’गृहिणी ने गरीबों को कपड़े दिए।’ वाक्य में कौनसा कारक है?
मेरा खिलौना टूटा है। वाक्य में सर्वनाम है-
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये।
स्वामी विवेकानन्द जी एक ऐसे सन्त थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत था। उनके सारे चिन्तन का केन्द्रबिन्दु राष्ट्र था। अपने राष्ट्र की प्रगति एवं उत्थान के लिए जितना चिन्तन एवं कर्म इस तेजस्वी संन्यासी ने किया उतना पूर्ण समर्पित राजनीतिज्ञों ने भी सम्भवत: नहीं किया। अन्तर यह है कि इन्होंने सीधे राजनीतिक धारा में भाग नहीं लिया किन्तु इनके कर्म एवं चिन्तन की प्रेरणा से हजारों ऐसे कार्यकर्ता तैयार हुए जिन्होंने राष्ट्र-रथ को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
इन्होंने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया था बल्कि करोड़ों देशवासियों के उत्थान को ही अपना जीवन-लक्ष्य बनाया। राष्ट्र के दीन-हीन जनों की सेवा को ही वे ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे। सत्य की अनवरत खोज उन्हें दक्षिणेश्वर के सन्त श्री रामकृष्ण परमहंस तक ले गई और परमहंस ही वह सच्चे गुरु सिद्ध हुए जिनका सान्निध्य पाकर इनकी ज्ञान-पिपासा शान्त हुई। उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी जी जो कार्य कर गए, वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। तीस वर्ष की आयु में इन्होंने शिकागों, अमेरिका के विश्व धर्म-सम्मेलन में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधत्व किया और इसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई। तीन वर्ष तक वे अमेरिका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्व-ज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। ‘‘अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा’’ यह स्वामी जी का दृढ़ विश्वास था।
वे केवल सन्त ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने आजादी की लड़ाई में योगदान देने के लिए देशवासियों का आह्वान किया और जनता ने स्वामी जी की पुकार का उत्तर दिया। गाँधी जी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला था, वह स्वामी जी के आह्वान का ही फल था। उन्नीसवीं सदी के आखिरी दौर में वे लगभग सशक्त क्रान्ति के जरिए भी देश को आजाद कराना चाहते थे परन्तु उन्हें जल्द ही यह विश्वास हो गया था कि परिस्थितियाँ उन इरादों के लिए अभी परिपक्व नहीं हैं। इसके बाद ही उन्होंने एक परिव्राजक के रूप में भारत और दुनिया को खंगाल डाला।
स्वमीजी इस बात से आश्वस्त थे कि धरती की गोद में यदि कोई ऐसा देश है जिसने मनुष्य की हर तरह की बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिशें की हैं, तो वह भारत ही हैं। उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म के सर्वश्रेष्ठ चिन्तकों के विचारों का निचोड़ पूरी दुनिया के लिए अब भी आश्चर्य का विषय है। स्वामी जी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को ज़रूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिए। हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी बेसख्त ज़रूरत है।
Q. निम्नलिखित में से कौन-सा स्वामी विवेकान्द जी के चिन्तन का सबसे प्रमुख बिन्दु था?
‘राकेश मिठाई खाता है’ इस वाक्य में कर्म कौन है ?
'गंगोर्मि' शब्द का संधि विच्छेद क्या होगा?
निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द तत्सम है?
दिए गए विकल्पों में से औपचारिक का विलोम क्या होगा?
दिए गए शब्दों में से शुद्ध वर्तनी का चयन कीजिए।
'रमेश और सुरेश की आपस में दोस्ती है।' में किस प्रकार की संज्ञा है?
‘दुर्दमनीय’ शब्द में कौन-सा उपसर्ग है?
डॉ ० कलाम का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम है। वह दक्षिण भारत के एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए। उनके पिता रामेश्वरम में किश्ती चलाया करते थे। उन्हें बचपन में अनेक आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। उनके पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। एक बार उनकी कॉलेज की फीस भरने के लिए उनकी बहिन ने अपने गहने तक बेंच दिए थे। वह अपने परिवार के पहले सदस्य थे, जिसने कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की थी। वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जो भारत देश के ‘मिसाइल मेन’ कहलाये। वह देश के बच्चों को यही सन्देश देना चाहते थे ‘असफलताओं से कभी मत घबराओं अपनी सोच से नए राष्ट्र का निर्माण करो’।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
Q. उपर्युक्त गद्यांश में किसकी बात कही गयी है?
डॉ ० कलाम का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम है। वह दक्षिण भारत के एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए। उनके पिता रामेश्वरम में किश्ती चलाया करते थे। उन्हें बचपन में अनेक आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। उनके पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। एक बार उनकी कॉलेज की फीस भरने के लिए उनकी बहिन ने अपने गहने तक बेंच दिए थे। वह अपने परिवार के पहले सदस्य थे, जिसने कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की थी। वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जो भारत देश के ‘मिसाइल मेन’ कहलाये। वह देश के बच्चों को यही सन्देश देना चाहते थे ‘असफलताओं से कभी मत घबराओं अपनी सोच से नए राष्ट्र का निर्माण करो’।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
Q. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या है?
डॉ ० कलाम का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम है। वह दक्षिण भारत के एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए। उनके पिता रामेश्वरम में किश्ती चलाया करते थे। उन्हें बचपन में अनेक आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। उनके पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। एक बार उनकी कॉलेज की फीस भरने के लिए उनकी बहिन ने अपने गहने तक बेंच दिए थे। वह अपने परिवार के पहले सदस्य थे, जिसने कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की थी। वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जो भारत देश के ‘मिसाइल मेन’ कहलाये। वह देश के बच्चों को यही सन्देश देना चाहते थे ‘असफलताओं से कभी मत घबराओं अपनी सोच से नए राष्ट्र का निर्माण करो’।
उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
Q. राष्ट्र - निर्माण का आशय क्या है ?
मोहन अच्छा लड़का है, वाक्य में व्यक्तिवाचक संज्ञा है:
‘घात लगाना’ मुहावरे का सही अर्थ क्या है?
इनमें से कौन-सा भाववाचक संज्ञा शब्द सर्वनाम से बना है?
निम्न में से अशुद्ध वर्तनी वाला विकल्प चुनिए।
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उतर दीजिये:
जन्मजात लोकतंत्रवादी वह होता है, जो जन्म से ही अनुशासन का पालन करने वाला हो। लोकतंत्र स्वाभाविक रूप में उसी को प्राप्त होता है, जो साधारण रूप में अपने को मानवीय तथा दैवीय सभी नियमों का स्वेच्छापूर्वक पालन करने का अभ्यस्त बना ले। जो लोग लोकतंत्र के इच्छुक हैं उन्हें चाहिए कि पहले वे लोकतंत्र की इस कसौटी पर अपने को परख लें। इसके अलावा, लोकतंत्रवादी को नि:स्वार्थ भी होना चाहिए। उसे अपनी या अपने दल की दृष्टि से नहीं बल्कि एकमात्र लोकतंत्र की ही दृष्टि से सब-कुछ सोचना चाहिए। तभी वह सविनय अवज्ञा का अधिकारी हो सकता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मैं कदर करता हूँ, लेकिन आपको यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य मूलत: एक सामाजिक प्राणी ही है। सामाजिक प्रगति की आवश्यकताओं के अनुसार अपने व्यक्तित्व को ढालना सीखकर ही वह वर्तमन स्थिति तक पहुँचा है। अबाध व्यक्तिवाद वन्य पशुओं का नियम है। हमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक संयम के बीच समन्वय करना सीखना है। समस्त समाज के हित के खातिर सामाजिक संयम के आगे स्वेच्छापूर्वक सिर झुकाने से व्यक्ति और समाज, जिसका कि वह एक सदस्य है, दोनों का ही कल्याण होता है।
Q. प्रस्तुत गद्यांश में किस प्रकार की स्वतंत्रता की बात की गई है?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उतर दीजिये:
जन्मजात लोकतंत्रवादी वह होता है, जो जन्म से ही अनुशासन का पालन करने वाला हो। लोकतंत्र स्वाभाविक रूप में उसी को प्राप्त होता है, जो साधारण रूप में अपने को मानवीय तथा दैवीय सभी नियमों का स्वेच्छापूर्वक पालन करने का अभ्यस्त बना ले। जो लोग लोकतंत्र के इच्छुक हैं उन्हें चाहिए कि पहले वे लोकतंत्र की इस कसौटी पर अपने को परख लें। इसके अलावा, लोकतंत्रवादी को नि:स्वार्थ भी होना चाहिए। उसे अपनी या अपने दल की दृष्टि से नहीं बल्कि एकमात्र लोकतंत्र की ही दृष्टि से सब-कुछ सोचना चाहिए। तभी वह सविनय अवज्ञा का अधिकारी हो सकता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मैं कदर करता हूँ, लेकिन आपको यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य मूलत: एक सामाजिक प्राणी ही है। सामाजिक प्रगति की आवश्यकताओं के अनुसार अपने व्यक्तित्व को ढालना सीखकर ही वह वर्तमन स्थिति तक पहुँचा है। अबाध व्यक्तिवाद वन्य पशुओं का नियम है। हमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक संयम के बीच समन्वय करना सीखना है। समस्त समाज के हित के खातिर सामाजिक संयम के आगे स्वेच्छापूर्वक सिर झुकाने से व्यक्ति और समाज, जिसका कि वह एक सदस्य है, दोनों का ही कल्याण होता है।
Q. लोकतंत्र में एक लोकतंत्रवादी को कैसा होना चाहिए?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उतर दीजिये:
जन्मजात लोकतंत्रवादी वह होता है, जो जन्म से ही अनुशासन का पालन करने वाला हो। लोकतंत्र स्वाभाविक रूप में उसी को प्राप्त होता है, जो साधारण रूप में अपने को मानवीय तथा दैवीय सभी नियमों का स्वेच्छापूर्वक पालन करने का अभ्यस्त बना ले। जो लोग लोकतंत्र के इच्छुक हैं उन्हें चाहिए कि पहले वे लोकतंत्र की इस कसौटी पर अपने को परख लें। इसके अलावा, लोकतंत्रवादी को नि:स्वार्थ भी होना चाहिए। उसे अपनी या अपने दल की दृष्टि से नहीं बल्कि एकमात्र लोकतंत्र की ही दृष्टि से सब-कुछ सोचना चाहिए। तभी वह सविनय अवज्ञा का अधिकारी हो सकता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मैं कदर करता हूँ, लेकिन आपको यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य मूलत: एक सामाजिक प्राणी ही है। सामाजिक प्रगति की आवश्यकताओं के अनुसार अपने व्यक्तित्व को ढालना सीखकर ही वह वर्तमन स्थिति तक पहुँचा है। अबाध व्यक्तिवाद वन्य पशुओं का नियम है। हमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक संयम के बीच समन्वय करना सीखना है। समस्त समाज के हित के खातिर सामाजिक संयम के आगे स्वेच्छापूर्वक सिर झुकाने से व्यक्ति और समाज, जिसका कि वह एक सदस्य है, दोनों का ही कल्याण होता है।
Q. जन्मजात लोकतंत्रवादी वह होता है, जो जन्म से ही ________का पालन करने वाला हो?
‘माला फेरत जुग भया, फिरा न मनका फेर। कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।‘ काव्य पंक्ति में कौन सा अलंकार है?