प्रश्न 1: शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर: मशहूर शहनाई वादक “बिस्मिल्ला खाँ” का जन्म डुमराँव गाँव में ही हुआ था। इसके अलावा शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारे पाई जाती है। इसी कारण शहनाई की दुनिया में डुमराँव का महत्त्व है।
प्रश्न 2: बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर: शहनाई ऐसा वाद्य है जिसे मांगलिक अवसरों पर ही बजाया जाता है। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ शहनाई वादन के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान रखते हैं। इन्हीं कारणों के वजह से बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है।
प्रश्न 3: सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर: सुषिर-वाद्यों से अभिप्राय है फूँककर बजाये जाने वाले वाद्ध।
शहनाई एक अत्यंत मधुर स्वर उत्पन्न करने वाला वाद्ध है। फूँककर बजाए जाने वाले वाद्धों में कोई भी वाद्ध ऐसा नहीं है जिसके स्वर में इतनी मधुरता हो। शहनाई में समस्त राग-रागिनियों को आकर्षक सुरों में बाँधा जा सकता है। इसलिए शहनाई की तुलना में अन्य कोई सुषिर-वाद्य नहीं टिकता और शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों के शाह’ की उपाधि दी गयी होगी।
प्रश्न 4: आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।
उत्तर: यहाँ बिस्मिल्ला खाँ ने सुर तथा कपड़े (धन-दौलत) से तुलना करते हुए सुर को अधिक मूल्यवान बताया है। क्योंकि कपड़ा यदि एक बार फट जाए तो दुबारा सिल देने से ठीक हो सकता है। परन्तु किसी का फटा हुआ सुर कभी ठीक नहीं हो सकता है। और उनकी पहचान सुरों से ही थी इसलिए वह यह प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उन्हें अच्छा कपड़ा अर्थात् धन-दौलत दें या न दें लेकिन अच्छा सुर अवश्य दें।
(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
उत्तर:
बिस्मिल्ला खाँ पाँचों वक्त नमाज़ के बाद खुदा से सच्चा सुर पाने की प्रार्थना करते थे। वे खुदा से कहते थे कि उन्हें इतना प्रभावशाली सच्चा सुर दें और उनके सुरों में दिल को छूने वाली ताकत बख्शे उनके शहनाई के स्वर आत्मा तक प्रवेश करें और उसे सुनने वालों की आँखों से सच्चे मोती की तरह आँसू निकल जाए। यही उनके सुर की कामयाबी होगी।
प्रश्न 5: काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर: काशी से बहुत सी परंपराएँ लुप्त हो गई है। संगीत, साहित्य और अदब की परंपर में धीरे-धीरे कमी आ गई है। अब काशी से धर्म की प्रतिष्ठा भी लुप्त होती जा रही है। वहाँ हिंदु और मुसलमानों में पहले जैसा भाईचारा नहीं है। पहले काशी खानपान की चीज़ों के लिए विख्यात हुआ करता था। परन्तु अब उनमें परिवर्तन हुए हैं। काशी की इन सभी लुप्त होती परंपराओं के कारण बिस्मिल्ला खाँ दु:खी थे।
प्रश्न 6: पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि –
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।
उत्तर: (क) बिस्मिल्ला खाँ मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे। उनका धर्म मुस्लिम था। मुस्लिम धर्म के प्रति उनकी सच्ची आस्था थी परन्तु वे हिंदु धर्म का भी सम्मान करते थे। मुहर्रम के महीने में आठवी तारीख के दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे व दालमंडी मे फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते थे।
इसी तरह इनकी श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे। तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और उसी ओर शहनाई बजाते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि काशी छोड़कर कहाँ जाए, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ। मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे। वे धर्मों से अधिक मानवता को महत्व देते थे, हिंदु तथा मुस्लिम धर्म दोनों का ही सम्मान करते थे, भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी उनमें घमंड नहीं था, दौलत से अधिक सुर उनके लिए ज़रुरी था।
प्रश्न 7: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में कुछ ऐसे व्यक्ति और कुछ ऐसी घटनाएँ थीं जिन्होंने उनकी संगीत साधना को प्रेरित किया।
1. बालाजी मंदिर तक जाने का रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता था। इस रास्ते से कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा की आवाज़ें आती थी। इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर उनके मन में संगीत की ललक जागी।
2. बिस्मिल्ला खाँ जब सिर्फ़ चार साल के थे तब छुपकर अपने नाना को शहनाई बजाते हुए सुनते थे। रियाज़ के बाद जब उनके नाना उठकर चले जाते थे तब अपनी नाना वाली शहनाई ढूँढते थे और उन्हीं की तरह शहनाई बजाना चाहते थे।
3. मामूजान अलीबख्श जब शहनाई बजाते-बजाते सम पर आ जाते तो बिस्मिल्ला खाँ धड़ से एक पत्थर ज़मीन में मारा करते थे। इस प्रकार उन्होंने संगीत में दाद देना सीखा।
4. बिस्मिल्ला खाँ कुलसुम की कचौड़ी तलने की कला में भी संगीत का आरोह-अवरोह देखा करते थे।
5. बचपन में वे बालाजी मंदिर पर रोज़ शहनाई बजाते थे। इससे शहनाई बजाने की उनकी कला दिन-प्रतिदिन निखरने लगी।
प्रश्न 8: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित बातें हमें प्रभावित करती हैं –
1. ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी।
2. मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा।
3. भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया।
4. वे एक सीधे-सादे तथा सच्चे इंसान थे।
5. उनमें संगीत के प्रति सच्ची लगन तथा सच्चा प्रेम था।
6. वे अपनी मातृभूमि से सच्चा प्रेम करते थे।
प्रश्न 9: मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: मुहर्रम पर्व के साथ बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई का सम्बन्ध बहुत गहरा है। मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान शोक मनाते थे। इसलिए पूरे दस दिनों तक उनके खानदान का कोई व्यक्ति न तो मुहर्रम के दिनों में शहनाई बजाता था और न ही संगीत के किसी कार्यक्रम में भाग लेते थे। आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंड़ी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते हुए जाते थे। इन दिनों कोई राग-रागिनी नहीं बजाई जाती थी। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती थीं।
प्रश्न 10: बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
बिस्मिल्ला खाँ भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक थे। वे अपनी कला के प्रति पूर्णतया समर्पित थे। उन्होंने जीवनभर संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की इच्छा को अपने अंदर जिंदा रखा। वे अपने सुरों को कभी भी पूर्ण नहीं समझते थे इसलिए खुदा के सामने वे गिड़गिड़ाकर कहते – ”मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।” खाँ साहब ने कभी भी धन-दौलत को पाने की इच्छा नहीं की बल्कि उन्होंने संगीत को ही सर्वश्रेष्ठ माना। वे कहते थे- ”मालिक से यही दुआ है – फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।”
इससे यह पता चलता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।
प्रश्न - 11: निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए –
(क) यह ज़रुर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर: (क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)
(ख) जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)
(ग) जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)
(घ) कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)
(ङ) जिसकी गमक उसी में समाई है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)
(च) पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)
प्रश्न 12: निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर: (क) यह वही बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत का आयोजन होता है जो कि एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको लुंगिया पे नाहीं, शहनईया पे मिला है, ।
(घ) यह जो काशी का नायाब हीरा है वह हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
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