यह कविता "ज़ोर लगाओ, हेंई सा!" को कन्हैया लाल "मत्त" जी ने लिखा है। इस कविता में समूह में खेलते हुए बच्चों की मस्ती और उनकी मेहनत का चित्रण किया गया है। रस्साकशी खेल के माध्यम से कवि ने बच्चों की एकता, जोश, और मेहनत को दर्शाया है। कविता सरल भाषा में लिखी गई है, जो बच्चों को मेहनत और टीमवर्क की सीख देती है।
"ज़ोर लगाओ, हेंई सा!
हेंई सा! भाई, हेंई सा!
सीना ताने रहो अकड़ कर,
रस्सा दोनों और पकड़ कर,
तिरछे पड़ कर, कमर जकड़ कर,
ज़ोर लगाओ, हेंई सा!
हेंई सा! भाई, हेंई सा!"
व्याख्या: यहाँ कवि बच्चों को खेलते समय सीना तानकर और मजबूती से रस्से को पकड़कर खींचने के लिए कह रहे हैं। वे खेल में पूरी ताकत लगाने और ध्यान से खेलने की प्रेरणा दे रहे हैं।
खींचो, खींचो, ज़ोर लगाओ,
पैर गड़ा कर, पीठ अड़ाओ,
आड़ी-तिरछी चाल भिड़ाओ,
ज़ोर लगाओ, हेंई सा!
हेंई सा! भाई, हेंई सा!"
व्याख्या: इस हिस्से में बच्चों को पैर मजबूती से ज़मीन पर गड़ाने और पूरी ताकत से रस्से को खींचने का तरीका बताया गया है। कवि खेलते समय आड़ी-तिरछी चाल से जीतने की कोशिश की बात कर रहे हैं।
"रस्सा नहीं फिसलने पाए,
साथी नहीं बिचलने पाए,
जोश-खरोश न ढलने पाए,
ज़ोर लगाओ, हेंई सा!
हेंई सा! भाई, हेंई सा!"
व्याख्या: यहाँ कवि बच्चों को यह समझाते हैं कि खेल में रस्से को मजबूती से पकड़कर रखना जरूरी है ताकि वह फिसल न सके। साथी खिलाड़ियों को भी ध्यान से खेलना चाहिए ताकि कोई गड़बड़ न हो। कवि बच्चों को जोश और उत्साह बनाए रखने की बात करते हैं, ताकि वे खेल में पूरी शक्ति से लगे रहें।
"हुए पसीने से तर सारे,
सफल हुए सब दाँव करारे,
इधर हमारे, उधर तुम्हारे,
ज़ोर लगाओ, हेंई सा!
हेंई सा! भाई, हेंई सा!"
व्याख्या: कवि बच्चों की मेहनत का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सबके पसीने से तर हो जाने के बाद भी वे हार नहीं मानते। हर दांव पर जीतने की कोशिश होती है और एक-दूसरे को टक्कर देने का हौसला दिखाते हैं।
इस कविता में बच्चों के खेल रस्साकशी का शानदार चित्रण किया गया है। कवि ने मेहनत, एकता, और जोश को बड़े सरल और मजेदार तरीके से प्रस्तुत किया है। यह कविता बच्चों को मिलकर काम करने और अपनी पूरी ताकत लगाने की प्रेरणा देती है।
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1. "रस्साकशी" कविता का मुख्य संदेश क्या है? |
2. "रस्साकशी" कविता में प्रमुख पात्र कौन हैं? |
3. इस कविता से हमें कौन-सी महत्वपूर्ण सीख मिलती है? |
4. "रस्साकशी" कविता का क्या महत्व है? |
5. क्या "रस्साकशी" कविता में कोई नैतिक शिक्षा है? |
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