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पाठ का सार - पाठ 11 - नौबतखाने में इबादत, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 | Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij) PDF Download

पाठ का संक्षिप्त परिचय

प्रस्तुत पाठ श्री यतींद्र मिश्र द्वारा लिखित ‘नौबतखाने में इबादत’ शीर्षक से उद्धत है। इसमें लेखक ने विश्व प्रसिद्ध् शहनाई वादक भारत रत्न से विभूषित स्व. श्री बिस्मिल्लाह खाँ की बाल्यावस्था से लेकर उनकी उपलब्ध्यिों तक का बड़ा ही मार्मिक एवं साहित्यिक चित्राण प्रस्तुत किया है। यत्रा-तत्रा प्रसंगवश भारत के अनेक लोकवाद्यों का भी वर्णन है। लेखक ने बड़ी ईमानदारी से लेखक केस्वभाव, रुचियों एवं उनके उदार मन को उकेरा है, जो लेखक की विद्वत्ता में चार चाँद लगा देता है।

पाठ का सार

 

अम्मीरुद्दीन उर्फ़ बिस्मिल्लाह खाँ का जन्म बिहार में डुमराँव के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ। इनके बड़े भाई का नाम शम्सुद्दीन था जो उम्र में उनसे तीन वर्ष बड़े थे। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव के निवासी थे। इनके पिता का नाम पैग़म्बरबख़्श खाँ तथा माँ मिट्ठन थीं। पांच-छह वर्ष होने पर वे डुमराँव छोड़कर अपने ननिहाल काशी आ गए। वहां उनके मामा सादिक हुसैन और अलीबक्श तथा नाना रहते थे जो की जाने माने शहनाईवादक थे।  वे लोग बाला जी के मंदिर की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर अपनी दिनचर्या का आरम्भ करते थे। वे विभिन्न रियासतों के दरबार में बजाने का काम करते थे।

ननिहाल में 14 साल की उम्र से ही बिस्मिल्लाह खाँ ने बाला जी के मंदिर में रियाज़ करना शुरू कर दिया। उन्होंने वहां जाने का ऐसा रास्ता चुना जहाँ उन्हें रसूलन और बतूलन बाई की गीत सुनाई देती जिससे उन्हें ख़ुशी मिलती। अपने साक्षात्कारों में भी इन्होनें स्वीकार किया की बचपन में इनलोगों ने इनका संगीत के प्रति प्रेम पैदा करने में भूमिका निभायी। भले ही वैदिक इतिहास में शहनाई का जिक्र ना मिलता हो परन्तु मंगल कार्यों में इसका उपयोग प्रतिष्ठित करता है अर्थात यह मंगल ध्वनि का सम्पूरक है। बिस्मिल्लाह खाँ ने अस्सी वर्ष के हो जाने के वाबजूद हमेशा पाँचो वक्त वाली नमाज में शहनाई के सच्चे सुर को पाने की प्रार्थना में बिताया। मुहर्रम के दसों दिन बिस्मिल्लाह खाँ अपने पूरे खानदान के साथ ना तो शहनाई बजाते थे और ना ही किसी कार्यक्रम में भाग लेते। आठवीं तारीख को वे शहनाई बजाते और दालमंडी से फातमान की आठ किलोमीटर की दुरी तक भींगी आँखों से नोहा बजाकर निकलते हुए सबकी आँखों को भिंगो देते।

फुरसत के समय वे उस्ताद और अब्बाजान को काम याद कर अपनी पसंद की सुलोचना गीताबाली जैसी अभिनेत्रियों की देखी फिल्मों को याद करते थे। वे अपनी बचपन की घटनाओं को याद करते की कैसे वे छुपकर नाना को शहनाई बजाते हुए सुनाता तथा बाद में उनकी ‘मीठी शहनाई’ को ढूंढने के लिए एक-एक कर शहनाई को फेंकते और कभी मामा की शहनाई पर पत्थर पटककर दाद देते। बचपन के समय वे फिल्मों के बड़े शौक़ीन थे, उस समय थर्ड क्लास का टिकट छः पैसे का मिलता था जिसे पूरा करने के लिए वो दो पैसे मामा से, दो पैसे मौसी से और दो पैसे नाना से लेते थे फिर बाद में घंटों लाइन में लगकर टिकट खरीदते थे। बाद में वे अपनी पसंदीदा अभिनेत्री सुलोचना की फिल्मों को देखने के लिए वे बालाजी मंदिर पर शहनाई बजाकर कमाई करते। वे सुलोचना की कोई फिल्म ना छोड़ते तथा कुलसुम की देसी घी वाली दूकान पर कचौड़ी खाना ना भूलते।

काशी के संगीत आयोजन में वे अवश्य भाग लेते। यह आयोजन कई वर्षों से संकटमोचन मंदिर में हनुमान जयंती के अवसर हो रहा था जिसमे शास्त्रीय और उपशास्त्रीय गायन-वादन की सभा होती है। बिस्मिल्लाह खाँ जब काशी के बाहर भी रहते तब भी वो विश्वनाथ और बालाजी मंदिर की तरफ मुँह करके बैठते और अपनी शहनाई भी उस तरफ घुमा दिया करते। गंगा, काशी और शहनाई उनका जीवन थे। काशी का स्थान सदा से ही विशिष्ट रहा है, यह संस्कृति की पाठशाला है। बिस्मिल्लाह खाँ के शहनाई के धुनों की दुनिया दीवानी हो जाती थी।

सन 2000 के बाद पक्का महाल से मलाई-बर्फ वालों के जाने से, देसी घी तथा कचौड़ी-जलेबी में पहले जैसा स्वाद ना होने के कारण उन्हें इनकी कमी खलती। वे नए गायकों और वादकों में घटती आस्था और रियाज़ों का महत्व के प्रति चिंतित थे। बिस्मिल्लाह खाँ हमेशा से दो कौमों की एकता और भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देते रहे। नब्बे वर्ष की उम्र में 21 अगस्त 2006 को उन्हने दुनिया से विदा ली । वे भारतरत्न, अनेकों विश्वविद्यालय की मानद उपाधियाँ व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा पद्मविभूषण जैसे पुरस्कारों से जाने नहीं जाएँगे बल्कि अपने अजेय संगीतयात्रा के नायक के रूप में पहचाने जाएँगे।

लेखक परिचय

यतीन्द्र मिश्र
इनका जन्म 1977 में अयोध्या, उत्तर प्रदेश में हुआ। इन्होने लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से हिंदी में एम.ए  किया। ये आजकल स्वतंत्र लेखन के साथ अर्धवार्षिक सहित पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं। सन 1999 में साहित्य और कलाओं के संवर्ध्दन और अनुशलीन के लिए एक सांस्कृतिक न्यास ‘विमला देवी फाउंडेशन’ का संचालन भी कर रहे हैं।

प्रमुख कार्य
काव्य संग्रह – यदा-कदा, अयोध्या तथा अन्य कविताएँ, ड्योढ़ी पर आलाप।
पुस्तक – गिरिजा
पुरस्कार – भारत भूषण अग्रवाल कविता सम्मान, हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार, ऋतुराज पुरस्कार आदि।

कठिन शब्दों के अर्थ

  1. अज़ादारी – दुःख मनाना
  2. ड्योढ़ी – दहलीज
  3. सजदा – माथा टेकना
  4. नौबतखाना – प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान
  5. रियाज़- अभ्यास
  6. मार्फ़त – द्वारा
  7. श्रृंगी – सींग का बना वाद्ययंत्र
  8. मुरछंग – एक प्रकार का लोक वाद्ययंत्र
  9. नेमत – ईश्वर की देन, सुख, धन, दौलत
  10. इबादत – उपासना
  11. उहापोह – उलझन
  12. तिलिस्म – जादू
  13. बदस्तूर – तरीके से
  14. गमक – महक
  15. दाद – शाबाशी
  16. अदब – कायदा
  17. अलहमदुलिल्लाह – तमाम तारीफ़ ईश्वर के लिए
  18. जिजीविषा – जीने की इच्छा
  19. शिरकत – शामिल
  20. रोजनामचा – दिनचर्या
  21. पोली – खाली
  22. बंदिश – धुन
  23. परिवेश – माहौल
  24. साहबज़ादे – बेटे
  25. मुराद – इच्छा
  26. निषेध – मनाही
  27. ग़मज़दा – दुःख से पूर्ण
  28. माहौल – वातावरण
  29. बालसुलभ – बच्चों जैसी
  30. पुश्तों – पीढ़ियों
  31. कलाधर – कला को धारण करने वाला
  32. विशालाक्षी – बड़ी आँखों वाली
  33. बेताले – बिना ताल के
  34. तहमद – लुंगी
  35. परवरदिगार – ईश्वर
  36. दादरा – एक प्रकार का चलता गाना।
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FAQs on पाठ का सार - पाठ 11 - नौबतखाने में इबादत, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 - Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij)

1. नौबतखाने में इबादत का महत्व क्या है?
उत्तर: नौबतखाने में इबादत का महत्व इस बात में है कि इस स्थान पर लोग अल्लाह के सामने जमा होकर उनकी इबादत करते हैं। यहां पर आते हुए लोगों को एक समूह की तरह एकजुट होना पड़ता है जो एक दूसरे से भी रूहानी रूप से जुड़ता है।
2. नौबतखाने में इबादत कैसे की जाती है?
उत्तर: नौबतखाने में इबादत की जाने वाली एक विशेष विधि होती है जो मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसमें लोग जमा होकर धुन, ताल और कव्वाली आदि सुनते हैं और उनकी इबादत करते हैं।
3. नौबतखाने का इतिहास क्या है?
उत्तर: नौबतखाने का नाम फ़ारसी भाषा से लिया गया है जो एक संगीतीय उपकरण के नाम पर है। यह एक ऐसी जगह होती है जहां पर लोग अल्लाह के सामने जमा होते हैं और उनकी इबादत करते हैं। इसका इतिहास बहुत पुराना है।
4. नौबतखाने में धुन, ताल और कव्वाली क्यों बजाई जाती है?
उत्तर: नौबतखाने में धुन, ताल और कव्वाली बजाई जाती है क्योंकि यह एक संगीतीय उपकरण का नाम है जो मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसमें लोग जमा होकर इन उपकरणों की मदद से अल्लाह की इबादत करते हैं।
5. नौबतखाने में इबादत के लिए किन चीजों की आवश्यकता होती है?
उत्तर: नौबतखाने में इबादत करने के लिए लोगों को चादर, जायनमाज और अन्य इबादत के उपकरणों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा लोगों को सफ़ाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए और इस स्थान पर शांति और सद्भाव की महत्ता को समझना चाहिए।
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