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मैया मैं नहिं माखन खायो Chapter Notes | Chapter Notes For Class 6 PDF Download

कवि परिचय

सूरदास एक प्रतिष्ठित संत, कवि और गायक थे। उन्हें हिंदी भक्ति साहित्य के महत्वपूर्ण कवियों में गिना जाता है। वे भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और उनके पदों में कृष्ण की बाल लीलाओं का गहरा वर्णन किया गया है। उनके काव्य में प्रेम, भक्ति और करुणा का अद्वितीय मेल देखने को मिलता है।

मैया मैं नहिं माखन खायो Chapter Notes | Chapter Notes For Class 6

मुख्य विषय

इस कविता का प्रमुख विषय भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं और उनकी मासूमियत को दर्शाना है। इसके अलावा, यह कविता माँ और बेटे के रिश्ते की मिठास और उनके बीच के विश्वास को भी प्रस्तुत करती है।

कविता का सार

'मैया मैं नहिं माखन खायो' कविता में सूरदास जी ने बालक कृष्ण और उनकी माँ यशोदा के बीच हुए संवाद को बहुत ही सरल और सुंदर शब्दों में वर्णित किया है। कविता की शुरुआत में कृष्ण अपनी माँ से कहते हैं कि उन्होंने माखन नहीं खाया है। वे बताते हैं कि सुबह से ही वे गैयन (गायों) के पीछे मधुबन (वन) में चले गए थे और वहां चार पहर तक बंसीवट (वृक्ष) के पास भटकते रहे। शाम होने पर वे घर लौटे।

मैया मैं नहिं माखन खायो Chapter Notes | Chapter Notes For Class 6कृष्ण कहते हैं कि वे छोटे बच्चे हैं, उनकी बाहें छोटी हैं, और वे छींके से माखन नहीं निकाल सकते। ग्वाल-बाल (गाय चराने वाले बालक) उनके विरुद्ध हैं और जबरदस्ती उनके मुख पर माखन लगा दिया। कृष्ण अपनी माँ को यह भी कहते हैं कि वह दिल से बहुत भोली हैं और दूसरों की बातों पर जल्दी विश्वास कर लेती हैं।

अंत में, कृष्ण अपनी माँ को उनकी कमरिया (दुपट्टा) देते हुए कहते हैं कि उन्होंने उन्हें बहुत नचाया है। यशोदा, सूरदास के अनुसार, इस मासूमियत भरे उत्तर को सुनकर हंस पड़ती हैं और कृष्ण को अपने गले से लगा लेती हैं।

मैया मैं नहिं माखन खायो Chapter Notes | Chapter Notes For Class 6

पद की व्याख्या

मैया मैं नहिं माखन खायो ।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो ।
चार पहर बंसीवट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ।।
मैं बालक बहियन को छोटो, छीको केहि बिधि पायो ।
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ।।
तू माता मन की अति भोरी, इनके कहे पतियायो ।
जिय तेरे कछु भेद उपज हैं, जानि परायो जायो।।
ये ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो ।
सूरदास तब बिहाँस जसोदा, लै उर कंठ लगायो।।

व्याख्या: कवि सूरदास जी के पदों में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का बहुत ही मनमोहक चित्रण किया गया है। माता यशोदा उनके बाल- विनोद को देखकर बहुत खुश होती हैं। इस पद में कवि ने श्रीकृष्ण के नटखट स्वभाव का सुंदर वर्णन किया है। सूरदास जी श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। इस पद में श्रीकृष्ण माखन चुराकर खाते हैं। जब उनकी चोरी पकड़ी जाती है, तो माता यशोदा उनसे माखन चुराने का कारण पूछती हैं। श्रीकृष्ण मना करते हुए कहते हैं, "माँ, मैंने माखन नहीं खाया है। तुम मुझे रोज़ सुबह गायों के पीछे मधुबन भेज देती हो, और वहां बंसीवट के पास चार पहर (पूरा दिन) बिता देता हूँ। फिर शाम को घर लौटता हूँ।" माँ पूछती हैं, "फिर तेरे मुँह पर माखन कैसे लगा?" तो कृष्ण चंचलता से उत्तर देते हैं, "मैंने माखन नहीं खाया। मैं तो बहुत छोटा हूँ, मेरे हाथ भी छोटे हैं। मैं कैसे ऊँचे छीके से माखन चुरा सकता हूँ? ग्वाल-बालों ने मिलकर अपनी शरारत के कारण मुझसे माखन चुराकर मेरे मुँह पर लगा दिया है। माँ, तुम तो बहुत भोली हो, जो इनकी बातों में आ जाती हो।" फिर कृष्ण माँ से कहते हैं, "तुम मुझे पराया समझकर इनकी बातों में आकर ऐसा कह रही हो।" फिर नाराज़गी दिखाते हुए कहते हैं, "ये अपनी लंकुटी और कमरिया ले लो, तुमने मुझे बहुत परेशान किया है।" इस पर माता यशोदा हँस पड़ती हैं और कृष्ण को प्यार से गले से लगा लेती हैं। बच्चों की शरारत और ज्ञान- भरी बातों को सुनकर माता-पिता का क्रोध समाप्त हो जाता है और वे प्रसन्न हो जाते हैं।

कविता की मुख्य घटनाएं

  • कृष्ण का माखन चोरी का आरोप खंडन।
  • गायों के पीछे वन जाने का विवरण।
  • ग्वाल-बाल द्वारा जबरदस्ती मुख पर माखन लगाना।
  • यशोदा की भोलेपन पर टिप्पणी।
  • यशोदा का कृष्ण को गले लगाना।

कविता से शिक्षा

  • सच्चाई और मासूमियत की शक्ति।
  • माता-पिता और बच्चों के बीच का स्नेहपूर्ण रिश्ता।
  • किसी भी परिस्थिति में सच्चाई का साथ न छोड़ना।
  • निर्दोषता की अहमियत और मूल्य।

शब्दावली

  • माखन: मक्खन
  • गैयन: गायें
  • मधुबन: वन या जंगल
  • बंसीवट: वृक्ष
  • बैर: विरोधी
  • छीको: छींका, वह स्थान जहाँ माखन रखा जाता है
  • पतियायो: विश्वास करना
  • बिहँसि: हँसना

निष्कर्ष

'मैया मैं नहिं माखन खायो' कविता भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की मासूमियत और सच्चाई को उजागर करती है। सूरदास जी ने इस कविता के माध्यम से यह संदेश दिया है कि सच्चाई और सरलता हमेशा दिल को छूती है और यही वास्तविकता है। कृष्ण और यशोदा के इस प्रेमपूर्ण संवाद से हमें यह सीख मिलती है कि माता-पिता और बच्चों के बीच का स्नेह कभी नहीं टूटना चाहिए और हमें सच्चाई का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

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FAQs on मैया मैं नहिं माखन खायो Chapter Notes - Chapter Notes For Class 6

1. कविता "मैया मैं नहिं माखन खायो" का मुख्य विषय क्या है?
Ans. कविता "मैया मैं नहिं माखन खायो" में भगवान श्रीकृष्ण की मासूमियत और उनकी माता यशोदा के प्रति उनके स्नेह को दर्शाया गया है। इस कविता में श्रीकृष्ण अपनी माता से यह कहते हैं कि उन्होंने माखन नहीं खाया, जबकि वे सच में उसे चुराने के लिए जाने जाते हैं। यह कविता बच्चों की शरारतों और माता-पिता के प्रति उनके प्रेम को उजागर करती है।
2. इस कविता से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
Ans. इस कविता से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बच्चों में मासूमियत और शरारत होती है, जो उनके विकास का एक हिस्सा है। इसके अलावा, यह माता-पिता के प्रति बच्चों के प्रेम और विश्वास को भी दर्शाती है, जो परिवार के संबंधों को मजबूत बनाता है।
3. कविता में प्रमुख घटनाएँ कौन सी हैं?
Ans. कविता में मुख्य घटनाएँ हैं: श्रीकृष्ण का माखन चुराना, माता यशोदा का उन्हें डाँटना और श्रीकृष्ण का अपनी मासूमियत से माता को विश्वास दिलाने का प्रयास। ये घटनाएँ उनके बीच की प्रेमभरी बातचीत को दर्शाती हैं।
4. कविता के प्रमुख पात्र कौन हैं?
Ans. कविता के प्रमुख पात्र भगवान श्रीकृष्ण और माता यशोदा हैं। श्रीकृष्ण अपनी शरारतों के लिए जाने जाते हैं, जबकि माता यशोदा उनकी देखभाल करती हैं और उन्हें प्यार करती हैं।
5. इस कविता की शब्दावली में कौन-कौन से महत्वपूर्ण शब्द हैं?
Ans. इस कविता की शब्दावली में "मैया", "माखन", "खायो", "श्रीकृष्ण", और "यशोदा" जैसे महत्वपूर्ण शब्द शामिल हैं। ये शब्द कविता के भाव और संदर्भ को समझने में मदद करते हैं।
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