जैसे
व्याकरण में ध्वनि का अर्थ है – “वर्ण”
जैसे
“हमारे यहाँ गणेश – उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है |”
गणेश = ग् + अ + ण् + ए + श् + अ
उत्सव = उ + त् + स् + अ + व् + अ
“वह सबसे छोटी ध्वनि जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते, वर्ण कहलाती है |”
वर्णमाला
किसी भाषा में प्रयोग होने वाले वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं |
जैसे
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:, क, ख, ग, घ, ङ्
ह्रस्व स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं |
ह्रस्व स्वर चार होते हैं – अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से लगभग दोगुना समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं |
दीर्घ स्वर सात होते हैं → आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ |
प्लुत स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तीन गुना अधिक समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं |
जिस स्वर का उच्चारण प्लुत के रूप में किया जाता है उसके आगे हिंदी की गिनती का अंक ३ (तीन) लिखा जाता है
जैसे → ओ३म्, भैया३, काका३
स्वरों की मात्राएँ
मात्र → स्वरों के निश्चित चिह्नों को मात्र कहते हैं |
स्पर्श व्यंजन
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत या ओठो का स्पर्श करके मुख से बाहर आती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं |
स्पर्श व्यंजन हैं –
अंतस्थ व्यंजन
जिन व्यंजनों का उच्चारण स्वरों और व्यंजनों के मध्य का होता है, उन्हें अंतःस्थ व्यंजन कहते हैं|
अंतस्थ व्यंजन चार हैं – य र ल व
ऊष्म व्यंजन
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा मुँह में टकराकर ऊष्म (गर्मी) पैदा करती है, उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं| ऊष्म व्यंजन भी चार हैं – श ष स ह
अयोगवाह स्वर तथा व्यंजन के साथ लगते हैं |
अयोगवाह के भेद
अनुस्वार ( ) → अनुस्वार का चिह्न बिंदु ( ) होता है |
जैसे
विसर्ग ( : ) → विसर्ग का चिह्न ( : ) है|
जैसे
अनुनासिक ( ) → अनुनासिक का चिह्न ( ) है |
इसे चंद्रबिंदु भी कहते है |
जैसे
अनुस्वार और अनुनासिक में अंतर
अनुस्वार और अनुनासिक के उच्चारण में भिन्नता है | अनुस्वार के उच्चारण में वायु नाक से निकलती है, जबकि अनुनासिक के उच्चारण के समय वायु नाक और मुँह दोनों से निकलती है | जैसे – हंस और हँसना | हंस, अंश, कंस आदि का उच्चारण करते समय वायु नाक से निकल रही है, जबकि आँख, पाँव, हँसना आदि का उच्चारण करते समय वायु नाक तथा मुख दोनों से निकल रही है |
संयुक्त व्यंजन
दो अलग – अलग व्यंजनों के योग से बने व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं | हिंदी वर्णमाला में कुल चार संयुक्त व्यंजन है; जैसे –
द्वित्व व्यंजन
एक ही प्रकार के स्वर रहित व स्वर युक्त व्यंजन जब एक साथ उच्चारित किए जाएँ या बोले जाएँ, तब उन्हें द्वित्व व्यंजन कहते हैं ; जैसे –
‘र’ के रूप
जब स्वर रहित ‘र्’ के बाद स्वर सहित व्यंजन हो तो ‘र्’ उस व्यंजन के ऊपर रेफ़( ) के रूप में लिखा जाता है |
जैसे
स्वर सहित ‘र्’ का संयोग जब उससे पूर्व आए किसी स्वर रहित व्यंजन से होता है, तो ‘र’ पदेन के रूप में ( / ) उस व्यंजन के जुड़ जाता है |
जैसे
स्वर रहित ट्, ठ्, ड्, ढ् के बाद स्वर सहित “र” जुड़ने पर “र” पदेन के इस रूप में ( ) उनके नीचे लगता है |
जैसे
नोट
“र” का यह रूप ( ) भी पदेन कहलाता है |
जैसे = त् + र = त्र
श् + र = श्र
उच्चारण में श्वास की मात्रा के आधार पर व्यंजन के प्रकार
अल्पप्राण
जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु की मात्रा कम होती है उन्हें अल्पप्राण कहते हैं |
ये है – क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म
महाप्राण
जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु की मात्रा अधिक होती है उन्हें महाप्राण कहते हैं |
उच्चारण के आधार पर वर्णों का वर्गीकरण
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1. ध्वनि क्या होती है? |
2. ध्वनि के कितने प्रकार होते हैं? |
3. ध्वनि कैसे प्रसारित होती है? |
4. ध्वनि क्या ध्वनि प्रदूषण क्या है? |
5. ध्वनि के क्या प्रमुख स्रोत होते हैं? |
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