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Important Questions : द्वेष करनेवाले का जी नही भरता | Hindi (Bal Mahabharat Katha) Class 7 PDF Download

प्रश्न 1: कौन दुर्योधन की चापलूसी किया करते थे?
उत्तर: कर्ण और शकुनि दुर्योधन की चापलूसी किया करते थे।

प्रश्न 2: धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को वन जाने की अनुमति क्यों दे दी?
उत्तर: दुर्योधन ने विश्वास दिलाया कि पांडव जहाँ होंगे, वहाँ वे सब नहीं जाएँगे और बड़ी सावधानी से काम लेंगे। विवश होकर धृतराष्ट्र ने अनुमति दे दी।

प्रश्न 3: दुर्योधन ने कर्ण के सामने अपनी कौन सी इच्छा प्रकट की?
उत्तर: दुर्योधन ने कर्ण से कहा-“कर्ण, मैं तो चाहता हूँ कि पांडवों को मुसीबतों में पड़े हुए अपनी आँखों से देखूँ। इसलिए तुम और मामा शकुनि कुछ ऐसा उपाय करो कि वन में जाकर पांडवों को देखने की पिता जी से अनुमति मिल जाए।”

प्रश्न 4: धृतराष्ट्र को पांडवों के हाल-चाल के बारे में किस प्रकार पता चला और उन्हें वह जानकर कैसा लगा?
उत्तर: पांडवों के वनवास के दिनों में कई ब्राह्मण उनके आश्रम गए थे। वहाँ से लौटकर वे हस्तिनापुर पहुँचे और धृतराष्ट्र को पांडवों के हाल-चाल सुनाए। धृतराष्ट्र ने जब यह सुना कि पांडव वन में बड़ी तकलीफें उठा रहे हैं, तो उनके मन में चिंता होने लगी।

प्रश्न 5: कर्ण ने दुर्योधन को वन में जाकर पांडवों को देखेने का कौन सा उपाय बताया?
उत्तर: कर्ण ने दुर्योधन को बताया कि द्वैतवन में कुछ बस्तियाँ हैं, जो उनके अधीन हैं। हर साल उन बस्तियों में जाकर चौपायों की गणना करना राजकुमारों का ही काम होता है। बहुत समय से यह प्रथा चली आ रही है। इसलिए उस बहाने हम पिता जी की अनुमति आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 6: गंधर्वो और कौरवों के बीच घोर संग्राम का क्या परिणाम निकला?
उत्तर: अकेला दुर्योधन लड़ाई के मैदान में अंत तक डटा रहा। गंधर्वराज चित्रसेन ने उसे पकड़ लिया। जब युधिष्ठिर ने सुना कि दुर्योधन व उसके साथी अपमानित हुए हैं, तो उसने भीमसेन को किसी भी तरह से अपने बंधुओं को गंधर्वो के बंधन से छुड़ा लाने को कहा। युधिष्ठिर के आग्रह पर भीम और अर्जुन ने कौरवों को गंधर्वराज से बंधनमुक्त करा लिया।

प्रश्न 7: गंधर्वो और कौरवों की सेनाएँ के बीच घोर संग्राम छिड़ने का क्या कारण था?
उत्तर: गंधर्वराज चित्रसेन भी अपने परिवार के साथ उसी जलाशय के तट पर डेरा डाले हुए था। दुर्योधन के अनुचर जलाशय के पास गए और किनारे पर तंबू गाड़ने लगे। इस पर गंधर्वराज के नौकर बहुत बिगड़े और दुर्योधन के अनुचरों की उन्होंने खूब खबर ली। वे कुछ न कर सके और अपने प्राण लेकर भाग खड़े हुए। दुर्योधन को जब इस बात का पता चला, तो उसके क्रोध की सीमा न रही। वह अपनी सेना लेकर तालाब की ओर बढ़ा। वहाँ पहुँचना था कि गंधर्वो और कौरवों की सेनाएँ आपस में भिड़ गईं। घोर संग्राम छिड़ गया।

प्रश्न 8: ब्राह्मणों ने दुर्योधन को कौन सा यज्ञ करने की सलाह दी?
उत्तर: ब्राह्मणों ने दुर्योधन को वैष्णव नामक यज्ञ करने की सलाह दी।

प्रश्न 9: पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन की इच्छा कौन सा यज्ञ करने की थी?
उत्तर: पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन की इच्छा राजसूय यज्ञ करने की थी।

प्रश्न 10: दुर्योधन राजसूय यज्ञ क्यों नहीं कर सकते थे?
उत्तर: पंडितों के अनुसार धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर के रहते हुए दुर्योधन राजसूय यज्ञ नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 11: कौन से ऋषि अपने शिष्यों के साथ दुर्योधन के राजभवन में पधारे?
उत्तर: महर्षि दुर्वासा अपने दस हजार शिष्यों को साथ लेकर दुर्योधन के राजभवन में पधारे।

प्रश्न 12: दुर्योधन के सत्कार से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने क्या कहा?
उत्तर: दुर्योधन के सत्कार से ऋषि बहुत प्रसन्न हुए और कहा -" वत्स, कोई वर चाहो, तो माँग लो।”

प्रश्न 13: जब भीमसेन खाने का निमंत्रण देने गए तब दुर्वासा ऋषि ने क्या कहा?
उत्तर: दुर्वासा ने भीमसेन से कहा-"हम सब तो भोजन कर चुके हैं। युधिष्ठिर से जाकर कहना कि असुविधा के लिए हमें क्षमा करें।”

प्रश्न 14: शिष्य दुर्वासा से क्या कह रहे थे?
उत्तर: शिष्य दुर्वासा से कह रहे थे–“गुरुदेव! युधिष्ठिर से हम व्यर्थ में कह आए कि भोजन तैयार करके रखें। हमारा तो पेट भरा हुआ है। हमसे उठा भी नहीं जाता। इस समय तो हमारी जरा भी खाने की इच्छा नहीं है।”

प्रश्न 15: द्रौपदी की चिंतित होने का क्या कारण था?
उत्तर: जिस समय दुर्वासा ऋषि आए, उस समय सभी को खिला-पिलाकर द्रौपदी भी भोजन कर चुकी थी और सूर्य का अक्षयपात्र उस दिन के लिए खाली हो चुका था। इसीलिए द्रौपदी बड़ी चिंतित हो उठी।

प्रश्न 16: किसने किससे कहा?
(i) “वत्स, कोई वर चाहो, तो माँग लो।”
उत्तर:महर्षि दुर्वासा ने दुर्योधन से कहा।
(ii) “ज़रा लाओ तो अपना अक्षयपात्र। देखें कि उसमें कुछ है भी या नहीं।”
उत्तर: श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा।

प्रश्न 17: दुर्योधन ने ऋषि दुर्वासा से क्या प्रार्थना की?
उत्तर: दुर्योधन बोला-“मुनिवर ! प्रार्थना यही है कि जैसे आपने शिष्यों-समेत अतिथि बनकर मुझे अनुगृहीत किया है, वैसे ही वन में मेरे भाई पांडवों के यहाँ जाकर उनका भी सत्कार स्वीकार करें और फिर एक छोटी सी बात मेरे लिए करने की कृपा करें। वह यह कि आप अपने शिष्यों समेत ठीक ऐसे समय युधिष्ठिर के आश्रम में जाएँ, जब द्रौपदी पांडवों एवं उनके परिवार को भोजन करा चुकी हों और जब सभी लोग आराम से बैठे विश्राम कर रहे हों।”

प्रश्न 18: किसने और कैसे द्रौपदी की चिंता दूर की?
उत्तर: उसी समय श्रीकृष्ण कहीं से आ गए और द्रौपदी से बोले उन्हें भूख लगी है। उन्होंने द्रौपदी से अक्षयपात्र माँगा। जब उन्होंने उसमें देखा तो उसके एक छोर पर अन्न का एक कण और साग की पत्ती लगी हुई थी। श्रीकृष्ण ने उसे लेकर मुँह में डालते हुए मन में कहा- “यह भोजन हो, इससे उनकी भूख मिट जाए।” इस प्रकार दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों का पेट भर गया और ऋषि अपने शिष्यों सहित वहाँ से रवाना हो गए।

प्रश्न 19: युधिष्ठिर को अक्षयपात्र किसने दिया था और उसकी क्या विशेषता थी?
उत्तर: वनवास के प्रारंभ में युधिष्ठिर से प्रसन्न होकर सूर्य ने उन्हें एक अक्षयपात्र प्रदान किया था और कहा था कि बारह बरस तक इसके द्वारा मैं तुम्हें भोजन दिया करूंगा। इसकी विशेषता यह थी कि द्रौपदी हर रोज चाहे जितने लोगों को इस पात्र में से भोजन खिला सकेगी; परंतु सबके भोजन कर लेने पर जब द्रौपदी स्वयं भी भोजन कर चुकी होगी, तब इस बरतन की यह शक्ति अगले दिन तक के लिए लुप्त हो जाएगी।

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