निम्न में से कौन सा परीक्षण की वैधता को मापने हेतु मानदंड है?
(A) संरचना
(B) स्थिरता
(C) मापदंड
(D) विषय वस्तु
किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।
Q. ट्रेन में बिकने वाली खाने पीने वाली ज्यादातर चीजो की गुणवत्ता कैसी होती है?
किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।
Q. भारत में उपभोक्ता आंदोलन किस दशक में शुरू हुए थे?
किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।
Q. विक्रेता को अपने ग्राहकों को क्या कई देने होंगे?
संश्लेषण विधि में सीखने की प्रक्रिया है:
डिसग्राफिया से ग्रसित बच्चे की पहचान है:
किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।
Q. हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से क्या आया है?
अंग्रेजी भाषा में उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य है/हैं:
किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।
Q. किसी चीज से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है?
निर्देश: दिए गए पद्यांश को ध्यानपर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
मुक्त करो नारी को, मानव !
चिर बंदिनी नारी को,
युग-युग की निर्मम कारा से
जननी, सखी, प्यारी को !
छिन्न करो सब स्वर्ण-पाश ।
उसके कोमल तन-मन के,
वे आभूषण नहीं, दाम
उसके बंदी जीवन के !
उसे मानवी का गौरव दे
पूर्ण सत्व दो नूतन,
उसका मुख जग का प्रकाश हो,
उठे अंध अवगुंठन।
मुक्त करो जीवन–संगिनी को,
जननी देवी को आदृत
जगजीवन में मानव के संग
हो मानवी प्रतिष्ठित !
प्रेम–स्वर्ग हो धरा, मधुर
नारी महिमा से मंडित,
नारी-मुख की नव किरणों से
युग–प्रभात हो ज्योतित !
Q. 'अवगुंठन' शब्द का अर्थ है:
नाटक शिक्षण खेल-खेल में भाषा कौशल को सीखने का माध्यम है। नाटक शिक्षण:
निर्देश: दिए गए पद्यांश को पढकर निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प छाँटिएI
पूछे सिकता-कण से हिमपति!
तेरा वह राजस्थान कहाँ?
वन-वन स्वतंत्रता-दीप लिये
फिरनेवाला बलवान कहाँ?
तू पूछ, अवध से, राम कहाँ?
वृंदा! बोलो, घनश्याम कहाँ?
ओ मगध! कहाँ मेरे अशोक?
वह चंद्रगुप्त बलधाम कहाँ ?
पैरों पर ही है पड़ी हुई
मिथिला भिखारिणी सुकुमारी,
तू पूछ, कहाँ इसने खोयीं
अपनी अनंत निधियाँ सारी?
री कपिलवस्तु! कह, बुद्धदेव
के वे मंगल-उपदेश कहाँ?
तिब्बत, इरान, जापान, चीन
तक गये हुए संदेश कहाँ?
वैशाली के भग्नावशेष से
पूछ लिच्छवी-शान कहाँ?
ओ री उदास गंडकी! बता
विद्यापति कवि के गान कहाँ?
तू तरुण देश से पूछ अरे,
गूँजा कैसा यह ध्वंस-राग?
अंबुधि-अंतस्तल-बीच छिपी
यह सुलग रही है कौन आग?
प्राची के प्रांगण-बीच देख,
जल रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल,
Q. प्राची शब्द का अर्थ है:
किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।
Q. किसी उत्पाद के पैक पर क्या लिखना अनिवार्य होता है?
निर्देश: दिए गए पद्यांश को पढकर निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प छाँटिएI
पूछे सिकता-कण से हिमपति!
तेरा वह राजस्थान कहाँ?
वन-वन स्वतंत्रता-दीप लिये
फिरनेवाला बलवान कहाँ?
तू पूछ, अवध से, राम कहाँ?
वृंदा! बोलो, घनश्याम कहाँ?
ओ मगध! कहाँ मेरे अशोक?
वह चंद्रगुप्त बलधाम कहाँ ?
पैरों पर ही है पड़ी हुई
मिथिला भिखारिणी सुकुमारी,
तू पूछ, कहाँ इसने खोयीं
अपनी अनंत निधियाँ सारी?
री कपिलवस्तु! कह, बुद्धदेव
के वे मंगल-उपदेश कहाँ?
तिब्बत, इरान, जापान, चीन
तक गये हुए संदेश कहाँ?
वैशाली के भग्नावशेष से
पूछ लिच्छवी-शान कहाँ?
ओ री उदास गंडकी! बता
विद्यापति कवि के गान कहाँ?
तू तरुण देश से पूछ अरे,
गूँजा कैसा यह ध्वंस-राग?
अंबुधि-अंतस्तल-बीच छिपी
यह सुलग रही है कौन आग?
प्राची के प्रांगण-बीच देख,
जल रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल,
Q. 'तरुण देश' से क्या अभिप्राय है?
किसी उत्पाद का इस्तेमाल करके उपभोक्ता भी बाजार में भागीदार बन जाता है। यदि उपभोक्ता नही होंगे तो किसी भी कंपनी का अस्तित्व नही होगा। जहाँ तक उपभोक्ता के अधिकार का सवाल है तो उपभोक्ता की स्थिति दयनीय ही कही जायेगी। इसको समझने के लिए आप वैसे दुकानदार का उदाहरण ले सकते है जो कम वजन तौलता है या वह कम्पनी जो अपने पैक पर झूठे वादे करती है। ज्यादातर मिठाई बेचने वाले कच्चे माल में मिलावट करके लड्डू या बर्फी बनाते है। कुछ वर्षो पहले मिलावटी सरसों तेल से फैलने वाली ड्रॉप्सी नाम की बीमारी आपको याद होगी। यदि आपने कभी ट्रेन से सफर किया होगा तो आपको पता होगा कि ट्रेन में बिकने वाले खाने पीने की ज्यादातर चीजे घटिया होती है। यहाँ तक की पैंट्री में मिलने वाला खाना भी घटिया क्वालिटी का होता है। भारत में मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की पुरानी परम्परा रही है। 1960 के दशक से भारत में उपभोक्ता आन्दोलन शुरू हुए थे। 1970 के दशक तक उपभोक्ता आन्दोलन केवल आर्टिकल लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था। लेकिन हाल के वर्षो में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में तेजी से उछाल आया है।
विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से लोगो में इतनी अधिक असंतुष्टि थी कि उपभोक्ताओं के पास अपनी आवाज उठाने के सिवा और कोई रास्ता नही बचा था। कई वर्षो के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को इसकी खैर लेने के लिए बाधित होना पड़ा और इसकी परिणति के रूप में 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (कोपरा) को लागू किया गया। एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून है जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते है। सही सूचना से उपभोक्ता को किसी भी उत्पाद को खरीदने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। किसी भी उत्पाद के पैक पर खुदरा मूल्य लिखना भी अनिवार्य होता है। यदि कूई दुकानदार एमआरपी से अधिक चार्ज करता है तो उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। कोई भी विक्रेता केवल एक ही ब्रांड पेश नही कर सकता है। उसे अपने ग्राहक को कई विकल्प देने होगे। इस अधिकार को मोनोपोली ट्रेंड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।
Q. अधिकारों के मामले में भारतीय उपभोक्ताओं की स्थिति कैसी है?
Read the sentence:
I can recall those happy events.
The words underlined show a/an
"There are four men": Which of the following aspect of teaching language will help you to understand the usage of "are" in the statement?
A reading activity, where students focus on phonemic sounds, pronunciation and intonation, can be used to assess
Which of the following tense forms is used in the following sentence?
By the end of next year, I will have been 50 years old.
Direction: Read the passage given below and answer the questions that follow by selecting the most appropriate options:
(1) We embarked along the sapphire route along National Highway 17 for a sun-soaked holiday. This route along Karnataka’s Karavali coast is India’s best beach and temple country. Flanked by the soaring Western Ghats on the east and the Arabian Sea on the west, the Karavali stretch is a scenic treat all the way.
(2) The first halt in our coastal circuit in Uttara Kannada district was Bhatkal. Bhatkal is where Konkani begins to share space with Tulu. A 4-km drive out of town took us to the beach and the small fishing wharf. At the bazaar, we tried out the two local specialities – date halwa and a salted roti. One also shouldn’t miss the Bhatkal biriyani.
(3) Gokarna is a charming little town with temples, a wide expanse of beach, two principal streets and clusters of traditional tile-roofed brick houses. You’ll also find quaint Udupi food joints, souvenir shops, and cyber cafes here.
(4) Once the ‘temple fatigue’ set in, we indulged in some sedate sea-watching. Om beach, one of Gokarna’s famed five, takes the shape of an ‘Om’, a spiritual symbol. The road twists through alleys, past people’s houses, temple chariots and ‘Way to Beach’ signs. The other pristine beaches, wedged between gigantic cliffs that protrude like delicate fingers into the sea, are Gokarna, Kudle, Half Moon and Paradise.
(5) The last halt in our coastal itinerary was Karwar. Karwar was the erstwhile trading outpost of foreigners. It is said that even the great explorer Vasco da Gama walked on the golden sands of Karwar. Apart from the excellent harbour, four beaches that offer sun, sand, surf and sport and five islands, Karwar has much more to offer.
(6) A short boat ride away you’ll find the excellent Devbagh Beach and five idyllic islands. With its pristine beach, and an eco-friendly resort with ethnic log huts, it is a romantic hideaway offering complete privacy and solitude sans the five-star trappings.
(7) We followed Tagore’s footsteps and took a boat cruise up the Kali from the mouth. We spotted dolphins as they gracefully dived into azure waters. From the island one can have a gorgeous view of the sea, sand and the neighbouring islands. As we returned from our coastal odyssey, we realised Karnataka is not short of fabulous beaches but lacks salesmen of its ravishing beauty.
Q. Find out the parts of speech of the underlined word –
At the bazaar, we tried out the two local specialities – date halwa and a salted roti.
Direction: Read the passage given below and answer the questions that follow by selecting the most appropriate options:
(1) We embarked along the sapphire route along National Highway 17 for a sun-soaked holiday. This route along Karnataka’s Karavali coast is India’s best beach and temple country. Flanked by the soaring Western Ghats on the east and the Arabian Sea on the west, the Karavali stretch is a scenic treat all the way.
(2) The first halt in our coastal circuit in Uttara Kannada district was Bhatkal. Bhatkal is where Konkani begins to share space with Tulu. A 4-km drive out of town took us to the beach and the small fishing wharf. At the bazaar, we tried out the two local specialities – date halwa and a salted roti. One also shouldn’t miss the Bhatkal biriyani.
(3) Gokarna is a charming little town with temples, a wide expanse of beach, two principal streets and clusters of traditional tile-roofed brick houses. You’ll also find quaint Udupi food joints, souvenir shops, and cyber cafes here.
(4) Once the ‘temple fatigue’ set in, we indulged in some sedate sea-watching. Om beach, one of Gokarna’s famed five, takes the shape of an ‘Om’, a spiritual symbol. The road twists through alleys, past people’s houses, temple chariots and ‘Way to Beach’ signs. The other pristine beaches, wedged between gigantic cliffs that protrude like delicate fingers into the sea, are Gokarna, Kudle, Half Moon and Paradise.
(5) The last halt in our coastal itinerary was Karwar. Karwar was the erstwhile trading outpost of foreigners. It is said that even the great explorer Vasco da Gama walked on the golden sands of Karwar. Apart from the excellent harbour, four beaches that offer sun, sand, surf and sport and five islands, Karwar has much more to offer.
(6) A short boat ride away you’ll find the excellent Devbagh Beach and five idyllic islands. With its pristine beach, and an eco-friendly resort with ethnic log huts, it is a romantic hideaway offering complete privacy and solitude sans the five-star trappings.
(7) We followed Tagore’s footsteps and took a boat cruise up the Kali from the mouth. We spotted dolphins as they gracefully dived into azure waters. From the island one can have a gorgeous view of the sea, sand and the neighbouring islands. As we returned from our coastal odyssey, we realised Karnataka is not short of fabulous beaches but lacks salesmen of its ravishing beauty.
Q. Which of the following words is an antonym to the word –
‘quaint’
Teacher pointing to a picture of a girl:
Teacher: This is Rita. She has black hair. She is wearing a blue dress.
Teacher: Who is she? (Pointing to the picture)
Class: She is Rita.
Teacher: What is the colour of her hair?
Class: It is black.
Teacher: What is the colour of her dress?
Class: It is blue
Q. Which one of the following is the best suitable method to conduct the above-mentioned activity in the language classroom?
Direction: Read the passage given below and answer the questions that follow by selecting the most appropriate options:
(1) We embarked along the sapphire route along National Highway 17 for a sun-soaked holiday. This route along Karnataka’s Karavali coast is India’s best beach and temple country. Flanked by the soaring Western Ghats on the east and the Arabian Sea on the west, the Karavali stretch is a scenic treat all the way.
(2) The first halt in our coastal circuit in Uttara Kannada district was Bhatkal. Bhatkal is where Konkani begins to share space with Tulu. A 4-km drive out of town took us to the beach and the small fishing wharf. At the bazaar, we tried out the two local specialities – date halwa and a salted roti. One also shouldn’t miss the Bhatkal biriyani.
(3) Gokarna is a charming little town with temples, a wide expanse of beach, two principal streets and clusters of traditional tile-roofed brick houses. You’ll also find quaint Udupi food joints, souvenir shops, and cyber cafes here.
(4) Once the ‘temple fatigue’ set in, we indulged in some sedate sea-watching. Om beach, one of Gokarna’s famed five, takes the shape of an ‘Om’, a spiritual symbol. The road twists through alleys, past people’s houses, temple chariots and ‘Way to Beach’ signs. The other pristine beaches, wedged between gigantic cliffs that protrude like delicate fingers into the sea, are Gokarna, Kudle, Half Moon and Paradise.
(5) The last halt in our coastal itinerary was Karwar. Karwar was the erstwhile trading outpost of foreigners. It is said that even the great explorer Vasco da Gama walked on the golden sands of Karwar. Apart from the excellent harbour, four beaches that offer sun, sand, surf and sport and five islands, Karwar has much more to offer.
(6) A short boat ride away you’ll find the excellent Devbagh Beach and five idyllic islands. With its pristine beach, and an eco-friendly resort with ethnic log huts, it is a romantic hideaway offering complete privacy and solitude sans the five-star trappings.
(7) We followed Tagore’s footsteps and took a boat cruise up the Kali from the mouth. We spotted dolphins as they gracefully dived into azure waters. From the island one can have a gorgeous view of the sea, sand and the neighbouring islands. As we returned from our coastal odyssey, we realised Karnataka is not short of fabulous beaches but lacks salesmen of its ravishing beauty.
Q. Which of the following statement is NOT true according to the passage:
A student has difficulty in applying the learned knowledge. For example, in word problems, the student also fails to translate sentences into equations or identify the variables. A possible solution to this problem could be
While writing a precis of a passage, you must reduce the passage to
In a classroom, while reading the text a teacher is emphasizing pronouns, determiners, and conjunctions. It means she is focusing over:
Which method is most helpful in understanding the depth of meaning?
Which of the following statements is not true with respect to remedial teaching?