बौद्धों के ग्रंथ की रचना किस भाषा में हुई?
सीता ने अपनी पवित्रता किस प्रकार सिद्ध की?
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गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं। अधिक से अधिक इतना ही कहा जा सकता है कि वे संस्कृत न बोल सकती थीं। संस्कृत न बोल सकना न अपढ़ होने का सबूत है और न गँवार होने का। अच्छा तो उत्तररामचरित में ऋषियों की वेदांतवादिनी पत्नियाँ कौन-सी भाषा बोलती थीं? उनकी संस्कृत क्या कोई गँवारी संस्कृत थी? भवभूति और कालिदास आदि के नाटक जिस ज़माने के हैं उस ज़माने में शिक्षितों का समस्त समुदाय संस्कृत ही बोलता था, इसका प्रमाण पहले कोई दे ले तब प्राकृत बोलने वाली स्त्रियों को अपढ़ बताने का साहस करे। इसका क्या सबूत कि उस ज़माने में बोलचाल की भाषा प्राकृत न थी? सबूत तो प्राकृत के चलन के ही मिलते हैं। प्राकृत यदि उस समय की प्रचलित भाषा न होती तो बौद्धों तथा जैनों के हज़ारों ग्रंथ उसमें क्यों लिखे जाते, और भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेले प्राकृत ही में क्यों धर्मोपदेश देते? बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में किए जाने का एकमात्र कारण यही है कि उस ज़माने में प्राकृत ही सर्वसाधारण की भाषा थी। अतःएव प्राकृत बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का चिह्न नहीं।
कौन-सी भाषा बोलने को लोग अनपढ़ होने का प्रमाण मानते थे?
राम ने सीता का परित्याग क्यों किया?
भवभूति और कालिदास के समय शिक्षित समाज कौन-सी भाषा बोलता था?
बौद्ध और जैनों का साहित्य किस भाषा में लिखा गया?
पढ़ने-लिखने से किसका संबंध नहीं है?
बौद्धों के किस ग्रंथ का उल्लेख यहाँ हुआ है?
प्राकृत बोलना किस का चिह्न नहीं है?
लेखक के अनुसार वर्तमान शिक्षा प्रणाली-
जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से प्रसिद्ध अखबार का संपादक इस ज़माने में अपढ़ और गँवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अखबार लिखता है। हिंदी, बाँग्ला आदि भाषाएँ आजकल की प्राकृत हैं, शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री और पाली आदि भाषाएँ उस ज़माने की थीं। प्राकृत पढ़कर भी उस ज़माने में लोग उसी तरह सभ्य, शिक्षित और पंडित हो सकते थे जिस तरह कि हिंदी, बाँग्ला, मराठी आदि भाषाएँ पढ़कर इस ज़माने में हम हो सकते हैं। फिर प्राकृत बोलना अपढ़ होने का सबूत है, यह बात कैसे मानी जा सकती है?
जिस समय आचार्यों ने नाट्यशास्त्र-सम्बंधी नियम बनाए थे उस समय सर्वसाधारण की भाषा संस्कृत न थी। चुने हुए लोग ही संस्कृत बोलते या बोल सकते थे। इसी से उन्होंने उनकी भाषा संस्कृत और दूसरे लोगों तथा स्त्रियों की भाषा प्राकृत रखने का नियम कर दिया।
लेखक के अनुसार हिन्दी अखबार के संपादक को भी अनपढ़ क्यों कहा जाना चाहिए?
लेखक नारी और नर के बीच कैसा संबंध मानता है?
हिंदी, बाँग्ला आदि भाषाएँ आजकल की प्राकृत भाषाएँ क्यों हैं?
लेखक ने सुशिक्षित लोगों के किस व्यवहार पर चिंता प्रकट की है?
किस भाषा को पढ़कर लोग पंडित हो सकते हैं?
पुराने समय में स्त्रियाँ बोलचाल के लिए किस भाषा का प्रयोग करती थीं?
प्राकृत बोलना क्या अपढ़ होने का सबूत है?
जिस समय आचार्यों ने नाट्य-शास्त्र के नियम बनाए उस समय सर्व-साधारण की भाषा क्या थी?
स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा ही का परिणाम समझना चाहिए। बम के गोले फेंकना, नर हत्या करना, डाके डालना, चोरियाँ करना, घूस लेना-ये सब यदि पढ़ने-लिखने ही का परिणाम हो तो सारे कॉलिज, स्कूल और पाठशालाएँ बंद हो जानी चाहिए। परंतु विक्षिप्तों, बातव्यथितों और ग्रहग्रस्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करने वाले बहुत ही कम मिलेंगे। शकुंतला ने दुष्यंत को कटु वाक्य कहकर कौन-सी अस्वाभाविकता दिखाई? क्या वह यह कहती कि-“आर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!” पत्नी पर घोर से घोर अत्याचार करके जो उससे ऐसी आशा रखते हैं वे मनुष्य-स्वभाव का किंचित् भी ज्ञान नहीं रखते।
कुतर्कवादी लोगों का क्या मानना है?