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अपठित गद्यांश - 1 | Course for UPPSC Preparation - UPPSC (UP) PDF Download

गद्यांश - 1

वास्तव में दिशाविहीन युवा पीढ़ी को अपने लक्ष्य का बोध शिक्षा कराती है किन्तु आज की शिक्षा इस उदेश्य की पूर्ति में मापदण्ड के घट जाने से लाचार सी हो गई है। आज शिक्षा पाकर भी युवा वर्ग बेकारी की भट्टी में झुलस रहा है। वह न अपना ही हित सोच पा रहा है और न राष्ट्र का ही। इस स्थिति में असन्तोष उसके हदय में जड़ें जमाता जा रहा है। युवा पीढ़ी में असन्तोष के कारण तथा निदान- इस असन्तोष का मुख्य कारण आज की समस्याओं का सही समाधान न होना है। आज इस रोग से देश का प्रत्येक विश्वविद्यालय पीडि़त है। आज इस असन्तोष के कारण निदान सहित इस प्रकार हैं-
राष्ट्र प्रेम का अभाव- विद्यार्थी का कार्य अध्ययन के साथ-साथ राष्ट्र जीवन का निर्माण करना भी है, किन्तु यह असन्तोष में बह जाने से भटक जाता है। देश से प्रेम करना उसका कर्तव्य होना चाहिए।
उपेक्षित एवं लक्ष्य विहीन शिक्षा- आज हदयहीन शिक्षकों के कारण युवा शक्ति उपेक्षा का विषपान कर रही है। आज सरकार की लाल फीताशाही विद्यार्थियों को और अधिक भड़का रही है। शिक्षा का दूसरा दोष उदेश्य रहित होना है। आज का युवक, शिक्षा तो ग्रहण करता है, किन्तु वह स्वयं यह नहीं जानता कि उसे शिक्षा पूर्ण करने के बाद क्या करता है। स्वतंत्र व्यवसाय के लिए कोई शिक्षा नहीं दी जाती। आज सरकार को अध्ययन के उपरांत कोई प्रशिक्षण देकर विद्यार्थी को अपने कार्य में लगाना चाहिए।
भ्रष्ट प्रशासन- आज जनता द्वारा चुने हुए एक से एक भ्रष्ट प्रतिनिधि शासन में पहुँचते हैं। चुने जाने के बाद ये प्रतिनिधि रिश्वत द्वारा धन पैदा करते हैं और जनता के दुख दर्दों को ताक पर रख देते हैं। लाल फीताशाही चाहे अत्याचार ही क्यों न करे, ये नेता इसको बढ़ावा देते हैं। फलतः युवा वर्ग में असन्तोष की लहर दौड़ जाती है।
विकृत प्रजातन्त्र- आजादी के बाद हमारे राष्ट्रीय कर्णधारों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया। ये नेता भ्रष्ट तरीकों से अनाप शनाप धन व्यय कर शासन में पहुँचते हैं। फिर स्वयं को जनता का प्रतिनिधि न समझकर राजपुत्र को नम्रतापूर्वक छात्रों को समझाकर किसी उत्पन्न समस्या का समाधान करना चाहिए।
विकृत चलचित्र जगत- आज चलचित्र जगत बड़ा ही दूषित है। आज हर चित्र में मार धाड़ और कामुकता तथा जोश के चित्र दिखाए जाते हैं। वस्तुतः चलचित्र का उपयोग विद्यार्थी को ज्ञान तथा अन्य विषयों की शिक्षा के लिए होना चाहिए।
समाचार पत्र तथा आकाशवाणी- ये दोनों युवापीढ़ी के लिए वरदान के साथ साथ अभिशाप भी हैं। जहाँ एक विश्वविद्यालय के विद्यार्थी असन्तुष्ट हुए, वहाँ समाचार पत्रों एवं आकाशवाणी के माध्यम से यह खबर सभी जगह फैल जाती है, जिससे युवा पीढ़ी में आक्रोश भड़क उठता है। सरकार को ऐसे समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
आज शासन सत्ता के विरोधी दल विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं।
सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव- आज युवा पीढ़ी में सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव है। जिनके कारण वे दूसरों को अपने से अलग समझकर उन पर आक्रोश करते हैं। अतः विश्वविद्यालयों में भी नैतिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।
आज के युग में विश्व स्तर पर भारत को रखकर शिक्षा प्रणाली विश्व में सबसे अधिक है। इसलिए हमारे राष्ट्र निर्माताओं को यह दृढ़ संकल्प कर लेना चाहिए कि वे विश्वविद्यालयों का सुधार करें, ताकि युवा पीढ़ी में असन्तोष न बढ़ सके।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-
(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए|
उत्तर:
इस गद्यांश का उचित शीर्षक 'युवा पीढ़ी में अशंतोष' है|


(ख) आज की युवा पीढ़ी में असंतोष के कारण लिखिए?
उत्तर: 
युवा पीढ़ी में असंतोष के कारण है- राष्ट्र प्रेम का आभाव, उपेक्षित एवं लक्ष्य विहीन शिक्षा, भ्रष्ट प्रशासन, विकृत प्रजातन्त्र, विकृत चलचित्र जगत, समाचार पत्र तथा आकाशवाणी, सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव|


(ग) भ्रष्ट प्रशासन के कारण युवा पीढ़ी में असंतोष किस प्रकार उत्पन्न हो रहा है?
उत्तर: जनता द्वारा चुने हुए भ्रष्ट प्रतिनिधि शासन में पहुँचते हैं। चुने जाने के बाद ये प्रतिनिधि रिश्वत द्वारा धन पैदा करते हैं और जनता के दुख दर्दों को ताक पर रख देते हैं। लाल फीताशाही चाहे अत्याचार ही क्यों न करे, ये नेता इसको बढ़ावा देते हैं। फलतः युवा वर्ग में असन्तोष की लहर दौड़ जाती है।


(घ) युवा पीढ़ी में बढ़ते असंतोष को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर: युवा पीढ़ी में असंतोष को दूर करने का लिए

  • युवाओ में देश प्रेम की भावना उत्पन्न करना|
  • सरकार को अध्ययन के उपरांत कोई प्रशिक्षण देकर विद्यार्थी को अपने कार्य में लगाना चाहिए।
  • भ्रष्टाचार को समाप्त करना
  • छात्रों को समझाकर किसी उत्पन्न समस्या का समाधान करना चाहिए।
  • चलचित्र का उपयोग विद्यार्थी को ज्ञान तथा अन्य विषयों की शिक्षा के लिए होना चाहिए।

(ड़) 'प्रशासन' और 'प्रतिनिधि' शब्द में उपसर्ग तथा मूल शब्द बताइये|
उत्तर: 'प्र' उपसर्ग 'शासन' मूलशब्द 

'प्रति' उपसर्ग 'निधि' मूलशब्द| 

गद्यांश - 2

जाति - धन, प्रिय नव - युवक समूह,
विमल मानस के मंजू मराल |

देश के परम मनरम रत्न,
ललित भारत - ललना के लाल |

लोक की लाखों आंखे आज,
लगी है तुम लोगों की ओर,

भरी उनमे है करुणा भूरि,
लालसमय है लालकित कोर |

उठो, लो आँखे अपनी खोल
विलोको अवनितल का हाल,

अनलोकित में भर आलोक,
करो कमनीय कलंकित भाल |

भरे उर में जो अभिनव ओज,
सुना दो वह सुन्दर झंकार,

ध्वनित हो जिससे मानस - यंत्र,
छेड़ दो उस तंत्री के तार |

रंगो में बिजली जावे दौड़,
जगे भारत - भूतल का भाग,

प्रभावित धुन से हो भरपूर,
उमग गाओ वह रोचक राग |

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) 'जाति - धन, प्रिय नवयुवक समहू' किनके लिये और क्यों कहा गया है?
उत्तर: यह भारतीय नवयुवको के लिये कहा गया है; क्योकि उनकी ओर देश के करोडो लोगो के आशापूर्ण दृष्टि लगी हुई है| इनसे ही भारत का मस्तक गौरव गरिमा से उन्नत हो सकता है और ये ही जनता की समस्त लालसाओं की पूर्ति करके देश का उद्धार क्र सकते है और राष्ट्रभक्ति का सुफल प्राप्त करा सकते है |


(ख) कवि ने नवयुवको को कैसा राग गाने के लिये कहा है ?
उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने नवयुवको को ऐसा राग गाने के लिया कहा है, जिससे देश से अज्ञान एवं पराधीनता का कलंक मिट जावे, जनता में ओजस्वी भावों का और नवचेतना का प्रसार होवे | नवजागरण का ऐसा राग फैले जिससे जाग्रति, देशभक्ति, कर्मनिष्ठा एवं स्वतंत्र भावना का प्रसार होवे|


(ग) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव क्या है लिखये |
उत्तर: प्रस्तुत कविता का केंद्रीय भाव यह है कि यद्धपि भारत को स्वाधीनता मिल गयी है, परन्तु उसकी रक्षा करने का भार देश के नवयुवकों पर है | देश के नवयुवक ही जनता में अभिनव ओज भर कर उनकी आशाओ को पूरी कर सकते है तथा उनके द्वारा ही नवचेतना का उत्तरोत्तर संचार हो सकता है|


(घ) 'करो कमनीय कलंकित भाल' से क्या आशय है ?
उत्तर: जब भारत पराधीन था, तब देश में शिक्षा कि सुविधाएं कम ही थी | उस समय भारत में अज्ञान का संचार था और उससे भारतीयों का मस्तक कलंकित हो रहा था | देश के नवयुवक अज्ञान एवं पराधीनता के कलंक को मिटाकर भारत के मस्तक को सुन्दर - आकर्षक बना दे|


(ड़) प्रस्तुत काव्यांश में देश के नवयुवको से क्या करने के लिये कहा गया है ?
उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश में देश के नवयुवको से कहा गया है कि लाखों देशवासी उनसे अपने कल्याण कि आशा लगये हुए है | नवयुवक देश के अज्ञान, निराशा आदि के अंधकार को दूर कर सकते है और वे लोगों में नया जोश पैदा कर सकते है | ऐसा करके वे भारत का भाग्य बदल सकते है, कल्याण कर सकते है|

गद्यांश - 3

दिवसावसान का समय,
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह संध्या - सुंदरी परी - सी
धीरे - धीरे - धीरे |
तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,
मधुर - मधुर है दोनों उसके अधर -
किन्तु जाता गंभीर - नहीं है उनमे हास - विलास |
हँसता है तो केवल तारा एक
गुंथा हआ उन घुंघराले काले - काले बालों से
ह्रदयराज्य की रानी का वह करता है अभिषेक |

अलसता की सी लता
किन्तु कोमलता की वह कालीसखी नीरवता के कंधे पर डाले बाह,
छाँह-सी अम्बर पथ से चली |
नहीं बजती उसके हाथों में कोई विणा,
नहीं होता कोई अनुराग - राग आलाप
नूपुरों में भी रुनझुन - रुनझुन नहीं
सिर्फ एक अव्यक्त शब्द सा "चुप, चुप, चुप"
है गूंज रहा सुब कहीं-

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) इस काव्यांश में किस काल का वर्णन है?
उत्तर: 
इस काव्यांश में सूर्यास्त को लेकर संधायकाल का वर्णन हुआ है |


(ख) मेघमय आसमान से कौन उतर रही है?
उत्तर: मेघमय और बदलो से घिरे आसमान से संध्या रूपी परी जैसी नायिका धरती पर उतर रही है |


(ग) संध्या - सुंदरी के अधरों की क्या विशेषता है?
उत्तर: संध्या - सुंदरी के अधरों की यह विशेषता है कि वे स्वाभाविक रूप से लालिमायुक्त और सुकोमल मधुर है, लेकिन उनमे हास - विलास नहीं है |


(घ) संध्या की सखी कौन है?
उत्तर: संध्या की सखी नीरवता है, अर्थात संध्याकाल में जो निस्तब्धता रहती है, वही उसकी सखी है |


(ड़) संध्या को कवि ने अलसता की सी लता क्यों कहा है?
उत्तर: संध्याकाल आने पर अभी प्राणी दिनभर की थकन मिटने चाहते है | इस कारण उनके शरीर आलस्य से व्याप्त रहते है | इसी कारण संध्या को अलसता फ़ैलाने वाली लता कहा गया है |

गद्यांश - 4

वे तो पागल थे |
जो सत्य, शिव, सुन्दर कि खोज में
अपने अपने सपने लिये
नदियों, पहाड़ो, बियाबानों, सुनसानो में
फटेहाल, भूखे - प्यासे
टकराते फिरते थे,
अपने से झुझते थे,
आत्मा कि आज्ञा पर 
मानवता के लिये
शिलायें, चट्टानें, पर्वत काट - काटकर,
मूर्तियां, मंदिर और गुफाएँ बनाते थे |
किन्तु ए दोस्त |
इनको मैं क्या कहूँ-
जो मौत कि खोज में
अपनी-अपनी बंदूके, मशीनगनें लिये हुए
नदियों, पहाड़ो, बियाबानों, सुनसानो में
फाटे - हाल, भूखे - प्यासे
टकराते फिरते है,
दुसरो कि आज्ञा पर,
चंद पैसो के वास्ते | 

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) प्रस्तुत काव्यांश में किन दो में अंतर बताया गया है? स्पष्ट कीजिये |
उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश में कलाकार और सिपाही में अंतर बताया गया है | पाषाण काल में कलाकार अपनी आत्मा कि आज्ञा पर मानवता की खातिर सुन्दर मूर्तियों एवं कलात्मक गुफाओं का निर्माण करने में लगे रहते थे, जबकि वर्तमान काल में सिपाही अपनी सरकार अथवा सेनापति की आज्ञा पर मौत की खोज में वनो एवं पर्वतो में भटकते रहते है |


(ख) मानवता के हित साधक क्या करते है?
उत्तर: मानवता के हित साधक ऐसे काम करते है, जिनसे सभी को सुख - शांति एवं आनंद मिले | मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा एवं संस्कृति की रक्षा हो सके, इसके लिये वे मूर्तियों, मंदिरो, कलापूर्ण वस्तुओं आदि की रचना करने में लगे रहते है | वे स्वयं कष्टमय जीवन बिताकर भी दुसरो को खुशहाल देखना चाहते है |


(ग) प्रस्तुत काव्यांश में क्या सन्देश दिया गया है?
उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश में सन्देश दिया गया है कि मानवता के कल्याण के लिये हमे सत्य, शिव और सुन्दर कि खोज करने वाले मानवतावादियों का अनुसरण करना चाहिए | हमे अपने लिये नहीं, मानवता के लिये कुछ स्थायी काम करने चाहिए, मानवता का हित साधना चाहिए |

(घ) दूसरों कि आज्ञा पर चलने कहाँ तक उचित है?
उत्तर: दुसरो कि आज्ञा पर चलना तभी तक उचित है, जब तक उससे अपने साथ ही दुसरो का भी हित हो | एक सिपाही देश कि सीमाओं कि रक्षार्थ और आंतरिक छिपे हुए शत्रुओं से उन्मुलनार्थ सरकार या सेनापति कि आज्ञा का पालन करता है, तो वह उचित है | परन्तु निरपराध लोंगो कि हिंसा करना सर्वथा अनुचित है |


(ड़) 'जो मौत कि खोज में' से कवि का क्या तातपर्य है?
उत्तर: 'मौत की खोज में' से कवि का तातपर्य है की कुछ लोग चंद पैसो की खातिर लोगों की जान ले लेते है और उग्रवादी या आतंकवाद बनकर मानवता विहीन राह पर चल पड़ते है |

गद्यांश - 5

देखकर बाधा विविध, बहु विध्न घबराते नहीं |
रह भरोसे भाग के दुःख भोग पछताते नहीं ||
काम कितना हे कठिन हो किन्तु उकताते नहीं |
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं ||
हो गए एक आन में उनके बुरे दिन भी भले |
सब जगह सब काल में वे हे मिले फुले फैले ||
व्योम का छूते हुए दुर्गास पहाड़ो के शिखर |
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर ||
गर्जते जलराशि की उठती हुई ऊँची लहर ||
आग की भयदायिनी फैली दिशाओ में लबर ||
ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं |
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कही ||
चिलचिलाती धुप को जो चांदनी देवे बना |
काम पड़ने पर करे जो शेर का भी सामना ||
जो की हँस-हँस के चबा लेते है  लोहे का चना |
'है कठिन कुछ भी नहीं' जिनके है जी में ठान ||
कोस कितने ही चले पर वे कभी थकते नहीं |
कौन सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं ||

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) विध्न बाधाओं से कौन नहीं घबराते है? उनकी विशेषताएं बताइये|
उत्तर: जो कर्मनिष्ठा रखते है और कर्मवीर होते है, वे विध्न बाधाओं से नहीं घबराते है | वे भाग्यवादी न होकर कठिन परिश्रम, धीर-वीर, दृढ़-निश्चयी और आन-बान निभाने वाले है| वे कठिन से कठिन काम को भी आसान बना देते है तथा सदा निर्भय बने रहते है |


(ख) 'चबा लेते है लोहे का चना' से क्या आशय है?
उत्तर: अत्यधिक कठिन एवं असाध्य काम को करना - इस आशय के लिए लोहे के चने चबाना मुहावरा प्रसिद्ध है | यहाँ भी इसका यही आशय है | कर्मवीर निर्भय होकर सफलता से सारे कामो को साध लेते है, उनके लिए कोई काम असाध्य नहीं है |


(ग) चिलचिलाती धुप को चांदनी बनाने से क्या सन्देश व्यक्त हुआ है?
उत्तर: विपरीत या कठिन परस्थितियो को अनुकूल बनाकर चलने से कर्मवीर का जीवन सफल रहता है | इससे यह सन्देश व्यक्त हुआ है कि हमे कठिन परस्थितियों को अनुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए तथा सदा दृढ़ निश्चयी बनकर उद्यम करना चाहिए | 


(घ) 'जिनके है जी में ठना' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर: 'जिनके है जी में ठान' से कवि का आशय है कि कर्म में विश्वास रखने वाले वीर पुरुष जो कुछ अपने मन में प्रण कर लेते है वे उसे पूरा करके ही रहते है|


(ड़) इस काव्यांश का क्या आशय है?
उत्तर: इस काव्यांश में कवि ने कर्म में विश्वास रखने वाले धीर, वीर, गंभीर और आन- बान पर मर मिटने वाले महापुरुषो का उल्लेख किया है जो कभी विपरीत या कठिन प्रस्तितियो से घबरा कर अपने कर्म-पथ से वापस नहीं लौटते चाहे मार्ग में कितनी ही कठिनाई क्यों न आये उन्हें वे बिना हारे-थके आसानी से पार कर लेते है|

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FAQs on अपठित गद्यांश - 1 - Course for UPPSC Preparation - UPPSC (UP)

1. गद्यांशों का अवबोध कैसे किया जाए ?
Ans. गद्यांशों का अवबोध करने के लिए सबसे पहले उन्हें ध्यान से पढ़ना आवश्यक है। मुख्य विचार और विषय को पहचानें, फिर प्रमुख बिंदुओं और तर्कों को नोट करें। इसके बाद, गद्यांश के विभिन्न हिस्सों का सारांश बनाएं और अपनी समझ को स्पष्ट करने के लिए उन्हें अपने शब्दों में लिखें।
2. UPPSC परीक्षा में गद्यांशों से संबंधित प्रश्न किस प्रकार के होते हैं ?
Ans. UPPSC परीक्षा में गद्यांशों से संबंधित प्रश्न सामान्यतः गद्यांश के मुख्य विचार, लेखक का दृष्टिकोण, प्रस्तुत तर्क, और इसके पीछे का उद्देश्य समझने पर आधारित होते हैं। प्रश्नों में संक्षेप में उत्तर देने, सही विकल्प चुनने, या गद्यांश के किसी विशेष हिस्से पर टिप्पणी करने की मांग की जा सकती है।
3. गद्यांश के अध्ययन के लिए कौन-से पुस्तकें या सामग्री उपयोगी हैं ?
Ans. गद्यांश के अध्ययन के लिए हिंदी साहित्य की प्रमुख कृतियों, पाठ्यपुस्तकों, और पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का अध्ययन करना उपयोगी हो सकता है। इसके अलावा, विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विशेष रूप से तैयार की गई मार्गदर्शिका और ऑनलाइन संसाधन भी सहायक होते हैं।
4. गद्यांश का सारांश कैसे लिखा जाए ?
Ans. गद्यांश का सारांश लिखने के लिए पहले मुख्य विचारों और तर्कों को समझें। फिर, उन विचारों को संक्षेप में व्यक्त करें, बिना किसी अतिरिक्त जानकारी के। सारांश को स्पष्ट और संक्षिप्त बनाएं, ताकि पाठक बिना मूल गद्यांश पढ़े समझ सकें कि गद्यांश में क्या कहा गया है।
5. गद्यांश अध्ययन के दौरान ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बातें क्या हैं ?
Ans. गद्यांश अध्ययन के दौरान महत्वपूर्ण बातें हैं: गद्यांश के मुख्य विषय और उद्देश्य को पहचानना, शब्दों के अर्थ को समझना, लेखक की शैली और दृष्टिकोण को समझना, और समय-समय पर नोट्स बनाना। यह सभी बातें आपकी समझ और जवाब देने की क्षमता को बढ़ाती हैं।
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