निर्देश: निम्नलिखित परिच्छेद पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
"संत साहित्य का प्रसार भारतीय संस्कृति के इतिहास में एक अनूठी घटना थी, उस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। अचानक संस्कृति - प्रभुत्तव जो सैकड़ों साल से चला आ रहा था, खत्म होता दिखायी दिया। जनता की संस्कृति, जिसे पुरोहितों ने अबतक दबाया था, पुष्पित और पल्लवित होने लगी। जो लोग खुलकर पुरोहित के खिताफ एक शब्द न कह सकते थे, अब खुलेआम उन्हें चुनौती देने लगे। इसका कारण क्या था। क्या सामंती व्यवस्था के कमजोर हुए बिना यह संभव था ? 16वीं सदी के लगभग शेरशाह और अकबर के शासन काल में उत्तर भारत में सामंती व्यवस्था काफी कमजोर हुई। नहरें खुदने और सड़कें बनने से यातायात में उन्नति हुई; एक तरह की मुद्रा के चलन से व्यापार में सुविधा हुई; राज्य और काश्तकार में सीधा संबंध स्थापित होने से जनपदो का अलगाव कम हुआ; बारूद के इस्तेमाल से केंद्रीय राज्यसत्ता जागीरदारों की स्वच्छन्दता कम करके उन्हें अपने मातहत कर सकी; यूरोप में भारत का व्यापार बहुत बड़े पैमाने पर आगे बढ़ा; उत्तर भारत में शहरों की संख्या ही नहीं बढ़ी, उनकी जनसंख्या और उनका व्यवसायी महत्त्व भी बढ़ा; जगह-जगह अपने अधिकारों के लिए जनता ने संघर्ष किए और इस तरह भी उसकी एकता बढ़ी। इन परिस्थितियों में सामंती ढाँचा जर्जर हुआ। उस ढॉंचे के भी व्यापारियों द्वारा पैदा किए पूंजीवादी संबंध जन्म लेने लगे। पुराने जनपदों का अलगाव काफी दूर हुआ और वेमिलकर एक जाति (नेशन) के रूप में संगठित होने लगे। भक्ति आंदोलन इस जातीय आंदोलन का सांस्कृतिक प्रतिबिम्ब था।"
Q. 'भक्ति आंदोलन जातीय आंदोलन का सांस्कृतिक प्रतिबिम्ब था' से लेखक का आशय है-
निर्देश: निम्नलिखित परिच्छेद पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
"संत साहित्य का प्रसार भारतीय संस्कृति के इतिहास में एक अनूठी घटना थी, उस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। अचानक संस्कृति - प्रभुत्तव जो सैकड़ों साल से चला आ रहा था, खत्म होता दिखायी दिया। जनता की संस्कृति, जिसे पुरोहितों ने अबतक दबाया था, पुष्पित और पल्लवित होने लगी। जो लोग खुलकर पुरोहित के खिताफ एक शब्द न कह सकते थे, अब खुलेआम उन्हें चुनौती देने लगे। इसका कारण क्या था। क्या सामंती व्यवस्था के कमजोर हुए बिना यह संभव था ? 16वीं सदी के लगभग शेरशाह और अकबर के शासन काल में उत्तर भारत में सामंती व्यवस्था काफी कमजोर हुई। नहरें खुदने और सड़कें बनने से यातायात में उन्नति हुई; एक तरह की मुद्रा के चलन से व्यापार में सुविधा हुई; राज्य और काश्तकार में सीधा संबंध स्थापित होने से जनपदो का अलगाव कम हुआ; बारूद के इस्तेमाल से केंद्रीय राज्यसत्ता जागीरदारों की स्वच्छन्दता कम करके उन्हें अपने मातहत कर सकी; यूरोप में भारत का व्यापार बहुत बड़े पैमाने पर आगे बढ़ा; उत्तर भारत में शहरों की संख्या ही नहीं बढ़ी, उनकी जनसंख्या और उनका व्यवसायी महत्त्व भी बढ़ा; जगह-जगह अपने अधिकारों के लिए जनता ने संघर्ष किए और इस तरह भी उसकी एकता बढ़ी। इन परिस्थितियों में सामंती ढाँचा जर्जर हुआ। उस ढॉंचे के भी व्यापारियों द्वारा पैदा किए पूंजीवादी संबंध जन्म लेने लगे। पुराने जनपदों का अलगाव काफी दूर हुआ और वेमिलकर एक जाति (नेशन) के रूप में संगठित होने लगे। भक्ति आंदोलन इस जातीय आंदोलन का सांस्कृतिक प्रतिबिम्ब था।"
Q. ''संंस्कृृति प्रभुत्व'' से लेखक का संकेत किस संस्कृति के प्रभुत्व से है ?
निर्देश: निम्नलिखित परिच्छेद पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
"संत साहित्य का प्रसार भारतीय संस्कृति के इतिहास में एक अनूठी घटना थी, उस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। अचानक संस्कृति - प्रभुत्तव जो सैकड़ों साल से चला आ रहा था, खत्म होता दिखायी दिया। जनता की संस्कृति, जिसे पुरोहितों ने अबतक दबाया था, पुष्पित और पल्लवित होने लगी। जो लोग खुलकर पुरोहित के खिताफ एक शब्द न कह सकते थे, अब खुलेआम उन्हें चुनौती देने लगे। इसका कारण क्या था। क्या सामंती व्यवस्था के कमजोर हुए बिना यह संभव था ? 16वीं सदी के लगभग शेरशाह और अकबर के शासन काल में उत्तर भारत में सामंती व्यवस्था काफी कमजोर हुई। नहरें खुदने और सड़कें बनने से यातायात में उन्नति हुई; एक तरह की मुद्रा के चलन से व्यापार में सुविधा हुई; राज्य और काश्तकार में सीधा संबंध स्थापित होने से जनपदो का अलगाव कम हुआ; बारूद के इस्तेमाल से केंद्रीय राज्यसत्ता जागीरदारों की स्वच्छन्दता कम करके उन्हें अपने मातहत कर सकी; यूरोप में भारत का व्यापार बहुत बड़े पैमाने पर आगे बढ़ा; उत्तर भारत में शहरों की संख्या ही नहीं बढ़ी, उनकी जनसंख्या और उनका व्यवसायी महत्त्व भी बढ़ा; जगह-जगह अपने अधिकारों के लिए जनता ने संघर्ष किए और इस तरह भी उसकी एकता बढ़ी। इन परिस्थितियों में सामंती ढाँचा जर्जर हुआ। उस ढॉंचे के भी व्यापारियों द्वारा पैदा किए पूंजीवादी संबंध जन्म लेने लगे। पुराने जनपदों का अलगाव काफी दूर हुआ और वेमिलकर एक जाति (नेशन) के रूप में संगठित होने लगे। भक्ति आंदोलन इस जातीय आंदोलन का सांस्कृतिक प्रतिबिम्ब था।"
Q. शेरशाह और अकबर के शासन काल के कौन से गुण ने भक्ति आंदोलन को फैलने में मदद पहुॅचायी ?
क्रमशः (पहले अशुद्ध ——बाद मे शुद्ध) वर्तनी युग्म जाँचिये , जो सही न हो उसकी पहचान कीजिये ?
‘कवि’ शब्द का स्त्रीलिंग रूप क्या है ?
"पूत कपूत तो क्यों धन संचय | पूत सपूत तो क्यों धन संचय", प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
निम्नलिखित विकल्पों में से ‘अम्बु’ किसका पर्यायवाची शब्द है ?
'ओछे की प्रति बालू की भीति' का भाव है
'जो व्याकरण जानता है' वाक्यांश के लिए एक शब्द है
"अहा! आप आ गए" वाक्य में अहा शब्द है?
निम्नलिखित में से किस तत्सम - तद्भव का युग्म सही नहीं है?
सूरदास के 'भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली' का सम्पादन करने के साथ-साथ राम चन्द्र जी शुक्ल ने “हिन्दी साहित्य का इतिहास' भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था। यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी। आपके द्वारा लिखा गया यह इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसकी मान्यता आज भी है। शुक्ल जी की भाषा शुद्ध परिष्कृत मानक हिन्दी है। भाषा पर उनका विलक्षण अधिकार है। उनका वाक्य गठन बैजोड़ है, जिसमें से एक शब्द को भी इधर कर पाना सम्भव नहीं है उनकी निबन्ध शैली विषय के अनुरूप बदलती है। शुक्ल जी के निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं। उनमें हृदय और बुद्धि का संतुलित समन्वय है। चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी। शुक्ल जी अपने विचारों को इतनी कुशलता से व्यक्त करते हैं कि पाठकों को उनके निष्कर्षों से सहमत होना ही पड़ता है परिष्कृत प्रांजल भाषा के साथ-साथ उनका शब्द चयन वाक्य विन्यास एवं सादृश्य विधान अनुपम है। उनके निबन्ध 'शैली ही व्यक्तित्व है' के उदाहरण माने जा सकते हैं। इन निबन्धों में शुक्ल जी के व्यक्तित्व की पूरी छाप विद्यमान है।
Q. गद्यांश के अनुसार भ्रमर गीत के रचनाकार कौन है?
सूरदास के 'भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली' का सम्पादन करने के साथ-साथ राम चन्द्र जी शुक्ल ने “हिन्दी साहित्य का इतिहास' भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था। यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी। आपके द्वारा लिखा गया यह इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसकी मान्यता आज भी है। शुक्ल जी की भाषा शुद्ध परिष्कृत मानक हिन्दी है। भाषा पर उनका विलक्षण अधिकार है। उनका वाक्य गठन बैजोड़ है, जिसमें से एक शब्द को भी इधर कर पाना सम्भव नहीं है उनकी निबन्ध शैली विषय के अनुरूप बदलती है। शुक्ल जी के निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं। उनमें हृदय और बुद्धि का संतुलित समन्वय है। चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी। शुक्ल जी अपने विचारों को इतनी कुशलता से व्यक्त करते हैं कि पाठकों को उनके निष्कर्षों से सहमत होना ही पड़ता है परिष्कृत प्रांजल भाषा के साथ-साथ उनका शब्द चयन वाक्य विन्यास एवं सादृश्य विधान अनुपम है। उनके निबन्ध 'शैली ही व्यक्तित्व है' के उदाहरण माने जा सकते हैं। इन निबन्धों में शुक्ल जी के व्यक्तित्व की पूरी छाप विद्यमान है।
Q. चिंतामणि के प्रमुख भागो में संकलित निबन्धों के प्रकार है:
सूरदास के 'भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली' का सम्पादन करने के साथ-साथ राम चन्द्र जी शुक्ल ने “हिन्दी साहित्य का इतिहास' भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था। यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी। आपके द्वारा लिखा गया यह इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसकी मान्यता आज भी है। शुक्ल जी की भाषा शुद्ध परिष्कृत मानक हिन्दी है। भाषा पर उनका विलक्षण अधिकार है। उनका वाक्य गठन बैजोड़ है, जिसमें से एक शब्द को भी इधर कर पाना सम्भव नहीं है उनकी निबन्ध शैली विषय के अनुरूप बदलती है। शुक्ल जी के निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं। उनमें हृदय और बुद्धि का संतुलित समन्वय है। चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी। शुक्ल जी अपने विचारों को इतनी कुशलता से व्यक्त करते हैं कि पाठकों को उनके निष्कर्षों से सहमत होना ही पड़ता है परिष्कृत प्रांजल भाषा के साथ-साथ उनका शब्द चयन वाक्य विन्यास एवं सादृश्य विधान अनुपम है। उनके निबन्ध 'शैली ही व्यक्तित्व है' के उदाहरण माने जा सकते हैं। इन निबन्धों में शुक्ल जी के व्यक्तित्व की पूरी छाप विद्यमान है।
Q. "भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली" का सम्पादन किया:
'बसंत के मौसम में पीले फूल खिलते है' प्रस्तुत वाक्य में विशेषण कौन सा है?
दिए गए विकल्पों में से ‘देवता’ किसका समानार्थी है?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान पूर्वक पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये I
आज विकास मॉडल में मानवीय विकास की जगह आर्थिक विकास को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। अध्ययन बताते हैं कि विस्थापन तथा आजीविका से बेदखली व विकास की वर्तमान सोच का ही नतीजा है कि ताकतवर और भी ज्यादा ताकतवर बनते जा रहे हैं तथा कमजोर पहले से कहीं ज्यादा अभावग्रस्त होकर और भी हाशिए पर चले जाते हैं। यही वजह है कि विस्थापन के अध्ययन में ‘विकास के प्रतिमान’ केंद्र में आ जाते हैं। लोगों को उनके संसाधनों से अलग करने की प्रक्रिया औपनिवेशिक काल में ही शुरू हो गई थी और आजादी के बाद योजनाबद्ध विकास में यह और भी ज्यादा बढ़ी। यही नहीं, विस्थापन और अभाव की प्रकृति में भी बदलाव आया, पहले महज प्रक्रिया आधारित दखल से बढ़कर यह भूमि और उनकी आजीविका के सीधे नुकसान तक पहुँच गई। धीरे-धीरे इसकी तीव्रता बढ़ी लेकिन जागरूकता और पुनर्वास दोनों ही क्षेत्रों में कमजोर रही। इसका मुख्य कारण यह है कि विकास के प्रतिमान औपनिवेशिक देशों से लिए किए गए और स्वतंत्र भारत के निर्णयकारी लोगों द्वारा जस के तस लागू कर दिए गए। योजनाकारों ने ये अहम निर्णय ‘राष्ट्र निर्माण’ के सिद्धान्त के आधार पर लिए। इसमें यह माना गया कि कुछ लोगों को विकास की क़ीमत जरूर चुकानी होगी लेकिन यह इस मायने में लाभप्रद भी होगा कि विकास के फायदे सभी तक पहुँच जाएंगे। आधुनिकीकरण के नाम पर पूँजीपतियों ने अपना निवेश किया और यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों पर ज़ोर आजमाए। बहुत ही कम लोगों ने महसूस किया था कि उपनिवेशवादी देश अपने उपनिवेशों का शोषण कर अमीर बनते जा रहे हैं। इसीलिए गांधीजी ने औद्योगिकीकरण का नहीं, उद्योगवाद का विरोध किया था। वे ऐसे विकास के विरोधी थे जो उस तकनीक और उपभोग की राह पर चलता था जो बहुमत की पहुँच से बहुत दूर था।
Q. विकास के प्रतिमान किसके केंद्र में आ जाते हैं?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान पूर्वक पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये I
आज विकास मॉडल में मानवीय विकास की जगह आर्थिक विकास को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। अध्ययन बताते हैं कि विस्थापन तथा आजीविका से बेदखली व विकास की वर्तमान सोच का ही नतीजा है कि ताकतवर और भी ज्यादा ताकतवर बनते जा रहे हैं तथा कमजोर पहले से कहीं ज्यादा अभावग्रस्त होकर और भी हाशिए पर चले जाते हैं। यही वजह है कि विस्थापन के अध्ययन में ‘विकास के प्रतिमान’ केंद्र में आ जाते हैं। लोगों को उनके संसाधनों से अलग करने की प्रक्रिया औपनिवेशिक काल में ही शुरू हो गई थी और आजादी के बाद योजनाबद्ध विकास में यह और भी ज्यादा बढ़ी। यही नहीं, विस्थापन और अभाव की प्रकृति में भी बदलाव आया, पहले महज प्रक्रिया आधारित दखल से बढ़कर यह भूमि और उनकी आजीविका के सीधे नुकसान तक पहुँच गई। धीरे-धीरे इसकी तीव्रता बढ़ी लेकिन जागरूकता और पुनर्वास दोनों ही क्षेत्रों में कमजोर रही। इसका मुख्य कारण यह है कि विकास के प्रतिमान औपनिवेशिक देशों से लिए किए गए और स्वतंत्र भारत के निर्णयकारी लोगों द्वारा जस के तस लागू कर दिए गए। योजनाकारों ने ये अहम निर्णय ‘राष्ट्र निर्माण’ के सिद्धान्त के आधार पर लिए। इसमें यह माना गया कि कुछ लोगों को विकास की क़ीमत जरूर चुकानी होगी लेकिन यह इस मायने में लाभप्रद भी होगा कि विकास के फायदे सभी तक पहुँच जाएंगे। आधुनिकीकरण के नाम पर पूँजीपतियों ने अपना निवेश किया और यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों पर ज़ोर आजमाए। बहुत ही कम लोगों ने महसूस किया था कि उपनिवेशवादी देश अपने उपनिवेशों का शोषण कर अमीर बनते जा रहे हैं। इसीलिए गांधीजी ने औद्योगिकीकरण का नहीं, उद्योगवाद का विरोध किया था। वे ऐसे विकास के विरोधी थे जो उस तकनीक और उपभोग की राह पर चलता था जो बहुमत की पहुँच से बहुत दूर था।
Q. गांधीजी ने किसका विरोध किया?
दिए गए विकल्पों में से शुद्ध वर्तनी वाला शब्द कौन-सा है?
दिए गए विकल्पों में से ‘कलाकार’ शब्द में प्रत्यय है।
दिए गए विकल्पों में से ‘मानव’ शब्द से _______विशेषण बनेगा।
‘तुम काम कर रहे हो कि समय बर्बाद कर रहे हो।’ इस वाक्य में रेखांकित वाक्यांश के लिए उचित मुहावरा क्या है।
‘अनुचर’ का पर्यायवाची _____ नहीं है I