार-बार स्थानांतरण और परिवार से अलगाव, जिसका प्रभाव सैनिकों के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन पर पड़ता है।
  • पर्याप्त सुविधाओं और बुनियादी ढाँचे का अभाव, विशेषकर सुदूर एवं कठिन क्षेत्रों में।
  • नॉन-ऑपरेशनल तनाव: सैन्य सेवा के संगठनात्मक और व्यक्तिगत पहलुओं से संबंधित, जैसे
  • खराब नेतृत्व, वरिष्ठों का उदासीन रवैया, और आदेश की क्रम में विश्वास तथा भरोसे की कमी।
  • आपात्कालीन स्थिति में भी छुट्टी से इनकार और शिकायत निवारण तंत्र की कमी।
  • परिवार से संबंधित विवाद, वित्तीय समस्याएँ, वैवाहिक मुद्दे या स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ।
  • विशेषकर अधिकारियों के बीच नौकरी से संतुष्टि, कॅरियर में प्रगति और मान्यता में कमी।

सेना के भीतर मानसिक कल्याण हेतु क्या पहल लागू की गई हैं?

  • सलाह और दिशा-निर्देश:
    • सेना ने अगस्त 2023 में एक एडवाइज़री जारी की, जिसमें तनाव और मनोवैज्ञानिक मुद्दों के समाधान के लिये प्रत्येक इकाई में अधिकारियों, धार्मिक शिक्षकों और चयनित अन्य रैंकों की नियुक्ति पर ज़ोर दिया गया।
    • सलाहकार तनाव के स्तर में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार कारकों, चेतावनी संकेतों और हस्तक्षेप उपायों को संबोधित करने हेतु दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
  • साइकोमेट्रिक आकलन:
    • सैन्य कर्मियों और उनके परिवारों की मानसिक स्वास्थ्य के आकलन के लिये तीन नोडल सैन्य स्टेशनों पर एक सिविल एजेंसी (दिशा किरण) के सहयोग सहित पायलट परियोजनाएँ शुरू की जा रही हैं।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम:
    • विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू किये जाते हैं- जैसे रक्षा मनोवैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान (DIPR) में 30 अधिकारियों का वार्षिक प्रशिक्षण और कमांड अस्पतालों, बेस अस्पतालों और सैन्य अस्पतालों में चार सप्ताह के लिये "धार्मिक शिक्षक परामर्शदाता पाठ्यक्रम" का संचालन।
  • यूनिट मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता पाठ्यक्रम:
    • जूनियर कमीशंड अधिकारियों और गैर-कमीशंड अधिकारियों को उनकी इकाइयों के भीतर मनोवैज्ञानिक चिंताओं को संबोधित करने के कौशल से लैस करने के लिये 12-सप्ताह का यूनिट मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता पाठ्यक्रम आयोजित किया जाता है।
    • भारतीय सेना ने सभी रैंकों के मानसिक कल्याण हेतु समर्थन बढ़ाने के लिये सभी प्रमुख सैन्य स्टेशनों में नागरिक परामर्शदाताओं को नियुक्त किया है।
  • हेल्पलाइन: 
    • तत्काल परामर्श सेवाएँ प्रदान करने वाली हेल्पलाइनें सभी कमान मुख्यालयों में स्थापित की गई हैं।
  • मनोरोग केंद्र:
    • इन्हें चिकित्सा सेवा महानिदेशालय के तहत प्रमुख सैन्य स्टेशनों पर स्थापित किया गया है।
  • समग्र दृष्टिकोण: 
    • इन उपायों में योग, ध्यान, खेल और मनोरंजन गतिविधियाँ, उदारीकृत छुट्टी नीतियाँ, सैन्य स्टेशनों में सुविधाओं में सुधार, सैनिकों के लिये पारस्परिक मित्र प्रणाली एवं त्वरित शिकायत निवारण तंत्र शामिल हैं।
    • मानसिक कल्याण, वित्तीय प्रबंधन और घरेलू मुद्दों पर नियमित सेमिनार आयोजित किये जाते हैं।
  • सतत् मूल्यांकन और सुधार:
    • चल रहे अध्ययन, प्रशिक्षण कार्यक्रम और सहयोगी परियोजनाएँ मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान में निरंतर मूल्यांकन और सुधार के लिये सेना की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) द्वारा दायर याचिका के मामले में  सुनवाई करते हुए देश में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने और इसे सरल बनाने के लिये केंद्र, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को कई निर्देश जारी किये हैं। 

  • न्यायालय ने दत्तक ग्रहण की कम दर और स्थायी परिवार के बिना बाल देखभाल संस्थानों (CCI) में बड़ी संख्या में रहने वाले बच्चों को लेकर भी चिंता व्यक्त की है।

दत्तक ग्रहण के विषय में सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा?

  • न्यायालय ने कहा कि CCI में रहने वाले बच्चों, जिनके माता-पिता एक वर्ष से अधिक समय से उनसे मिलने नहीं आए हैं या जिनके माता-पिता या अभिभावक "अयोग्य" हैं, उनकी पहचान की जानी चाहिये और उन्हें दत्तक श्रेणी के अंतर्गत लाना चाहिये।
    • न्यायालय ने ‘अयोग्य अभिभावक’ को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जो “माता-पिता बनने के लिये अयोग्य या अनिच्छुक’ है, जो मादक द्रव्यों का सेवन करता है, दुर्व्यवहार या शराब में लिप्त है, बच्चे के साथ दुर्व्यवहार या उसकी उपेक्षा करता है, जिसका आपराधिक रिकॉर्ड है, जिसे स्वयं देखभाल की आवश्यकता है या जो मानसिक रूप से अस्वस्थ है आदि”।
  • न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को CCI में अनाथ-परित्यक्त-आत्मसमर्पित (OAS) श्रेणी में बच्चों की पहचान करने हेतु द्विमासिक अभियान शुरू करने का आदेश दिया।
  • न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दत्तक ग्रहण के लिये संभावित बच्चों, विशेष रूप से CCI में कमज़ोर बच्चों पर डेटा संकलित करने तथा विवरण केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority- CARA) और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपने का भी निर्देश दिया।  
  • न्यायालय ने कहा कि राज्यों को भारत में दत्तक ग्रहण के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स इंफॉर्मेशन एंड गाइडेंस सिस्टम (CARINGS) पोर्टल पर ज़िले के सभी OAS बच्चों का पंजीकरण सुनिश्चित करना चाहिये।

भारत में दत्तक ग्रहण के वर्तमान रुझान तथा आँकड़े क्या हैं?

  • CARA के अनुसार, देश में सालाना लगभग 4,000 बच्चे गोद लिये जाते हैं, जबकि वर्ष 2021 तक 3 करोड़ से अधिक अनाथ थे।
  • CARA के ऑनलाइन पोर्टल CARINGS के अनुसार, विधिक रूप से गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों तथा संभावित दत्तक माता-पिता (Prospective Adoptive Parents- PAPs) की संख्या के बीच भी एक बड़ा अंतराल है।
  • PAPs ऐसे व्यक्ति अथवा युग्म हैं जो दत्तक माता-पिता बनने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
  • CARA द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के राज्य-वार विश्लेषण से पता चला कि अक्तूबर 2023 तक 2,146 बच्चे गोद लेने के लिये उपलब्ध थे।
  • इसके विपरीत अक्तूबर 2023 तक लगभग 30,669 PAPs को देश में गोद लेने के लिये पंजीकृत किया गया है।
  • पंजीकृत PAPs तथा गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों की संख्या में भारी बेमेल के कारण PAPs को 'स्वस्थ तथा छोटा बच्चा' गोद लेने के लिये तीन से चार वर्ष तक प्रतीक्षा करना पड़ती है।
  • CARA के सारणीकरण से पता चलता है कि 69.4% पंजीकृत PAPs शून्य से दो वर्ष की आयु के बच्चों को चुनते हैं; 10.3% दो से चार वर्ष के आयु वर्ग को तथा 14.8% चार से छह वर्ष के आयु वर्ग को चुनते हैं।
  • इसके अतिरिक्त देश के 760 ज़िलों में से केवल 390 ज़िलों में विशिष्ट दत्तक ग्रहण अभिकरण मौजूद हैं।

Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): November 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

भारत में दत्तक ग्रहण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • लंबी तथा जटिल दत्तक ग्रहण प्रक्रिया:
    • भारत में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जिसे बाद में 2021 में संशोधित किया गया था) तथा हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) द्वारा शासित गोद लेने की प्रक्रिया में अनेक जटिल चरण शामिल हैं।
    • इसके चरणों में पंजीकरण, गृह अध्ययन, बच्चे का रेफरल, मिलान, स्वीकृति, गोद लेने से पहले पालन-पोषण की देखभाल, न्यायालय का आदेश तथा अनुवर्ती कार्रवाई शामिल है।
    • गोद लेने की प्रक्रिया की विस्तारित समय-सीमा बच्चों की उपलब्धता, माता-पिता की प्राथमिकताएँ, अधिकारियों की दक्षता तथा विधिक औपचारिकताओं जैसे कारकों से प्रभावित होती है।
  • दत्तक को वापस लौटाने की उच्च दर:
    • वर्ष 2017-19 के बीच CARA द्वारा रिपोर्ट किये गए चाइल्ड रिटर्न में असामान्य वृद्धि चिंता का विषय है।
    • आँकड़ों के अनुसार, लौटाए गए बच्चों में से 60% लड़कियाँ थीं, 24% दिव्यांग थे तथा कई छह वर्ष से अधिक उम्र के थे।
    • ऐसी चुनौतियाँ इसलिये उत्पन्न होती हैं क्योंकि दिव्यांग तथा बड़े बच्चों को दत्तक परिवारों में विस्तारित समायोजन अवधि का सामना करना पड़ता है, जो नए पारिवारिक वातावरण में ढलने को लेकर अपर्याप्त तैयारी तथा संस्थानों से परामर्श के कारण और भी जटिल हो जाता है।
  • दिव्यांग बच्चों का सीमित दत्तक ग्रहण:
    • वर्ष 2018 तथा 2019 के बीच केवल 40 दिव्यांग बच्चों को गोद लिया गया, जो वर्ष में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या का लगभग 1% था।
    • वार्षिक रुझानों से पता चलता है कि दिव्यांग बच्चों को घरेलू तौर पर गोद लेने की संख्या में कमी आई है, जो गोद लेने के परिदृश्य में असमानता को उजागर करता है।
  • बाल तस्करी के मुद्दे:
    • गोद लेने योग्य बच्चों की घटती संख्या के कारण अवैध दत्तक ग्रहण की गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
    • महामारी के दौरान बाल तस्करी का खतरा, विशेष रूप से गरीब या हाशिये पर रहने वाले परिवारों के प्रभावित होने से नैतिक और कानूनी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • दत्तक ग्रहण के लिये बाल तस्करी से कानूनी दत्तक ग्रहण की प्रक्रियाओं की अखंडता  कमज़ोर होती है और प्रणाली के प्रति विश्वास की कमी के कारण सामाजिक व्यवधान की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • पारंपरिक पारिवारिक मानदंड और LGBTQ+ परिवार:
    • गोद लेने के इच्छुक LGBTQ+ परिवारों के लिये कानूनी मान्यता चुनौतियाँ, दत्तक माता-पिता बनने की उनकी क्षमता में बाधा डालती हैं, जिससे समलैंगिक समुदाय के भीतर अवैध दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में वृद्धि होती है।
  • सामाजिक कलंक और जागरूकता की कमी:
    • गोद लेने को लेकर सामाजिक कलंक, विशेष रूप से कुछ जनसांख्यिकी के लिये गोद लेने की दर को प्रभावित करता है।
    • गोद लेने की प्रक्रिया के बारे में सीमित जागरूकता गलत धारणाओं को बढ़ावा देती है और भावी दत्तक माता-पिता के लिये बाधाएँ उत्पन्न करती है।
  • भ्रष्टाचार और मुकदमेबाज़ी:
    • दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के मामले इसकी अखंडता से समझौता करते हैं और चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
    • कानूनी विवाद और मुकदमे दत्तक ग्रहण की कार्यवाही को और धीमा कर देते हैं, जिससे समग्र प्रक्रिया में जटिलताएँ बढ़ जाती हैं।

बच्चों और समाज के लिये दत्तक ग्रहण के क्या लाभ हैं?

  • माता-पिता की देखभाल से वंचित बच्चों को गोद लेने से एक प्रेम भरा और स्थिर पारिवारिक माहौल मिल सकता है।
  • दत्तक ग्रहण से बच्चों का समग्र विकास और कल्याण सुनिश्चित हो सकता है, जिसमें उनकी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक एवं शैक्षणिक ज़रूरतें भी शामिल हैं।
  • दत्तक ग्रहण से राज्य और समाज पर बोझ कम करके और बच्चों को उत्पादक और ज़िम्मेदार नागरिक बनने के लिये सशक्त बनाकर देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भी योगदान दिया जा सकता है।
  • यह एक सकारात्मक दत्तक ग्रहण की संस्कृति विकसित करता है, सामाजिक कलंक को तोड़ता है और दत्तक ग्रहण के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है।

आगे की राह 

  • CCI में अयोग्य माता-पिता या अभिभावकों वाले बच्चों की सक्रिय रूप से पहचान करना, यह सुनिश्चित करना कि उन्हें स्थायी परिवार में शामिल होने का मौका देने के लिये तुरंत दत्तक ग्रहण श्रेणी में लाया जाए।
  • नए दत्तक परिवारों में स्थानांतरित होने के लिये बच्चों, विशेष रूप से बड़ी उम्र के और विकलांग बच्चों को तैयार करने तथा परामर्श देने के लिये संस्थागत प्रयासों को बढ़ाना।
  • एक सहज एकीकरण प्रक्रिया सुनिश्चित करते हुए समायोजन चुनौतियों का समाधान करने के लिये व्यापक कार्यक्रम विकसित करना।
  • गोद लेने के लाभों, कलंक और गलतफहमियों को दूर करने के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाना।
  • गोद लेने के लिये बाल तस्करी को रोकने और अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण के नियमों को मज़बूत करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग करना।
  • संस्थागतकरण के विकल्प के रूप में पालन-पोषण देखभाल कार्यक्रमों को विकसित करना और बढ़ावा देना, गोद लेने की प्रतीक्षा कर रहे बच्चों के लिये एक अस्थायी और पोषण वातावरण प्रदान करना।

चाइल्ड पोर्नोग्राफ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ के सांसदों ने ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी/बाल अश्लीलता चित्रण की पहचान करने और उसे हटाने के लिये अल्फाबेट की Google, मेटा और अन्य ऑनलाइन सेवाओं की आवश्यकता वाले नियमों का मसौदा तैयार करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें कहा गया कि इससे एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन प्रभावित नहीं होगा।

  • वर्ष 2022 में यूरोपीय आयोग द्वारा प्रस्तावित बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM) पर मसौदा नियम, ऑनलाइन सुरक्षा उपायों के समर्थक और निगरानी के विषय में चिंतित गोपनीयता कार्यकर्त्ताओं के बीच विवाद का विषय रहा है।
  • यूरोपीय आयोग ने तकनीकी कंपनियों द्वारा स्वैच्छिक पहचान और रिपोर्टिंग सिस्टम की अपर्याप्तता को संबोधित करते हुए CSAM की पहचान करने तथा उसे हटाने के लिये ऑनलाइन सेवाओं की आवश्यकता वाले नियमों का प्रस्ताव रखा।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी/बाल अश्लीलता चित्रण क्या है?

  • परिचय:
    • चाइल्ड पोर्नोग्राफी से तात्पर्य स्पष्टतः नाबालिगों से जुड़ी यौन सामग्री के निर्माण, वितरण या परिग्रह से है। भारत और विश्व स्तर पर यह गंभीर प्रभाव वाला एक जघन्य अपराध है, जो बच्चों के यौन शोषण और उनसे दुर्व्यवहार जारी रखता है।
    • ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी डिजिटल शोषण की अभिव्यक्ति है, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से नाबालिगों से जुड़ी स्पष्ट यौन सामग्री के उत्पादन, वितरण या परिग्रह को संदर्भित करती है।
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2019 चाइल्ड पोर्नोग्राफी को स्पष्ट तौर पर किसी बच्चे से जुड़े यौन आचरण के किसी भी दृश्य चित्रण के रूप में परिभाषित करता है जिसमें फोटोग्राफ, वीडियो, डिजिटल या कंप्यूटर से उत्पन्न छवियाँ शामिल होती हैं जो वास्तविक बच्चे से अप्रभेद्य हैं। 
  • भारतीय परिदृश्य:
    • चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामलों में बढ़ोतरी भारत में ऑनलाइन बाल यौन शोषण की गंभीर स्थिति को दर्शाती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के 738 मामले थे जो वर्ष 2021 में बढ़कर 969 हो गए थे।   
  • प्रभाव:
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: पोर्न बच्चों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है। यह अवसाद, क्रोध तथा चिंता से संबंधित है। इससे मानसिक पीड़ा हो सकती है। इसका प्रभाव बच्चों के दैनिक कामकाज़, उनकी जैविक क्रियाओं (Biological Clock), कार्य एवं सामाजिक संबंधों पर भी पड़ता है।
    • कामुकता पर प्रभाव: इसे नियमित रूप से देखा जाना यौन संतुष्टि और यौन उत्तेजना की भावना उत्पन्न करता है, जिससे वास्तविक जीवन में भी समान कृत्य करने की इच्छा उत्पन्न होती है।
    • यौन व्यसन: कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, पोर्नोग्राफी एक व्यसन की भाँति की तरह है। यह मस्तिष्क पर वैसा ही प्रभाव उत्पन्न करता है जैसा नियमित रूप से नशीली दवाओं अथवा शराब के सेवन से होता है।
    • व्याहारिक प्रभाव: किशोरों में पोर्नोग्राफी का उपयोग, खासकर पुरुषों के मामले में, लैंगिक रूढ़िवादिता में मज़बूत विश्वास से जुड़ा है। जो पुरुष किशोर अक्सर पोर्नोग्राफी देखते हैं, उनके द्वारा महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में देखे जाने की अधिक संभावना होती है।
    • महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और हिंसा को प्रोत्साहित करने वाले विचारों को पोर्नोग्राफी द्वारा प्रबलित किया जा सकता है।

पोर्नोग्राफी से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • उच्च वर्ग के बच्चों की तुलना में निम्न वर्ग के बच्चों में पोर्नोग्राफी का प्रभाव अलग होता है। कोई भी एकल दृष्टिकोण समस्या को प्रभावी ढंग से हल में सक्षम नहीं होगा।
  • भारत में सेक्स को नकारात्मक (कुछ ऐसा जिसे छिपाया जाना चाहिये) रूप में देखा जाता है। सेक्स के संबंध में कोई स्वस्थ पारिवारिक संवाद नहीं होता है। इससे बच्चा बाहर से सीखता है और उसे पोर्नोग्राफी की लत लग जाती है।
  • एजेंसियों के लिये चाइल्ड पोर्नोग्राफी की गतिविधियों का पता लगाना और उन पर प्रभावी ढंग से निगरानी रखना बहुत मुश्किल है।
  • नियमित रूप से वेबसाइट्स और अमेजॅन प्राइम, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार इत्यादि जैसी OTT (ओवर द टॉप) सेवाओं पर अश्लील सामग्री की उपलब्धता से गैर-अश्लील तथा अश्लील सामग्री के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।

आगे की राह

  • चाइल्ड पोर्न और बच्चों के बीच पोर्नोग्राफी के बीच अंतर करने की आवश्यकता है। जबकि चाइल्ड  पोर्न तथा यौन हिंसा दिखाने वाले पोर्न पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये, अन्य पोर्नोग्राफी के विनियमन की आवश्यकता है।
  • उदाहरण के लिये सामान्यतः किसी बच्चे का पहली बार पोर्न से संपर्क आकस्मिक होता है। इंटरनेट पर अन्य चीज़ों को ब्राउज़ करते समय विज्ञापन के रूप में, सरकार को इस तरह के आकस्मिक जोखिम को रोकने के लिये तकनीकी समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिये।
  • जागरूकता के साथ यौन शिक्षा बहुत ज़रूरी है, इसलिये स्कूलों में इसे अनिवार्य किया जाना चाहिये। माता-पिता और शिक्षकों को आधुनिक प्रौद्योगिकी में बच्चों के साथ व्यवहार करने में कुशल होना चाहिये।
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FAQs on Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): November 2023 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. सरोगेसी कानून क्या है?
उत्तर: सरोगेसी कानून एक कानून है जो गर्भधारण करने वाली महिलाओं के लिए बनाया गया है जो अपनी गर्भधारण की प्रक्रिया किसी अन्य महिला को सौंपने के लिए तत्पर होती हैं। यह कानून गर्भधारण के अनुमति प्रक्रिया, मुद्दों से संबंधित जुड़े अधिकार और दायित्वों को नियंत्रित करने के लिए निर्धारित नियम और विधियों को संचालित करता है।
2. विश्व क्षय रोग रिपोर्ट, 2023 क्या है?
उत्तर: विश्व क्षय रोग रिपोर्ट, 2023 एक रिपोर्ट है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी की गई है। यह रिपोर्ट क्षय रोग (टीबी) से संबंधित नवीनतम जानकारी, चिकित्सा उपचार, संचार, रोकथाम और नियंत्रण के प्रयासों को शामिल करती है। इस रिपोर्ट में विश्वभर की देशों के टीबी के मामलों का विवरण दिया गया है और इससे संबंधित नवीनतम निरीक्षण, जांच, उपचार और नीतियों का विश्लेषण किया गया है।
3. शैक्षिक केन्द्रों में आत्महत्या के मामले क्या हैं?
उत्तर: शैक्षिक केन्द्रों में आत्महत्या के मामले विद्यार्थियों के बीच में आत्महत्या की घटनाएं हैं। इन मामलों में विद्यार्थी अपनी जिम्मेदारियों, चाहे वे अध्ययन संबंधित हों या सामाजिक हों, से निपटने में असमर्थ महसूस करते हैं। यह एक चिंता का विषय है जो शैक्षिक संस्थानों में ज्यादातर छात्रों के बीच मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण हो सकती है।
4. मानसिक स्वास्थ्य के लिए भारतीय सेना के सक्रिय उपाय क्या हैं?
उत्तर: भारतीय सेना ने मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए कई सक्रिय उपाय अपनाए हैं। यह सेना अपने सदस्यों की मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने, स्वास्थ्य सेवाओं की प्रदान करने, प्रोत्साहन कार्यक्रम आयोजित करने और मनोवैज्ञानिक सलाह उपलब्ध कराने के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य को संरक्षित करने का प्रयास कर रही है।
5. नवंबर 2023 में भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दों के बारे में क्या हो सकता है?
उत्तर: नवंबर 2023 में भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दों के बारे में विभिन्न विषयों पर महत्वपूर्ण चर्चाएं हो सकती हैं। इस महीने में इस्तेमाल होने वाले मुद्दों में शिक्षा, जाति, धर्म, नागरिकता, न्याय, सामाजिक समानता, महिला सशक्तिकरण, गरीबी उन्मूलन, बाल मजदूरी, स्वच्छता, और पर्यावरण संरक्षण शामिल हो सकते हैं।
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