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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh - II - जैनेन्द्र कुमार

पाठ के साथ

प्रश्न 1: बाज़ार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
उत्तरबाज़ार का जादू चढ़ने पर मनुष्य बाज़ार की आकर्षक वस्तुओं के मोह जाल में फँस जाता है। बाजार के इसी आकर्षण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आवश्यकता न होने पर भी खरीदने को विवश हो जाता है। इस मोहजाल में फँसकर वह गैरजरूरी वस्तुएँ भी खरीद लेता है। परन्तु जब यह जादू उतरता है तो उसे ज्ञान होता है कि जो वस्तुएँ उसने आराम के लिए खरीदी थीं उल्टा वे तो उसके आराम में खलल डाल रही है।

प्रश्न 2: बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता हैक्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार हो सकता है?
उत्तरबाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का सशक्त पहलू उनका अपने ऊपर का ‘मन नियंत्रण’ उभरकर आता है।
बाज़ार उन्हें कभी भी आकर्षित नहीं कर पाता वे केवल अपनी जरुरत भर सामान के लिए बाज़ार का उपयोग करते हैं।
भगतजी जैसे व्यक्ति समाज में शांति लाते हैं क्योंकि इस प्रकार के व्यक्तियों की दिनचर्या संतुलित होती है और ये न ही बाज़ार के आकर्षण में फँसकर अधिक से अधिक वस्तुओं का संग्रह और संचय करते हैं जिसके फलस्वरूप मनुष्यों में न अशांति बढ़ती और न ही महँगाई बढ़ती। अत: समाज में भी शांति बनी रहती है।

प्रश्न 3: बाज़ारूपन‘ से क्या तात्पर्य हैकिस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें है?
उत्तरबाजारुपन से तात्पर्य ऊपरी चमक-दमक से है। जब सामान बेचने वाले बेकार की चीजों को आकर्षक बनाकर बेचने लगते हैं, तब बाज़ार में बाजारुपन आ जाता है।
जो विक्रेता, ग्राहकों का शोषण नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लुभाने का प्रयास नहीं करते साथ ही जो ग्राहक अपनी आवश्यकताओं की चीजें खरीदते हैं वे बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। इस प्रकार विक्रेता और ग्राहक दोनों ही बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं।
मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में ही बाजार की सार्थकता है।

प्रश्न 4: बाज़ार किसी का लिंगजातिधर्म या क्षेत्र नहीं देखता वह देखता है सिर्फ़ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तरहम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं क्योंकि आज हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, पढ़ाई, आवास, राजनीति, धार्मिक स्थल आदि सभी में एक प्रकार का भेदभाव देखते हैं।
बाज़ार को किसी लिंग, धर्म या जाति से कोई लेना-देना नहीं होता है उसके लिए तो हर कोई केवल और केवल ग्राहक है इस प्रकार यदि हम देखें तो बाज़ार एक प्रकार की सामाजिक समता की रचना करता है।

प्रश्न 5: आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें
(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।
(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
उत्तर: (क) जब बड़ा से बड़ा अपराधी अपने पैसे की शक्ति से निर्दोष साबित कर दिया जाता है तब हमें पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत होता है।
(ख) असाध्य बीमारी के आगे पैसे की शक्ति काम नहीं आती है।

पाठ के आस - पास

प्रश्न 1: बाज़ार दर्शन पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का ज़िक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।
(i) मन खाली हो
(ii) मन खाली न हो
(iii) मन बंद हो
(iv) मन में नकार हो
उत्तर1. मन खाली हो – जब मैं केवल यूँही घूमने की दृष्टि से बाज़ार जाती हूँ तो न चाहते हुए भी कई सारी महंगी चीजें घर ले आती हूँ। और बाद में पता चलता है कि इन वस्तुओं की वास्तविक कीमत तो बहुत कम है और मैं केवल उनके आकर्षण में फँसकर इन्हें खरीद लाई।
2. मन खाली न हो – एक बार मुझे बाज़ार से एक लाल रंग की साड़ी खरीदनी थी तो मैं सीधे साड़ी की दुकान पर पहुँची उस दुकान में अन्य कई तरह के परिधान मुझे आकर्षित कर रहें थे परन्तु मेरा विचार पक्का होने के कारण मैं सीधे साड़ी वाले काउंटर पर पहुँची और अपनी मनपसंद साड़ी खरीदकर बाहर आ गई।
3. मन बंद हो – कभी कभी जब मन बड़ा उदास होता है, तब बाज़ार की रंग-बिरंगी वस्तुएँ भी मुझे आकर्षित नहीं करती हैं मैं बिना कुछ लिए यूँहीं घर चला आता हूँ।
4. मन में नकार हो – एक बार मेरे पड़ोसी ने मुझे नकली वस्तुओं के बारे में कुछ इस तरह समझाया कि मेरे मन में वस्तुओं के प्रति एक प्रकार की नकारत्मकता आ गई मुझे बाज़ार की सभी वस्तुएँ में हमें कोई न कोई कमी दिखाई देने लगी। मुझे लगा जैसे सारी वस्तुएँ अपने मापदंडों पर खरी नहीं है।

प्रश्न 2: बाज़ार दर्शन पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई हैआप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?
उत्तरबाज़ार दर्शन पाठ में कई प्रकार के ग्राहकों की चर्चा की गई है जो निम्नलिखित हैं – खाली मन और खाली जेब वाले ग्राहक, भरे मन और भरी जेब वाले ग्राहक, पर्चेजिग पावर का प्रदर्शन करने वाले ग्राहक, बाजारुपन बढ़ानेवाले ग्राहक, अपव्ययी ग्राहक,भरे मन वाले ग्राहक, मितव्ययी और संयमी ग्राहक।
मैं अपने आप को भरे मन वाला ग्राहक समझती हूँ क्योंकि मैं आवश्यकता अनुसार ही बाज़ार का रुख करती हूँ और जो जरुरी वस्तुएँ हैं वे ही खरीदती हूँ।

प्रश्न 3: आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिग पावर आपको किस तरह के बाज़ार में नज़र आती है?
उत्तर

  • मॉल की संस्कृति – मॉल की संस्कृति में हमें एक ही छत के नीचे तरह-तरह के सामान मिलते हैं यहाँ का आकर्षण ग्राहकों को सामान खरीदने को मजबूर कर देता है। इस प्रकार के बाजारों के ग्राहक उच्च और उच्च मम वर्ग से संबंधित होते हैं।
  • सामान्य बाज़ार – सामान्य बाज़ार में लोगों की आवश्यकतानुसार चीजें होती हैं। यहाँ का आकर्षण मॉल संस्कृति की तरह नहीं होता है। इस प्रकार के बाजारों के ग्राहक मध्यम वर्ग से संबंधित होते हैं।
  • हाट की संस्कृति – हाट की संस्कृति के बाज़ार एकदम सीधे और सरल होते हैं इस प्रकार के बाजारों में निम्न और ग्रामीण परिवेश के ग्राहक होते हैं। इस प्रकार के बाजारों में दिखावा नहीं होता है।
  • पर्चेजिग पावर हमें मॉल संस्कृति में ही दिखाई देता है क्योंकि एक तो उसके ग्राहक उच्च वर्ग से संबंधित होते हैं और मॉल संस्कृति में वस्तुओं को कुछ इस तरह के आकर्षण में पेश किया जाता है कि ग्राहक उसे खरीदने को मजबूर हो जाते हैं।

प्रश्न 4: लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तरहम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं। दुकानदार कभी कभी ग्राहक की आवश्यकताओं का भरपूर शोषण करते हैं जैसे कभी कभी जीवनपयोगी वस्तुओं (चीनी, गैस, प्याज, टमाटर आदि) की कमी हो जाती है। उस समय दुकानदार मनचाहे दामों में इन चीजों की बिक्री करते हैं।

प्रश्न 5: स्त्री माया न जोड़े यहाँ माया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहींबल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ हैं जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?
उत्तरयहाँ पर माया शब्द धन-संपत्ति की ओर संकेत करता है। आमतौर पर स्त्रियाँ माया जोड़ती देखी जाती हैं परन्तु उनका माया जोड़ने के पीछे अनेक कारण होते हैं जैसे – एक स्त्री के सामने घर-परिवार सुचारू रूप से चलाने की, बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की, असमय आनेवाले संकट की, संतान के विवाह की, रिश्ते नातों को निभाने की जिम्मेदारियाँ आदि अनेक परिस्थितियाँ आती हैं जिनके कारण वे माया जोड़ती हैं।

आपसदारी

प्रश्न 1: ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है- भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिए-
चाह गई चिता महँ, मनुआँ बेपरवाहा
जाको कछु नहि चाहिए, सोइ साहन के सतह।।
उत्तर: 
भगत जी के स्वभाव में कबीर जी की ये पंक्तियाँ बिलकुल सही बैठती हैं। यह सारा खेल संतोष रूपी भावना से है। संतोष सबसे बड़ा भाव है। जिस मनुष्य में संतोष है, वह हर प्रकार से धनी है। कोई वस्तु उसे आकर्षित नहीं कर सकती है न उसमें लालच पैदा कर सकती है। जब मन में किसी को पाने की चाह, आकर्षण तथा लालच विद्यमान नहीं है, तो वह सुखी है। उसमें इन भावनाओं के न रहने से वह चिंता मुक्त हो जाता है। चिंता उसे सबसे अलग बना देती है और वह सुखी हो जाता है।

प्रश्न 2: विजयदान देथा की कहानी 'दुविधा' (जिस पर 'पहेली' फ़िल्म बनी है) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे/देखेंगी कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?
गडरिया बर्गर कहँ‘ हाँ उम के दिल र्का बात समझ गया,
पर अँगूंती कबूल नहीं र्का । काली दाहीं के बीच पीले दाँतों‘
की हँसी” हँसते हुए बोला ” मैं कोइ राजा नहीं हुँ जो न्याय
की कीमत वसूल करू। मैंने तो अटका काम निकाल
दिया । आँर यह अँगूठी मेरे किस काम ! न यह
अँगुलियों में आती हैं, न तड़े यें। मरी भेड़े‘ भी मेरी तरह
गाँवार हँ‘। घास तो खाती हैं, पर सोना सूँघती तक नहाँ।
बेकार र्का वस्तुएँ तुम अमरों को ही शोभा देती हैं।”
–विजयदान देथा
उत्तर:
 इससे हमारे मन में यह भाव जागते हैं कि हमें संतुष्ट रहना चाहिए। हमें किसी भी चीज़ के लालच तथा मोह में नहीं फंसना चाहिए। हमारे अंदर जितना अधिक संतुष्टी का भाव रहेगा, हम उतने ही शांत और सुखी बने रहेंगे। जीवन में कोई लालसा हमें सता नहीं पाएगी। हम परम सुख को भोगेंगे और शांति कायम कर पाएँगे।

प्रश्न 3: बाज़ार पर आधारित लेख नकली सामान पर नकेल ज़रूरी का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
नकली सामान के खिलाफ़ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?
उपभोक्ताओं के हित को मद्देनज़र रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व हैं?
ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए?
नकली सामान पर नकेल जरूरी
अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफ़एमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का जिक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों में खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है। उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरि माँ जी का कहना है, “इसमें दो राय नहीं कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली सामान बिक रहा है। महानगरीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँव वालों के अज्ञान और उनके बीच जागरूकता के अभाव का पूरा फ़ायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून जरूर हैं लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की जरूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है।
” इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस०एन० कपूर का कहना है, “टीवी ने दूर-दराज के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं। नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।” बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरूकता के लिहाज से शहरी समाज भी कोई ज्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरूकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रहा है। फिर गाँव वाला उपभोक्ता ऐसा क्योंकर न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की जरूरत है वह तत्काल हो।
-हिंदुस्तान, 6 अगस्त 2006, साभार
उत्तर: 

  • नकली सामान की जागरुकता के लिए हम आवाज़ उठा सकते हैं। यदि हमें कहीं पर नकली सामान बिकता हुआ दिखाई देता है, तो हम उसकी शिकायत सरकार से कर सकते हैं। सतर्क रह सकते हैं। प्रायः हम ही नकली सामान की खरीद-फरोक्त में शामिल होते हैं। लापरवाही से सामान खरीदना हमारी गलती है। अतः हमें चाहिए कि इस विषय में स्वयं जागरूक रहें और अन्य को भी जागरूक करें।
  • उपभोक्ताओं के हित को मद्देनज़र रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का नैतिक दायित्व है कि वह सामान की क्वालिटी में ध्यान दें। एक उपभोक्ता कंपनी को उसके सामान की तय कीमत देता है। अतः कंपनी को चाहिए कि वह उपभोक्ता के स्वास्थ्य और ज़रूरत को ध्यान में रखकर अच्छा सामान दे और उसे उपलब्ध करवाए। अपने सामान की समय-समय पर जाँच करवाएँ। उनके निर्माण के समय साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
  • आज के समय में ब्रांडेड सामान खरीदकर मनुष्य अपनी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति को दर्शाना चाहता है। इसके अतिरिक्त यह मान लिया जाता है कि एक ब्रांडेड सामान की गुणवत्ता ही अच्छी है। आज ब्रांडेड सामान दिखावे का हिस्सा बन गया है। फिर वह सामान नकली हो या उधार पर लिया गया हो लेकिन लोग इन्हें पहनकर अपनी ऊँची हैसियत दिखाना चाहते हैं। इसके लिए वह माँगकर पहनने से भी नहीं हिचकिचाते।

प्रश्न 4: प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के हामिद और उसके दोस्तों का बाज़ार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।
उत्तर: 
प्रेमचंद की कहानी ईदगाह से हामिद और उसके दोस्तों का बाज़ार से ग्राहक और दुकानदार का रिश्ता बनता है। वे बाज़ार से अपनी इच्छा तथा आवश्यकतानुसार खरीदारी करते हैं। सब अपनी हैसियत के अनुसार खरीदते हैं और बाज़ार संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। इसमें हामिद एक समझदार ग्राहक बनता है, जो ऐसा समान खरीदता है, जो उसकी दादी की आवश्यकता को पूर्ण करता है। उसके अन्य मित्र ऐसे ग्राहक बनते हैं, जो अपनी जेब की क्षमता के अनुसार खर्च करते हैं और बाद में पछताते हैं।

विज्ञापन की दुनिया

प्रश्न 1: आपने समाचारपत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है, नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात से सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।
विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु
विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य
विज्ञापन की भाषा

उत्तर:  मैंने मैगी के विज्ञापन को देखा। उसे देखकर मुझे लगा कि यह विज्ञापन मेरी भूख रूपी ज़रूरत को कम समय में पूरा करने में सक्षम है। यह मज़ेदार और सस्ता है, जो मैं स्वयं ही बनाकर खा सकती हूँ। इसमें मुझे माँ पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं है।
विज्ञापन में मैगी कंपनी ने अपने पैकेट को दिखाया है। इस विज्ञापन की विषय वस्तु माँ तथा उसके दो बच्चों पर है। ये अपनी माँ से भूख को दो मिनट में शांत करने के लिए कहते हैं।
विज्ञापन में तीन पात्र हैं, जिसमें एक माँ तथा उसके दो बच्चे (एक लड़का तथा लड़की) हैं। इनका औचित्य बहुत सार्थक सिद्ध हुआ है। बच्चे माँ से अचानक कुछ कम समय में बना लेने की माँग करते हैं। मैगी ऐसा माध्यम है कि कम समय में बनने वाला व्यंजन है और बच्चों की भूख को भी तुरंत शांत कर देता है।
विज्ञापन की भाषा सरल और सहज है। इसमें संगीत्मकता गुण प्रधान है। बच्चें गाकर माँ को अपनी भूख के बारे में समझाते हैं।

प्रश्न 2: अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो।
उत्तर:  आज अपने सामान की बिक्री के लिए मज़ेदार विज्ञापनों, फ्री सेंप्लिंग होर्डिंग बोर्ड, प्रतियोगिता, मुफ्त उपहार, मूल्य गिराकर, एक साथ एक मुफ्त देकर आदि तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इससे सामान की बिक्री में तेज़ी आती है। ये तरीके बहुत ही कारगर हैं। हम अपने उत्पाद की बिक्री के लिए पहले फ्री सेंप्लिंग देगें। इससे हम उपभोक्ता को अपने उत्पाद की गुणवत्ता दिखाकर उनका भरोसा जीतेंगे।

भाषा की बात

प्रश्न 1: विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।
उत्तर: 

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प्रश्न 2: पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैंजहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे है जहाँ वह पाठक-वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं?
उत्तर:

  • पानी भीतर हो;लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है।
  • लू में जाना तो पानी पीकर जाना।
  • बाज़ार आमंत्रित करता है कि आओ, मुझे लूटो और लूटो।
  • परंतु पैसे की व्यंग शक्ति की सुनिए।
  • कहीं आप भूल न कर बैठिएगा।

प्रश्न 3: नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।
(क) पैसा पावर है।
(ख) पैसे की उस पर्चेज़िंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।
(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।
(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।
ऊपर दिए इन वाक्यों की संरचना तो हिन्दी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल! अब तक आपने जो पाठ पढ़े उसमें से कोई पाँच उदहारण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिन्दी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो भाषा पर संप्रेषणीयता क्या प्रभाव पड़ता है।
उत्तर1. हमें हफ्ते मैं चॉकलेट खरीदने की छूट थी।
2. बाज़ार है या शैतान का जाल
3. पर्चेजिंग पावर के अनुपात में आया है।
4. बचपन के कुछ फ्रॉक तो मुझे अब तक याद है।
5. वहाँ के लोग उम्दा खाने के शौक़ीन है।
किसी भी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए आगत शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इस पर यदि रोक लगा दी जाए तो भाषा की संप्रेषणीयता कमजोर और कठिन हो जाएगी जैसे उदहारण स्वरुप यदि ट्रेन को हम हिन्दी के पर्याय के रूप में लौह-पथ-गामिनी कहेंगे तो भाषा मैं दुरुहता आ जाएगी अत:कोड मिक्सिंग के प्रयोग से भाषा में सहजता और विचारों के आदान-प्रदान में सुविधा रहती है।

प्रश्न 4: नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए –
(क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है।
(ख) लोग संयमी भी होते हैं।
(ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।
ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ही‘, ‘भी‘, ‘तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे – मुझे भी किताब चाहिए। (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)
 मुझे किताब भी चाहिए। (किताब
 महत्त्वपूर्ण है।)
आप निपात (हीभीतो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का भी निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों
उत्तर:

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh - II - जैनेन्द्र कुमारतीनों निपातों का प्रयोग –

  • आप घर पर ही रुकें क्योंकि माँ भी तो जा चुकी है।

चर्चा करे

प्रश्न 1: पर्चेंज़िंग पावर से क्या अभिप्राय है?
बाज़ार की चकाचौंध से दूर पर्चेज़िंग पावर का साकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद क लिए संकेत दिया जा रहा है-
सामाजिक विकास के कार्यों में।
ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में ______।
उत्तर
पर्चेज़िंग पावर का अभिप्राय हैः पैसे खर्च करने की क्षमता होना। हम सामाजिक विकास के कार्यों में अपनी इस क्षमता का प्रयोग कर सकते हैं। जैसे की हम ऐसे सामान खरीद सकते हैं, जो कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प तथा लघु उद्योगों को बढ़ावा दें। इस प्रकार हम न केवल समाज का विकास करेंगे अपितु हम ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ बना सकते हैं। प्रायः ग्रामीण प्रदेशों में कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प उद्योग तथा लघु उद्योग फलते-फूलते हैं। इसके माध्यम से हम दोनों को मज़बूत और विकसित बना सकते हैं।

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FAQs on NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh - II - जैनेन्द्र कुमार

1. जैनेन्द्र कुमार कौन हैं?
उत्तर: जैनेन्द्र कुमार एक विद्यार्थी हैं जो NCERT के हल सामग्री प्रदान करते हैं।
2. जैनेन्द्र कुमार की जानकारी कहाँ से प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर: जैनेन्द्र कुमार की जानकारी NCERT की आधिकारिक वेबसाइट या उनके सम्बंधित सामग्री से प्राप्त की जा सकती है।
3. NCERT Solutions किस उद्देश्य के लिए प्रदान की गई हैं?
उत्तर: NCERT Solutions विद्यार्थियों को उनके पाठ्यक्रम के लिए मार्गदर्शन और समझने में मदद करने के उद्देश्य से प्रदान की जाती हैं।
4. जैनेन्द्र कुमार किस विषय पर निर्देशन प्रदान करते हैं?
उत्तर: जैनेन्द्र कुमार NCERT Solutions के माध्यम से विभिन्न विषयों जैसे गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान आदि पर निर्देशन प्रदान करते हैं।
5. NCERT Solutions क्यों महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर: NCERT Solutions छात्रों को सही और सरल जवाबों के साथ उनके पाठ्यक्रम को समझने में मदद करते हैं और उन्हें अच्छे मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
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