भावाभिव्यक्ति करने में प्रयुक्त भाषा के रूप होते हैं-
1. लिपि युक्त
2. लिखित
3. मौखिक
4. मानकीकृत
हवा का ज़ोर वर्षा की झड़ी, झाड़ों का गिर पड़ना
कहीं गरजन का जाकर दूर सिर के पास फिर पड़ना
उमड़ती नदी का खेती की छाती तक लहर उठना
ध्वजा की तरह बिजली का दिशाओं में फहर उठना
ये वर्षा के अनोखे दृश्य जिसको प्राण से प्यारे
जो चातक की तरह ताकता है बादल घने कजरारे
जो भूखा रहकर, धरती चीरकर जग को खिलाता है
जो पानी वक्त पर आए नहीं तो तिलमिलाता है
अगर आषाढ़ के पहले दिवस के प्रथम इस क्षण में
वही हलधर अधिक आता है, कालिदास के मन में
तू मुझको क्षमा कर देना।
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे जाने वाले प्रश्न का उत्तर बताइए।
Q. अगर समय पर बारिश न हो तो सबसे ज्यादा बेचैन कौन होता है?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पीय प्रश्न का उत्तर दीजिए।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एवं एक्जिट पोल का लोकतन्त्र में क्या महत्त्व है? यह प्रश्न विचारणीय है। लोकतन्त्र रूपी वृक्ष जनता द्वारा रोपा और सींचा जाता है, इसके पल्लवन एवं पुष्पन में मीडिया की विशेष भूमिका होती है। भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है।लोकतान्त्रिक राष्ट्र में नागरिकों को विशिष्ट अधिकार और स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं। भारतीय संविधान ने भी अनुच्छेद 19 (i) के अन्तर्गत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान की है, लेकिन जनता के व्यापक हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्वतन्त्रता बाधित भी की जानी चाहिए।
भारत जैसे अल्पशिक्षित देश में इस प्रकार के सर्वेक्षण अनुचित हैं। देश की आम जनता पर मीडिया द्वारा किए जाने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव के तुरन्त पश्चात् किए जाने वाले एक्जिट पोल का भ्रामक प्रभाव पड़ता है। वह विजयी होती पार्टी की ओर झुक जाती है। आज भी सामान्य लोगों के बीच ये आम धारणा है कि हम अपना वोट खराब नहीं करेंगे, जीतने वाले प्रत्याशी को ही वोट देंगे।
वर्तमान में बाजारवाद अपने उत्कर्ष पर है और मीडिया इसके दुष्प्रभाव से अनछुआ नहीं है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आज मीडिया भी अधिकाधिक संख्या में प्रसार और धन पाने को बुभुक्षित है। मीडिया सत्ताधारी और मजबूत राजनीतिक दलों के प्रभाव में भी रहता है। ये दल धन के बल पर लोक रुझान को अपने पक्ष में दिखाने में सफल हो जाते हैं और सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को ही धता बता देते हैं। इस प्रकार सत्ता एवं धन इन सर्वेक्षणों को प्रभावित करते हैं। इन्हें दूध का धुला नहीं कहा जा सकता। भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र में जहाँ जनता निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से अपना मत अभिव्यक्त करती है, वहाँ इन सर्वेक्षणों के औचित्य-अनौचित्य पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायालय को यदि संविधान के अनुसार चलने की बाध्यता है, तो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है। वह अपने अधिकारों का प्रयोग करके कोई सार्थक प्रयास कर सकती है।
Q. 'सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को ही धता बता देते हैं।'
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पीय प्रश्न का उत्तर दीजिए।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एवं एक्जिट पोल का लोकतन्त्र में क्या महत्त्व है? यह प्रश्न विचारणीय है। लोकतन्त्र रूपी वृक्ष जनता द्वारा रोपा और सींचा जाता है, इसके पल्लवन एवं पुष्पन में मीडिया की विशेष भूमिका होती है। भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है।लोकतान्त्रिक राष्ट्र में नागरिकों को विशिष्ट अधिकार और स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं। भारतीय संविधान ने भी अनुच्छेद 19 (i) के अन्तर्गत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान की है, लेकिन जनता के व्यापक हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्वतन्त्रता बाधित भी की जानी चाहिए।
भारत जैसे अल्पशिक्षित देश में इस प्रकार के सर्वेक्षण अनुचित हैं। देश की आम जनता पर मीडिया द्वारा किए जाने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव के तुरन्त पश्चात् किए जाने वाले एक्जिट पोल का भ्रामक प्रभाव पड़ता है। वह विजयी होती पार्टी की ओर झुक जाती है। आज भी सामान्य लोगों के बीच ये आम धारणा है कि हम अपना वोट खराब नहीं करेंगे, जीतने वाले प्रत्याशी को ही वोट देंगे।
वर्तमान में बाजारवाद अपने उत्कर्ष पर है और मीडिया इसके दुष्प्रभाव से अनछुआ नहीं है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आज मीडिया भी अधिकाधिक संख्या में प्रसार और धन पाने को बुभुक्षित है। मीडिया सत्ताधारी और मजबूत राजनीतिक दलों के प्रभाव में भी रहता है। ये दल धन के बल पर लोक रुझान को अपने पक्ष में दिखाने में सफल हो जाते हैं और सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को ही धता बता देते हैं। इस प्रकार सत्ता एवं धन इन सर्वेक्षणों को प्रभावित करते हैं। इन्हें दूध का धुला नहीं कहा जा सकता। भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र में जहाँ जनता निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से अपना मत अभिव्यक्त करती है, वहाँ इन सर्वेक्षणों के औचित्य-अनौचित्य पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायालय को यदि संविधान के अनुसार चलने की बाध्यता है, तो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है। वह अपने अधिकारों का प्रयोग करके कोई सार्थक प्रयास कर सकती है।
Q. उपरोक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पीय प्रश्न का उत्तर दीजिए।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एवं एक्जिट पोल का लोकतन्त्र में क्या महत्त्व है? यह प्रश्न विचारणीय है। लोकतन्त्र रूपी वृक्ष जनता द्वारा रोपा और सींचा जाता है, इसके पल्लवन एवं पुष्पन में मीडिया की विशेष भूमिका होती है। भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है।लोकतान्त्रिक राष्ट्र में नागरिकों को विशिष्ट अधिकार और स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं। भारतीय संविधान ने भी अनुच्छेद 19 (i) के अन्तर्गत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान की है, लेकिन जनता के व्यापक हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्वतन्त्रता बाधित भी की जानी चाहिए।
भारत जैसे अल्पशिक्षित देश में इस प्रकार के सर्वेक्षण अनुचित हैं। देश की आम जनता पर मीडिया द्वारा किए जाने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव के तुरन्त पश्चात् किए जाने वाले एक्जिट पोल का भ्रामक प्रभाव पड़ता है। वह विजयी होती पार्टी की ओर झुक जाती है। आज भी सामान्य लोगों के बीच ये आम धारणा है कि हम अपना वोट खराब नहीं करेंगे, जीतने वाले प्रत्याशी को ही वोट देंगे।
वर्तमान में बाजारवाद अपने उत्कर्ष पर है और मीडिया इसके दुष्प्रभाव से अनछुआ नहीं है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आज मीडिया भी अधिकाधिक संख्या में प्रसार और धन पाने को बुभुक्षित है। मीडिया सत्ताधारी और मजबूत राजनीतिक दलों के प्रभाव में भी रहता है। ये दल धन के बल पर लोक रुझान को अपने पक्ष में दिखाने में सफल हो जाते हैं और सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को ही धता बता देते हैं। इस प्रकार सत्ता एवं धन इन सर्वेक्षणों को प्रभावित करते हैं। इन्हें दूध का धुला नहीं कहा जा सकता। भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र में जहाँ जनता निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से अपना मत अभिव्यक्त करती है, वहाँ इन सर्वेक्षणों के औचित्य-अनौचित्य पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायालय को यदि संविधान के अनुसार चलने की बाध्यता है, तो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है। वह अपने अधिकारों का प्रयोग करके कोई सार्थक प्रयास कर सकती है।
Q. गद्यांश से निष्कर्ष निकलता है कि :
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पीय प्रश्न का उत्तर दीजिए।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एवं एक्जिट पोल का लोकतन्त्र में क्या महत्त्व है? यह प्रश्न विचारणीय है। लोकतन्त्र रूपी वृक्ष जनता द्वारा रोपा और सींचा जाता है, इसके पल्लवन एवं पुष्पन में मीडिया की विशेष भूमिका होती है। भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है।लोकतान्त्रिक राष्ट्र में नागरिकों को विशिष्ट अधिकार और स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं। भारतीय संविधान ने भी अनुच्छेद 19 (i) के अन्तर्गत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान की है, लेकिन जनता के व्यापक हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्वतन्त्रता बाधित भी की जानी चाहिए।
भारत जैसे अल्पशिक्षित देश में इस प्रकार के सर्वेक्षण अनुचित हैं। देश की आम जनता पर मीडिया द्वारा किए जाने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव के तुरन्त पश्चात् किए जाने वाले एक्जिट पोल का भ्रामक प्रभाव पड़ता है। वह विजयी होती पार्टी की ओर झुक जाती है। आज भी सामान्य लोगों के बीच ये आम धारणा है कि हम अपना वोट खराब नहीं करेंगे, जीतने वाले प्रत्याशी को ही वोट देंगे।
वर्तमान में बाजारवाद अपने उत्कर्ष पर है और मीडिया इसके दुष्प्रभाव से अनछुआ नहीं है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आज मीडिया भी अधिकाधिक संख्या में प्रसार और धन पाने को बुभुक्षित है। मीडिया सत्ताधारी और मजबूत राजनीतिक दलों के प्रभाव में भी रहता है। ये दल धन के बल पर लोक रुझान को अपने पक्ष में दिखाने में सफल हो जाते हैं और सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को ही धता बता देते हैं। इस प्रकार सत्ता एवं धन इन सर्वेक्षणों को प्रभावित करते हैं। इन्हें दूध का धुला नहीं कहा जा सकता। भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र में जहाँ जनता निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से अपना मत अभिव्यक्त करती है, वहाँ इन सर्वेक्षणों के औचित्य-अनौचित्य पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायालय को यदि संविधान के अनुसार चलने की बाध्यता है, तो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है। वह अपने अधिकारों का प्रयोग करके कोई सार्थक प्रयास कर सकती है।
Q. प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्वतन्त्रता क्यों बाधित होनी चाहिए?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पीय प्रश्न का उत्तर दीजिए।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एवं एक्जिट पोल का लोकतन्त्र में क्या महत्त्व है? यह प्रश्न विचारणीय है। लोकतन्त्र रूपी वृक्ष जनता द्वारा रोपा और सींचा जाता है, इसके पल्लवन एवं पुष्पन में मीडिया की विशेष भूमिका होती है। भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है।लोकतान्त्रिक राष्ट्र में नागरिकों को विशिष्ट अधिकार और स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं। भारतीय संविधान ने भी अनुच्छेद 19 (i) के अन्तर्गत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान की है, लेकिन जनता के व्यापक हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्वतन्त्रता बाधित भी की जानी चाहिए।
भारत जैसे अल्पशिक्षित देश में इस प्रकार के सर्वेक्षण अनुचित हैं। देश की आम जनता पर मीडिया द्वारा किए जाने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव के तुरन्त पश्चात् किए जाने वाले एक्जिट पोल का भ्रामक प्रभाव पड़ता है। वह विजयी होती पार्टी की ओर झुक जाती है। आज भी सामान्य लोगों के बीच ये आम धारणा है कि हम अपना वोट खराब नहीं करेंगे, जीतने वाले प्रत्याशी को ही वोट देंगे।
वर्तमान में बाजारवाद अपने उत्कर्ष पर है और मीडिया इसके दुष्प्रभाव से अनछुआ नहीं है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आज मीडिया भी अधिकाधिक संख्या में प्रसार और धन पाने को बुभुक्षित है। मीडिया सत्ताधारी और मजबूत राजनीतिक दलों के प्रभाव में भी रहता है। ये दल धन के बल पर लोक रुझान को अपने पक्ष में दिखाने में सफल हो जाते हैं और सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को ही धता बता देते हैं। इस प्रकार सत्ता एवं धन इन सर्वेक्षणों को प्रभावित करते हैं। इन्हें दूध का धुला नहीं कहा जा सकता। भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र में जहाँ जनता निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से अपना मत अभिव्यक्त करती है, वहाँ इन सर्वेक्षणों के औचित्य-अनौचित्य पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायालय को यदि संविधान के अनुसार चलने की बाध्यता है, तो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है। वह अपने अधिकारों का प्रयोग करके कोई सार्थक प्रयास कर सकती है।
Q. ‘सर्वेक्षण’ शब्द का संधि-विच्छेद कीजिए।
निर्देश: दिए गए पद्यांश को ध्यानपर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
मुक्त करो नारी को, मानव !
चिर बंदिनी नारी को,
युग-युग की निर्मम कारा से
जननी, सखी, प्यारी को !
छिन्न करो सब स्वर्ण-पाश ।
उसके कोमल तन-मन के,
वे आभूषण नहीं, दाम
उसके बंदी जीवन के !
उसे मानवी का गौरव दे
पूर्ण सत्व दो नूतन,
उसका मुख जग का प्रकाश हो,
उठे अंध अवगुंठन।
मुक्त करो जीवन–संगिनी को,
जननी देवी को आदृत
जगजीवन में मानव के संग
हो मानवी प्रतिष्ठित !
प्रेम–स्वर्ग हो धरा, मधुर
नारी महिमा से मंडित,
नारी-मुख की नव किरणों से
युग–प्रभात हो ज्योतित !
Q. 'नारी-मुख की नव किरणों से युग-प्रभात हो ज्योतित!' पंक्ति का भाव क्या होगा?
कक्षा एक व दो के बालक उच्चारण में त्रुटि होने पर लेखन में भी उसी त्रुटि को दोहराना उदाहरण है-
हवा का ज़ोर वर्षा की झड़ी, झाड़ों का गिर पड़ना
कहीं गरजन का जाकर दूर सिर के पास फिर पड़ना
उमड़ती नदी का खेती की छाती तक लहर उठना
ध्वजा की तरह बिजली का दिशाओं में फहर उठना
ये वर्षा के अनोखे दृश्य जिसको प्राण से प्यारे
जो चातक की तरह ताकता है बादल घने कजरारे
जो भूखा रहकर, धरती चीरकर जग को खिलाता है
जो पानी वक्त पर आए नहीं तो तिलमिलाता है
अगर आषाढ़ के पहले दिवस के प्रथम इस क्षण में
वही हलधर अधिक आता है, कालिदास के मन में
तू मुझको क्षमा कर देना।
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे जाने वाले प्रश्न का उत्तर बताइए।
Q. बादल के गरजने की अनुभूति किस तरह होती है?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
आधुनिकतावाद, अपनी व्यापक परिभाषा में, आधुनिक सोच, चरित्र, या प्रथा है अधिक विशेष रूप से, यह शब्द उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के आरम्भ में मूल रूप से पश्चिमी समाज में व्यापकतम पैमाने पर और सुदूर परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के एक समूह एवं सम्बद्ध सांस्कृतिक आन्दोलनों की एक सारणी दोनों का वर्णन करता है। यह शब्द अपने भीतर उन लोगों की गतिविधियों और उत्पादन को समाहित करता है जो एक उभरते सम्पूर्ण औद्योगीकृत विश्व की नवीन आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थितियों में पुराने होते जा रहे कला, वास्तुकला, साहित्य, धार्मिक विश्वास, सामाजिक संगठन और दैनिक जीवन के "पारंपरिक" रूपों को महसूस करते थे। आधुनिकतावाद ने ज्ञानोदय की सोच की विलंबकारी निश्चितता को और एक करुणामय, सर्वशक्तिशाली निर्माता के अस्तित्व को भी मानने से अस्वीकार कर दिया। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी आधुनिकतावादी लोगों या आधुनिकतावादी आन्दोलनों ने या तो धर्म को या ज्ञानोदय की सोच के पहलुओं को मानने से इंकार कर दिया है, इसके बजाय कि आधुनिकतावाद को अतीत काल की ''सूक्तियों'' के पूछताछ के रूप में देखा जा सकता है। आधुनिकतावाद की एक मुख्य विशेषता आत्म-चेतना है। इसकी वजह से अक्सर रूप और कार्य पर प्रयोग किया जाता है जो प्रक्रियाओं और प्रयुक्त सामग्रियों की तरफ (और मतिहीनता की अगली प्रवृत्ति की तरफ) ध्यान आकर्षित करता है। "मेक इट न्यू!" के लिए कवि एज़्रा पाउंड पर रूप निदर्शनात्मक निषेधाज्ञा लग गई थी। आधुनिकतावादियों के "नव निर्माण" में एक नया ऐतिहासिक युग शामिल था या नहीं, यह अब बहस का मुद्दा बना हुआ है।
Q. ऐतिहासिक में प्रयुक्त प्रत्यय:
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पीय प्रश्न का उत्तर दीजिए।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एवं एक्जिट पोल का लोकतन्त्र में क्या महत्त्व है? यह प्रश्न विचारणीय है। लोकतन्त्र रूपी वृक्ष जनता द्वारा रोपा और सींचा जाता है, इसके पल्लवन एवं पुष्पन में मीडिया की विशेष भूमिका होती है। भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है।लोकतान्त्रिक राष्ट्र में नागरिकों को विशिष्ट अधिकार और स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं। भारतीय संविधान ने भी अनुच्छेद 19 (i) के अन्तर्गत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान की है, लेकिन जनता के व्यापक हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्वतन्त्रता बाधित भी की जानी चाहिए।
भारत जैसे अल्पशिक्षित देश में इस प्रकार के सर्वेक्षण अनुचित हैं। देश की आम जनता पर मीडिया द्वारा किए जाने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव के तुरन्त पश्चात् किए जाने वाले एक्जिट पोल का भ्रामक प्रभाव पड़ता है। वह विजयी होती पार्टी की ओर झुक जाती है। आज भी सामान्य लोगों के बीच ये आम धारणा है कि हम अपना वोट खराब नहीं करेंगे, जीतने वाले प्रत्याशी को ही वोट देंगे।
वर्तमान में बाजारवाद अपने उत्कर्ष पर है और मीडिया इसके दुष्प्रभाव से अनछुआ नहीं है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आज मीडिया भी अधिकाधिक संख्या में प्रसार और धन पाने को बुभुक्षित है। मीडिया सत्ताधारी और मजबूत राजनीतिक दलों के प्रभाव में भी रहता है। ये दल धन के बल पर लोक रुझान को अपने पक्ष में दिखाने में सफल हो जाते हैं और सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को ही धता बता देते हैं। इस प्रकार सत्ता एवं धन इन सर्वेक्षणों को प्रभावित करते हैं। इन्हें दूध का धुला नहीं कहा जा सकता। भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र में जहाँ जनता निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से अपना मत अभिव्यक्त करती है, वहाँ इन सर्वेक्षणों के औचित्य-अनौचित्य पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायालय को यदि संविधान के अनुसार चलने की बाध्यता है, तो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है। वह अपने अधिकारों का प्रयोग करके कोई सार्थक प्रयास कर सकती है।
Q. 'बुभुक्षित' शब्द के लिए कौन सा वाक्यांश उपयुक्त है?
अनौपचारिक बातचीत __________ अभिव्यक्ति का प्रकार है।
Read the sentence:
I can recall those happy events.
The words underlined show a/an
A student has difficulty in applying the learned knowledge. For example, in word problems, the student also fails to translate sentences into equations or identify the variables. A possible solution to this problem could be
Read the following five parts of a sentence.
(a) For when verse is read aloud
(b) it is the ear
(c) which is the true test of verse
(d) not the eye
(e) it sounds different from prose.
Now, place them in the correct order to make a grammatically correct sentence.
Errors made by children are indicative of-
Kritika is ready to solve the problem given by the teacher, most of the time she also finds a solution to the problem. Kritika belongs to a poor background. Despite that, which of the following motive is strong in her?
In the constructivist frame, the child is viewed as
To make learning interesting and easier for children with learning disabilities, teachers can use mnemonics to remember complex order of things. For which type of learning disability can this mnemonic strategy be applied?
The problem-solving strategy in which one begins from the goal and moves back sequentially to figure out the solution, is called -
Direction: Read the given passages carefully and answer the question that follows.
Everything that men do or think concerns either the satisfaction of the needs they feel or the need to escape from pain. This must be kept in mind when we seek to understand spiritual or intellectual movements and the way in which they develop, for feeling and longing are the motive forces of all human striving and productivity – however nobly these latter may display themselves to us.
What, then, are the feelings and the needs which have brought mankind to religious thought and to faith in the widest sense? A moment’s consideration shows that the most varied emotions stand at the cradle of religious thought and experience.
In primitive people, it is, first of all, fear that awakens religious ideas – fear of hunger, of wild animals, of illness, and of death. Since the understanding of causal connections is usually limited on this level of existence, the human soul forges a being, more or less like itself, on whose will and activities depend the experiences which it fears. One hopes to win the favor of this being, by deeds and sacrifices, which according to the tradition of the race are supposed to appease the being or to make him well disposed to man. I call this the religion of fear.
This religion is considerably established, though not caused, by the formation of priestly caste which claims to mediate between the people and the being they fear and so attains a position of power. Often a leader or despot will combine the function of the priesthood with its own temporal rule for the sake of greater security, or an alliance may exist between the interests of political power and the priestly caste.
Q. “Human soul forges a being” means:
Direction: Read the given passages carefully and answer the question that follows.
Everything that men do or think concerns either the satisfaction of the needs they feel or the need to escape from pain. This must be kept in mind when we seek to understand spiritual or intellectual movements and the way in which they develop, for feeling and longing are the motive forces of all human striving and productivity – however nobly these latter may display themselves to us.
What, then, are the feelings and the needs which have brought mankind to religious thought and to faith in the widest sense? A moment’s consideration shows that the most varied emotions stand at the cradle of religious thought and experience.
In primitive people, it is, first of all, fear that awakens religious ideas – fear of hunger, of wild animals, of illness, and of death. Since the understanding of causal connections is usually limited on this level of existence, the human soul forges a being, more or less like itself, on whose will and activities depend the experiences which it fears. One hopes to win the favor of this being, by deeds and sacrifices, which according to the tradition of the race are supposed to appease the being or to make him well disposed to man. I call this the religion of fear.
This religion is considerably established, though not caused, by the formation of priestly caste which claims to mediate between the people and the being they fear and so attains a position of power. Often a leader or despot will combine the function of the priesthood with its own temporal rule for the sake of greater security, or an alliance may exist between the interests of political power and the priestly caste.
Q. How did the priests come to acquire political power?
Direction: Read the given passages carefully and answer the question that follows.
Everything that men do or think concerns either the satisfaction of the needs they feel or the need to escape from pain. This must be kept in mind when we seek to understand spiritual or intellectual movements and the way in which they develop, for feeling and longing are the motive forces of all human striving and productivity – however nobly these latter may display themselves to us.
What, then, are the feelings and the needs which have brought mankind to religious thought and to faith in the widest sense? A moment’s consideration shows that the most varied emotions stand at the cradle of religious thought and experience.
In primitive people, it is, first of all, fear that awakens religious ideas – fear of hunger, of wild animals, of illness, and of death. Since the understanding of causal connections is usually limited on this level of existence, the human soul forges a being, more or less like itself, on whose will and activities depend the experiences which it fears. One hopes to win the favor of this being, by deeds and sacrifices, which according to the tradition of the race are supposed to appease the being or to make him well disposed to man. I call this the religion of fear.
This religion is considerably established, though not caused, by the formation of priestly caste which claims to mediate between the people and the being they fear and so attains a position of power. Often a leader or despot will combine the function of the priesthood with its own temporal rule for the sake of greater security, or an alliance may exist between the interests of political power and the priestly caste.
Q. What feeling promoted primitive man to create religion?
Direction: Read the given passages carefully and answer the question that follows.
Everything that men do or think concerns either the satisfaction of the needs they feel or the need to escape from pain. This must be kept in mind when we seek to understand spiritual or intellectual movements and the way in which they develop, for feeling and longing are the motive forces of all human striving and productivity – however nobly these latter may display themselves to us.
What, then, are the feelings and the needs which have brought mankind to religious thought and to faith in the widest sense? A moment’s consideration shows that the most varied emotions stand at the cradle of religious thought and experience.
In primitive people, it is, first of all, fear that awakens religious ideas – fear of hunger, of wild animals, of illness, and of death. Since the understanding of causal connections is usually limited on this level of existence, the human soul forges a being, more or less like itself, on whose will and activities depend the experiences which it fears. One hopes to win the favor of this being, by deeds and sacrifices, which according to the tradition of the race are supposed to appease the being or to make him well disposed to man. I call this the religion of fear.
This religion is considerably established, though not caused, by the formation of priestly caste which claims to mediate between the people and the being they fear and so attains a position of power. Often a leader or despot will combine the function of the priesthood with its own temporal rule for the sake of greater security, or an alliance may exist between the interests of political power and the priestly caste.
Q. How did religion become firmly established?
Which of the following activity is suggested to improve one’s spelling?
An exercise where words are left out of a shorter passage and the pupil must fill in the blanks with suitable words based on their reading, assesses their ability to:
While checking the notebooks the teacher observed that a child has repeatedly made some errors in writing such as reverse images as b – d, m – w. The child is showing the signs of _____.