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निर्देश: गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
पिछले रविवार को में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला देखने गया। यह प्रदर्शनी प्रगति मैदान में लगाई गई थी। इसे लघु उद्योग विभाग ने आयोजित किया थाl यहाँ पर लोगों की बहुत भीड़ थी। उन लोगों ने अच्छे परिधान धारण किये हुए थे। ये एक बड़े मेले जैसा दिखाई देता है। अधिकांश राज्यों ने अपने-अपने पवैलियन स्थापित किये थे। यहाँ पर हस्तशिल्प, होजरी और बने - बनाये वस्त्र, खेलों का सामान और प्लास्टिक के खिलोने थे। खाने की वस्तुओं के स्टालों पर बहुत अधिक भीड़ थी। बच्चों के लिए अप्पू घर विशेष आकर्षण का केंद्र था। मैंने यहाँ पर प्रसन्नतापूर्वक समय व्यतीत किया। यह प्रदर्शिनी दर्शाती थी कि ग्रामों के उत्थान से ही भारत एक विकसित देश बन सकता है।
Q. गद्यांश में मेलें का अर्थ क्या है ?
निर्देश: गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
पिछले रविवार को में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला देखने गया। यह प्रदर्शनी प्रगति मैदान में लगाई गई थी। इसे लघु उद्योग विभाग ने आयोजित किया थाl यहाँ पर लोगों की बहुत भीड़ थी। उन लोगों ने अच्छे परिधान धारण किये हुए थे। ये एक बड़े मेले जैसा दिखाई देता है। अधिकांश राज्यों ने अपने-अपने पवैलियन स्थापित किये थे। यहाँ पर हस्तशिल्प, होजरी और बने - बनाये वस्त्र, खेलों का सामान और प्लास्टिक के खिलोने थे। खाने की वस्तुओं के स्टालों पर बहुत अधिक भीड़ थी। बच्चों के लिए अप्पू घर विशेष आकर्षण का केंद्र था। मैंने यहाँ पर प्रसन्नतापूर्वक समय व्यतीत किया। यह प्रदर्शिनी दर्शाती थी कि ग्रामों के उत्थान से ही भारत एक विकसित देश बन सकता है।
Q. उत्थान का आशय क्या है?
निर्देश: दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों का सही उत्तर दीजिए -
साहित्य की शाश्वतता का प्रश्न एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या साहित्य शाश्वत होता है? यदि हाँ, तो किस मायने में? क्या कोई साहित्य अपने रचनाकाल के सौ वर्ष बीत जाने पर भी उतना ही प्रासंगिक रहता है, जितना वह अपनी रचना के समय था? अपने समय या युग का निर्माता साहित्यकार क्या सौ वर्ष बाद की परिस्थितियों का भी युग-निर्माता हो सकता है। समय बदलता रहता है, परिस्थितियाँ और भावबोध बदलते हैं, साहित्य बदलता है और इसी के समानांतर पाठक की मानसिकता और अभिरुचि भी बदलती है।
अत: कोई भी कविता अपने सामयिक परिवेश के बदल जाने पर ठीक वही उत्तेजना पैदा नहीं कर सकती, जो उसने अपने रचनाकाल के दौरान की होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि एक विशेष प्रकार के साहित्य के श्रेष्ठ अस्तित्व मात्र से वह साहित्य हर युग के लिए उतना ही विशेष आकर्षण रखे, यह आवश्यक नहीं है। यही कारण है कि वर्तमान युग में इंगला-पिंगला, सुषुम्ना, अनहद, नाद आदि पारिभाषिक शब्दावली मन में विशेष भावोत्तेजन नहीं करती।
साहित्य की श्रेष्ठता मात्र ही उसके नित्य आकर्षण का आधार नहीं है। उसकी श्रेष्ठता का युगयुगीन आधार हैं, वे जीवन-मूल्य तथा उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्तियाँ जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उच्चतर मानव-विकास के लिए पथ-प्रदर्शक का काम करती हैं। पुराने साहित्य का केवल वही श्री-सौंदर्य हमारे लिए ग्राह्य होगा, जो नवीन जीवन-मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे अथवा स्थिति-रक्षा में सहायक हो। कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता को अस्वीकार करते हैं।
वे मानते हैं कि साहित्यकार निरपेक्ष होता है और उस पर कोई भी दबाव आरोपित नहीं होना चाहिए। किंतु वे भूल जाते हैं कि साहित्य के निर्माण की मूल प्रेरणा मानव-जीवन में ही विद्यमान रहती है। जीवन के लिए ही उसकी सृष्टि होती है। तुलसीदास जब स्वांत:सुखाय काव्य-रचना करते हैं, तब अभिप्राय यह नहीं रहता कि मानव-समाज के लिए इस रचना का कोई उपयोग नहीं है, बल्कि उनके अंत:करण में संपूर्ण संसार की सुख-भावना एवं हित-कामना सन्निहित रहती है। जो साहित्यकार अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को व्यापक लोक-जीवन में सन्निविष्ट कर देता है, उसी के हाथों स्थायी एवं प्रेरणाप्रद साहित्य का सृजन हो सकता है।
Q. निम्नलिखित में से साहित्य की श्रेष्ठता का युगयुगिन आधार है?
निर्देश: दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों का सही उत्तर दीजिए -
साहित्य की शाश्वतता का प्रश्न एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या साहित्य शाश्वत होता है? यदि हाँ, तो किस मायने में? क्या कोई साहित्य अपने रचनाकाल के सौ वर्ष बीत जाने पर भी उतना ही प्रासंगिक रहता है, जितना वह अपनी रचना के समय था? अपने समय या युग का निर्माता साहित्यकार क्या सौ वर्ष बाद की परिस्थितियों का भी युग-निर्माता हो सकता है। समय बदलता रहता है, परिस्थितियाँ और भावबोध बदलते हैं, साहित्य बदलता है और इसी के समानांतर पाठक की मानसिकता और अभिरुचि भी बदलती है।
अत: कोई भी कविता अपने सामयिक परिवेश के बदल जाने पर ठीक वही उत्तेजना पैदा नहीं कर सकती, जो उसने अपने रचनाकाल के दौरान की होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि एक विशेष प्रकार के साहित्य के श्रेष्ठ अस्तित्व मात्र से वह साहित्य हर युग के लिए उतना ही विशेष आकर्षण रखे, यह आवश्यक नहीं है। यही कारण है कि वर्तमान युग में इंगला-पिंगला, सुषुम्ना, अनहद, नाद आदि पारिभाषिक शब्दावली मन में विशेष भावोत्तेजन नहीं करती।
साहित्य की श्रेष्ठता मात्र ही उसके नित्य आकर्षण का आधार नहीं है। उसकी श्रेष्ठता का युगयुगीन आधार हैं, वे जीवन-मूल्य तथा उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्तियाँ जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उच्चतर मानव-विकास के लिए पथ-प्रदर्शक का काम करती हैं। पुराने साहित्य का केवल वही श्री-सौंदर्य हमारे लिए ग्राह्य होगा, जो नवीन जीवन-मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे अथवा स्थिति-रक्षा में सहायक हो। कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता को अस्वीकार करते हैं।
वे मानते हैं कि साहित्यकार निरपेक्ष होता है और उस पर कोई भी दबाव आरोपित नहीं होना चाहिए। किंतु वे भूल जाते हैं कि साहित्य के निर्माण की मूल प्रेरणा मानव-जीवन में ही विद्यमान रहती है। जीवन के लिए ही उसकी सृष्टि होती है। तुलसीदास जब स्वांत:सुखाय काव्य-रचना करते हैं, तब अभिप्राय यह नहीं रहता कि मानव-समाज के लिए इस रचना का कोई उपयोग नहीं है, बल्कि उनके अंत:करण में संपूर्ण संसार की सुख-भावना एवं हित-कामना सन्निहित रहती है। जो साहित्यकार अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को व्यापक लोक-जीवन में सन्निविष्ट कर देता है, उसी के हाथों स्थायी एवं प्रेरणाप्रद साहित्य का सृजन हो सकता है।
Q. समय के साथ निम्नलिखित में से क्या बदलता है?
निर्देश: निम्नलिखित वाक्य के लिए एक शब्द चुनिए।
"कंजूसी से धन व्यय करने वाला"
निम्नलिखित में कौन-सा शब्द एकवचन तथा बहुवचन दोनों में प्रयोग हो सकता है?
निर्देश: निम्नलिखित में कौन सा अलंकार है?
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर लिखिए।
भारतेंदुजी के जीवन का उद्देश्य अपने देश की उन्नति के मार्ग को साफ़-सुथरा और लम्बा-चौड़ा बनाना था उन्होंने इसके काँटो और कंकडों को दूर किया। उसके दोनों ओर सुन्दर क्यारियाँ बनाकर उसमें मनोरम फल-फूलों के वृक्ष लगाए। इस प्रकार उसे सुरम्य बना दिया कि भारतवासी उस पर आनन्दपूर्वक चलकर अपनी उन्नति के इष्ट स्थान तक पहुँच सकें। यद्यपि भारतेंदुजी ने अपने लगाए हुए वृक्षों को फल-फूलों से लदा नहीं देखा फिर भी यह कहने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होगा कि वे जीवन के उद्देश्य में पूर्णतया सफल हुए। हिन्दी भाषा और साहित्य में जो उन्नति आज दिखाई पड़ रही है उसके मूल कारण भारतेंदुजी हैं और उन्हें ही इस उन्नति के बीज को रोपित करने का श्रेय प्राप्त है।
Q. " इस प्रकार उसे सुरम्य बना दिया कि ......." उपर्युक्त पंक्ति के अनुसार भारतेन्दु जी ने किसे सुरम्य बना दिया था?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर लिखिए।
भारतेंदुजी के जीवन का उद्देश्य अपने देश की उन्नति के मार्ग को साफ़-सुथरा और लम्बा-चौड़ा बनाना था उन्होंने इसके काँटो और कंकडों को दूर किया। उसके दोनों ओर सुन्दर क्यारियाँ बनाकर उसमें मनोरम फल-फूलों के वृक्ष लगाए। इस प्रकार उसे सुरम्य बना दिया कि भारतवासी उस पर आनन्दपूर्वक चलकर अपनी उन्नति के इष्ट स्थान तक पहुँच सकें। यद्यपि भारतेंदुजी ने अपने लगाए हुए वृक्षों को फल-फूलों से लदा नहीं देखा फिर भी यह कहने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होगा कि वे जीवन के उद्देश्य में पूर्णतया सफल हुए। हिन्दी भाषा और साहित्य में जो उन्नति आज दिखाई पड़ रही है उसके मूल कारण भारतेंदुजी हैं और उन्हें ही इस उन्नति के बीज को रोपित करने का श्रेय प्राप्त है।
Q. भारतेन्दु जी ने अपने जीवन में क्या किया?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर लिखिए।
भारतेंदुजी के जीवन का उद्देश्य अपने देश की उन्नति के मार्ग को साफ़-सुथरा और लम्बा-चौड़ा बनाना था उन्होंने इसके काँटो और कंकडों को दूर किया। उसके दोनों ओर सुन्दर क्यारियाँ बनाकर उसमें मनोरम फल-फूलों के वृक्ष लगाए। इस प्रकार उसे सुरम्य बना दिया कि भारतवासी उस पर आनन्दपूर्वक चलकर अपनी उन्नति के इष्ट स्थान तक पहुँच सकें। यद्यपि भारतेंदुजी ने अपने लगाए हुए वृक्षों को फल-फूलों से लदा नहीं देखा फिर भी यह कहने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होगा कि वे जीवन के उद्देश्य में पूर्णतया सफल हुए। हिन्दी भाषा और साहित्य में जो उन्नति आज दिखाई पड़ रही है उसके मूल कारण भारतेंदुजी हैं और उन्हें ही इस उन्नति के बीज को रोपित करने का श्रेय प्राप्त है।
Q. 'मनोरम' का अर्थ है:
“तुम थोड़ा अधिक डालो” वाक्य में कौन सा क्रिया विशेषण है?
'भारत के अतुलित धन वैभव पर अंग्रेजों ने दाँत गड़ा दिये'- वाक्य में प्रयुक्त 'दाँत गड़ा दिये' का अर्थ है-