Class 7 Exam  >  Class 7 Notes  >  संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)  >  अनुवाद - सड.कल्पः सिद्धिदायकः | Chapter Explanation

अनुवाद - सड.कल्पः सिद्धिदायकः | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7) PDF Download

(क) (पार्वती शिव पतिरूपेण अवाञ्छत्‌। एतदर्थ सा तपस्यां कर्तुम्‌ ऐच्छत्‌। सा स्वकीयं मनोरथं मात्रे न्यवेदयत्‌। तत्‌ श्रुत्वा माता मेना चिन्ताकुला अभवत्‌।)
मेना - वत्से! मनीषिता: देवता: गृहे एव सन्ति। तप: कठिनं भवति। तव शरीरं सुकोमलं वर्तते। गृहे एवं वस। अत्रेव तवाभिलाष: सफल: भविष्यति।
पार्वती - अम्ब! तादृश: अभिलाष: तु तपसा एव पूर्ण: भविष्यति। अन्यथा तादृशं पतिं कथं प्राप्स्यामि। अहं तपः एवं चरिष्यामि इति मम सङ्कल्प:।


सरलार्थ:- (पार्वती ने शिव को पति रुप में प्राप्त करने की इच्छा की । इसके लिए उन्होने तपस्या करनी चाही । उन्होनें अपना प्रयोजन माता को बताया । यह सुनकर माता मेना चिन्ता से व्याकुल हो गई।)
मेना - हे पुत्री ! इच्छित (desired) देवता (तो) घर में ही हैं । तपस्या कठिन होती हैं । तुम्हारा शरीर कोमल है । (तुम) घर में ही निवास करो । यहाँ पर ही तुम्हारी इच्छा सफल हो जास्णी।
पार्वती - हे माता , वैसी इच्छा तो तप के द्वारा ही पूर्ण होगी । अन्यथा वैसा पति कैसे प्राप्त कर पाऊँगी । 'मै तपस्या ही करुगी ' (ऐसा) मेरा संकल्प है।

(ख) मेना - पुत्रि! त्वमेव मे जीवनाभिलाष:।
पार्वती - सत्यम्‌। परं मम मन: लक्ष्यं प्राप्तुम्‌ आकुलितं वर्तते। सिद्धिं प्राप्य पुनः तवैव शरणम्‌ आगमिष्यामि। अद्यैव विजयया साकं गौरीशिखरं गच्छामि।
(तत: पार्वती निष्क्रामति)
(पार्वती मनसा वचसा कर्मणा च तप: एव तपति स्म। कदाचिद्‌ रात्रों स्थण्डिले, कदाचिच्च शिलायां स्वपिति स्म। एकदा विजया अवदत्‌।)
विजया - सखि! तप:प्रभावात्‌ हिंस्रपशवो पि तव सखाय: जाता:। पञ्चाग्नि-व्रतमपि त्वम् अतपः । पुनरपि तव अभिलाषः न पूर्णः अभवत् ।

सरलार्थ:-
मेना - बेटी , तुम मेरे जीवन की चाह हो ।
पार्वती - सत्य है । परन्तु मेरा मन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्याकुल है । सफलता प्राप्त करके पुनः तुम्हारी ही शरण में आ जाँउगी । आज ही विजया के साथ गौरी - शिखर में आ जाँउगी ।
(तब पार्वती निकल जाती है ।)
(पार्वती मन मे , वाणी से , तथा कर्म से तपस्या करने लगी । कभी रात को जमीन पर और कभी पत्थर पर सो जाया करती थी । एक बार विजया बोली)
विजया - हे सखी , तप के प्रभाव से खूंखार पशु भी तुम्हारे मित्र बन गए हैं । तुमने पंचाग्नि व्रत भी किया है । फिर भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण नहीं हुई ।

(ग) पार्वती - अयि विजये! कि न जानासि? मनस्वी कदापि धेर्य न परित्यजति। अपि च मनोरथानाम्‌ अगति: नास्ति।
विजया - त्वं वेदम्‌ अधीतवती। यज्ञं सम्पादितवती। तपःकारणात्‌ जगति तव प्रसिद्धि:।
'अपर्णा' इति नाम्ना अपि त्वं प्रथिता। पुनरपि तपस: फलं नैव दृश्यते।
पार्वती - अयि आतुरहदये। कथर्थ त्वं चिन्तिता ...... ।
(नेपथ्ये-आयि भो! अहम्‌ आश्रमवटु:। जलं वाज्छामि।)
(ससम्भ्रमम्‌) विजये! पश्य को पि वटु: आगतो स्ति।
(विजया झटिति अगच्छत्‌, सहसैव वटुरूपधारी शिव: तत्र प्राविशत्‌)

सरलार्थ :- 
पार्वती - अरे विजया , क्या (तुम) नहीं जानती ? महापुरुष कभी धैर्य का त्याग नहीं करता है । और इच्छाओं की विफलता भी नहीं होती हैं।
विजया - तुमने वेदों का अध्ययन किया । यज्ञ संपन्न किए । तपस्या के कारण संसार में तुम्हारी प्रासिद्धि है । 'अपर्णा' इस नाम से भी तुम प्रासिद्ध हो । फिर भी तपस्या का फल दिखाई ही नहीं पड़ता है ।
पार्वती - अरे , व्याकुल हृदय वाली , तुम चिन्तित क्यों हो ?
(नेपथ्य में - अरे ,  मैं आश्रम का ब्रह्मचारी हूँ । जल पीना चाहता हूँ)
(घबराहट कें साथ) हे विजया , देखो कोई ब्रह्मचारी आया है ।
(विजया शीग्र गई । अचानक ही ब्रह्मचारी रुपधारी शिव वहाँ प्रवेश करते हैं ।)

(घ) विजया - वटो! स्वागतं ते। उपविशतु भवान्‌। इयं मे सखी पार्वती। शिवं प्राप्तुम्‌ अत्र तप: करोति
वटुः - हे तपस्विनि! किं क्रियार्थ पूजोपकरणं वर्तते, स्नानार्थ जल॑ सुलभम्‌, भोजनार्थ फल वर्तते? त्वं तु जानासि एव शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्‌।
(पार्वती तूष्णीं तिष्ठति)
वटुः - हे तपस्विनि! किमर्थ तप: तपसि? शिवाय?
(पार्वती पुनः तूष्णीं तिष्ठति)

सरलार्थ :- 
विजया - हे ब्रह्मचारी , तुम्हारा स्वागत है । आप बैठिए । यह मेरी सखी पार्वती है । शिव को प्रपत करने के लिए यहां तपस्या करती है ।
वटुः (ब्रह्मचारी) - हे तपस्विनि ! क्या तप के लिए पूजा की सामग्री है , स्नान करने के लिए जल आसानी से मिल जाता है और भोजन के लिए फल हैं ? तुम तो जानती ही हो प्रथम धर्म साधन निश्चित रुप से शरीर हैं ।
पार्वती चुप खड़ी हो जाती है
वटुः - हे तपस्विनि , किस लिए तप कर रही हो ? शिव के लिए ?
(पार्वती पुनः चुप खड़ी हो जाती है ।)

(ङ) विजया - (आकुलीभूय) आम्‌, तस्मै एव तप: तपति।
(वटुरूपधारी शिव: सहसैव उच्चै: उपहसति)

वटुः - अयि पार्वति! सत्यमेव त्वं शिवं पतिम्‌ इच्छसि? (उपहसन्‌) नाम्ना शिव: अन्यथा अशिव:। श्मशाने वसति। यस्य त्रीणि नेत्राणि, वसनं व्याप्रचर्म , अङ्गराग: चिताभस्म, परिजनाश्च भूतगणा:। कि तमेव शिवं पतिम्‌ इच्छसि?
पार्वती - (क्रुद्धा सती) अरे वाचाल! अपसर। जगति न को5पि शिवस्य यथार्थ स्वरूपं जानाति। यथा त्वमसि तथेव वदसि।

सरलार्थ :-

विजया - (परेशान होकर) हाँ , उसके लिए ही तपस्या कर रही है ।
(ब्रह्मचारी रुप धारी शिव एकदम जोर से हसते हैं ।)
वटुः (ब्रह्मचारी) - अरे पार्वती , क्या यह सत्य है कि तुम शिव को ही पति प्रापत करना चाहती हो । हसकर वह नाम से ही शिव है , वरना अशिव है । (वह) शमशान में रहता है । जिसके तीन नेत्र हैं , वस्त्र बाघ का चमणा है , अङ्गलेप चिता की राख है तथा मित्रगण भूतों की टोली है । क्या ( तुम ) उस शिव को ही पति चाहती हो?
पार्वती - (क्रोधित होकर) अरे वाचाल (ज्यादा बोलने वाला) हट जा (go away) संसार में कोई भी शिव के वास्तविक स्वरुप को नहीं जानता है । जैसे तुम हो वैसा ही बोलते हो ।

(च) (विजयां प्रति) सखि! चल। य: निन्दां करोति सः तु पापभाग्‌ भवति
एवं, य: शुणोति सो पि पापभागू भवति।
(पार्वती द्ुतगत्या निष्क्रामति। तदैव पृष्ठत: वटो: रूपं परित्यज्य शिवः तस्या: हस्त गृह्णाति। पार्वती लज्जया कम्पते)
शिव: - पार्वति! प्रीतो स्मि तव सङ्कल्पेन। अद्यप्रभृति अहं तव तपोभि: क्रीतदासो स्मि।

(विनतानना पार्वती विहसति)

सरलार्थ :- 
(विजया के प्रति) सखी , चलो । जो निन्दा करता है , वह तो पापी होता हैं , जो सुनता है वह भी पापी होता हैं ।
(पार्वती तेज गती से निकलती हैं । तभी पीछे से ब्रह्मचारी रुप को छोड़कर शिव उसका हाथ पकड़ लेते हैं । पार्वती लज्जा से कांपती है ।)
शिव - हे पार्वती ! तुम्हारे सङ्कल्प से मैं प्रसन्न हूँ । आज से आगे मैं तुम्हारा तपस्या से खरिदा हुआ दास हूँ ।
(मुँह नीचे की ओर करके पार्वती मुस्कराती है ।)

The document अनुवाद - सड.कल्पः सिद्धिदायकः | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7) is a part of the Class 7 Course संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7).
All you need of Class 7 at this link: Class 7
15 videos|72 docs|21 tests

Top Courses for Class 7

FAQs on अनुवाद - सड.कल्पः सिद्धिदायकः - Chapter Explanation - संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)

1. Class 7 विद्यालयको पाठद्वयंको कुरा वारेमा यस लेखमा के भनिएको छ?
Ans. यो लेखमा सड.कल्पः सिद्धिदायकः विषयसम्बन्धी पाठको व्याख्या छ।
2. सड.कल्पः सिद्धिदायकः विषयका बारेमा कसरी जान्न सक्छ?
Ans. सड.कल्पः सिद्धिदायकः विषयका बारेमा जान्न चाहने व्यक्तिहरूले यस लेखलाई पढ्न सक्छन्।
3. यस लेखमा के बुझाउछ?
Ans. यस लेखमा सड.कल्पः सिद्धिदायकः विषयका बारेमा बुझाइएको छ।
4. सड.कल्पः सिद्धिदायकः कुन कक्षाका छात्रहरूका लागि उपयोगी हुन्छ?
Ans. सड.कल्पः सिद्धिदायकः पाठको व्याख्या कक्षा ७ का छात्रहरूका लागि उपयोगी हुन्छ।
5. सड.कल्पः सिद्धिदायकः पाठको व्याख्या को लागि सबैभन्दा उपयोगी कुरा के हो?
Ans. सड.कल्पः सिद्धिदायकः पाठको व्याख्या पढ्ने बाटोले सबैभन्दा उपयोगी सूचना प्रदान गर्दछ।
Explore Courses for Class 7 exam

Top Courses for Class 7

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Viva Questions

,

shortcuts and tricks

,

अनुवाद - सड.कल्पः सिद्धिदायकः | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)

,

practice quizzes

,

pdf

,

Important questions

,

Exam

,

Sample Paper

,

past year papers

,

अनुवाद - सड.कल्पः सिद्धिदायकः | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)

,

Objective type Questions

,

अनुवाद - सड.कल्पः सिद्धिदायकः | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)

,

study material

,

MCQs

,

mock tests for examination

,

Extra Questions

,

Semester Notes

,

Summary

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Free

,

ppt

,

video lectures

;