पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: संसार में सब कुछ संभव है-
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: नेपोलियन के शब्दकोश में क्या नहीं था?
1 Crore+ students have signed up on EduRev. Have you? Download the App |
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: गाँधीजी ने किसका नारा लगाया था?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: गाँधीजी का व्यक्तित्व कैसा था?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: गाँधीजी ने किस कहावत को गलत सिद्ध कर दिया?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: देवताओं द्वारा अमृत-मंथन करने का कारण क्या था?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: गद्यांश के माध्यम से क्या सीख दी गई है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: उन्होंने इंद्र को माला क्यों पहनाई?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: इंद्र ने माला किसे पहना दी?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: इंद्र को दुर्वासा के क्रोध का भाजन उनके किस अवगुण के कारण होना पड़ा?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
साक्षी है इतिहास हमीं पहले जागे हैं,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं?
हैं हमीं प्रकंपित कर चुके,
सुरपति तक का भी हुदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम गाओ भारत की विजया।
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा,
दलित कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा।
बतलाओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा,
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा।।
बस युद्ध-मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम, गाओ भारत की विजय।।
प्रश्न: हमीं पहले जागे हैं से क्या आशय है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
साक्षी है इतिहास हमीं पहले जागे हैं,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं?
हैं हमीं प्रकंपित कर चुके,
सुरपति तक का भी हुदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम गाओ भारत की विजया।
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा,
दलित कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा।
बतलाओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा,
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा।।
बस युद्ध-मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम, गाओ भारत की विजय।।
प्रश्न: इंद्र का हदय हम किस प्रकार प्रकंपित कर चुके हैं?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
साक्षी है इतिहास हमीं पहले जागे हैं,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं?
हैं हमीं प्रकंपित कर चुके,
सुरपति तक का भी हुदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम गाओ भारत की विजया।
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा,
दलित कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा।
बतलाओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा,
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा।।
बस युद्ध-मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम, गाओ भारत की विजय।।
प्रश्न: हम कहाँ छोड़कर दया नहीं दिखाते हैं?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
साक्षी है इतिहास हमीं पहले जागे हैं,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं?
हैं हमीं प्रकंपित कर चुके,
सुरपति तक का भी हुदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम गाओ भारत की विजया।
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा,
दलित कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा।
बतलाओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा,
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा।।
बस युद्ध-मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम, गाओ भारत की विजय।।
प्रश्न: विश्व को भारत की विजय का गुणगान करने के लिए क्यों कहा गया है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
साक्षी है इतिहास हमीं पहले जागे हैं,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं?
हैं हमीं प्रकंपित कर चुके,
सुरपति तक का भी हुदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम गाओ भारत की विजया।
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा,
दलित कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा।
बतलाओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा,
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा।।
बस युद्ध-मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम, गाओ भारत की विजय।।
प्रश्न: शरणागत में कौन-सा समास है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
पुस्तकों में है नहीं, छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर, छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
है अनिश्चित किस जगह पर, सरित-गिरि-गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर, बाग-बन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के सर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
प्रश्न: कवि ने बटोही को क्या सलाह दी है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
पुस्तकों में है नहीं, छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर, छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
है अनिश्चित किस जगह पर, सरित-गिरि-गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर, बाग-बन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के सर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
प्रश्न: हमें जीवन पथ पर चलने की की प्रेरणा किससे मिलती है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
पुस्तकों में है नहीं, छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर, छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
है अनिश्चित किस जगह पर, सरित-गिरि-गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर, बाग-बन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के सर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
प्रश्न: कवि ने जीवन मार्ग में क्या-क्या अनिश्चितताएँ बताई हैं?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
पुस्तकों में है नहीं, छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर, छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
है अनिश्चित किस जगह पर, सरित-गिरि-गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर, बाग-बन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के सर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
प्रश्न: काव्यांश के माध्यम से कवि ने क्या बनने की प्रेरणा दी है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
पुस्तकों में है नहीं, छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर, छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
है अनिश्चित किस जगह पर, सरित-गिरि-गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर, बाग-बन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के सर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
प्रश्न: काव्यांश में कवि ने मानव को किसके प्रति सचेत किया है?
'परिप्रश्न' में से मूल शब्द और उपसर्ग अलग कीजिए।
'ई' प्रत्यय लगाकर दो नए शब्द बनाइए।
प्रत्युत्पन्नमति शब्द में कौन-सा उपसर्ग है?
'भुलक्कड़' शब्द में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए।
किस शब्द में अन् उपसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ है?
समास के कितने भेद होते है?
राजपुत्र में कौन-सा समास है?
चिड़ीमार शब्द का उचित समास-विग्रह है-
अनुज - अग्रज का समास विग्रह कर समास का नाम लिखिए।
धक्का-मुक्की में कौन-सा समास है?