पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए, तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्ति की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्थारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय आती है, क्योंकि उद्योग धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बद्लने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखे मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
प्रश्न. कुशल श्रमिक-समाज का निर्माण करने के लिए क्या आवश्यक है?
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जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए, तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्ति की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्थारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय आती है, क्योंकि उद्योग धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बद्लने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखे मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
प्रश्न. जाति-प्रथा के सिद्धांत का दूषित विचार क्या है?
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जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए, तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्ति की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्थारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय आती है, क्योंकि उद्योग धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बद्लने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखे मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
प्रश्न. हिन्दू धर्म की जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को कौनसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है?
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जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए, तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्ति की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्थारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय आती है, क्योंकि उद्योग धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बद्लने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखे मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
प्रश्न. कौनसा विभाजन मनुष्य की रूचि पर आधारित है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए, तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्ति की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्थारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय आती है, क्योंकि उद्योग धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बद्लने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखे मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
प्रश्न. प्रतिकूल परिस्थिति में व्यक्ति पेशा बदलने की स्वतंत्रता न मिलने पर क्या हो सकता है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
मानव की दो मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि लोग हमारे गुणों की कद्र करें, हमें दाद दें और हमारा आदर करें और दूसरे वे हम पर प्रेम करें, हमारा अभाव महसूस करें, उनके जीवन में हम कुछ महत्त्व रखते हैं-ऐसा अनुभव करें। आपके जरा-से कार्य की यदि किसी ने सच्चे दिल से प्रशंसा की तो आपका दिल कैसा खिल उठता है? कोई आपकी सलाह माँगने आता है तो आपका मन कैसे फूल जाता है?
ऊपर से कोई बड़ा आदमी कितना भी आत्मविश्वासी और आत्मतुष्ट क्यों न दिखाई दे, भीतर से वह हमारी-आपकी तरह प्रशंसा का, प्रोत्साहन का, स्नेह का भूखा है। यदि आप उसे, प्रमाणिकतापूर्वक ले सकें तो आप फौरन उसके हृदय के निकट पहुँच जाएँगे। दूसरों की भावनाओं को ठीक-ठाक समझना, उनकी कद्र करना, उनके साथ सच्चाई और स्नेह का व्यवहार करना यही व्यवहारकुशलता है। इसी से सामाजिक जीवन में लोकप्रियता के दरवाजे खोलने की कुंजी हाथ लगती है। इससे हमारी अपनी सुख-शांति बढ़ती है, सो अलग।
प्रश्न. मनुष्य का मन प्रसन्नता से कब भर उठता है?
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मानव की दो मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि लोग हमारे गुणों की कद्र करें, हमें दाद दें और हमारा आदर करें और दूसरे वे हम पर प्रेम करें, हमारा अभाव महसूस करें, उनके जीवन में हम कुछ महत्त्व रखते हैं-ऐसा अनुभव करें। आपके जरा-से कार्य की यदि किसी ने सच्चे दिल से प्रशंसा की तो आपका दिल कैसा खिल उठता है? कोई आपकी सलाह माँगने आता है तो आपका मन कैसे फूल जाता है?
ऊपर से कोई बड़ा आदमी कितना भी आत्मविश्वासी और आत्मतुष्ट क्यों न दिखाई दे, भीतर से वह हमारी-आपकी तरह प्रशंसा का, प्रोत्साहन का, स्नेह का भूखा है। यदि आप उसे, प्रमाणिकतापूर्वक ले सकें तो आप फौरन उसके हृदय के निकट पहुँच जाएँगे। दूसरों की भावनाओं को ठीक-ठाक समझना, उनकी कद्र करना, उनके साथ सच्चाई और स्नेह का व्यवहार करना यही व्यवहारकुशलता है। इसी से सामाजिक जीवन में लोकप्रियता के दरवाजे खोलने की कुंजी हाथ लगती है। इससे हमारी अपनी सुख-शांति बढ़ती है, सो अलग।
प्रश्न. बड़े-से-बड़े आदमी भी निम्नलिखित में से किस चीज़ का भूखा होता है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
मानव की दो मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि लोग हमारे गुणों की कद्र करें, हमें दाद दें और हमारा आदर करें और दूसरे वे हम पर प्रेम करें, हमारा अभाव महसूस करें, उनके जीवन में हम कुछ महत्त्व रखते हैं-ऐसा अनुभव करें। आपके जरा-से कार्य की यदि किसी ने सच्चे दिल से प्रशंसा की तो आपका दिल कैसा खिल उठता है? कोई आपकी सलाह माँगने आता है तो आपका मन कैसे फूल जाता है?
ऊपर से कोई बड़ा आदमी कितना भी आत्मविश्वासी और आत्मतुष्ट क्यों न दिखाई दे, भीतर से वह हमारी-आपकी तरह प्रशंसा का, प्रोत्साहन का, स्नेह का भूखा है। यदि आप उसे, प्रमाणिकतापूर्वक ले सकें तो आप फौरन उसके हृदय के निकट पहुँच जाएँगे। दूसरों की भावनाओं को ठीक-ठाक समझना, उनकी कद्र करना, उनके साथ सच्चाई और स्नेह का व्यवहार करना यही व्यवहारकुशलता है। इसी से सामाजिक जीवन में लोकप्रियता के दरवाजे खोलने की कुंजी हाथ लगती है। इससे हमारी अपनी सुख-शांति बढ़ती है, सो अलग।
प्रश्न. सामाजिक जीवन में लोकप्रियता के दरवाजे खोलने की कुंजी है-
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
मानव की दो मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि लोग हमारे गुणों की कद्र करें, हमें दाद दें और हमारा आदर करें और दूसरे वे हम पर प्रेम करें, हमारा अभाव महसूस करें, उनके जीवन में हम कुछ महत्त्व रखते हैं-ऐसा अनुभव करें। आपके जरा-से कार्य की यदि किसी ने सच्चे दिल से प्रशंसा की तो आपका दिल कैसा खिल उठता है? कोई आपकी सलाह माँगने आता है तो आपका मन कैसे फूल जाता है?
ऊपर से कोई बड़ा आदमी कितना भी आत्मविश्वासी और आत्मतुष्ट क्यों न दिखाई दे, भीतर से वह हमारी-आपकी तरह प्रशंसा का, प्रोत्साहन का, स्नेह का भूखा है। यदि आप उसे, प्रमाणिकतापूर्वक ले सकें तो आप फौरन उसके हृदय के निकट पहुँच जाएँगे। दूसरों की भावनाओं को ठीक-ठाक समझना, उनकी कद्र करना, उनके साथ सच्चाई और स्नेह का व्यवहार करना यही व्यवहारकुशलता है। इसी से सामाजिक जीवन में लोकप्रियता के दरवाजे खोलने की कुंजी हाथ लगती है। इससे हमारी अपनी सुख-शांति बढ़ती है, सो अलग।
प्रश्न. व्यवहारकुशलता किसे कहते हैं?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
मानव की दो मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि लोग हमारे गुणों की कद्र करें, हमें दाद दें और हमारा आदर करें और दूसरे वे हम पर प्रेम करें, हमारा अभाव महसूस करें, उनके जीवन में हम कुछ महत्त्व रखते हैं-ऐसा अनुभव करें। आपके जरा-से कार्य की यदि किसी ने सच्चे दिल से प्रशंसा की तो आपका दिल कैसा खिल उठता है? कोई आपकी सलाह माँगने आता है तो आपका मन कैसे फूल जाता है?
ऊपर से कोई बड़ा आदमी कितना भी आत्मविश्वासी और आत्मतुष्ट क्यों न दिखाई दे, भीतर से वह हमारी-आपकी तरह प्रशंसा का, प्रोत्साहन का, स्नेह का भूखा है। यदि आप उसे, प्रमाणिकतापूर्वक ले सकें तो आप फौरन उसके हृदय के निकट पहुँच जाएँगे। दूसरों की भावनाओं को ठीक-ठाक समझना, उनकी कद्र करना, उनके साथ सच्चाई और स्नेह का व्यवहार करना यही व्यवहारकुशलता है। इसी से सामाजिक जीवन में लोकप्रियता के दरवाजे खोलने की कुंजी हाथ लगती है। इससे हमारी अपनी सुख-शांति बढ़ती है, सो अलग।
प्रश्न. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से क्या है?
i. मानव की प्रवृत्तियाँ
ii. स्नेह का भूखा
iii. सामाजिक जीवन
iv. व्यवहारकुशलता
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. शांतनु कौन था?
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. किसका बचपन का नाम देवव्रत था?
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. गंगा किसकी माता थी?
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. मल्लाहों के प्रमुख का नाम निम्नलिखित में से क्या है?
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. शांतनु किसके वियोग में दुःखी रहते थे?
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गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को मानव-मात्र की समानता और स्वतंत्रता के प्रति जागरुक बनाने का प्रयत्न किया। इसी के साथ उन्होंने भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न भी किए। गांधी जी ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का भेद ही मिटाना प्रयाप्त नहीं समझते थे, वरन उनके बीच एक मानवीय स्वभाविक स्नेह और हार्दिक सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे। इसके बाद जब वे भारत आए, तब उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रुप दिया विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध संगठित किया, उसकी मिसाल संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो जिसके लिए विश्व-मंच पर भारत का माथा नीचा हो। ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सदभावना , स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता रूप टहनी के ऐसे पुष्प हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं।
प्रश्न. अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के पीड़ित होने का क्या कारण था?
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गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को मानव-मात्र की समानता और स्वतंत्रता के प्रति जागरुक बनाने का प्रयत्न किया। इसी के साथ उन्होंने भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न भी किए। गांधी जी ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का भेद ही मिटाना प्रयाप्त नहीं समझते थे, वरन उनके बीच एक मानवीय स्वभाविक स्नेह और हार्दिक सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे। इसके बाद जब वे भारत आए, तब उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रुप दिया विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध संगठित किया, उसकी मिसाल संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो जिसके लिए विश्व-मंच पर भारत का माथा नीचा हो। ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सदभावना , स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता रूप टहनी के ऐसे पुष्प हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं।
प्रश्न. गांधी जी अफ्रीकावासियों और भारतीय प्रवासियों के मध्य क्या स्थापित करना चाहते थे?
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गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को मानव-मात्र की समानता और स्वतंत्रता के प्रति जागरुक बनाने का प्रयत्न किया। इसी के साथ उन्होंने भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न भी किए। गांधी जी ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का भेद ही मिटाना प्रयाप्त नहीं समझते थे, वरन उनके बीच एक मानवीय स्वभाविक स्नेह और हार्दिक सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे। इसके बाद जब वे भारत आए, तब उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रुप दिया विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध संगठित किया, उसकी मिसाल संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो जिसके लिए विश्व-मंच पर भारत का माथा नीचा हो। ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सदभावना , स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता रूप टहनी के ऐसे पुष्प हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं।
प्रश्न. भारत में गांधीजी का विदेशी शासन का प्रतिरोध किस पर आधारित था?
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गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को मानव-मात्र की समानता और स्वतंत्रता के प्रति जागरुक बनाने का प्रयत्न किया। इसी के साथ उन्होंने भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न भी किए। गांधी जी ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का भेद ही मिटाना प्रयाप्त नहीं समझते थे, वरन उनके बीच एक मानवीय स्वभाविक स्नेह और हार्दिक सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे। इसके बाद जब वे भारत आए, तब उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रुप दिया विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध संगठित किया, उसकी मिसाल संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो जिसके लिए विश्व-मंच पर भारत का माथा नीचा हो। ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सदभावना , स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता रूप टहनी के ऐसे पुष्प हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं।
प्रश्न. बंधुत्व, मैत्री आदि गुणों की पुष्पों के साथ तुलना आधारित है –
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गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को मानव-मात्र की समानता और स्वतंत्रता के प्रति जागरुक बनाने का प्रयत्न किया। इसी के साथ उन्होंने भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न भी किए। गांधी जी ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का भेद ही मिटाना प्रयाप्त नहीं समझते थे, वरन उनके बीच एक मानवीय स्वभाविक स्नेह और हार्दिक सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे। इसके बाद जब वे भारत आए, तब उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रुप दिया विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध संगठित किया, उसकी मिसाल संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो जिसके लिए विश्व-मंच पर भारत का माथा नीचा हो। ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सदभावना , स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता रूप टहनी के ऐसे पुष्प हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं।
प्रश्न. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या होगा?
जिस शब्द के कई सार्थक खण्ड हो सके उन्हें क्या कहते है?
लड़का, किताब, घोड़ा, बच्चा आदि _______ कहलाते हैं।
निम्नलिखित में से अशुद्ध अनुस्वार वाला शब्द चुने -
निम्नलिखित शब्दों में से अनुस्वार के उचित प्रयोग वाला शब्द चुनिए-
नाँद, अकं, पसंद, कचनं
निम्नलिखित शब्दों में से अनुस्वार के उचित प्रयोग वाला शब्द चुनिए-
पंजाबं, हिमाचंल, अरुणांचंल, उत्तरांचल
किस शब्द में इक प्रत्यय का प्रयोग नहीं हो सकता?
निम्नलिखित पद 'इक' प्रत्यय लगाने से बने हैं। कौन-सा पद गलत है?
सत्याग्रही शब्द में प्रत्यय है-
निम्नलिखित में से किस शब्द में इत प्रत्यय प्रयुक्त नहीं हुआ है?
निम्नलिखित में से किस शब्द में उपसर्ग प्रयोग किया गया है?