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प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1. हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर
भारत की आज़ादी की लड़ाई में हर धर्म और वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इस कहानी में लेखक ने टुन्नू व दुलारी जैसे पात्रों के माध्यम से उस वर्ग को उभारने की कोशिश की है, जो समाज में हीन या उपेक्षित वर्ग के रूप में देखे जाते हैं। टुन्नू व दुलारी दोनों ही कजली गायक हैं। टुन्नू ने आज़ादी के लिए निकाले गए जलूसों में भाग लेकर व अपने प्राणों की आहूति देकर ये सिद्ध किया कि ये वर्ग मात्र नाचने या गाने के लिए पैदा नहीं हुए हैं अपितु इनके मन में भी आज़ादी प्राप्त करने का जोश है। इसी तरह दुलारी द्वारा रेशमी साड़ियों को जलाने के लिए देना भी एक बहुत बड़ा कदम था तथा इसी तरह जलसे में बतौर गायिका जाना व उसमें नाचना-गाना उसके योगदान की ओर इशारा करता है। लेखक ने इस प्रकार समाज के उपेक्षित लोगों के योगदान को स्वतंत्रता के आंदोलन में महत्त्वपूर्ण माना हैं।
प्रश्न 2. कठोर ह्रदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्त्तर
दुलारी अपने कठोर स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थी परन्तु दुलारी का स्वभाव नारियल की तरह था। वह एक अकेली स्त्री थी। इसलिए स्वयं की रक्षा हेतु वह कठोर आचरण करती थी। परन्तु अंदर से वह बहुत नरम दिल की स्त्री थी। टुन्नू, जो उसे प्रेम करता था, उसके लिए उसके ह्रदय में बहुत खास स्थान था परन्तु वह हमेशा टुन्नू को दुतकारती रहती थी क्योंकि टुन्नू उससे उम्र में बहुत छोटा था। परन्तु उसके मन में टुन्नू का एक अलग ही स्थान था उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी गायन-कला का प्रेमी था। फेंकू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय दर्द से फट पड़ा और आँखों से आँसूओं की धारा बह निकली। किसी के लिए ना पसीजने वाला ह्रदय आज चीत्कार कर रहा था। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की धोती पहन ली।
प्रश्न 3. कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।उत्तर
उस समय यह आयोजन मात्र मंनोरंजन का साधन हुआ करता था। परन्तु फिर भी इनमें लोगों की प्रतिष्ठा का प्रश्न रहा करता था। इन कजली गायकों को बुलवाकर समारोह का आयोजन करवाया जाता था । अपनी प्रतिष्ठा को उसके साथ जोड़ दिया जाता था और यही ऐसे समारोहों की जान हुआ करते थे। उनकी हार जीत पर सब टिका हुआ होता था। भारत में तो विभिन्न स्थानों पर अलग−अलग रूपों में अनेकों समारोह किए जाते हैं; जैसे- उत्तर भारत में पहलवानी या कुश्ती का आयोजन, राजस्थान में लोक संगीत व पशु मेलों का आयोजन, पंजाब में लोकनृत्य व लोकसंगीत का आयोजन, दक्षिण में बैलों के दंगल व हाथी−युद्ध का आयोजन किया जाता है।
प्रश्न 4. दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक - सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
दुलारी बेशक सामाजिक-सांस्कृतिक के दायरे से बाहर है। समाज के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा इन प्रतिभावान व्यक्तियों व इनकी कलाओं को उचित सम्मान नहीं दिया गया है। लेकिन अपने व्यक्तित्व से इन्होंने अपना एक अलग नाम प्राप्त किया है, जो अतिविशिष्ट है। दुलारी की यही विशिष्टता उसे सबसे अलग करती है। ये इस प्रकार हैं -
प्रभावशाली गायिका − दुलारी एक प्रभावशाली गायिका है उसकी आवाज़ में मधुरता व लय का सुन्दर संयोजन है। पद्य में तो सवाल−जवाब करने में उसे कुशलता प्राप्त थी। उसका सामना अच्छे से अच्छा गायक भी नहीं कर पाता था।
देश के प्रति समर्पित − बेशक दुलारी प्रत्यक्ष रूप से स्वतन्त्रता संग्राम में ना कूदी हो पर वह अपने देश के प्रति समर्पित स्त्री थी। उसने बिना हिचके फेंकू द्वारा दी रेशमी साड़ियों के बंडल को आदोलनकारियों को जलाने हेतु दे दिया।
समर्पित प्रेमिका − दुलारी एक समर्पित प्रेमिका थी। वह टुन्नू से मन ही मन प्रेम करती थी। परन्तु उसके जीते−जी उसने अपने प्रेम को कभी व्यक्त नहीं किया। उसकी मृत्यु ने उसके ह्दय में दबे प्रेम को आंसुओं के रूप में प्रवाहित कर दिया।
निडर स्त्री − दुलारी एक निडर स्त्री थी। वह किसी से नहीं डरती थी। दुलारी का अपना कोई नहीं था। वह अकेली रहती थी। अतः अपनी रक्षा हेतु उसने स्वयं को निडर बनाया हुआ था। इसी निडरता से उसने फेकूं की दी हुई साड़ी जुलूस में फेंक दी। टुन्नू की मृत्यु के पश्चात उसने अंग्रेज़ विरोधी समारोह में भाग लिया तथा गायन पेश किया।
स्वाभिमानी स्त्री − दुलारी एक स्वाभिमानी स्त्री थी। वह अपने सम्मान का समझौता करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी। उसने अकेले रहकर सम्मान से सर उठाकर जीना सीखा था। फेंकू की दी साड़ी भी उसने इसलिए फेंक दी थी।
प्रश्न 5. दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर
टुन्नू व दुलारी का परिचय भादों में तीज़ के अवसर पर खोजवाँ बाज़ार में हुआ था। जहाँ वह गाने के लिए बुलवाई गई थी। दुक्कड़ पर गानेवालियों में दुलारी का खासा नाम था। उससे पद्य में ही सवाल-जवाब करने की महारत हासिल थी। बड़े-बड़े गायक उसके आगे पानी भरते नज़र आते थे और यही कारण था कि कोई भी उसके सम्मुख नहीं आता था। उसी कजली दंगल में उसकी मुलाकात टुन्नू से हुई थी। उसने भी पद्यात्मक शैली में प्रश्न-उत्तर करने में कुशलता प्राप्त की थी। टुन्नू दुलारी की ओर हाथ उठकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुस्कुराती हुई मुग्ध होकर सुनती रही। टुन्नू ने दुलारी को भी अपने आगे नतमस्तक कर दिया था।
प्रश्न 6. दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था - "तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?...! "दुलारी से इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
दुलारी का टुन्नू को यह कहना उचित था - "तैं सरबउला बोल ज़िन्दगी में कब देखने लोट?...! " क्योंकि टुन्नू अभी सोलह सत्रह वर्ष का है। उसके पिताजी गरीब पुरोहित थे जो बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला रहे थे। टुन्नू ने अब तक लोट (नोट) देखे नहीं। उसे पता नहीं कि कैसे कौड़ी-कौड़ी जोड़कर लोग गृहस्थी चलाते है। यहाँ दुलारी ने उन लोगों पर आक्षेप किया है जो असल ज़िन्दगी में कुछ करते नहीं मात्र दूसरों की नकल पर ही आश्रित होते हैं। उसके अनुसार इस ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। इस ज़िन्दगी में कब नोट या धन देखने को मिल जाए कोई कुछ नहीं जानता। इसलिए हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।
प्रश्न 7. भारत के स्वीधनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
उत्तर
विदेशी वस्त्रों के बाहिष्कार हेतु चलाए जा रहे आन्दोलन में दुलारी ने अपना योगदान रेशमी साड़ी व फेंकू द्वारा दिए गए रेशमी साड़ी के बंडल को देकर दिया। बेशक वह प्रत्यक्ष रूप में आन्दोलन में भाग नहीं ले रही थी फिर भी अप्रत्यक्ष रूप से उसने अपना योगदान दिया था। टुन्नू ने स्वतन्त्रता संग्राम में एक सिपाही की तरह अपना योगदान दिया था। उसने रेशमी कुर्ता व टोपी के स्थान पर खादी के वस्त्र पहनना आरम्भ कर दिया। अंग्रेज विरोधी आन्दोलन में वह सक्रिय रूप से भाग लेने लग गया था और इसी सहभागिता के कारण उसे अपने प्राणों का बालिदान देना पड़ा।
प्रश्न 8. दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?
उत्तर
दुलारी और टुन्नू के ह्रदय में एक दूसरे के प्रति अगाध प्रेम था और ये प्रेम उनकी कला के माध्यम से ही उनके जीवन में आया था। दुलारी ने टुन्नू के प्रेम निवेदन को कभी स्वीकारा नहीं परन्तु वह मन ही मन उससे बहुत प्रेम करती थी। वह यह भली भांति जानती थी कि टुन्नू का प्रेम शारीरिक ना होकर आत्मिय प्रेम था और टुन्नू की इसी भावना ने उसके मन में उसके प्रति श्रद्धा भावना भर दी थी। परन्तु उसकी मृत्यु के समाचार ने उसके ह्रदय पर जो आघात किया, वह उसके लिए असहनीय था। अंग्रेज अफसर द्वारा उसकी निर्दयता पूर्वक हत्या ने, उसके अन्दर के कलाकार को प्रेरित किया और उसने स्वतन्त्रता सेनानियों द्वारा आयोजित समारोह में अपने गायन से नई जान फूंक दी। यही से उसने देश प्रेम का मार्ग चुना।
प्रश्न 9. जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकाशं वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
उत्तर
आज़ादी के दीवानों की एक टोली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रही थी। अधिकतर लोग फटे-पुराने वस्त्र दे रहे थे। दुलारी के वस्त्र बिलकुल नए थे। दुलारी द्वारा विदेशी वस्त्रों के ढेर में कोरी रेशमी साड़ियों का फेंका जाना यह दर्शाता है कि वह एक सच्ची हिन्दुस्तानी है, जिसके ह्रदय में देश के प्रति प्रेम व आदरभाव है। देश के आगे उसके लिए साड़ियों का कोई मूल्य नहीं है। उसके ह्रदय में उन रेशमी साड़ियों का मोह नहीं था। मोह था तो अपने देश के सम्मान का। वह उसकी सच्चे देश प्रेमी की मानसिकता को दर्शाता है
प्रश्न 10. "मन पर किसी का बस नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।" टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर
टुन्नू दुलारी से प्रेम करता था। वह दुलारी से उम्र में बहुत ही छोटा था। वह मात्र सत्रह − सोलह साल का लड़का था। दुलारी को उसका प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कुछ नहीं लगता था। इसलिए वह उसका तिरस्कार करती रहती थी। परन्तु इन वाक्यों ने जैसे एक अल्हड़ लड़के में प्रेम के प्रति सच्ची भावना देखी। उसका प्रेम शरीर से ना जुड़कर उसकी आत्मा से था। टुन्नू के द्वारा कहे वचनों ने दुलारी के ह्रदय में उसके आसन को और दृढ़ता से स्थापित कर दिया। टुन्नु के प्रति उसके विवेक ने उसके प्रेम को श्रद्धा का स्थान दे दिया। अब उसका स्थान अन्य कोई व्यक्ति नहीं ले सकता था।
प्रश्न 11. 'एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर
इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग खो गई है, मैं किससे पूछूँ ? नाक में पहना जानेवाला लौंग सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है उसने अपने मन रूपी नाक में टुन्नू के नाम का लौंग पहन लिया है।
दुलारी की मनोस्थिति देखें तो जिस स्थान पर उसे गाने के लिए आमंत्रित किया गया था, उसी स्थान पर टुन्नू की मृत्यु हुई थी तो उसका प्रतीकार्थ होगा - इसी स्थान पर मेरा प्रियतम मुझसे बिछड़ गया है। अब मैं किससे उसके बारे में पूछूँ कि मेरा प्रियतम मुझे कहाँ मिलेगा? अर्थात् अब उसका प्रियतम उससे बिछड़ गया है, उसे पाना अब उसके बस में नहीं है।
1. एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! पाठ में कौन-कौन से आदिकारी आए हैं? |
2. पाठ में बताए गए आदिकारियों की प्रमुख गुणों का उल्लेख कीजिए। |
3. ठैयाँ झुलनी की एक उदाहरण दीजिए। |
4. आर्थिक आदिकारीता क्या है? |
5. एही ठैयाँ झुलनी के आदिकारियों की प्रमुख जिम्मेदारियाँ क्या होती हैं? |
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