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अभ्यास प्रश्न: संक्षेपण | Course for UPPSC Preparation - UPPSC (UP) PDF Download

प्रश्न 1: निम्नलिखित गद्यांश का संक्षेपण (Precis) एक तिहाई शब्दों में लिखिए। शीर्षक देना अनिवार्य नहीं है। (शब्द-सीमा के अंतर्गत संक्षेपण न करने पर अंक काटे जा सकते हैं)-
समकालीन विश्व में, 'राष्ट्र' (Nation) और 'राष्ट्र-राज्य' (Nation state) की अवधारणा के बीच में व्यापक मतभेद है। 'राष्ट्र-राज्य' को परिभाषित करना अपेक्षाकृत आसान है, वे विश्व राजनीतिक संगठन की आधारभूत इकाईयाँ हैं। वे प्रायः प्रभुसत्ता-सम्पन्न राज्य के समरूप हैं। वे वह इकाइयाँ हैं जिनके पास संयुक्त राष्ट्र (UN) में सीट है, अंग्रेजी में, आमतौर पर उन्हें 'देश' नाम दिया गया है। यह सुविधा-जनक होगा यदि हम उनको 'राज्य' के नाम से सरल बना दें, लेकिन दुर्भाग्यवश यह नाम कुछ राष्ट्र-राज्यों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है जो वर्णित इकाइयों के राष्ट्र-राज्यों से छोटी हैं। राष्ट्र-राज्य और प्रभुसत्ता राज्य को बराबर करना लुभाने वाले हैं, लेकिन यह आधुनिक जगत की अस्थिर प्रकृति की प्रभुसत्ता हेतु भ्रामक होगा। असल में, सभी राष्ट्र-राज्यों ने अपनी प्रभुसत्ता का कुछ हिस्सा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को समर्पित कर रखा है, यहाँ यू एन (UN) एक अच्छा उदाहरण है- राष्ट्र-राज्यों से अधिकार तो वो लेता है, लेकिन देता नहीं है। राज्यों के बीच व्यवहार में यहाँ शक्ति के जटिल समझौते और सम्बन्ध होते हैं। एक छोर पर, यह कुछ बड़े राज्यों को व्यापक शक्ति देता है। दूसरे छोर पर, कई छोटे राज्य, स्पष्ट रूप से शक्तिशाली पड़ोसियों या अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के संरक्षण के नीचे हैं और असलियत में उन्हें कई क्षेत्रों में स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने की कोई गुंजाइश नहीं है।
अधिकांश राष्ट्र-राज्य खुद को 'राष्ट्र' के रूप में वर्णित करते हैं, इसलिए हम सरल रूप से उन्हें उनके कहे के अनुसार क्यों नहीं लेते और कहें कि राष्ट्र-राज्य और राज्य एकरूप हैं? यह संभव नहीं है क्योंकि यह भिन्न व्यवस्था का सूक्ष्मीकरण है। कानूनी रूप से, एक राष्ट्र-राज्य एक परिभाषित सत्ता है, एक राष्ट्र एक जनसमुदाय है। जबकि आधुनिक जनसमुदाय, जो सामान्यतया खुद को राष्ट्र के साथ राष्ट्र-राज्य के फैलाव में लाने का आकांक्षी होता है, राष्ट्र की वह परिभाषा, जो यह अपेक्षित करती है कि वह अपने राष्ट्र-राज्य पर प्रभुत्व स्थापित करे, भी प्रतिबन्धक है। अधिकांश टिप्पणीकार सहमत होंगे कि पूर्ववर्ती सोवियत यूनियन के गणराज्यों के बहुसंख्यक जनसमुदाय, जैसे कि जॉर्जीयंस, लूथियानन्स और उक्रेनियन्स स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व राष्ट्र थे और वह जनसमुदाय, जो अच्छी तरह से परिभाषित प्रादेशिक क्षेत्र थे, जैसे स्कॉटलैण्ड, वहाँ के बहुसंख्यक समझते हैं कि उन्हें भी उसी तरह राष्ट्र का दर्जा मिलना चाहिए। थोड़ी-सी अलग अभिव्यक्ति देते हुए, स्वायत्तता या स्वतंत्रता की आकांक्षा करना पर्याप्त है। यद्यपि ऊपरी तौर से राजशासन-व्यवस्था से साम्य रखते हुए आधुनिक राष्ट्र-राज्य काफी पुराने हैं, दस शताब्दी वर्ष पूर्व पीछे जाते हुए, विश्व के कुछ हिस्सों में, जैसे कि चीन, भारत और भूमध्यसागरीय प्रवाह में इन बहुत पुराने संगठनों की साधारण राज्यक्षेत्र के रूप में उत्पत्ति थी, जिसको एक सभ्यसमाज नियंत्रण करने में समर्थ था। पहले प्रकार की यह राज-शासन व्यवस्था इसी से विकसित हुई अथवा आधुनिक राष्ट्र-राज्य द्वारा पुनः धीरे-धीरे से स्थापित हुई और उसके निशान बड़ी मजबूती से आधुनिक समय में टिके रहे। 
ऐस्ट्रो-हंगेरियन, रसियन और ओटोमन साम्राज्य स्पष्ट रूप से राजवंशीय शासन थे, जो कि 1917-1918 तक विद्यमान रहे। इनके जनसमुदाय की कोई सामान्य राष्ट्रीय पहचान नहीं थी और सोवियत संघ, जो कि वास्तविक रूप से रूसी साम्राज्य की अनेक परम्पराओं को 1991 तक लेकर चला, संवैधानिक रूप से कई राष्ट्रों का एक राज्य था। यहाँ तक कि, आज कई ऐसे उदाहरण संभव हैं जहाँ राष्ट्र-राज्य और राज्य आसानी से मेल नहीं खाते। जबकि, वास्तविक रूप से सभी राष्ट्र राज्यों की सरकारें अपनी शासन-व्यवस्था को राष्ट्र के रूप में बतलाती हैं। कई राज्यों द्वारा नियंत्रित जनसमुदाय, जो कि राष्ट्रीय अस्मिता को स्वीकार नहीं करते हैं, को वहाँ के राज्य घोषित करते हैं। ब्रिटेन में, कई स्कॉट्स और वैल्स महसूस करते हैं कि वो एक स्कॉट्स या वैल्स हैं ना कि ब्रिटिश-राज्य या वो दोनों स्कॉटिश-ब्रिटिश या वैल्स-ब्रिटिश राष्ट्रीयता हैं। अरब देशों में कई यह महसूस करते हैं कि वह एक अरब राष्ट्र हैं न कि एक राष्ट्र, जो कि कई अरब राज्यों द्वारा परिभाषित होते हैं और जो इराक से मोरक्को और दक्षिण यमन तक फैले हैं। 
कई लोगों के लिए, एक मानव-जाति (राष्ट्र-रहित) की पहचान ही इतनी प्रबल है कि बदले में (राज्य निर्धारित) राष्ट्रीय पहचान कमजोर पड़ जाती है और आखिरकार वह महत्वहीन हो जाती है। यहाँ हम पहले अमेरिकन या अफ्रीकन मानव-जाति समूह (जन-जातियों) के कई सदस्यों के उदाहरण दे सकते हैं। यद्यपि राष्ट्र-राज्य और राष्ट्र दोनों समरूप नहीं हैं, निस्संदेह, दोनों सूक्ष्मता से जुड़े हुए हैं। एन्थोनी स्मिथ (देखें विशेषकर स्मिथ 1991) राष्ट्रों को उनमें विभाजित करते हैं जो कि मानव जाति समूहों में मुख्यतः विकसित हैं, जो अपनी मानव-जाति पहचान को रूपान्तरित और विस्तारित करते हुए खुद को विस्तृत जन-समुदाय तक फैलाते हैं और उनमें जो कि विशिष्ट विकसित राज्य हैं जहाँ राज्य में ही राष्ट्रीय पहचान की एक सामान्य समझ उदित हो चली है जो पूर्ववर्ती नानाविध जनसमुदाय को सम्मिलित करते हैं। (538 शब्द)

उत्तर: राष्ट्र एवं राष्ट्र-राज्य के मध्य अंतराल विद्यमान है। राष्ट्र-राज्य एक संप्रभु राजनीतिक संगठन है जिसे यू.एन. में भी सीट प्राप्त होती है। इसे अंग्रेजी भाषा में सामान्यतः देश (कंट्री) कहा जाता है। इन्हें सरल भाषा में राज्य कहा जा सकता है; हालांकि, यह कुछ अस्थिर प्रकार की संप्रभुता प्राप्त राष्ट्र-राज्यों के संदर्भ में भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है। इसे यू.एन. के उद्धरण से समझा जा सकता है। यह संगठन छोटे राष्ट्र-राज्यों के व्यवहार को तो प्रभावित करते हैं, साथ ही यह राष्ट्रों की किंचित संप्रभुता को भी अधिग्रहित करता है। राष्ट्र-राज्य का आशय एक परिभाषित सत्ता से है। पूर्व सोवियत यूनियन के गणराज्यों के बहुसंख्यक जनसमुदाय; जैसे जॉर्जीयंस, लूथियानन्स और उक्रेनियन्स स्वतंत्रता-पूर्व राष्ट्र कहे जा सकते थे। सतही तौर पर कुछ स्वायत्तता प्राप्त करके ये राष्ट्र-राज्य की श्रेणी में आ सकते हैं। राजशासन से साम्य रखते हुए आधुनिक राष्ट्र-राज्य काफी पुराने हैं। लगभग 10 शताब्दी वर्ष पूर्व चीन तथा भारत साधारण राज्य क्षेत्र के रूप में उत्पन्न हुए जिस पर सभ्य समाज के नियंत्रण से आद्य राष्ट्र-राज्य निर्मित हुए। रशियन और ऑटोमन साम्राज्य को किसी राष्ट्र की सीमा में नहीं बांधा जा सकता था। ऐसे ही रूसी गणराज्य विभिन्न राष्ट्रों का समूह कहा जा सकता है, ये आधुनिक समय तक टिके रहे थे। 
आज भी हम ऐसे उदाहरण पाते हैं जहाँ राष्ट्र-राज्य को राज्य के रूप में अभिव्यक्त करना कठिन है। जैसे ब्रिटेन में वेल्स तथा स्कॉटलैण्ड की अलग राष्ट्रीयता है, इसी प्रकार अरब क्षेत्र के कई राज्य मिलकर राष्ट्रीयता का प्रदर्शन कर सकते हैं। उक्त में राष्ट्र की राज्य से पृथकता प्रकट होती है। इससे अलग कई बार जातीय पहचान भी राज्य एवं राष्ट्र-राज्य की धुरी से पृथक् प्रतीत होती है। इस संदर्भ में अमेरिका में अफ्रीकी मूल के लोग प्रमुखता से देखे जा सकते हैं।


प्रश्न 2: निम्नलिखित गद्यांश का संक्षेपण (Precis) एक-तिहाई शब्दों में लिखिए। शीर्षक देने की आवश्यकता नहीं है:
जब हम किसी नौकरी के लिए आवेदन करते हैं एवं अपनी जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हैं तो सामान्यतः हम यह प्रयत्न करते हैं कि हमारा अनुभव, पृष्ठभूमि एवं विशेषताएँ सामने आ जाएँ। बहुत-से लोग अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों को छिपा लेते हैं एवं अपनी महान् उपलब्धियों की ओर ध्यान आकर्षित कराते हैं। जब कार्यदाता ऐसे जीवन-वृत्तों को पढ़ते हैं तो बहुधा यह अनुभव करते हैं कि प्रत्येक आवेदनकर्त्ता यह लिख रहा है कि वह उन महानतम व्यक्तियों में से एक है जो इस दुनिया में आए।
इस संदर्भ में, खेल की दुनिया से संबंधित एक सच्ची कहानी की चर्चा की जा सकती है। किसी विश्वविद्यालय की फुटबॉल टीम दौड़ने का अभ्यास कर रही थी। उस टीम का एक खिलाड़ी 'लाइनमैन' की स्थिति पर था। यह खिलाड़ी बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थिति पर था और टीम का सबसे तेज 'लाइनमैन' माना जाता था। एक दिन यह खिलाड़ी अपने प्रशिक्षक के पास गया और उससे सबसे तेज 'रनिंग बैक्स' के साथ पूरे वेग से दौड़ने की अनुमति माँगी। प्रशिक्षक ने उसे अनुमति दे दी।
'लाइनमैन' रोज़ दौड़ने लगा लेकिन प्रत्येक दिन वह सबसे पीछे रहता था। दिन-प्रतिदिन उसने सबसे तेज 'बैक्स' के साथ दौड़ना जारी रखा, लेकिन प्रत्येक दिन वह सबसे पीछे ही रहा। यह स्वाभाविक ही था क्योंकि सामान्यतः 'लाइनमैन' 'रनिंग बैक्स' के समान तेज धावक नहीं माने जाते।
प्रशिक्षक ने इस घटना को आश्चर्यजनक मानते हुए स्वयं से पूछा-"यह खिलाड़ी क्यों सर्वश्रेष्ठ धावकों के साथ दौड़ने की स्पर्धा कर रहा है और लगातार सबसे पीछे ही आ रहा है जबकि यह दूसरे 'लाइनमैनों' के साथ दौड़ते हुए सबसे तेज धावक रह सकता है?"
प्रशिक्षक ने इस युवा खिलाड़ी को परखा और अन्ततोगत्वा यह देखकर कि यह 'लाइनमैन' रोज़ सबसे पीछे ही आ रहा है, उससे पूछा-"तुम दूसरे 'लाइनमैनों' के साथ दौड़कर विजेता होने को क्यों प्राथमिकता नहीं देते? इससे क्या लाभ कि तुम 'रनिंग बैक्स' के साथ दौड़कर पराजित होते रहो?"
प्रशिक्षक फुटबॉल के इस खिलाड़ी का उत्तर सुनकर आश्चर्यचकित रह गया। इस युवा ने कहा-"मैं यहाँ 'लाइनमैन' को पराजित करने के लिए नहीं हूँ। मैं पहले से ही यह जानता हूँ कि मैं यह कर सकता हूँ। मैं यहाँ यह सीखने के लिए आया हूँ कि तीव्र से तीव्रतर कैसे दौड़ा जा सकता है। महोदय, आपने यदि ध्यान दिया हो तो आप पाएँगे कि मैं दिन-प्रतिदिन 'रनिंग बैक्स' से अपनी दूरी कम करता रहा हूँ।"
यह घटनाक्रम हमारी आध्यात्मिक प्रगति के रहस्य को समेटे हुए हैं। सांसारिक कार्यों में हम सर्वश्रेष्ठ होने या दिखने की चाहत रखते हैं लेकिन जब आध्यात्मिकता का प्रश्न आता है तो हम ईश्वर से अपनी वास्तविकता नहीं छिपा सकते। हमारी प्रगति ईश्वर के लिए खुली किताब है। आध्यात्मिक प्रगति हमारे सच्चे प्रयत्नों पर निर्भर है। हम ईश्वर से अपनी आध्यात्मिक उपलब्धियों एवं असफलताओं को नहीं छिपा सकते।
फुटबॉल खिलाड़ी ने यह जान लिया था कि वह पुरानी उपलब्धियों की दुनिया में रहते हुए आगे नहीं बढ़ सकता। वह जानता था कि वह स्वयं को चुनौती देकर ही प्रगति कर सकता है। एक धावक के रूप में अपनी कमज़ोरियों को पहचान कर ही वह आगे बढ़ने का प्रयत्न कर सकता है। स्वयं को अपने से बेहतर व्यक्तियों के सम्मुख रखकर ही वह उस क्षेत्र में सर्वोत्तम बन सकता है, बेहतर व्यक्तियों के सामने उसकी कमज़ोरियाँ प्रगट हो जाएँगी और वह उन्हें दूर कर सकेगा। वह स्वयं का सुधारना चाहता था, वह प्रशंसा का भूखा नहीं था।
फुटबॉल खिलाड़ी यह देख सकता था कि दूसरे 'रनर्स' क्या कर रहे हैं और उनके प्रकाश में अपनी योग्यता को वह विकसित कर सकता था। नित्य के अभ्यास से वह यह जान गया था कि अगली बार उसे और बेहतर करना है। यह करने से वह अपने ध्येय तक पहुँचने में निकट से निकटतर होता गया। जब हम अपनी असफलताओं को देखते हैं तो हम जानते हैं कि हर रोज़ हमें और बेहतर करना है। ऐसे प्रयत्नों से पहले की तुलना में हमारी असफलताएँ कम से कमतर होती जाएँगी। समय होने पर हम अन्ततोगत्वा एक ऐसी स्थिति पर पहुँच जाएँगे जब असफलताओं का प्रतिशत शून्य रह जाएगा।
हम अपनी असफलताओं को ईश्वर से नहीं छिपा सकते क्योंकि वह सब कुछ देख रहा है। ईश्वर यह चाहता है कि हम अपने सद्प्रयत्नों से अपनी असफलताओं को दूर कर सकें। जब ईश्वर यह देखता है कि कठिनाइयों के रहते हुए भी हम सद्प्रयत्नों को करने में दत्तचित्त हैं तो हमारी सच्चाई उसके सामने होती है। तब ईश्वर से हमें अनुग्रह एवं सहानुभूति मिलती है। इस प्रकार, संघर्ष करते हुए हमें सहायता मिलती है। ईश्वर हमें हमारी असफलताओं से ऊपर उठने में शक्ति प्रदान करता है ताकि हम उन असफलताओं को दूर कर सकें एवं प्रगति-पथ पर अग्रसर हो सकें।

उत्तर: नौकरी का आवेदन करते समय हमारा प्रयत्न अपनी अच्छाइयों को ही इंगित करना होता है। हम अपनी कमजोरियों को छिपाकर स्वयं को सर्वोत्तम सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इस संदर्भ में एक सत्य घटना पर आधारित कथा का उल्लेख किया जा सकता है जिसमें एक फुटबॉल लाइनमैन प्रशिक्षक की अनुमति लेकर रनिंग बैक्स के साथ स्पर्धा करता है। लाइनमैन को रनिंग बैक्स की तुलना में कम कुशल धावक माना जाता है। 
बार-बार लाइनमैन द्वारा स्पर्द्धा में पिछड़ने पर प्रशिक्षक ने जिज्ञासावश उस लाइनमैन से इसका कारण जानना चाहा कि वह लाइनमैन के समूह में स्पर्द्धा करके विजेता बनने में सक्षम है तो वह रनिंग बैक्स के साथ स्पर्धा क्यों कर रहा है। लाइनमैन का उत्तर था कि वह लाइनमैन से स्पर्द्धा में बेशक विजेता रहेगा, परन्तु उसका लक्ष्य विजेता बनना नहीं है अपितु तीव्रतम् दौड़ लगाने का अभ्यास करना है और वह निरंतर रनिंग बैक्स से अपनी दूरी घटाकर ऐसा कर भी रहा है।
यह घटना हमारी आध्यात्मिक प्रगति के रहस्य को उजागर करती है। चूँकि सांसारिक कार्यों में हम दिखावा कर सकते हैं, परंतु आध्यात्मिकता के संदर्भ में हम अपनी असफलताओं को नहीं छिपा सकते हैं। इनमैन ने भावी प्रगति के लिए अपनी कमजोरियों को पहचान कर स्वयं को चुनौती देकर प्रगति का मार्ग खोजा। उसकी असफलता की मात्रा में कमी उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती थी। अंततः वह सफल दौड़ लगाने में समर्थ हो जाएगा। ईश्वर हमारे ऐसे सद्कर्म से प्रभावित होता है। चूँकि हम ईश्वर से कुछ नहीं छिपा सकते। अतः हमें उससे अनुग्रह और सहानुभूति मिलती है और ईश्वर हमें कठिन परिस्थितियों का सामना करने तथा सफल होने की शक्ति प्रदान करता है।


प्रश्न 3: निम्नलिखित गद्यांश का संक्षेपण (Precis) एक-तिहाई शब्दों में लिखिए। शीर्षक देने की आवश्यकता नहीं है। संक्षेपण अपनी भाषा में लिखा जाना चाहिए:
रक्षा क्षेत्र में विदेशों पर निर्भरता कम करना और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना सामरिक और आर्थिक दोनों कारणों से आज यह एक विकल्प के बजाय एक आवश्यकता है। सरकार ने अतीत में हमारे सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयुध निर्माणियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के रूप में उत्पादन क्षमताओं का निर्माण किया। हालाँकि, विभिन्न रक्षा उपक्रमों के उत्पादन की क्षमताओं को विकसित करने के लिए भारत में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने पर जोर देने की आवश्यकता है। विभिन्न वस्तुओं के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 'मेक इन इंडिया' जैसी एक महत्त्वपूर्ण पहल की गई है। अन्य वस्तुओं की अपेक्षा रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन की अधिक जरूरत है, क्योंकि इनसे न केवल बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा चिन्ताओं को भी दूर किया जा सकेगा।
रक्षा क्षेत्र में सरकार ही एकमात्र उपभोक्ता है। अतः 'मेक इन इंडिया' हमारी खरीद नीति द्वारा संचालित होगी। सरकार की घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने की नीति, रक्षा खरीद नीति में अच्छी तरह परिलक्षित होती है। जहाँ 'बाइ इंडियन' तथा 'बाइ एंड मेक इंडियन' श्रेणियों का बाई ग्लोबल से पहले स्थान आता है। आने वाले समय में आयात दुर्लभ से दुर्लभतम होता जाएगा। और जरूरी व्यवस्था के निर्माण और विकास के लिए सर्वप्रथम अवसर भारतीय उद्योग को प्राप्त होगा। भले ही भारतीय कंपनियों की वर्तमान में प्रौद्योगिकी के मामले में पर्याप्त क्षमता न हो, उन्हें विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की व्यवस्था और गठबंधन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
अब तक रक्षा क्षेत्र में घरेलू उद्योग के प्रवेश के लिए लाइसेंस और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रतिबंध आदि को लेकर कई बाधाएँ थीं। रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में निवेश की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए अब कई नीतियों को उदार बनाया गया है। सबसे महत्त्वपूर्ण रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए एफ.डी.आई. नीति को उदार बनाया गया है। लाइसेंस नीति को भी उदार बनाया गया है और अब घटकों, हिस्से-पुर्जों, कच्चा माल, परीक्षण उपकरण, उत्पादन मशीनरी आदि को लाइसेंस के दायरे से बाहर रखा गया है। जो कंपनियाँ इस तरह की वस्तुओं का उत्पादन करना चाहती हैं, अब उन्हें लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी।
रक्षा क्षेत्र में घरेलू और विदेशी दोनों निवेशकों के लिए एक बड़ा अवसर उपलब्ध है। एक तरफ जहाँ सरकार निर्यात, लाइसेंसिंग, एफ.डी.आई. सहित निवेश और खरीद के लिए नीति में जरूरी बदलाव कर रही है, वहीं उद्योग को भी जरूरी निवेश और प्रौद्योगिकी के मामले में उन्नयन करने की चुनौती को स्वीकार करने के लिए सामने आना चाहिए। रक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जो नवाचार से संचालित होता है और जिसमें भारी निवेश और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है। लिहाजा उद्योग को भी अस्थायी लाभ के बजाय लंबी अवधि के लिए सोचने की मानसिकता बनानी होगी। हमें अनुसंधान विकास तथा नवीनतम विनिर्माण क्षमताओं पर ज्यादा ध्यान देना होगा। सरकार, घरेलू उद्योग हेतु एक ऐसी पारिस्थितिकी प्रणाली विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है जिससे वह सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में बराबर के स्तर पर व्यावसायिक उन्नति कर सके।
 उत्तर: रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में घरेलू उत्पादन एक प्रमुख आवश्यकता है। इस संदर्भ में सार्वजनिक क्षमताओं के उपयोग के साथ-साथ निजी क्षेत्र का भी योगदान आवश्यक है। इस दिशा में 'मेक इन इण्डिया' जैसी पहल महत्त्वपूर्ण है, इससे विदेशी मुद्रा की बचत होने के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा की चिन्ताओं को भी दूर किया जा सकेगा। घरेलू रक्षा उद्योग विदेशी उद्यमों के साथ सह-उत्पादन एवं गठबंधनों के माध्यम से पर्याप्त क्षमता प्राप्त कर सकते हैं, हालांकि इन्हें रक्षा खरीद के मामले में घरेलू संरक्षण की आवश्यकता होगी। 
रक्षा उद्योग के घरेलू प्रोत्साहन के लिए इस क्षेत्र में एफडीआई को उदार बनाने लाइसेंस नीति के सरलीकरण जैसे कदम उठाए गए हैं। इसी प्रकार रक्षा उद्योग से जुड़े कल पुर्जों तथा सहायक उत्पादों को लाइसेंस मुक्त किया गया है। भारत में रक्षा उद्योग के बड़े अवसर को देखते हुए सरकार आवश्यक कदम उठा रही है। अतः निजी क्षेत्र को भी इस क्षेत्र में बड़े निवेश तथा प्रौद्योगिकी उन्नयन की चुनौती को स्वीकार करते हुए त्वरित लाभ के स्थान पर दीर्घकालिक एवं स्थाई लाभ के लिए क्षमता निर्माण एवं नवाचार पर ध्यान देना चाहिए। सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों क्षेत्रों के परस्पर सहयोग से ही इस क्षेत्र की व्यावसायिक उन्नति हो सकती है।


प्रश्न 4: निम्नलिखित अनुच्छेद का संक्षेपण एक-तिहाई शब्दों में लिखिए। इसका शीर्षक लिखने की आवश्यकता नहीं है। संक्षेपण अपने शब्दों में ही लिखिए:
भारत की विशाल आबादी ग्रामीण है। उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में सर्वांगीण विकास की आवश्यकता है, जिससे समान और समावेशी विकास के दीर्घपोषित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। ग्रामीण बुनियादी ढाँचे का एक महत्त्वपूर्ण घटक पेयजल व्यवस्था है। पानी निस्संदेह एक महत्त्वपूर्ण लोकहित है। नगरिकों की माँगों को पूरा करने के लिए, पानी के बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की आवश्यकता है। एक जल-सुरक्षित राष्ट्र न केवल अपने नागरिकों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराएगा, बल्कि एक स्वस्थ और आर्थिक रूप से उत्पादक समाज को भी सुनिश्चित करेगा। हालाँकि, भारत की विशाल ग्रामीण आबादी की पीने के पानी की ज़रूरतों को पूरा करना एक कठिन कार्य है, जिसका मुख्य कारण स्थापित पेयजल आपूर्ति की क्षमता में कमी, सामाजिक-आर्थिक विकास का निम्न स्तर, शिक्षा और पानी के उपयोग और उपभोग के बारे में जागरूकता में कमी का होना है।
संविधान का अनुच्छेद 47 राज्यों को सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का आदेश देता है। स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था बीमारियों और घातक घटनाओं में कमी लाती है और जीवन-स्तर को बेहतर बनाने में मदद करती है। देश की करोड़ों की आबादी के समग्र स्वास्थ्य में सुधार के लिए स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता का प्रावधान महत्त्वपूर्ण है। 
सतत् विकास पानी की उपलब्धता और स्वच्छता का सतत प्रबंधन सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। सुरक्षित पेयजल तक पहुँच के मामले में इससे एक तरह से यही तात्पर्य है कि 'कोई भी पीछे न छूट जाए' जो कि इस वर्ष 'विश्व जल दिवस' का थीम भी था। विश्व जल दिवस प्रति वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है। सरकार ग्रामीण जनों हेतु सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। 
सरकार द्वारा समय-समय पर इस क्षेत्र में सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाए जाते रहे हैं। ग्रामीण जल आपूर्ति योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए अनुदान दिए जाने से लेकर क्रियान्वयन एवं रखरखाव पहलुओं और भू-जल पुनर्भरण हेतु भी कदम उठाए गए हैं। कुछ अन्य कदमों में वर्षा जल संचयन भी शामिल है जो कि बेहद महत्त्वपूर्ण पहलू है और ग्रामीण क्षेत्रों में सतत रूप से सुरक्षित पेयजल आपूर्ति में मददगार हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृत्रिम पुनर्भरण और वर्षा जल संचयन ढाँचे के निर्माण हेतु सरकारें मास्टर प्लान पर कार्य कर रही हैं। 
भारत में ऐसी सफलता की कहानियों की भरमार है जो कि जल संचयन के हमारे प्राचीन परंपरागत ज्ञान और विवेक की तरफ ध्यान आकर्षित करती हैं। 2001 में तमिलनाडु सरकार ने हर परिवार के लिए वर्षा जल संरक्षण की आधारभूत संरचना रखना अनिवार्य कर दिया। बैंगलोर और पुणे जैसे नगरों में भी इसके जैसा प्रयोग किया गया है, जहाँ आवास-समितियों द्वारा वर्षा जल संरक्षण अपेक्षित है। दूसरे राज्यों में भी इसी प्रकार की अनेक पहलें हुई हैं।
भू-जल का अति दोहन भारत में एक मुख्य समस्या है। इसे रोकने के लिए राज्य सरकारों द्वारा नियामक तंत्र की आवश्यकता है। गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों में अत्यधिक कुँओं की खुदाई पर प्रतिबंध लगना चाहिए। पेयजल आपूर्ति की योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए पंचायती राज संस्थाओं की अधिक भागीदारी की ज़रूरत है। फिलहाल पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका अति न्यून है। ग्रामीण समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों तथा सरकार की सुविधा दाता और सह-वित्तपोषक के रूप में भागीदारी सफल रही है। हमें याद रखना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की उपलब्धता और पहुँच का दायरा बढ़ाने के लिए, हमें ग्रामीण समुदायों के सक्रिय सहयोग से पानी के न्यायसंगत संरक्षण और उपयोग हेतु हर प्रकार के प्रयास करने की आवश्यकता है।
समुदाय की भागीदारी, संचालन और रखरखाव की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाती है। यह अंतर्निहित सामुदायिकता के कारण बेहतर रखरखाव और तैयार की गई प्रणाली के जीवन काल को भी बढ़ाती है। पीने के पानी के स्रोतों के पास न केवल स्वच्छता बनाए रखने में समुदाय की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, बल्कि उन तरीकों और साधनों को भी सुधारना है, जिनके द्वारा संग्रह, भंडारण और उपयोग करते समय प्रदूषण से बचने के लिए पानी एकत्र किया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में इन योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पंचायती राज संस्थाएँ, स्वयं-सहायता समूह और सहकारी समितियों के माध्यम से समुदाय की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है, ताकि 2030 तक 'हर घर जल' के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके और दीर्घकालिक टिकाऊ समाधान को साकार किया जा सके।
उत्तर: भारत की व्यापक ग्रामीण जनसंख्या के लिए शुद्ध पेयजल जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना सर्वांगीण विकास का अनिवार्य घटक है। इसके लिए सार्वजनिक निवेश में वृद्धि करना आवश्यक है। हालांकि भारत की बड़ी जनसंख्या तथा गाँवों के पिछड़े अवसंरचनात्मक एवं सामाजिक-आर्थिक ढांचे को देखते हुए यह कार्य सरल प्रतीत नहीं होता। बीमारियों से बचाव तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ जल के महत्व को देखते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 47 में राज्य के दायित्व के रूप में शमिल किया गया है। 
यह लोगों के विकास एवं समग्र स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। सतत् विकास का एक घटक स्वच्छ एवं निरंतर पेयजल की उपलब्धता है। इस वर्ष विश्व जल दिवस (22 मार्च) की थीम : 'कोई भी पीछे न छूट जाए' भी इसी से संबंधित थी। भारत में भूजल प्रबंधन एवं जल संरक्षण से जुड़ी प्राचीन पद्धतियाँ महत्त्वपूर्ण होती जा रही हैं। सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए भू-जलपुनर्भरण, वर्षा जल संचयन तथा जल आपूर्ति हेतु धन के आवंटन जैसे महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। इस क्रम में तमिलनाडु सरकार (2001) ने, बैंगलोर तथा पुणे जैसे नगरों ने वर्षा जल (पुनर्भरण अवसंरचना के आवासों में निर्माण किये जाने जैसी पहल ल का की है।
भारत में भू-जल का अतिदोहन एक बड़ी समस्या है। अतः इसे नियंत्रित करने के लिए नियामकीय प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। इस संबंध में पंचायतीय संस्थाओं एवं गैर-सरकारी संगठनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इसी के साथ नागरिक स्तर पर भी जल संरक्षण, न्यायपूर्ण वितरण तथा जल स्रोतों के रखरखाव का प्रयास करना चाहिए जिससे 2030 तक 'हर घर जल' का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।

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FAQs on अभ्यास प्रश्न: संक्षेपण - Course for UPPSC Preparation - UPPSC (UP)

1. BPSC परीक्षा में कौन-कौन से विषय शामिल होते हैं ?
Ans. BPSC परीक्षा में सामान्य अध्ययन, सामान्य विज्ञान, गणित, और मानसिक योग्यता के साथ-साथ भारतीय इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, और राजनीति शास्त्र जैसे विषय शामिल होते हैं।
2. BPSC परीक्षा की तैयारी के लिए सबसे अच्छे अध्ययन सामग्री कौन-कौन सी हैं ?
Ans. BPSC परीक्षा की तैयारी के लिए NCERT की किताबें, सामान्य अध्ययन के लिए किताबें जैसे कि 'Spectrum' और 'Laxmikant' तथा विभिन्न ऑनलाइन टेस्ट सीरीज उपयोगी मानी जाती हैं।
3. BPSC परीक्षा में योग्यता मानदंड क्या हैं ?
Ans. BPSC परीक्षा में बैठने के लिए उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री होना अनिवार्य है। इसके अलावा, उम्र सीमा भी निर्धारित होती है, जो सामान्य वर्ग के लिए 37 वर्ष तक होती है।
4. BPSC परीक्षा का प्रारूप क्या है ?
Ans. BPSC परीक्षा का प्रारूप प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार के तीन चरणों में होता है। प्रारंभिक परीक्षा वस्तुनिष्ठ प्रकार की होती है, जबकि मुख्य परीक्षा वर्णात्मक होती है।
5. BPSC परीक्षा में सफलता के लिए किन मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
Ans. BPSC परीक्षा में सफलता के लिए नियमित अध्ययन, प्रश्न पत्र का समाधान, समय प्रबंधन, और पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। साथ ही, समसामयिकी पर ध्यान देना भी आवश्यक है।
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