Table of contents |
|
कवि परिचय |
|
कविता का सारांश |
|
कविता का भावार्थ |
|
कविता से शिक्षा |
|
शब्दावली |
|
सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। उनकी शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में हुई थी। जब देश आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब उन्होंने महात्मा गांधी के कहने पर कॉलेज छोड़ दिया। वे छायावाद नामक काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। उनके लेखन का समय 1916 से 1977 तक रहा। पंत जी की कविताओं में प्रकृति और इंसान के रिश्ते की सुंदर झलक मिलती है। उन्होंने हिंदी कविता को नए शब्दों और भावों से समृद्ध किया, इसलिए उन्हें "शब्द शिल्पी" कहा जाता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – वीणा, पल्लव, गुंजन, ग्राम्या, चिदंबरा आदि। उन्हें साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार मिले थे। उनका निधन 1977 में हो गया।
सुमित्रानंदन पंत
इस कविता में कवियत्री ने गाँव में छायी हरियाली का दिल छू लेने वाला वर्णन किया है। यहाँ जाड़े के मौसम का अंत तथा वसंत ऋतु का आगमन का दृश्य प्रस्तुत किया गया है। खेतों में फैली दूर-दूर तक फसलें और उन पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो कवियत्री को ऐसा लगता है जैसे किसी ने चांदी का जाल बिछा दिया हो। गेहूं और अरहर की सुनहरी बाली तथा पीली सरसों द्वारा फैला तैलीय सुगंध उन्हें बहुत मोहित करता है। खेतों में मटर के पौधे अपने बीजों को छिपाकर हंस रही हैं। रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों के ऊपर मंडरा रही हैं, जैसे किसी ने रंगों की छटा बिखेरी हो। फलों के पकने के मौसम में वृक्ष आम, अमरुद, जामुन, कटहल, और आड़ू आदि से झुके हुए हैं। पालक, धनिया के पत्ते लहलहा रहे हैं, टमाटर मखमल की तरह लाल हो गए हैं तथा मिर्च हर-भरी थैली की तरह लग रही है। गंगा के तट पर पड़े बालू के टीले ऐसे लगते हैं मानो लम्बे-लम्बे सांप पड़े हों। तरबूजे की खेती भी मन को भा रही है। पास में बगुला अपनी अंगुलियों से अपने कलगी में कंघी कर रहा है तथा मगरमच्छ पानी में अलसाया सोया पड़ा है। कुल मिलाकर कवि ने पूरे वातावरण का सजीव चित्रण किया है जो कि बहुत ही मनोहारी है।
1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!
भावार्थ: कवि खेतों में फैली हरियाली को देखकर कहते हैं कि जहां तक नजर जाती है वहां तक खेतों में मखमल जैसी हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही है और उस हरियाली के ऊपर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो ऐसा लगता है मानो उससे कोई चांदी की जाली लिपटी हो या उसके ऊपर कोई चांदी की जाली बिछी हो। और नये-नये उगे हरे-हरे घास के तिनकों व पत्तियों के ऊपर पड़ी ओस की बूदों तो ऐसी प्रतीत होती हैं मानो जैसे हरा रुधिर यानी खून उनमें बह रहा हो। यहां पर घास के हरे तिनकों का मानवीकरण किया गया है। पूरी प्रकृति को निहारने पर कवि को ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि धरती के सांवलेपन को सदा आकाश में छाई रहने वाली निर्मल स्वच्छ नीलिमा ने ढक रखा हो। यानि हरी भरी धरती के ऊपर फैला नीला आकाश ऐसा प्रतीत हो रहा हैं मानो जैसे उसने धरती के ऊपर अपना आँचल फैला रखा हो।
2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो , हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!
भावार्थ: इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब खेतों में जौ और गेहूँ की बालियाँ आ जाती हैं, तो धरती एक रोमांच से भर उठती है। अरहर और सनई की फसलें ऐसे चमक रही हैं जैसे वे सोने की झंकारदार कंगनियाँ (किंकिणियाँ) हों, जो खेतों की शोभा बढ़ा रही हैं। खेतों में खिले पीले-पीले सरसों के फूलों से एक हल्की तेल जैसी भीनी-भीनी खुशबू उड़ रही है। इस हरियाली से भरी धरती से तीसी के नीले फूल ऐसे झाँकते हैं जैसे नीले रंग की नीलम की कलियाँ हों, जो धरती को और भी सुंदर बना रही हैं।
3. रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते ही फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!
भावार्थ: इन पंक्तियों में कवि खेतों की रंग-बिरंगी छटा का सुंदर वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि जैसे ही खेतों में अलग-अलग रंगों के फूल खिले, उनमें मटर की बेलें सखियों की तरह हँसती-सी दिखाई देती हैं। मटर की फली (छीमी) मखमली रिबन जैसी लटक रही है, जो बीजों से भरी हुई है। तरह-तरह की रंगीन तितलियाँ रंग-बिरंगे फूलों पर उड़-उड़कर मंडरा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे खुद फूल ही पंख पाकर उड़ने लगे हों और एक फूल से दूसरे फूल पर जा रहे हों।
4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढ़ाक , पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू , नीम्बू , दाड़िम
आलू , गोभी , बैगन , मूली!
भावार्थ: इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जिनमें वसंत ऋतु के सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं कि आम के पेड़ों की शाखाएँ अब सफेद और पीली मंजरियों से भर गई हैं। पलाश (ढ़ाक) के फूल और पीपल के पत्ते झड़ने लगे हैं। यह सब देखकर कोयल आनंद से गाने लगी है। कटहल की भीनी-भीनी खुशबू चारों ओर फैल रही है और जामुन के पेड़ों में भी कलियाँ आ चुकी हैं। जंगल में बेर के झाड़ों में बेर लटकने लगे हैं। आड़ू, नींबू और अनार (दाड़िम) के पेड़ों में फूल आ गए हैं। खेतों में आलू, गोभी, बैंगन और मूली की फसलें लहलहा रही हैं। पूरे वातावरण में वसंत का उल्लास और सौंदर्य बिखरा हुआ है।
5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गये सुनहले मधुर बेर ,
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!
भावार्थ: इन पंक्तियों में कवि पंत जी ग्रामीण प्राकृतिक सौंदर्य और खेतों की भरपूर उपज का चित्रण करते हैं। वे कहते हैं कि अमरूद अब पककर पीले और मीठे हो गए हैं, जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ (धब्बे) पड़ गई हैं। सुनहरे और रस भरे बेर भी पक चुके हैं। आंवले के पेड़ की डालियों पर आंवले इस प्रकार जड़े हैं जैसे किसी आभूषण में सुंदर मोती जड़े हों। खेतों में पालक की फसल लहलहा रही है और धनिया से खुशबू फैल रही है। लौकी और सेम की बेलें फैलती जा रही हैं और उनकी फलियाँ लगी हुई हैं। टमाटर मखमली और लाल हो गए हैं, और मिर्च के पौधों पर लगी हरी-हरी मिर्चें बड़ी थैली जैसी दिखाई दे रही हैं।
6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
भावार्थ: इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि गंगा नदी के किनारे की रंग-बिरंगी रेत पर साँप जैसी रेखाएँ बनी हैं, जो बहुत सुंदर लग रही हैं। तट पर फैली सरपत की घास और तरबूज की खेती से पूरा दृश्य बहुत आकर्षक दिखाई देता है। बगुले नदी किनारे अपने सिर की कलंगी (सींगनुमा पंख) को अपनी अंगुलियों जैसी पतली चोंच से ठीक करते हैं, जैसे कोई अपनी कंघी से बाल संवार रहा हो। गंगा के जल में सुरखाब (एक सुंदर पक्षी) तैर रहे हैं और किनारे पर मगरौठी नाम का पक्षी आराम से सो रहा है। पूरा दृश्य गंगा तट के प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाता है।
7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोये,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोये-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन!
भावार्थ: इन पंक्तियों में कवि अपने गाँव के सौंदर्य का चित्रण करते हुए कहते हैं कि सर्दियों की हल्की धूप में गाँव की हरियाली मुस्कुरा रही है और आलस्य से भरी हुई सोई-सी लगती है। रात की नमी और अँधियारे में तारों की तरह चमकती ओस की बूँदें किसी स्वप्न लोक जैसी प्रतीत होती हैं। कवि को गाँव ऐसा लगता है जैसे हरे रंग के रत्न (मरकत) से भरा कोई डिब्बा खुल गया हो, जिसके ऊपर नीले रंग का आकाश किसी नीलम की परत की तरह छाया हुआ हो। यह गाँव हिम के अंतिम समय (हिमांत) में बहुत ही शांत, कोमल और सौंदर्य से भरपूर लगता है, जो लोगों के मन को शांति और आनंद से भर देता है।
इस कविता से हमें यह शिक्षा मिलती है कि प्रकृति हमारे जीवन की सबसे सुंदर और जरूरी चीजों में से एक है। गाँव की हरियाली, खेतों की फसलें, फूल, फल, पेड़-पौधे और नदी का सुंदर दृश्य हमें आनंद और शांति प्रदान करते हैं। कवि हमें यह समझाते हैं कि अगर हम प्रकृति को ध्यान से देखें और उसकी सुंदरता को महसूस करें, तो हमें उसमें बहुत सुकून और खुशी मिल सकती है। यह कविता हमें प्रकृति से प्रेम करना, उसकी देखभाल करना और सादा, प्राकृतिक जीवन को अपनाने की प्रेरणा देती है।
16 videos|193 docs|43 tests
|
1. कविता का सार क्या है? | ![]() |
2. 'कविता का सार' में कौन सी कहानी बताई गई है? | ![]() |
3. इस कविता में किस चीज का वर्णन किया गया है? | ![]() |
4. 'कविता का सार' किस कक्षा के छात्रों के लिए है? | ![]() |
5. क्या 'कविता का सार' के प्रत्येक वाक्य का महत्व होता है? | ![]() |