Table of contents | |
परिभाषा | |
संधि – विच्छेद किसे कहते हैं | |
संधि के भेद | |
स्वर संधि किसे कहते हैं | |
व्यंजन संन्धि | |
विसर्ग संधि |
अतः हिन्दी व्याकरण में जब दो वर्णों या दो ध्वनियों का योग किया जाता है, तो शब्दों के वास्तविक रूप में परिवर्तन हो जाता है, इस परिवर्तन को ही संधि कहा जाता है। संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल अर्थात जब दो या दो से अधिक वर्ण मिलते है और एक शब्द बनाते है तो इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को संधि कहा जाता है। दो वर्णों के योग से उत्पन्न हुए परिवर्तन ही संधि है। इससे दो निर्दिष्ट वर्णों के रूप में विकार होता है और मिलने वाले शब्दों के योग से शाब्दिक अर्थ बदल जाता है।शब्दों के मेल से होने वाले रूपांतर को व्याकरण में संधि के रूप में अध्ययन किया जाता है।
उपरोक्त उदाहरणों से आप समझ सकते हैं कि किस तरह जब दो शब्दों को मिलाया जाता है, तो पहले शब्द के आखिरी अक्षर और दूसरे शब्द के पहले अक्षर में किस तरह परिवर्तन आता है। उपयुक्त दिए गए सभी उधारणों में जब दो शब्द मिल रहे है तो एक नया शब्द बन रहा है, शब्दों के मिलने से इनके अर्थ में थोड़ा बहुत परिवर्तन आ जाता है, जैसे – मान + चित्र के मिलने से मानचित्र शब्द बना जिसका अर्थ होता है किसी चित्र का मान ज्ञात करना परन्तु जब ये दो शब्द मिल जाते है का इसका अर्थ हो जाता है किसी स्थान के नक़्शे का मान ज्ञात करना।
दो या दो अधिक शब्दों के योग से बने नये शब्द के रूप, अर्थ और ध्वनियों में परिवर्तन आ जाता है। फलस्वरूप शब्द के उच्चारण और लेखन, दोनों के ही रचनाओं में भिन्नता आ जाती है। लेकिन जब उन शब्दों को पृथक किया जाता है तो वास्तविक शब्द अपने मूल रूप में आ जाते हैं। इस प्रक्रिया को ही संधि-विच्छेद कहा जाता है।
उदाहरण के लिए,
पहले उदाहरण को अगर आप ध्यान से देखें तो आप पायेंगे – महर्षि एक ही शब्द का प्रतीत होता है। लेकिन अगर हम इन्हें व्याकरण के नियमों के अंतर्गत पृथक करें तो ‘महा’ और ‘ऋषि’ शब्द अपने मूल रूप में आ जाते हैं।
संधि के मूल रूप से तीन ही प्रकार होते हैं। लेकिन संधि के पहले तत्व ‘स्वर संधि’ के पाँच प्रकार होते हैं। जिनका अध्ययन आप आगे करने वाले हैं। अन्य दो संधियों ‘व्यंजन और विसर्ग’ संधि के कोई प्रकार नहीं हैं,उनमें कुछ नियमों का पालन होता है। चलिये, तीनों प्रकारों को उदाहरण सहित समझते हैं।
जब दो स्वर वर्णों का मेल किया जाता है तो उससे उत्पन्न हुए विकार को स्वर संधि कहा जाता है। “अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ” – ये सारे वर्ण, स्वर वर्ण कहे जाते हैं।
उदाहरण के लिए :
स्वर संधि के पाँच प्रकार होते हैं:
इसके सभी प्रकारों को समझना आवश्यक है, इसलिए इन्हें एक-एक करके समझते हैं।
दो समान स्वरों की संधि, दीर्घ संधि कहलाती है। दो समान स्वर चाहे वो लघु हों या दीर्घ हों, दोनों मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि यदि दोनों पदों में ’अ’ ’आ’, ’इ’, ’ई’, ’उ’, ’ऊ’ जैसे वर्ण आये, तो वो दोनों मिलकर ’आ’ ’ई’ या ’ऊ’ बन जाते हैं।
उदाहरण के लिए,
यदि स्वर वर्णों की संधि में ’अ’ या ’आ’ के बाद ’इ’ या ’ई’ ’उ’ या ’ऊ’, ’ऋ’हो तो वे विकार से ’ए’ और ’अर्’बन जाते हैं।
उदाहरण के लिए,
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘ए’ या ‘ऐ’वर्णों का योग हो, तो उनके स्थान पर ‘औ’ बन जाता है। इस संधि को वृद्धि संधि कहा जाता है।
उदाहरण के लिए,
जब ’इ’ या ’ई’, ’उ’ या ’ऊ’ के वर्णों के साथ भिन्न स्वर वर्णों का मेल होता है, तो विकार कुछ इस प्रकार होते हैं:
इसके साथ–साथ दूसरे वाले शब्द के पहले स्वर की मात्रा य्, व्, र्में लग जाती है। इस प्रकार की स्वर संधि को यण् संधि कहा जाता है।
उदाहरण के लिए,
अयादि संधि का विकार तब उत्पन्न होता है जब ’ए’, ’ऐ’, ’ओ’ या ’औ’ के बाद किसी अलग स्वर वर्ण का योजन होता है। ऐसी स्थिति में,
’औ’ का ‘आव’ के रूप में रूपांतर हो जाता है।
उदाहरण के लिए,
यदि योग होने वाले दो वर्णों में से एक वर्ण व्यंजन हो और दूसरा व्यंजन या वर्ण (कोई भी एक हो), तो वर्णों की ये संधि ‘व्यंजन संधि’ कहलाती है।
उदाहरण के लिए,
वर्णों और शब्दों की ऐसी संधि जिसमें पहले के अंत में विसर्ग (:) ध्वनि होती है, तो उत्पन्न हुए विकार को विसर्ग संधि कहा जाता है।
उदाहरण के लिए,
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1. संधि क्या होती है और इसका महत्व क्या है? |
2. संधि के कितने भेद होते हैं और उनके उदाहरण क्या हैं? |
3. स्वर संधि को कैसे पहचाना जा सकता है? |
4. व्यंजन संधि का उदाहरण क्या है और यह कैसे होती है? |
5. विसर्ग संधि क्या होती है और इसका उपयोग कब होता है? |
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