निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
श्रद्धा एक सामाजिक भाव है, इससे अपनी श्रद्धा के बदले में हम श्रद्धेय से अपने लिए कोई बात नहीं चाहते श्रद्धा धारण करते हुए अपने को उस समाज में समझते हें जिसके किसी अंश पर चाहे हम व्यष्टि रूप में उनके अन्तर्गत न भी हों-जानबूझकर उसने कोई शुभ प्रभाव डाला श्रद्धा स्वयं ऐसे कर्मों के प्रतिकार में होती है जिनका शुभ प्रभाव अकेले हम पर नहीं, बल्कि सारे मनुष्य समाज पर पड़ सकता है श्रद्धा एक ऐसी आनंदपूर्ण कृतज्ञता है जिसे हम केवल समाज के प्रतिनिधि के रूप में प्रकट करते है सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध या घृणा प्रकट करने के लिए समाज ने प्रत्येक यक्ति को प्रतिनिधित्व प्रदान कर रखा है यह काम उसने इतना भारी समझा है कि उसका भार सारे मनुष्यों को बाँट दिया है दो-चार माननीय लोगों के ही सर पर नहीं छोड़ रखा है जिस समाज में सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध प्रकट करने के लिए जितने ही अधिक लोग तत्पर पाए जाएंगे उतना ही वह समाज जाग्रत समझा जाएगा श्रद्धा की सामाजिक विशेषता एक इसी बात से समझ लीजिए कि जिस पर हम श्रद्धा रखते हैं इस पर चाहते हैं कि और लोग भी श्रद्धा रखें पर जिस पर हमारा प्रेम होता है उससे और दस-पाँच आदमी प्रेम रखें-इसकी हमें परवा क्या इच्छा ही नहीं होती; क्योंकि हम प्रिया पर लोभवश एक प्रकार का अनन्य अधिकार इजारा चाहते हैं, श्रद्धालु अपने भाव में संसार को सम्मिलित करना चाहता है, पर प्रेमी नहीं।
Q. उपर्युक्त गद्य अवतरण का शीर्षक हो सकता है-
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
श्रद्धा एक सामाजिक भाव है, इससे अपनी श्रद्धा के बदले में हम श्रद्धेय से अपने लिए कोई बात नहीं चाहते श्रद्धा धारण करते हुए अपने को उस समाज में समझते हें जिसके किसी अंश पर चाहे हम व्यष्टि रूप में उनके अन्तर्गत न भी हों-जानबूझकर उसने कोई शुभ प्रभाव डाला श्रद्धा स्वयं ऐसे कर्मों के प्रतिकार में होती है जिनका शुभ प्रभाव अकेले हम पर नहीं, बल्कि सारे मनुष्य समाज पर पड़ सकता है श्रद्धा एक ऐसी आनंदपूर्ण कृतज्ञता है जिसे हम केवल समाज के प्रतिनिधि के रूप में प्रकट करते है सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध या घृणा प्रकट करने के लिए समाज ने प्रत्येक यक्ति को प्रतिनिधित्व प्रदान कर रखा है यह काम उसने इतना भारी समझा है कि उसका भार सारे मनुष्यों को बाँट दिया है दो-चार माननीय लोगों के ही सर पर नहीं छोड़ रखा है जिस समाज में सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध प्रकट करने के लिए जितने ही अधिक लोग तत्पर पाए जाएंगे उतना ही वह समाज जाग्रत समझा जाएगा श्रद्धा की सामाजिक विशेषता एक इसी बात से समझ लीजिए कि जिस पर हम श्रद्धा रखते हैं इस पर चाहते हैं कि और लोग भी श्रद्धा रखें पर जिस पर हमारा प्रेम होता है उससे और दस-पाँच आदमी प्रेम रखें-इसकी हमें परवा क्या इच्छा ही नहीं होती; क्योंकि हम प्रिया पर लोभवश एक प्रकार का अनन्य अधिकार इजारा चाहते हैं, श्रद्धालु अपने भाव में संसार को सम्मिलित करना चाहता है, पर प्रेमी नहीं।
Q. श्रद्धा और प्रेम में क्या अन्तर है?
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निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
श्रद्धा एक सामाजिक भाव है, इससे अपनी श्रद्धा के बदले में हम श्रद्धेय से अपने लिए कोई बात नहीं चाहते श्रद्धा धारण करते हुए अपने को उस समाज में समझते हें जिसके किसी अंश पर चाहे हम व्यष्टि रूप में उनके अन्तर्गत न भी हों-जानबूझकर उसने कोई शुभ प्रभाव डाला श्रद्धा स्वयं ऐसे कर्मों के प्रतिकार में होती है जिनका शुभ प्रभाव अकेले हम पर नहीं, बल्कि सारे मनुष्य समाज पर पड़ सकता है श्रद्धा एक ऐसी आनंदपूर्ण कृतज्ञता है जिसे हम केवल समाज के प्रतिनिधि के रूप में प्रकट करते है सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध या घृणा प्रकट करने के लिए समाज ने प्रत्येक यक्ति को प्रतिनिधित्व प्रदान कर रखा है यह काम उसने इतना भारी समझा है कि उसका भार सारे मनुष्यों को बाँट दिया है दो-चार माननीय लोगों के ही सर पर नहीं छोड़ रखा है जिस समाज में सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध प्रकट करने के लिए जितने ही अधिक लोग तत्पर पाए जाएंगे उतना ही वह समाज जाग्रत समझा जाएगा श्रद्धा की सामाजिक विशेषता एक इसी बात से समझ लीजिए कि जिस पर हम श्रद्धा रखते हैं इस पर चाहते हैं कि और लोग भी श्रद्धा रखें पर जिस पर हमारा प्रेम होता है उससे और दस-पाँच आदमी प्रेम रखें-इसकी हमें परवा क्या इच्छा ही नहीं होती; क्योंकि हम प्रिया पर लोभवश एक प्रकार का अनन्य अधिकार इजारा चाहते हैं, श्रद्धालु अपने भाव में संसार को सम्मिलित करना चाहता है, पर प्रेमी नहीं।
Q. श्रद्धा एक आनन्दपूर्ण कृतज्ञता है, क्योंकि-
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
श्रद्धा एक सामाजिक भाव है, इससे अपनी श्रद्धा के बदले में हम श्रद्धेय से अपने लिए कोई बात नहीं चाहते श्रद्धा धारण करते हुए अपने को उस समाज में समझते हें जिसके किसी अंश पर चाहे हम व्यष्टि रूप में उनके अन्तर्गत न भी हों-जानबूझकर उसने कोई शुभ प्रभाव डाला श्रद्धा स्वयं ऐसे कर्मों के प्रतिकार में होती है जिनका शुभ प्रभाव अकेले हम पर नहीं, बल्कि सारे मनुष्य समाज पर पड़ सकता है श्रद्धा एक ऐसी आनंदपूर्ण कृतज्ञता है जिसे हम केवल समाज के प्रतिनिधि के रूप में प्रकट करते है सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध या घृणा प्रकट करने के लिए समाज ने प्रत्येक यक्ति को प्रतिनिधित्व प्रदान कर रखा है यह काम उसने इतना भारी समझा है कि उसका भार सारे मनुष्यों को बाँट दिया है दो-चार माननीय लोगों के ही सर पर नहीं छोड़ रखा है जिस समाज में सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध प्रकट करने के लिए जितने ही अधिक लोग तत्पर पाए जाएंगे उतना ही वह समाज जाग्रत समझा जाएगा श्रद्धा की सामाजिक विशेषता एक इसी बात से समझ लीजिए कि जिस पर हम श्रद्धा रखते हैं इस पर चाहते हैं कि और लोग भी श्रद्धा रखें पर जिस पर हमारा प्रेम होता है उससे और दस-पाँच आदमी प्रेम रखें-इसकी हमें परवा क्या इच्छा ही नहीं होती; क्योंकि हम प्रिया पर लोभवश एक प्रकार का अनन्य अधिकार इजारा चाहते हैं, श्रद्धालु अपने भाव में संसार को सम्मिलित करना चाहता है, पर प्रेमी नहीं।
Q. उपर्युक्त गद्यांश का निष्कर्ष है-
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
श्रद्धा एक सामाजिक भाव है, इससे अपनी श्रद्धा के बदले में हम श्रद्धेय से अपने लिए कोई बात नहीं चाहते श्रद्धा धारण करते हुए अपने को उस समाज में समझते हें जिसके किसी अंश पर चाहे हम व्यष्टि रूप में उनके अन्तर्गत न भी हों-जानबूझकर उसने कोई शुभ प्रभाव डाला श्रद्धा स्वयं ऐसे कर्मों के प्रतिकार में होती है जिनका शुभ प्रभाव अकेले हम पर नहीं, बल्कि सारे मनुष्य समाज पर पड़ सकता है श्रद्धा एक ऐसी आनंदपूर्ण कृतज्ञता है जिसे हम केवल समाज के प्रतिनिधि के रूप में प्रकट करते है सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध या घृणा प्रकट करने के लिए समाज ने प्रत्येक यक्ति को प्रतिनिधित्व प्रदान कर रखा है यह काम उसने इतना भारी समझा है कि उसका भार सारे मनुष्यों को बाँट दिया है दो-चार माननीय लोगों के ही सर पर नहीं छोड़ रखा है जिस समाज में सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध प्रकट करने के लिए जितने ही अधिक लोग तत्पर पाए जाएंगे उतना ही वह समाज जाग्रत समझा जाएगा श्रद्धा की सामाजिक विशेषता एक इसी बात से समझ लीजिए कि जिस पर हम श्रद्धा रखते हैं इस पर चाहते हैं कि और लोग भी श्रद्धा रखें पर जिस पर हमारा प्रेम होता है उससे और दस-पाँच आदमी प्रेम रखें-इसकी हमें परवा क्या इच्छा ही नहीं होती; क्योंकि हम प्रिया पर लोभवश एक प्रकार का अनन्य अधिकार इजारा चाहते हैं, श्रद्धालु अपने भाव में संसार को सम्मिलित करना चाहता है, पर प्रेमी नहीं।
Q. जाग्रत समाज का क्या लक्षण है?
निम्नलिखित में से किस वाक्य में वचन संबंधी अशुद्धि है?
निम्नलिखित अपठित काव्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दें।
वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सँभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो।
है रुकी जहाँ भी धार, शिलाएँ तोड़ो,
पीयूष चंद्रमाओं को पकड़ निचोड़ो।
चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे।
योगियों नहीं, विजयी के सदृश्य जियो रे।
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए
मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।
दो बार नहीं यमराज कंठ धरता
मरता है जो, एक ही बार मरता है।
नत हुए बिना जो अशनि घात सहती है
स्वाधीन जगत में वही जाती रहती है।
Q. कवि किसे छोड़ने की बात करता है?
निम्नलिखित अपठित काव्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दें।
वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सँभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो।
है रुकी जहाँ भी धार, शिलाएँ तोड़ो,
पीयूष चंद्रमाओं को पकड़ निचोड़ो।
चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे।
योगियों नहीं, विजयी के सदृश्य जियो रे।
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए
मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।
दो बार नहीं यमराज कंठ धरता
मरता है जो, एक ही बार मरता है।
नत हुए बिना जो अशनि घात सहती है
स्वाधीन जगत में वही जाती रहती है।
Q. कवि किसके समान जीने को कहता है?
निम्नलिखित अपठित काव्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दें।
वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सँभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो।
है रुकी जहाँ भी धार, शिलाएँ तोड़ो,
पीयूष चंद्रमाओं को पकड़ निचोड़ो।
चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे।
योगियों नहीं, विजयी के सदृश्य जियो रे।
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए
मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।
दो बार नहीं यमराज कंठ धरता
मरता है जो, एक ही बार मरता है।
नत हुए बिना जो अशनि घात सहती है
स्वाधीन जगत में वही जाती रहती है।
Q. जो बिना झुके मुसीबतों का सामना करते हैं, वे किसका उपभोग करते हैं?
निम्नलिखित अपठित काव्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दें।
वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सँभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो।
है रुकी जहाँ भी धार, शिलाएँ तोड़ो,
पीयूष चंद्रमाओं को पकड़ निचोड़ो।
चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे।
योगियों नहीं, विजयी के सदृश्य जियो रे।
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए
मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।
दो बार नहीं यमराज कंठ धरता
मरता है जो, एक ही बार मरता है।
नत हुए बिना जो अशनि घात सहती है
स्वाधीन जगत में वही जाती रहती है।
Q. कौन सा शब्द ऐसा है जो हमेशा बहूवचन के रूप में प्रयुक्त होता है?
“यह शर इधर गांडीव धनुष से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।“
Q. प्रस्तुत पंक्तियों में कौन सा अलंकार है?
निम्नलिखित विकल्पों में से ‘सुत’ शब्द को स्त्रीवाचक बनाने के लिए किस प्रत्यय का प्रयोग किया जाएगा?
निम्नलिखित में से किस वाक्य में सर्वनाम का सही प्रयोग नही हुआ है?