Table of contents |
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परिचय |
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(१) बाढ़ की पीड़ा और सहायता |
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(२) करुणा का भाव |
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(३) जीवन परिचय एवं कार्य |
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४. गोपबन्धु के प्रेरणादायी शब्द |
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५. गोपबन्धु का सम्मान |
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श्लोक एवं भावार्थ |
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शब्दार्थ (चयनित) |
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इस अध्याय में "उत्कलमणि गोपबन्धु दास" के जीवन, त्याग, समाजसेवा और देशभक्ति का वर्णन है। वे ओडिशा राज्य के महान समाजसेवक, स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और लोकसेवक थे। उन्होंने अपनी सम्पूर्ण जीवनशक्ति निर्धनों, बाढ़–पीड़ितों और देश की सेवा में अर्पित की। गोपबन्धु का जीवन हमें सिखाता है कि परोपकार और राष्ट्रसेवा ही सच्चा जीवन है।
भोजनस्यातिदौर्लभ्यं जीवनाय सुखप्रदम्।
तदर्थं भोजनं कुर्याद् मा शरीरे व्ययं कुरु॥
भावार्थ: भोजन प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है, किन्तु जीवन को सुख देने वाला है। इसलिए जब भी भोजन मिले तो उसे ग्रहण करना चाहिए, शरीर को कष्ट देकर भोजन छोड़ना उचित नहीं है।
सर्वदेशभूमौ मम रीयायां लीनुः,
सर्वदेशलोकयात्रासिद्धये प्रयान्तु नु।
स्वराज्यमार्गे तद् गह्वरमायतकया,
ममयास्थिमांसैः परिपूरणीयाः सदा॥
भावार्थ: मेरे शरीर की अस्थियाँ सारे देश की भूमि में लीन हो जाएँ। देश के लोगों की यात्रा (देश की उन्नति) में सहायक हों। यदि स्वराज्य के मार्ग में गड्ढ़े पड़ें तो वे मेरे अस्थि-मांस से ही भरे जाएँ। यही मेरे जीवन का उद्देश्य है।
उत्कलमतिरीत्याख्याः प्रतिपदं लोकसेवकाः।
प्रणम्यो देशभक्तोऽयं गोपबन्धुर्महामनाः॥
भावार्थ: गोपबन्धु दास समाजसेवक और देशभक्त थे। उनके त्याग, सेवा और बलिदान के कारण जनता ने उन्हें “उत्कलमणि” की उपाधि दी। वास्तव में वे ओडिशा ही नहीं, पूरे देश के लिए पूज्य और प्रणम्य हैं।
1. बाढ़ के दौरान गोपबन्धु ने किस प्रकार की सहायता प्रदान की ? | ![]() |
2. गोपबन्धु का जीवन परिचय क्या है ? | ![]() |
3. करुणा का भाव गोपबन्धु के कार्यों में कैसे प्रकट होता है ? | ![]() |
4. गोपबन्धु के प्रेरणादायी शब्द क्या हैं ? | ![]() |
5. गोपबन्धु को किस प्रकार से सम्मानित किया गया ? | ![]() |