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Test: अपठित गद्यांश - Class 8 MCQ


Test Description

10 Questions MCQ Test - Test: अपठित गद्यांश

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Test: अपठित गद्यांश - Question 1

संसार में शांति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद चैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने धर्म के माध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ का निर्देश किया, किंतु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआ उतना और किसी कारण से नहीं। पर धीरे-धीरे मनुष्य अपनी शुभ बुधि से धर्म के कारण होने वाले अनर्थ को समझने लग गया है। भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वासजनित भेदभाव अब धरती से मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति तथा संचार के साधनों में वृद्धि के कारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं। इसके कारण मानव-मानव में घृणा, ईष्र्या वैमनस्य कटुता में कमी नहीं आई। मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है शिक्षा का व्यापक प्रसार।

प्रश्न: मनुष्य अधर्म के कारण होने वाले अनर्थ को कैसे समझने लगा है?

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 1

प्रश्न में पूछा गया है कि मनुष्य अधर्म के कारण होने वाले अनर्थ को कैसे समझने लगा है। दिए गए पैरे में यह उल्लेख किया गया है कि मनुष्य धीरे-धीरे अपनी शुभ बुद्धि से धर्म के कारण होने वाले अनर्थ को समझने लगा है। इसका मतलब है कि मनुष्य ने अपनी सोच और विवेक का उपयोग करते हुए धर्म के नाम पर होने वाले नुकसान को पहचान लिया है।

इसलिए, सही उत्तर है "अपनी शुभ बुद्धि से", जो विकल्प C में दिया गया है।

Test: अपठित गद्यांश - Question 2

संसार में शांति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद चैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने धर्म के माध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ का निर्देश किया, किंतु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआ उतना और किसी कारण से नहीं। पर धीरे-धीरे मनुष्य अपनी शुभ बुधि से धर्म के कारण होने वाले अनर्थ को समझने लग गया है। भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वासजनित भेदभाव अब धरती से मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति तथा संचार के साधनों में वृद्धि के कारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं। इसके कारण मानव-मानव में घृणा, ईष्र्या वैमनस्य कटुता में कमी नहीं आई। मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है शिक्षा का व्यापक प्रसार।

प्रश्न: विज्ञान की प्रगति और संचार के साधनों की वृद्धि का परिणाम क्या हुआ है?

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 2

प्रश्न में पूछा गया है कि विज्ञान की प्रगति और संचार के साधनों की वृद्धि का परिणाम क्या हुआ है। पैरे में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विज्ञान की प्रगति और संचार के साधनों में वृद्धि के कारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं। इसका मतलब है कि इन तकनीकी और वैज्ञानिक उन्नतियों ने देशों के बीच संचार और संपर्क को आसान बना दिया है, जिससे उनकी भौगोलिक दूरियाँ कम हो गई हैं।

इसलिए, सही उत्तर है "देशों की दूरियाँ कम हुई हैं", जो विकल्प A में दिया गया है।

Test: अपठित गद्यांश - Question 3

संसार में शांति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद चैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने धर्म के माध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ का निर्देश किया, किंतु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआ उतना और किसी कारण से नहीं। पर धीरे-धीरे मनुष्य अपनी शुभ बुधि से धर्म के कारण होने वाले अनर्थ को समझने लग गया है। भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वासजनित भेदभाव अब धरती से मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति तथा संचार के साधनों में वृद्धि के कारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं। इसके कारण मानव-मानव में घृणा, ईष्र्या वैमनस्य कटुता में कमी नहीं आई। मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है शिक्षा का व्यापक प्रसार।

प्रश्न: देश में आज भी कौन-सी समस्या है?

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 3

प्रश्न में पूछा गया है कि देश में आज भी कौन-सी समस्या है। पैरे में यह उल्लेख किया गया है कि विज्ञान और संचार साधनों की प्रगति के बावजूद, मानव-मानव के बीच घृणा, ईर्ष्या, वैमनस्यता और कटुता में कमी नहीं आई है। इसके कारण यह संकेत मिलता है कि समस्या सांप्रदायिकता की है, जो समाज में धार्मिक भेदभाव और घृणा उत्पन्न करती है।

इसलिए, सही उत्तर है "सांप्रदायिकता की", जो विकल्प C में दिया गया है।

Test: अपठित गद्यांश - Question 4

संसार में शांति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद चैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने धर्म के माध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ का निर्देश किया, किंतु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआ उतना और किसी कारण से नहीं। पर धीरे-धीरे मनुष्य अपनी शुभ बुधि से धर्म के कारण होने वाले अनर्थ को समझने लग गया है। भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वासजनित भेदभाव अब धरती से मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति तथा संचार के साधनों में वृद्धि के कारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं। इसके कारण मानव-मानव में घृणा, ईष्र्या वैमनस्य कटुता में कमी नहीं आई। मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है शिक्षा का व्यापक प्रसार।

प्रश्न: किस कारण से देश में मानव के बीच, घृणा, ईष्र्या, वैमनस्यता एवं कटुता में कमी नहीं आई है?

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 4

प्रश्न में पूछा गया है कि किस कारण से देश में मानव के बीच घृणा, ईष्र्या, वैमनस्यता और कटुता में कमी नहीं आई है। पैरे में यह बताया गया है कि विज्ञान की प्रगति और संचार के साधनों में वृद्धि के बावजूद, मानव-मानव के बीच घृणा, ईष्र्या, वैमनस्यता और कटुता में कमी नहीं आई है। इसका कारण सांप्रदायिकता को बताया गया है, जो समाज में धार्मिक और जातीय भेदभाव उत्पन्न करती है।

इसलिए, सही उत्तर है "सांप्रदायिकता से", जो विकल्प B में दिया गया है।

Test: अपठित गद्यांश - Question 5

संसार में शांति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद चैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने धर्म के माध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ का निर्देश किया, किंतु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआ उतना और किसी कारण से नहीं। पर धीरे-धीरे मनुष्य अपनी शुभ बुधि से धर्म के कारण होने वाले अनर्थ को समझने लग गया है। भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वासजनित भेदभाव अब धरती से मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति तथा संचार के साधनों में वृद्धि के कारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं। इसके कारण मानव-मानव में घृणा, ईष्र्या वैमनस्य कटुता में कमी नहीं आई। मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है शिक्षा का व्यापक प्रसार।

प्रश्न: मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है?

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 5

प्रश्न में पूछा गया है कि मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन क्या है। पैरे में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन शिक्षा का व्यापक प्रसार है।

इसलिए, सही उत्तर है "शिक्षा का व्यापक प्रसार", जो विकल्प A में दिया गया है।

Test: अपठित गद्यांश - Question 6

मनुष्य को चाहिए कि संतुलित रहकर अति के मार्गों का त्यागकर मध्यम मार्ग को अपनाए। अपने सामर्थ्य की पहचान कर उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बिताना एक कठिन कला है। सामान्य पुरुष अपने अहं के वशीभूत होकर अपना मूल्यांकन अधिक कर बैठता है और इसी के फलस्वरूप वह उन कार्यों में हाथ लगा देता है जो उसकी शक्ति में नहीं हैं। इसलिए सामर्थ्य से अधिक व्यय करने वालों के लिए कहा जाता है कि ‘तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर’। उन्हीं के लिए कहा गया है कि अपने सामर्थ्य , को विचार कर उसके अनुरूप कार्य करना और व्यर्थ के दिखावे में स्वयं को न भुला देना एक कठिन साधना तो अवश्य है, पर सबके लिए यही मार्ग अनुकरणीय है।

प्रश्न: अति का मार्ग क्या होता है?

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 6

प्रश्न में पूछा गया है कि अति का मार्ग क्या होता है। पैरे में यह बताया गया है कि मनुष्य को संतुलित रहकर अति के मार्गों का त्याग कर मध्यम मार्ग को अपनाना चाहिए। अति का मार्ग असंतुलित और अमर्यादित होता है, जिसमें व्यक्ति अपनी सीमाओं को लांघकर अधिक काम करने की कोशिश करता है, जो कि उसके सामर्थ्य से बाहर होता है।

इसलिए, सही उत्तर है "अमर्यादित मार्ग", जो विकल्प B में दिया गया है।

Test: अपठित गद्यांश - Question 7

मनुष्य को चाहिए कि संतुलित रहकर अति के मार्गों का त्यागकर मध्यम मार्ग को अपनाए। अपने सामर्थ्य की पहचान कर उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बिताना एक कठिन कला है। सामान्य पुरुष अपने अहं के वशीभूत होकर अपना मूल्यांकन अधिक कर बैठता है और इसी के फलस्वरूप वह उन कार्यों में हाथ लगा देता है जो उसकी शक्ति में नहीं हैं। इसलिए सामर्थ्य से अधिक व्यय करने वालों के लिए कहा जाता है कि ‘तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर’। उन्हीं के लिए कहा गया है कि अपने सामर्थ्य , को विचार कर उसके अनुरूप कार्य करना और व्यर्थ के दिखावे में स्वयं को न भुला देना एक कठिन साधना तो अवश्य है, पर सबके लिए यही मार्ग अनुकरणीय है।

प्रश्न:  कठिन कला क्या है ?

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 7

प्रश्न में पूछा गया है कि कठिन कला क्या है। पैरे में यह बताया गया है कि अपने सामर्थ्य की पहचान कर उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बिताना एक कठिन कला है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को अपनी शक्तियों और सीमाओं का ठीक से मूल्यांकन करना चाहिए और उसी के अनुसार जीवन जीना चाहिए, न कि अपनी क्षमता से बाहर जाकर कार्य करना।

इसलिए, सही उत्तर है "सामर्थ्य की सीमा में जीवन बिताना", जो विकल्प D में दिया गया है।

Test: अपठित गद्यांश - Question 8

मनुष्य को चाहिए कि संतुलित रहकर अति के मार्गों का त्यागकर मध्यम मार्ग को अपनाए। अपने सामर्थ्य की पहचान कर उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बिताना एक कठिन कला है। सामान्य पुरुष अपने अहं के वशीभूत होकर अपना मूल्यांकन अधिक कर बैठता है और इसी के फलस्वरूप वह उन कार्यों में हाथ लगा देता है जो उसकी शक्ति में नहीं हैं। इसलिए सामर्थ्य से अधिक व्यय करने वालों के लिए कहा जाता है कि ‘तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर’। उन्हीं के लिए कहा गया है कि अपने सामर्थ्य , को विचार कर उसके अनुरूप कार्य करना और व्यर्थ के दिखावे में स्वयं को न भुला देना एक कठिन साधना तो अवश्य है, पर सबके लिए यही मार्ग अनुकरणीय है।

प्रश्न. मनुष्य अहं के वशीभूत होकर

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 8

“नगण्य” शब्द का सही अर्थ है अपर्याप्त

Test: अपठित गद्यांश - Question 9

मनुष्य को चाहिए कि संतुलित रहकर अति के मार्गों का त्यागकर मध्यम मार्ग को अपनाए। अपने सामर्थ्य की पहचान कर उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बिताना एक कठिन कला है। सामान्य पुरुष अपने अहं के वशीभूत होकर अपना मूल्यांकन अधिक कर बैठता है और इसी के फलस्वरूप वह उन कार्यों में हाथ लगा देता है जो उसकी शक्ति में नहीं हैं। इसलिए सामर्थ्य से अधिक व्यय करने वालों के लिए कहा जाता है कि ‘तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर’। उन्हीं के लिए कहा गया है कि अपने सामर्थ्य , को विचार कर उसके अनुरूप कार्य करना और व्यर्थ के दिखावे में स्वयं को न भुला देना एक कठिन साधना तो अवश्य है, पर सबके लिए यही मार्ग अनुकरणीय है।

प्रश्न: “तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर’ का आशय है

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 9

प्रश्न में पूछा गया है कि "तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर" का आशय क्या है। इस वाक्य का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी क्षमता और सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति की क्षमता सीमित है, तो उसे अपनी सीमाओं के भीतर रहकर ही काम करना चाहिए, न कि अपनी आय या सामर्थ्य से अधिक काम करने की कोशिश करनी चाहिए।

इसलिए, सही उत्तर है "सामर्थ्य के अनुसार कार्य करना", जो विकल्प A में दिया गया है।

Test: अपठित गद्यांश - Question 10

मनुष्य को चाहिए कि संतुलित रहकर अति के मार्गों का त्यागकर मध्यम मार्ग को अपनाए। अपने सामर्थ्य की पहचान कर उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बिताना एक कठिन कला है। सामान्य पुरुष अपने अहं के वशीभूत होकर अपना मूल्यांकन अधिक कर बैठता है और इसी के फलस्वरूप वह उन कार्यों में हाथ लगा देता है जो उसकी शक्ति में नहीं हैं। इसलिए सामर्थ्य से अधिक व्यय करने वालों के लिए कहा जाता है कि ‘तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर’। उन्हीं के लिए कहा गया है कि अपने सामर्थ्य , को विचार कर उसके अनुरूप कार्य करना और व्यर्थ के दिखावे में स्वयं को न भुला देना एक कठिन साधना तो अवश्य है, पर सबके लिए यही मार्ग अनुकरणीय है।

प्रश्न: प्रस्तुत गद्यांश का शीर्षक हो सकता है 

Detailed Solution for Test: अपठित गद्यांश - Question 10

प्रस्तुत गद्यांश में यह बताया गया है कि मनुष्य को अपने सामर्थ्य की पहचान करके उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बिताना चाहिए। साथ ही, यह भी बताया गया है कि व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए और व्यर्थ के दिखावे से बचना चाहिए। गद्यांश का मुख्य संदेश यही है कि व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार कार्य करना चाहिए, न कि अपनी क्षमता से बाहर जाकर कार्य करने का प्रयास करना चाहिए।

इसलिए, सही उत्तर है "सामर्थ्य के अनुसार कार्य करना", जो विकल्प D में दिया गया है।

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