1916 में चंपारण (बिहार) में महात्मा गांधी द्वारा आयोजित सत्याग्रह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह गांधीजी का भारत में पहला बड़ा सत्याग्रह था, जिसका उद्देश्य स्थानीय किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाना था। आइए इस सत्याग्रह के कारण और संदर्भ को विस्तार से समझें:
चंपारण सत्याग्रह का कारण:
- वृक्षारोपण प्रणाली (नील खेती): चंपारण में ब्रिटिश वृक्षारोपण मालिकों द्वारा किसानों को जबरन नील की खेती करने के लिए मजबूर किया जाता था। इस प्रणाली को "तिनकठिया प्रथा" कहा जाता था, जिसमें किसानों को अपनी जमीन का एक निश्चित हिस्सा (3/20वां हिस्सा) नील की खेती के लिए उपयोग करना पड़ता था।
- शोषण और उत्पीड़न: नील की खेती से किसानों को कोई लाभ नहीं होता था, क्योंकि उन्हें बहुत कम कीमत दी जाती थी, और वे अपनी पसंद की फसलें (जैसे अनाज) नहीं उगा सकते थे। इसके अलावा, ब्रिटिश वृक्षारोपण मालिक और उनके एजेंट किसानों का आर्थिक और सामाजिक शोषण करते थे।
- जबरन कर और अनुबंध: किसानों को नील की खेती से मुक्ति के लिए भारी राशि (जैसे "शरहबेशी" या "तवान") देनी पड़ती थी, जो उनकी आर्थिक स्थिति को और खराब करती थी।
- गांधीजी का हस्तक्षेप: 1916 में, चंपारण के स्थानीय नेता राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी को इस शोषण के बारे में बताया और उन्हें चंपारण आने के लिए आमंत्रित किया। गांधीजी ने 1917 में (ध्यान दें कि सत्याग्रह 1917 में शुरू हुआ, लेकिन प्रश्न में 1916 का उल्लेख संभवतः घटनाओं की शुरुआत को दर्शाता है) वहाँ जाकर किसानों की स्थिति का अध्ययन किया और सत्याग्रह शुरू किया।
सत्याग्रह का उद्देश्य:
- गांधीजी ने इस सत्याग्रह के माध्यम से वृक्षारोपण प्रणाली के खिलाफ अहिंसक विरोध शुरू किया। उनका लक्ष्य था किसानों को तिनकठिया प्रथा और ब्रिटिश शोषण से मुक्ति दिलाना।
- यह सत्याग्रह केवल नील खेती के खिलाफ ही नहीं था, बल्कि यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ भी एक प्रतीकात्मक संघर्ष था।
परिणाम:
- गांधीजी के प्रयासों के कारण ब्रिटिश सरकार ने चंपारण कृषि समिति का गठन किया, जिसमें गांधीजी भी शामिल थे।
- समिति की सिफारिशों के आधार पर तिनकठिया प्रथा समाप्त कर दी गई, और किसानों को नील की खेती के लिए मजबूर करने की प्रथा पर रोक लगाई गई।
- यह सत्याग्रह गांधीजी के नेतृत्व में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने उनकी अहिंसक सत्याग्रह की रणनीति को स्थापित किया।
विकल्पों का विश्लेषण:
(a) ब्रिटिश कानूनों का विरोध करने के लिए: गलत, क्योंकि चंपारण सत्याग्रह का प्राथमिक उद्देश्य सामान्य ब्रिटिश कानूनों का विरोध नहीं था, बल्कि यह विशिष्ट रूप से नील वृक्षारोपण प्रणाली और उससे जुड़े शोषण के खिलाफ था। हालाँकि यह अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश नीतियों का विरोध था, लेकिन यह विकल्प सटीक नहीं है।
(b) वृक्षारोपण प्रणाली का विरोध करने के लिए: सही, जैसा कि ऊपर वर्णित है, सत्याग्रह का मुख्य लक्ष्य तिनकठिया प्रथा और नील वृक्षारोपण प्रणाली के खिलाफ था।
(c) उच्च भू-राजस्व का विरोध करने के लिए: गलत, क्योंकि चंपारण सत्याग्रह का मुद्दा भू-राजस्व से संबंधित नहीं था। यह नील की खेती और उससे जुड़े शोषण पर केंद्रित था। भू-राजस्व का मुद्दा बाद में अन्य आंदोलनों, जैसे बारडोली सत्याग्रह (1928), में प्रमुख था।
(d) मिल मजदूरों के उत्पीड़न के विरोध में: गलत, क्योंकि चंपारण सत्याग्रह का संबंध किसानों और नील खेती से था, न कि मिल मजदूरों से। मिल मजदूरों का मुद्दा बाद में अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) में उठा था।
निष्कर्ष: चंपारण सत्याग्रह (1916-1917) का आयोजन वृक्षारोपण प्रणाली (विशेष रूप से तिनकठिया प्रथा और नील खेती) के खिलाफ किया गया था, जिसमें ब्रिटिश वृक्षारोपण मालिकों द्वारा किसानों का शोषण किया जा रहा था। इसलिए सही उत्तर (b) वृक्षारोपण प्रणाली का विरोध करने के लिए है।
नोट: प्रश्न में 1916 का उल्लेख संभवतः घटनाओं की शुरुआत (जैसे राजकुमार शुक्ल द्वारा गांधीजी से संपर्क) को दर्शाता है, हालाँकि सत्याग्रह स्वयं 1917 में शुरू हुआ। यह ऐतिहासिक संदर्भ में सामान्य है, और उत्तर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।