कारक का शाब्दिक अर्थ है-‘क्रिया को करने वाला’ अर्थात क्रिया को पूरी करने में किसी-न-किसी भूमिका को निभाने वाला। यानी अर्थपूर्ण बनाने वाला।
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया तथा वाक्य के अन्य शब्दों के साथ संबंध का पता चलता है, उसे कारक कहते हैं।
कारक के आठ भेद हैं
उदाहरण
1. कर्ता कारक: कर्ता का अर्थ होता है-करने वाला;
उपर्युक्त वाक्य में सम्मान बढ़ाने वाला आयुष है। अतः कर्ता वही है और इसका ज्ञान करा रहा है–ने परसर्ग।
शब्द के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं।
2. कर्म कारक: शब्द के जिस रूप पर क्रिया का फल पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक का परसर्ग ‘को’ होता है;
कर्म की पहचान के लिए क्रिया के साथ क्या तथा किसको लगाकर प्रश्न करने पर, जो उत्तर. आता है वही कर्म होता है
3. करण कारक: कर्ता जिस साधन या माध्यम से कार्य करता है, उस साधन या माध्यम को करण कारक कहते हैं। करण कारक के परसर्ग ‘से’ के दुवारा’ तथा ‘के साथ होते हैं;
जैसे:
4. संप्रदान कारक: जहाँ कर्ता किसके लिए कार्य करता है या जिसे कुछ देता हैं उस भाव को बताने वाले शब्द को संप्रदान कारक कहते हैं। इस कारक के परसर्ग हैं-को, के लिए, हेतु।
जैसे:
5. अपादन कारक: संज्ञा और सर्वनाम के जिस रूप से अलग होने, दूरी बताने, तुलना करने तथा सजाने आदि के भाव का पता चलता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान कारक का परसर्ग ‘से होता है। अपादान कारक की पहचान के लिए क्रिया के साथ कहाँ से, किससे लगाकर प्रश्न किया जाता है। फिर उसका उत्तर आता है, वह अपादान कारक होता है;
जैसे:
6. संबंध कारक: संज्ञा के जिस रूप से दो संज्ञाओं अथवा सर्वनामों के आपसी संबंध का पता चलता है, वह संबंध कारक कहलाता है। संबंध कारक की पहचान के लिए अथवा सर्वनाम के साथ किसका, किसकी, किसके, किसने आदि शब्दों को लगाकर प्रश्न करके उसके उत्तर प्राप्त किए जाते हैं, वे ही उत्तर संबंध कारक कहलाते हैं, संबंध कारक के परसर्ग का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी आदि होते हैं;
जैसे:
7. अधिकरण कारक: संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के समय, स्थान, अवसर आदि का पता चलता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अधिकरण कारक के परसर्ग ‘में’ तथा ‘पर’ होते हैं। अधिकरण कारक की पहचान के लिए वाक्य में क्रिया के साथ कहाँ लगाकर प्रश्न तथा उत्तर प्राप्त करने के लिए किया जाता है;
जैसे:
8. संबोधन कारक: जिन संज्ञा शब्दों का प्रयोग किसी को बुलाने या पुकारने अथवा संबोधित करने के लिए किया जाता है, वे संबोधन कारक कहलाते हैं। संबोधन कारक में परसर्ग ‘अरे, हे, ओ’ आदि होते हैं।
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