इस कहानी में हम 'सल्मरदा सथमकका' के बारे में जानेंगे, जिन्हें लोग 'अम्मा' और 'वृक्षमाता' के नाम से भी जानते हैं। वह कर्नाटक की रहने वाली हैं और उन्होंने अपने जीवन में 8000 से अधिक पेड़ लगाए हैं।
सथमकका को लोग 'अम्मा' और 'वृक्षमाता' के नाम से भी जानते हैं। वह कर्नाटक के तुमकुर जिले में पैदा हुई थीं और वहीं बड़ी हुईं। अम्मा ने बहुत सारे पेड़ लगाए और अपने आस-पास के जगह को सुंदर बनाया।
जब वह छोटी थीं, तब से ही उन्होंने पेड़ लगाना शुरू कर दिया था। उन्होंने 8000 से भी ज्यादा पेड़ लगाए हैं। अम्मा को पेड़ बहुत पसंद थे और वह चाहती थीं कि सब जगह हरियाली हो।
अम्मा ने अपने 107 वर्ष की उम्र में भी काम करना जारी रखा। इस उम्र में भी वह बहुत सक्रिय रहती हैं और पेड़ लगाने का उनका जुनून कम नहीं हुआ है। वह यह दिखाती हैं कि उम्र सिर्फ एक संख्या है, और अगर हमारे अंदर जुनून हो तो हम किसी भी उम्र में कुछ भी कर सकते हैं।
अम्मा को यह काम करने में कई मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने बहुत मेहनत की और लोगों को भी पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया।
उनके इस महान काम के लिए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया। यह बहुत बड़ा सम्मान होता है और यह उनके कड़ी मेहनत की वजह से मिला।
अम्मा की कहानी हमें बहुत कुछ सिखाती है। उन्होंने हमें दिखाया कि कैसे लगन और मेहनत से हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी उम्र की परवाह किए बिना अपने सपनों के पीछे भागना चाहिए। अम्मा ने हमें यह भी सिखाया कि पर्यावरण की देखभाल करना कितना जरूरी है। उनकी मेहनत और समर्पण हमें प्रेरित करते हैं कि हम भी अपने आस-पास की दुनिया को बेहतर बनाने के लिए काम करें।
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1. थिमक्का कौन हैं और वे पेड़ों के लिए क्या करती हैं? |
2. थिमक्का ने पेड़ों के लिए अपने जीवन में क्या-क्या संघर्ष किए? |
3. थिमक्का का काम समाज पर कैसे प्रभाव डालता है? |
4. थिमक्का को उनकी मेहनत के लिए क्या पुरस्कार मिले हैं? |
5. हमें थिमक्का से क्या सीख मिलती है? |