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CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - CTET & State TET MCQ


Test Description

30 Questions MCQ Test - CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9

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CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 1

किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।

Q. किसी चीज से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है?

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 1

उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है।
गद्यांश से

  • "सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है।"
CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 2

किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।

Q. दुकानदार से उसकी शिकायत करने पर आपको उसका क्या झेलना पडा होगा?

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 2
  • उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार दुकानदार से उसकी शिकायत करने पर हमें उसका दुर्व्यवहार झेलना पड़ता है।
  • अर्थात दुकानदार की शिकायत करने पर उपभोक्ताओं को उनका दुर्व्यवहार झेलना पड़ता है।
CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 3

किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।

Q. किसी उत्पाद के पैक पर क्या लिखना अनिवार्य होता है?

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 3
  • उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार किसी उत्पाद के पैक पर अधिकतम खुदरा मूल्य लिखना अनिवार्य होता है।
  • यदि कोई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है।
CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 4

किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।

Q. विक्रेता को अपने ग्राहकों को क्या कई देने होंगे?

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 4
  • उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार विक्रेता को अपने ग्राहकों को विकल्प देने होंगे।
  • इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिए लागू किया जाता है।
CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 5

विषय से जुड़ी कई भाषा गतिविधियों के माध्यम से एक पाठ पढ़ाना, द्वितीय भाषा शिक्षण के किस सिद्धांत को संदर्भित करता है?

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 5

दृष्टिकोण की एकाधिक रेखा:

  • "मल्टीपल लाइन" शब्द का अर्थ है कि एक को कई अलग-अलग बिंदुओं से एक और एक ही छोर की ओर एक साथ आगे बढ़ना है। किसी भाषा को पढ़ाने में, इसका तात्पर्य सभी मोर्चों से समस्या पर हमला करना है।
  • इसका मतलब है कि शिक्षक द्वारा पढ़ाए जाने वाले पाठ को कई पक्षों से निपटाया जाना चाहिए। तो, यह दर्शाता है कि बहु-पंक्ति दृष्टिकोण में विभिन्न दिशाओं और साधनों से एक ही लक्ष्य तक पहुंचना शामिल है।
  • उदाहरण के लिए, पाठ्यपुस्तक में 'छुट्टियाँ' पर एक पाठ है। शिक्षक के पास विषय से जुड़ी कई भाषा गतिविधियाँ हो सकती हैं जैसे मौखिक अभ्यास, पढ़ना, वाक्य लेखन, रचना, व्याकरण, अनुवाद, भाषा अभ्यास आदि।

इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि विषय से जुड़ी कई भाषा गतिविधियों के माध्यम से एक पाठ पढ़ाना, दृष्टिकोण की एकाधिक रेखा को संदर्भित करता है।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 6

फ्लैनल बोर्ड इसके लिए उपयोगी है:

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 6

फ्लैनल बोर्डों का उपयोग विभिन्न स्थितियों में कक्षाओं में किया जा सकता है।

  • फ्लैनल बोर्ड का उपयोग करने का लाभ यह है कि यह छात्रों को पढ़ाने के लिए सामग्री का उपयोग करने का लचीलापन प्रदान करता है।
  • फ्लैनल बोर्ड का उपयोग चित्रों, संदेशों को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।
  • अंग्रेजी भाषा की कक्षा में इसका उपयोग चित्र रचना सिखाने के लिए किया जा सकता है।
  • यह बच्चों को कहानियों का पता लगाने, उनकी कल्पना को लागू करने, ठीक मोटर कौशल को बढ़ावा देने और उनकी रचनात्मकता को बढ़ाने की अनुमति देता है।
  • फ्लैनल बोर्ड बच्चे की सीखने की क्षमता को बढ़ाता है।

इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि फ्लैनल बोर्ड चित्र रचना शिक्षण के लिए उपयोगी है।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 7

निर्देश: गद्यांश को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।
प्रेम आत्मा का भोजन है, प्रेम परमात्मा की ऊर्जा है जिससे प्रकृति का सारा सृजन होता है। आध्यात्म जगत में प्रेम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कोई शब्द नहीं है। यही वह रसायन है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। जब आप प्रेम में उतर जाते हो तो प्रेम का प्रत्युत्तर अपने आप आना शुरू हो जाता है। आप सद्गुरु की आँखों में प्रेम से झांकते हो तो सद्गुरु की प्रेम ऊर्जा आपको ऐसे लपेटने लगती है कि आप मंत्रमुग्ध होकर उसी के हो जाते हो। सद्गुरु को पकड़ो। पकड़ने का अर्थ है – सबसे पहले वहां साष्टांग हो जाओ, झुक जाओ यानि अहंकार के विसर्जन का, प्रेम का, प्रीती का अभ्यास सद्गुरु के चरणों से शुरू करो।  एक बात और है – प्रेम करना नहीं होता, प्रेम तो स्वयं हो जाता है। लेकिन इस प्रेम के होने में बुद्धि सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। बुद्धि सोच विचार करती है। तर्क वितर्क करती है, वह खुले ह्रदय से अनुभव नहीं करने देती है।  बुद्धि बंधन है, उसी से मुक्त होना है और उपलब्ध रहना है उन प्रेम के क्षणों में। प्रेम की भूल-भुलैया का जरा अनुभव तो करो, लेकिन बुद्धि से नहीं, ह्रदय खोलकर प्रेम का दिया बनो। प्रेम का अर्थ होता है – दूसरों को इतना अपना बना लेना कि कुछ छिपाने को बचे ही नहीं। एक कसौटी दे रहा हूँ आपको, जब आपको लगने लगे कि उससे छिपाने को कुछ भी नहीं रहा तब समझना कि आपको सच्चे अर्थों में प्रेम हो गया है। सद्गुरु ही एकमात्र व्यक्तित्व है जो निःस्वार्थ प्रेम करता है।  उसे आपसे कुछ पाना नहीं है। उसे तो अपना सब कुछ आपके ऊपर लुटाना है। उसके प्रति प्रेम करने में कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए। वह तो खूँटी है। उसी खूँटी से अभ्यास करो। ऋषियों ने कहा है, प्रकृति से प्रेम करो।  फिर धीरे-धीरे मनुष्य पर आओ। मनुष्य से आकर आप सीधे परमात्मा तक पहुंचोगे। ऋषियों ने पहाड़ों को पूजा, नदियों को पूजा, वृक्षों को पूजा, चाँद-तारों को पूजा। किसलिए? उन्होंने सन्देश दिया कि सारी पृथ्वी से प्रेम करो। विराट अस्तित्व ही परमात्मा है। सबके प्रति प्रेम से इतना भर जाओ कि आपकी लय, आपका संगीत, आपका छंद उस परमात्मा से जुड़ जाये।  जो-जो शरीर में है वह सब ब्रह्मांड में है। सारे धर्म इसी बात का विज्ञान हैं और कुछ नहीं। प्रेम की एक ही साधना है, एक ही संकल्पना है जिसके साध लेने पर आध्यात्म की सारी साधनाएँ प्रकट हो जायेंगी।

Q. 'प्रत्युत्तर' में कौन सी संधि है?

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प्रत्युत्तर शब्द का सही संधि विच्छेद 'प्रति + उत्तर' होगा।

  • इसमें 'इ + उ' वर्णों की संधि हुई है और ‘य’ वर्ण की उत्पत्ति हुई है।
  • इसलिए यहाँ पर यण संधि होगी।
  • क्योंकि जब इ, ई, उ, ऊ, ऋ के बाद कोई अन्य स्वर आता है तो ये क्रमश: य, व, र, ल् में परिवर्तन हो जाता है, यह परिवर्तन यण सन्धि का होता है।
CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 8

निर्देश: गद्यांश को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।
प्रेम आत्मा का भोजन है, प्रेम परमात्मा की ऊर्जा है जिससे प्रकृति का सारा सृजन होता है। आध्यात्म जगत में प्रेम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कोई शब्द नहीं है। यही वह रसायन है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। जब आप प्रेम में उतर जाते हो तो प्रेम का प्रत्युत्तर अपने आप आना शुरू हो जाता है। आप सद्गुरु की आँखों में प्रेम से झांकते हो तो सद्गुरु की प्रेम ऊर्जा आपको ऐसे लपेटने लगती है कि आप मंत्रमुग्ध होकर उसी के हो जाते हो। सद्गुरु को पकड़ो। पकड़ने का अर्थ है – सबसे पहले वहां साष्टांग हो जाओ, झुक जाओ यानि अहंकार के विसर्जन का, प्रेम का, प्रीती का अभ्यास सद्गुरु के चरणों से शुरू करो।  एक बात और है – प्रेम करना नहीं होता, प्रेम तो स्वयं हो जाता है। लेकिन इस प्रेम के होने में बुद्धि सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। बुद्धि सोच विचार करती है। तर्क वितर्क करती है, वह खुले ह्रदय से अनुभव नहीं करने देती है।  बुद्धि बंधन है, उसी से मुक्त होना है और उपलब्ध रहना है उन प्रेम के क्षणों में। प्रेम की भूल-भुलैया का जरा अनुभव तो करो, लेकिन बुद्धि से नहीं, ह्रदय खोलकर प्रेम का दिया बनो। प्रेम का अर्थ होता है – दूसरों को इतना अपना बना लेना कि कुछ छिपाने को बचे ही नहीं। एक कसौटी दे रहा हूँ आपको, जब आपको लगने लगे कि उससे छिपाने को कुछ भी नहीं रहा तब समझना कि आपको सच्चे अर्थों में प्रेम हो गया है। सद्गुरु ही एकमात्र व्यक्तित्व है जो निःस्वार्थ प्रेम करता है।  उसे आपसे कुछ पाना नहीं है। उसे तो अपना सब कुछ आपके ऊपर लुटाना है। उसके प्रति प्रेम करने में कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए। वह तो खूँटी है। उसी खूँटी से अभ्यास करो। ऋषियों ने कहा है, प्रकृति से प्रेम करो।  फिर धीरे-धीरे मनुष्य पर आओ। मनुष्य से आकर आप सीधे परमात्मा तक पहुंचोगे। ऋषियों ने पहाड़ों को पूजा, नदियों को पूजा, वृक्षों को पूजा, चाँद-तारों को पूजा। किसलिए? उन्होंने सन्देश दिया कि सारी पृथ्वी से प्रेम करो। विराट अस्तित्व ही परमात्मा है। सबके प्रति प्रेम से इतना भर जाओ कि आपकी लय, आपका संगीत, आपका छंद उस परमात्मा से जुड़ जाये।  जो-जो शरीर में है वह सब ब्रह्मांड में है। सारे धर्म इसी बात का विज्ञान हैं और कुछ नहीं। प्रेम की एक ही साधना है, एक ही संकल्पना है जिसके साध लेने पर आध्यात्म की सारी साधनाएँ प्रकट हो जायेंगी।

Q. ‘विज्ञान’ में कौन सा उपसर्ग है?

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'विज्ञान' में 'वि' उपसर्ग है।
'ज्ञान' मूल शब्द में 'वि' उपसर्ग जुड़कर 'विज्ञान' शब्द बना है।
उपसर्ग उस शब्दांश या अव्यय को कहते है, जो किसी शब्द के पहले आकर उसका विशेष अर्थ प्रकट करता है।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 9

निर्देश: गद्यांश को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।
प्रेम आत्मा का भोजन है, प्रेम परमात्मा की ऊर्जा है जिससे प्रकृति का सारा सृजन होता है। आध्यात्म जगत में प्रेम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कोई शब्द नहीं है। यही वह रसायन है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। जब आप प्रेम में उतर जाते हो तो प्रेम का प्रत्युत्तर अपने आप आना शुरू हो जाता है। आप सद्गुरु की आँखों में प्रेम से झांकते हो तो सद्गुरु की प्रेम ऊर्जा आपको ऐसे लपेटने लगती है कि आप मंत्रमुग्ध होकर उसी के हो जाते हो। सद्गुरु को पकड़ो। पकड़ने का अर्थ है – सबसे पहले वहां साष्टांग हो जाओ, झुक जाओ यानि अहंकार के विसर्जन का, प्रेम का, प्रीती का अभ्यास सद्गुरु के चरणों से शुरू करो।  एक बात और है – प्रेम करना नहीं होता, प्रेम तो स्वयं हो जाता है। लेकिन इस प्रेम के होने में बुद्धि सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। बुद्धि सोच विचार करती है। तर्क वितर्क करती है, वह खुले ह्रदय से अनुभव नहीं करने देती है।  बुद्धि बंधन है, उसी से मुक्त होना है और उपलब्ध रहना है उन प्रेम के क्षणों में। प्रेम की भूल-भुलैया का जरा अनुभव तो करो, लेकिन बुद्धि से नहीं, ह्रदय खोलकर प्रेम का दिया बनो। प्रेम का अर्थ होता है – दूसरों को इतना अपना बना लेना कि कुछ छिपाने को बचे ही नहीं। एक कसौटी दे रहा हूँ आपको, जब आपको लगने लगे कि उससे छिपाने को कुछ भी नहीं रहा तब समझना कि आपको सच्चे अर्थों में प्रेम हो गया है। सद्गुरु ही एकमात्र व्यक्तित्व है जो निःस्वार्थ प्रेम करता है।  उसे आपसे कुछ पाना नहीं है। उसे तो अपना सब कुछ आपके ऊपर लुटाना है। उसके प्रति प्रेम करने में कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए। वह तो खूँटी है। उसी खूँटी से अभ्यास करो। ऋषियों ने कहा है, प्रकृति से प्रेम करो।  फिर धीरे-धीरे मनुष्य पर आओ। मनुष्य से आकर आप सीधे परमात्मा तक पहुंचोगे। ऋषियों ने पहाड़ों को पूजा, नदियों को पूजा, वृक्षों को पूजा, चाँद-तारों को पूजा। किसलिए? उन्होंने सन्देश दिया कि सारी पृथ्वी से प्रेम करो। विराट अस्तित्व ही परमात्मा है। सबके प्रति प्रेम से इतना भर जाओ कि आपकी लय, आपका संगीत, आपका छंद उस परमात्मा से जुड़ जाये।  जो-जो शरीर में है वह सब ब्रह्मांड में है। सारे धर्म इसी बात का विज्ञान हैं और कुछ नहीं। प्रेम की एक ही साधना है, एक ही संकल्पना है जिसके साध लेने पर आध्यात्म की सारी साधनाएँ प्रकट हो जायेंगी।

Q. निःस्वार्थ प्रेम कौन करता है?

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 9

गद्यांश के अनुसार, "सद्गुरु ही एकमात्र व्यक्तित्व है जो निःस्वार्थ प्रेम करता है। उसे आपसे कुछ पाना नहीं है। उसे तो अपना सब कुछ आपके ऊपर लुटाना है।"
इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सद्गुरु निःस्वार्थ प्रेम करता है।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 10

निर्देश: गद्यांश को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।
प्रेम आत्मा का भोजन है, प्रेम परमात्मा की ऊर्जा है जिससे प्रकृति का सारा सृजन होता है। आध्यात्म जगत में प्रेम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कोई शब्द नहीं है। यही वह रसायन है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। जब आप प्रेम में उतर जाते हो तो प्रेम का प्रत्युत्तर अपने आप आना शुरू हो जाता है। आप सद्गुरु की आँखों में प्रेम से झांकते हो तो सद्गुरु की प्रेम ऊर्जा आपको ऐसे लपेटने लगती है कि आप मंत्रमुग्ध होकर उसी के हो जाते हो। सद्गुरु को पकड़ो। पकड़ने का अर्थ है – सबसे पहले वहां साष्टांग हो जाओ, झुक जाओ यानि अहंकार के विसर्जन का, प्रेम का, प्रीती का अभ्यास सद्गुरु के चरणों से शुरू करो।  एक बात और है – प्रेम करना नहीं होता, प्रेम तो स्वयं हो जाता है। लेकिन इस प्रेम के होने में बुद्धि सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। बुद्धि सोच विचार करती है। तर्क वितर्क करती है, वह खुले ह्रदय से अनुभव नहीं करने देती है।  बुद्धि बंधन है, उसी से मुक्त होना है और उपलब्ध रहना है उन प्रेम के क्षणों में। प्रेम की भूल-भुलैया का जरा अनुभव तो करो, लेकिन बुद्धि से नहीं, ह्रदय खोलकर प्रेम का दिया बनो। प्रेम का अर्थ होता है – दूसरों को इतना अपना बना लेना कि कुछ छिपाने को बचे ही नहीं। एक कसौटी दे रहा हूँ आपको, जब आपको लगने लगे कि उससे छिपाने को कुछ भी नहीं रहा तब समझना कि आपको सच्चे अर्थों में प्रेम हो गया है। सद्गुरु ही एकमात्र व्यक्तित्व है जो निःस्वार्थ प्रेम करता है।  उसे आपसे कुछ पाना नहीं है। उसे तो अपना सब कुछ आपके ऊपर लुटाना है। उसके प्रति प्रेम करने में कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए। वह तो खूँटी है। उसी खूँटी से अभ्यास करो। ऋषियों ने कहा है, प्रकृति से प्रेम करो।  फिर धीरे-धीरे मनुष्य पर आओ। मनुष्य से आकर आप सीधे परमात्मा तक पहुंचोगे। ऋषियों ने पहाड़ों को पूजा, नदियों को पूजा, वृक्षों को पूजा, चाँद-तारों को पूजा। किसलिए? उन्होंने सन्देश दिया कि सारी पृथ्वी से प्रेम करो। विराट अस्तित्व ही परमात्मा है। सबके प्रति प्रेम से इतना भर जाओ कि आपकी लय, आपका संगीत, आपका छंद उस परमात्मा से जुड़ जाये।  जो-जो शरीर में है वह सब ब्रह्मांड में है। सारे धर्म इसी बात का विज्ञान हैं और कुछ नहीं। प्रेम की एक ही साधना है, एक ही संकल्पना है जिसके साध लेने पर आध्यात्म की सारी साधनाएँ प्रकट हो जायेंगी।

Q. प्रेम का प्रत्युत्तर कब आना शुरू हो जाता है?

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गद्यांश के अनुसार, "जब आप प्रेम में उतर जाते हो तो प्रेम का प्रत्युत्तर अपने आप आना शुरू हो जाता है।"
इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जब इंसान प्रेम में उतरता है तो प्रेम का प्रत्युत्तर आना शुरू हो जाता है।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 11

निर्देश: गद्यांश को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।
प्रेम आत्मा का भोजन है, प्रेम परमात्मा की ऊर्जा है जिससे प्रकृति का सारा सृजन होता है। आध्यात्म जगत में प्रेम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कोई शब्द नहीं है। यही वह रसायन है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। जब आप प्रेम में उतर जाते हो तो प्रेम का प्रत्युत्तर अपने आप आना शुरू हो जाता है। आप सद्गुरु की आँखों में प्रेम से झांकते हो तो सद्गुरु की प्रेम ऊर्जा आपको ऐसे लपेटने लगती है कि आप मंत्रमुग्ध होकर उसी के हो जाते हो। सद्गुरु को पकड़ो। पकड़ने का अर्थ है – सबसे पहले वहां साष्टांग हो जाओ, झुक जाओ यानि अहंकार के विसर्जन का, प्रेम का, प्रीती का अभ्यास सद्गुरु के चरणों से शुरू करो।  एक बात और है – प्रेम करना नहीं होता, प्रेम तो स्वयं हो जाता है। लेकिन इस प्रेम के होने में बुद्धि सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। बुद्धि सोच विचार करती है। तर्क वितर्क करती है, वह खुले ह्रदय से अनुभव नहीं करने देती है।  बुद्धि बंधन है, उसी से मुक्त होना है और उपलब्ध रहना है उन प्रेम के क्षणों में। प्रेम की भूल-भुलैया का जरा अनुभव तो करो, लेकिन बुद्धि से नहीं, ह्रदय खोलकर प्रेम का दिया बनो। प्रेम का अर्थ होता है – दूसरों को इतना अपना बना लेना कि कुछ छिपाने को बचे ही नहीं। एक कसौटी दे रहा हूँ आपको, जब आपको लगने लगे कि उससे छिपाने को कुछ भी नहीं रहा तब समझना कि आपको सच्चे अर्थों में प्रेम हो गया है। सद्गुरु ही एकमात्र व्यक्तित्व है जो निःस्वार्थ प्रेम करता है।  उसे आपसे कुछ पाना नहीं है। उसे तो अपना सब कुछ आपके ऊपर लुटाना है। उसके प्रति प्रेम करने में कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए। वह तो खूँटी है। उसी खूँटी से अभ्यास करो। ऋषियों ने कहा है, प्रकृति से प्रेम करो।  फिर धीरे-धीरे मनुष्य पर आओ। मनुष्य से आकर आप सीधे परमात्मा तक पहुंचोगे। ऋषियों ने पहाड़ों को पूजा, नदियों को पूजा, वृक्षों को पूजा, चाँद-तारों को पूजा। किसलिए? उन्होंने सन्देश दिया कि सारी पृथ्वी से प्रेम करो। विराट अस्तित्व ही परमात्मा है। सबके प्रति प्रेम से इतना भर जाओ कि आपकी लय, आपका संगीत, आपका छंद उस परमात्मा से जुड़ जाये।  जो-जो शरीर में है वह सब ब्रह्मांड में है। सारे धर्म इसी बात का विज्ञान हैं और कुछ नहीं। प्रेम की एक ही साधना है, एक ही संकल्पना है जिसके साध लेने पर आध्यात्म की सारी साधनाएँ प्रकट हो जायेंगी।

Q. समूह से भिन्न शब्द चुनिए।

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मनुष्य जातिवाचक संज्ञा है, अन्य शब्द भाववाचक संज्ञा के उदाहरण है।
जातिवाचक संज्ञा: जो संज्ञा एक ही प्रकार की वस्तुओं का (पूरी जाति का) बोध कराती है। जैसे – नदी, पर्वत, लड़की आदि।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 12

निर्देश: गद्यांश को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।
प्रेम आत्मा का भोजन है, प्रेम परमात्मा की ऊर्जा है जिससे प्रकृति का सारा सृजन होता है। आध्यात्म जगत में प्रेम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कोई शब्द नहीं है। यही वह रसायन है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। जब आप प्रेम में उतर जाते हो तो प्रेम का प्रत्युत्तर अपने आप आना शुरू हो जाता है। आप सद्गुरु की आँखों में प्रेम से झांकते हो तो सद्गुरु की प्रेम ऊर्जा आपको ऐसे लपेटने लगती है कि आप मंत्रमुग्ध होकर उसी के हो जाते हो। सद्गुरु को पकड़ो। पकड़ने का अर्थ है – सबसे पहले वहां साष्टांग हो जाओ, झुक जाओ यानि अहंकार के विसर्जन का, प्रेम का, प्रीती का अभ्यास सद्गुरु के चरणों से शुरू करो।  एक बात और है – प्रेम करना नहीं होता, प्रेम तो स्वयं हो जाता है। लेकिन इस प्रेम के होने में बुद्धि सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। बुद्धि सोच विचार करती है। तर्क वितर्क करती है, वह खुले ह्रदय से अनुभव नहीं करने देती है।  बुद्धि बंधन है, उसी से मुक्त होना है और उपलब्ध रहना है उन प्रेम के क्षणों में। प्रेम की भूल-भुलैया का जरा अनुभव तो करो, लेकिन बुद्धि से नहीं, ह्रदय खोलकर प्रेम का दिया बनो। प्रेम का अर्थ होता है – दूसरों को इतना अपना बना लेना कि कुछ छिपाने को बचे ही नहीं। एक कसौटी दे रहा हूँ आपको, जब आपको लगने लगे कि उससे छिपाने को कुछ भी नहीं रहा तब समझना कि आपको सच्चे अर्थों में प्रेम हो गया है। सद्गुरु ही एकमात्र व्यक्तित्व है जो निःस्वार्थ प्रेम करता है।  उसे आपसे कुछ पाना नहीं है। उसे तो अपना सब कुछ आपके ऊपर लुटाना है। उसके प्रति प्रेम करने में कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए। वह तो खूँटी है। उसी खूँटी से अभ्यास करो। ऋषियों ने कहा है, प्रकृति से प्रेम करो।  फिर धीरे-धीरे मनुष्य पर आओ। मनुष्य से आकर आप सीधे परमात्मा तक पहुंचोगे। ऋषियों ने पहाड़ों को पूजा, नदियों को पूजा, वृक्षों को पूजा, चाँद-तारों को पूजा। किसलिए? उन्होंने सन्देश दिया कि सारी पृथ्वी से प्रेम करो। विराट अस्तित्व ही परमात्मा है। सबके प्रति प्रेम से इतना भर जाओ कि आपकी लय, आपका संगीत, आपका छंद उस परमात्मा से जुड़ जाये।  जो-जो शरीर में है वह सब ब्रह्मांड में है। सारे धर्म इसी बात का विज्ञान हैं और कुछ नहीं। प्रेम की एक ही साधना है, एक ही संकल्पना है जिसके साध लेने पर आध्यात्म की सारी साधनाएँ प्रकट हो जायेंगी।

Q. परमात्मा क्या है?

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गद्यांश के अनुसार, "विराट अस्तित्व ही परमात्मा है। सबके प्रति प्रेम से इतना भर जाओ कि आपकी लय, आपका संगीत, आपका छंद उस परमात्मा से जुड़ जाये।"
इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विराट अस्तित्व परमात्मा है।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 13

भाषा-अर्जन और भाषा-अधिगम में मुख्य अंतर है:

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भाषा-अर्जन और भाषा-अधिगम में मुख्य अंतर स्वाभाविकता का है।

  • भाषा अर्जन: यह एक सहज एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें बच्चे घरेलू परिवेश में भाषा के नियमों को आसानी से आत्मसात् करते हैं। 
  • भाषा अधिगम: यह एक सचेतन प्रक्रिया है जिसमें बच्चे औपचारिक रूप से विद्यालय या शिक्षण संस्थानों में भाषा के नियमों को सीखते हैं।
  • भाषा अर्जन और भाषा अधिगम के बीच अंतर का मुख्य आधार स्वाभाविकता या सहजता है।
  • भाषा अर्जन प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे अनुकरण द्वारा भाषा सीख कर अपनी बातों को अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम हो पाता है।
  • भाषा अर्जन की प्रक्रिया एक सहज, स्वाभाविक, और अनौपचारिक प्रक्रिया है जो कक्षा में भाषा के अधिगम से भिन्न होती है।
CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 14

निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान पूर्वक पढ़िए और विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर चुनिए।
जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्ति की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है क्योंकि उद्योग धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखे मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

Q. ‘प्रतिकूल’ शब्द का विलोम है?

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उपर्युक्त विकल्पों में से ‘प्रतिकूल’ शब्द का विपरीतार्थक शब्द ‘अनुकूल’ है। अन्य विकल्प गलत हैं।
‘प्रतिकूल’ शब्द का अर्थ – जो अनुकूल न हो, विपरीत, विरुद्ध
‘अनुकूल’ शब्द का अर्थ - मेल रखने वाला

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 15

निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान पूर्वक पढ़िए और विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर चुनिए।
जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्ति की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है क्योंकि उद्योग धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखे मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

Q. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 15

प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक जाति प्रथा – एक सामाजिक बुराई है उचित शीर्षक है। अतः सही विकल्प जाति प्रथा – एक सामाजिक बुराई है, अन्य विकल्प असंगत हैं।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 16

निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान पूर्वक पढ़िए और विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर चुनिए।
जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्ति की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है क्योंकि उद्योग धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखे मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

Q. भारत में जातिप्रथा बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण किस प्रकार बन जाती है?

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 16

प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार उपरोक्त सभी विकल्प उपयुक्त हैं क्योंकि गद्यांश में उपरोक्त सभी बातों को बेरोजगारी का कारण बताया गया है। इसलिए, विकल्प उपरोक्त सभी सही हैं। अन्य विकल्प असंगत हैं।
जातिप्रथा बेरोजगारी का कारण तब बन जाती है जब परंपरागत ढंग से किसी जाति-विशेष के द्वारा बनाए जा रहे उत्पाद को आज के औद्योगिक युग में नई तकनीक द्वारा बड़े पैमाने पर तैयार किया जाने लगता है। ऐसे में उस जाति-विशेष के लोग नई तकनीक के मुकाबले टिक नहीं पाते। उनका परंपरागत पेशा छिन जाता है, फिर भी उन्हें जाति-प्रथा पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती। ऐसे में बेरोजगारी का बढ़ना स्वाभाविक है।

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 17

Direction: Read the following passage carefully and answer the questions that follow.
The morning of June 27th was clear and sunny, with the fresh warmth of a full-summer day; the flowers were blossoming profusely, and the grass was richly green. The people of the village began to gather in the square, between the post office and the bank, around ten o’clock; in some towns, there were so many people that the lottery took two days and had to be started on June 20th, but in this village, where there were only about three hundred people, the whole lottery took less than two hours so that it could begin at ten o’clock in the morning and still be through in time to allow the villagers to get home for noon dinner.
The children assembled first, of course. The school was recently over for the summer, and the feeling of liberty sat uneasily on most of them; they tended to gather together quietly for a while before they broke into boisterous play, and their talk was still of the classroom and the teacher, of books and reprimands. Bobby Martin had already stuffed his pockets full of stones, and the other boys soon followed his example, selecting the smoothest and roundest stones; Bobby and Harry Jones and Dickie Delacroix—the villagers pronounced this name “Dellacroy”—eventually made a great pile of stones in one corner of the square and guarded it against the raids of the other boys. The girls stood aside, talking among themselves, looking over their shoulders at the boys, and the tiny children rolled in the dust or clung to the hands of their older brothers or sisters.
Soon the men began to gather, surveying their own children, speaking of planting and rain, tractors and taxes. They stood together, away from the pile of stones in the corner, and their jokes were quiet, and they smiled rather than laughed. The women, wearing faded house dresses and sweaters, came shortly after their menfolk. They greeted one another and exchanged bits of gossip as they went to join their husbands. Soon the women, standing by their husbands, began to call to their children, and the children came reluctantly, having to be called four or five times. Bobby Martin ducked under his mother’s grasping hand and ran, laughing, back to the pile of stones. His father spoke up sharply, and Bobby came quickly and took his place between his father and his oldest brother.

Q. Select the segment of the sentence that contains the grammatical error. If there is no error, mark "D" as your answer.
The morning of June 27th was clear and sunny, (A)/  with the fresh warmth of a full-summer day; (B)/ the flowers were blossoming profusely, and the grass was rich green. (C)/ No Error (D)

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 17

The error lies in the usage of the adjective rich instead of the adverb richly.
An Adverb is a word that describes, modifies, or gives more information about a verb, adjective, adverb, or phrase.
Example: She smiled cheerfully.
The word green refers to the color of the grass.
In the given sentence, the word green is used as an adjective, and rich is also used as an adjective, which is grammatically wrong. 
Here, the adverb richly should be used to modify the adjective green as how much green the grass is. 
So, the correct sentence is: The morning of June 27th was clear and sunny, with the fresh warmth of a full-summer day; the flowers were blossoming profusely, and the grass was richly green.

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 18

Web-casting as an educational media does not include

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It does not include 'campus radio' as an educational media. This is because it gives only instructions related to their schedules.

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 19

Continuous Comprehension evaluation is

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 19

Continuous assessment means assessing aspects of learners' language throughout their course and then producing a final evaluation result from these assessments.

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 20

Direction: Read the following passage carefully and answer the questions that follow.
The morning of June 27th was clear and sunny, with the fresh warmth of a full-summer day; the flowers were blossoming profusely, and the grass was richly green. The people of the village began to gather in the square, between the post office and the bank, around ten o’clock; in some towns, there were so many people that the lottery took two days and had to be started on June 20th, but in this village, where there were only about three hundred people, the whole lottery took less than two hours so that it could begin at ten o’clock in the morning and still be through in time to allow the villagers to get home for noon dinner.
The children assembled first, of course. The school was recently over for the summer, and the feeling of liberty sat uneasily on most of them; they tended to gather together quietly for a while before they broke into boisterous play, and their talk was still of the classroom and the teacher, of books and reprimands. Bobby Martin had already stuffed his pockets full of stones, and the other boys soon followed his example, selecting the smoothest and roundest stones; Bobby and Harry Jones and Dickie Delacroix—the villagers pronounced this name “Dellacroy”—eventually made a great pile of stones in one corner of the square and guarded it against the raids of the other boys. The girls stood aside, talking among themselves, looking over their shoulders at the boys, and the tiny children rolled in the dust or clung to the hands of their older brothers or sisters.
Soon the men began to gather, surveying their own children, speaking of planting and rain, tractors and taxes. They stood together, away from the pile of stones in the corner, and their jokes were quiet, and they smiled rather than laughed. The women, wearing faded house dresses and sweaters, came shortly after their menfolk. They greeted one another and exchanged bits of gossip as they went to join their husbands. Soon the women, standing by their husbands, began to call to their children, and the children came reluctantly, having to be called four or five times. Bobby Martin ducked under his mother’s grasping hand and ran, laughing, back to the pile of stones. His father spoke up sharply, and Bobby came quickly and took his place between his father and his oldest brother.

Q. Which of the following statements are true concerning Bobby Martin?
A. Bobby Martin ducked under his mother’s grasping hand and ran, laughing, back to the pile of stones. 
B. Bobby and Harry Jones and Dickie Delacroix—the villagers pronounced this name “Dellacroy”—eventually made a great pile of stones in one corner of the square and guarded it against the raids of the other boys.

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The correct answer is Both A and B are true.
The answer can be decided by looking at the lines given in the second and last paragraph of the passage: 
​"Bobby and Harry Jones and Dickie Delacroix—the villagers pronounced this name “Dellacroy”—eventually made a great pile of stones in one corner of the square and guarded it against the raids of the other boys."
"Bobby Martin ducked under his mother’s grasping hand and ran, laughing, back to the pile of stones."
​From the above lines, it is clear that both statements A and B are correct.

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 21

How many language skills does an educated person learn?

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An educated person learns four language skills. The four language skills are: Listening, Speaking, Reading and Writing.

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 22

Choose the correct phrase to fill in the blank in the sentence.
She ___________ living in Chennai since 1989.

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 22

The correct sentence will be, 'She has been living in Chennai since 1989.' as it talks about the present. 'Had been' would have been appropriate if some other information had been given after 1989 referring to past.

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 23

Essential Steps of Diagnostic Testing should be followed as
A. Identifying students having trouble
B. Locating the errors 
C. Discovering factors of slow learning
D. Removing learning difficulties

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 23

Learning Difficulties refers to a state when a person faces difficulty in learning. It may be due to physical limitations/disabilities such as - impairment in hearing, visual, low intellectual functioning, and inappropriate motor coordination.

  • Diagnostic evaluation/test refers to the test which helps the teachers to know the learning difficulties or gaps in learner's understanding and identifying learner's strengths, weaknesses, skills, etc.
CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 24

Direction: Read the following passage carefully and answer the questions that follow.
The morning of June 27th was clear and sunny, with the fresh warmth of a full-summer day; the flowers were blossoming profusely, and the grass was richly green. The people of the village began to gather in the square, between the post office and the bank, around ten o’clock; in some towns, there were so many people that the lottery took two days and had to be started on June 20th, but in this village, where there were only about three hundred people, the whole lottery took less than two hours so that it could begin at ten o’clock in the morning and still be through in time to allow the villagers to get home for noon dinner.
The children assembled first, of course. The school was recently over for the summer, and the feeling of liberty sat uneasily on most of them; they tended to gather together quietly for a while before they broke into boisterous play, and their talk was still of the classroom and the teacher, of books and reprimands. Bobby Martin had already stuffed his pockets full of stones, and the other boys soon followed his example, selecting the smoothest and roundest stones; Bobby and Harry Jones and Dickie Delacroix—the villagers pronounced this name “Dellacroy”—eventually made a great pile of stones in one corner of the square and guarded it against the raids of the other boys. The girls stood aside, talking among themselves, looking over their shoulders at the boys, and the tiny children rolled in the dust or clung to the hands of their older brothers or sisters.
Soon the men began to gather, surveying their own children, speaking of planting and rain, tractors and taxes. They stood together, away from the pile of stones in the corner, and their jokes were quiet, and they smiled rather than laughed. The women, wearing faded house dresses and sweaters, came shortly after their menfolk. They greeted one another and exchanged bits of gossip as they went to join their husbands. Soon the women, standing by their husbands, began to call to their children, and the children came reluctantly, having to be called four or five times. Bobby Martin ducked under his mother’s grasping hand and ran, laughing, back to the pile of stones. His father spoke up sharply, and Bobby came quickly and took his place between his father and his oldest brother.

Q. Which one of the following words is the most opposite in the meaning to the word "together" as used in the passage (Para 3)?

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 24
  • Together: in or into one place, mass, collection, or group
    Example: Our students study together, share ideas, and seed new opportunities for future collaboration.
  • Solely: without another
    Example: You will be held solely responsible for any damage.

​Thus, "solely" is the most opposite in meaning to "together".

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 25

The subsystem of a language that deals with the rules of word order and word combinations to form phrases and sentences is known as:

Detailed Solution for CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 25

Language is a symbolic, rule-governed system, shared by a group of people to express their thoughts and feelings. These rules are the set of conventions that organize their proper use and dictate how words relate to one another. Some of these rules that govern a language include phonology, syntax, morphology, semantic, etc. 

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 26

Directions: The given sentence may contain only one error in grammar usage, diction (choice of words), or idiom. The sentence may be correct. Select the lettered part that, according to you, contains the error. If there is no error, the answer is (D), i.e. No error.
While he was walking along the road, (A)/ a speeding car (B)/ knocked down to him. (C)/ No Error (D)

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While he was walking along the road, a speeding car knocked him down.

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 27

A school management has conducted selection test for admission of a student into seventh class. As per RTE 2009, they should be punished with a penalty of

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CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 28

Direction: Read the following passage carefully and answer the questions that follow.
The morning of June 27th was clear and sunny, with the fresh warmth of a full-summer day; the flowers were blossoming profusely, and the grass was richly green. The people of the village began to gather in the square, between the post office and the bank, around ten o’clock; in some towns, there were so many people that the lottery took two days and had to be started on June 20th, but in this village, where there were only about three hundred people, the whole lottery took less than two hours so that it could begin at ten o’clock in the morning and still be through in time to allow the villagers to get home for noon dinner.
The children assembled first, of course. The school was recently over for the summer, and the feeling of liberty sat uneasily on most of them; they tended to gather together quietly for a while before they broke into boisterous play, and their talk was still of the classroom and the teacher, of books and reprimands. Bobby Martin had already stuffed his pockets full of stones, and the other boys soon followed his example, selecting the smoothest and roundest stones; Bobby and Harry Jones and Dickie Delacroix—the villagers pronounced this name “Dellacroy”—eventually made a great pile of stones in one corner of the square and guarded it against the raids of the other boys. The girls stood aside, talking among themselves, looking over their shoulders at the boys, and the tiny children rolled in the dust or clung to the hands of their older brothers or sisters.
Soon the men began to gather, surveying their own children, speaking of planting and rain, tractors and taxes. They stood together, away from the pile of stones in the corner, and their jokes were quiet, and they smiled rather than laughed. The women, wearing faded house dresses and sweaters, came shortly after their menfolk. They greeted one another and exchanged bits of gossip as they went to join their husbands. Soon the women, standing by their husbands, began to call to their children, and the children came reluctantly, having to be called four or five times. Bobby Martin ducked under his mother’s grasping hand and ran, laughing, back to the pile of stones. His father spoke up sharply, and Bobby came quickly and took his place between his father and his oldest brother.

Q. The people of the village began to gather in the square, between the post office and the bank, around:

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The initial lines of the first paragraph state, "The people of the village began to gather in the square, between the post office and the bank, around ten o’clock."

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 29

Direction: Read the following passage carefully and answer the questions that follow.
The morning of June 27th was clear and sunny, with the fresh warmth of a full-summer day; the flowers were blossoming profusely, and the grass was richly green. The people of the village began to gather in the square, between the post office and the bank, around ten o’clock; in some towns, there were so many people that the lottery took two days and had to be started on June 20th, but in this village, where there were only about three hundred people, the whole lottery took less than two hours so that it could begin at ten o’clock in the morning and still be through in time to allow the villagers to get home for noon dinner.
The children assembled first, of course. The school was recently over for the summer, and the feeling of liberty sat uneasily on most of them; they tended to gather together quietly for a while before they broke into boisterous play, and their talk was still of the classroom and the teacher, of books and reprimands. Bobby Martin had already stuffed his pockets full of stones, and the other boys soon followed his example, selecting the smoothest and roundest stones; Bobby and Harry Jones and Dickie Delacroix—the villagers pronounced this name “Dellacroy”—eventually made a great pile of stones in one corner of the square and guarded it against the raids of the other boys. The girls stood aside, talking among themselves, looking over their shoulders at the boys, and the tiny children rolled in the dust or clung to the hands of their older brothers or sisters.
Soon the men began to gather, surveying their own children, speaking of planting and rain, tractors and taxes. They stood together, away from the pile of stones in the corner, and their jokes were quiet, and they smiled rather than laughed. The women, wearing faded house dresses and sweaters, came shortly after their menfolk. They greeted one another and exchanged bits of gossip as they went to join their husbands. Soon the women, standing by their husbands, began to call to their children, and the children came reluctantly, having to be called four or five times. Bobby Martin ducked under his mother’s grasping hand and ran, laughing, back to the pile of stones. His father spoke up sharply, and Bobby came quickly and took his place between his father and his oldest brother.

Q. The school was recently over for the summer, and the feeling of liberty sat uneasily on most of them; they tended to gather together quietly for a while before they broke into:

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The second line of the first paragraph states, "The school was recently over for the summer, and the feeling of liberty sat uneasily on most of them; they tended to gather together quietly for a while before they broke into boisterous play, and their talk was still of the classroom and the teacher, of books and reprimands."

CTET पेपर-II (गणित और विज्ञान) मॉक टेस्ट - 9 - Question 30

Direction: Read the following passage carefully and answer the questions that follow.
The morning of June 27th was clear and sunny, with the fresh warmth of a full-summer day; the flowers were blossoming profusely, and the grass was richly green. The people of the village began to gather in the square, between the post office and the bank, around ten o’clock; in some towns, there were so many people that the lottery took two days and had to be started on June 20th, but in this village, where there were only about three hundred people, the whole lottery took less than two hours so that it could begin at ten o’clock in the morning and still be through in time to allow the villagers to get home for noon dinner.
The children assembled first, of course. The school was recently over for the summer, and the feeling of liberty sat uneasily on most of them; they tended to gather together quietly for a while before they broke into boisterous play, and their talk was still of the classroom and the teacher, of books and reprimands. Bobby Martin had already stuffed his pockets full of stones, and the other boys soon followed his example, selecting the smoothest and roundest stones; Bobby and Harry Jones and Dickie Delacroix—the villagers pronounced this name “Dellacroy”—eventually made a great pile of stones in one corner of the square and guarded it against the raids of the other boys. The girls stood aside, talking among themselves, looking over their shoulders at the boys, and the tiny children rolled in the dust or clung to the hands of their older brothers or sisters.
Soon the men began to gather, surveying their own children, speaking of planting and rain, tractors and taxes. They stood together, away from the pile of stones in the corner, and their jokes were quiet, and they smiled rather than laughed. The women, wearing faded house dresses and sweaters, came shortly after their menfolk. They greeted one another and exchanged bits of gossip as they went to join their husbands. Soon the women, standing by their husbands, began to call to their children, and the children came reluctantly, having to be called four or five times. Bobby Martin ducked under his mother’s grasping hand and ran, laughing, back to the pile of stones. His father spoke up sharply, and Bobby came quickly and took his place between his father and his oldest brother.

Q. Which one of the following words is the most similar in the meaning to the word "tiny" as used in the passage (Para 2)?

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  • Tiny: very small or diminutive, minute.
    Example: He's from a tiny town that you've probably never heard of.
  • Bitsy: very small in size.
    Example: It's just a bitsy blister, but it's right on my heel so that I feel it every time I take a step.

​Thus, "bitsy" is the most similar in meaning to "tiny".

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