कविता का सार
‘यमराज की दिशा’ नामक कविता में कवि ने विकसित सभ्यता के भयावह परिणामों की ओर संकेत किया है। कवि इसमें स्पष्ट करना चाहता है कि सभ्यता के विकास के साथ-साथ हमारे जीवन के लिए हानिकारक शक्तियाँ भी पसरती जा रही हैं। कवि कहता है कि मुझे नहीं पता कि माँ यमराज से कभी मिली या नहीं किंतु इतना तो महसूस होता है कि माँ भगवान से बातें कर रही हैं तथा उन्हीं की राय लेकर अपना जीवन भी बिता रही हैं। कवि कहता है कि माँ ने उसे एक बार यह बताया था कि दक्षिण में पैर करके कभी मत सोना क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की दिशा है। यमराज को नाराश करना खतरे से खेलना है। कवि ने एक बार अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था? तो माँ ने कवि को यही कहा था कि यमराज का घर दक्षिण में ही है। कवि कहता है कि मुझे माँ की बताई हुई दक्षिण दिशा की बात हमेशा याद रही। कवि के अनुसार दक्षिण दिशा कभी खत्म नहीं होती है। वह हमेशा चलती ही रहती है। आज के विकसित सभ्य समाज में तो प्रत्येक दिशा यमराज की ही दिशा हो गई है। प्रत्येक दिशा में यमराज अपना पाश लिए तैयार ही खड़े रहते हैं। कवि का कहना है कि आज यमराज की दक्षिण दिशा माँ वाली दक्षिण दिशा नहीं रही है। अब तो चारों तरफ यमराज ही यमराज नशर आते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि अब सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य को काल के गाल में पहुँचाने वाली सामग्री सब जगह तैयार हो रही है। कवि चाहता है कि सभी लोग इस सर्वत्रा पैफलते हुए विध्वंसए हिंसा और मौत की भयावह चुनौती का डटकर मुकाबला करें।
कवि परिचय
चंद्रकांत देवताले
इनका जन्म सन 1936 में गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्य प्रदेश में हुआ। इनकी उच्च शिक्षा इंदौर से हुई तथा पीएचडी सागर विश्वविद्यालय, सागर से। देवताले की कविता की जड़ें गाँव-कस्बों और निम्न मध्यवर्ग के जीवन में है।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ - हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय।
पुरस्कार - माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्यप्रदेश शासन का् शिखर सम्मान।
कठिन शब्दों के अर्थ
1. यमराज की दिशा - कविता का सार क्या है? |
2. 'यमराज की दिशा' कविता किस विषय पर है? |
3. कविता में कौन-कौन से विषय दिए गए हैं? |
4. इस कविता का लेखक कौन है? |
5. 'यमराज की दिशा' कविता किस शैली में लिखी गई है? |
|
Explore Courses for Class 9 exam
|