1. गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
रामन् का जन्म 7 नवंबर सन् 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम् में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। पिता इन्हें बचपन से गणित और भौतिकी पढ़ाते थे। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिन दो विषयों के ज्ञान ने उन्हें जगत-प्रसिद्ध बनाया, उनकी सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी। कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने पहले ए,बी.एन. कॉलेज तिरुचिरापलली से और फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की। बी.ए. और एम.ए. दोनों ही परीक्षाओं में उन्होंने काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए।
प्रश्न 1: रामन् का जन्म कब हुआ था?
(क) 7 नवंबर 1888
(ख) 8 नवंबर 1888
(ग) 9 नवंबर 1888
(घ) 10 नवंबर 1888
उत्तर: (क) 7 नवंबर 1888
प्रश्न 2: रामन् का जन्म कहां हुआ था?
(क) कर्नाटक
(ख) तिरुचिलापल्ली, तमिलनाडु
(ग) कोलकाता, बंगाल
(घ) विशाखापट्टनम
उत्तर: (ख) तिरुचिलापल्ली, तमिलनाडु
प्रश्न 3: रामन् के पिता क्या करते थे?
(क) डॉक्टर
(ख) इंजीनियर
(ग) अध्यापक
(घ) वैज्ञानिक
उत्तर: (ग) अध्यापक
प्रश्न 4: रामन् ने कॉलेज की पढ़ाई कहां से पूरी की?
(क) आईआईटी खड़गपुर
(ख) दिल्ली यूनिवर्सिटी
(ग) मद्रास यूनिवर्सिटी
(घ) प्रेसीडेंसी कॉलेज
उत्तर: (घ) प्रेसीडेंसी कॉलेज
2. गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
रामन् का मस्तिष्क विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने के लिए बचपन से ही बेचैन रहता था। अपने कॉलेज के ज़माने से ही उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में बे प्रकाशित हुआ था। उनकी दिली इच्छा तो यही थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को ही समर्पित कर दें, मगर उन दिनों शोधकार्य को पूरे समय के कैरियर के रूप में अपनाने की कोई खास व्यवस्था नहीं थी। प्रतिभावान छात्र सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित होते थे। रामन् भी अपने समय के अन्य सुयोग्य छात्रों की भाँति भारत सरकार के वित्त-विभाग में अफ़सर बन गए। उनकी तैनाती कलकत्ता में हुई। कलकत्ता में सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने अपने स्वाभाविक रुझान को बनाए रखा। दफ़्तर से फ़ुर्सत पाते ही वे लौटते हुए बहू बाज़ार आते, जहाँ ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला थी। यह अपने आपमें एक अनूठी संस्था थी, जिसे कलकत्ता के एक डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने वर्षों की कठिन मेहनत और लगन के बाद खड़ा किया था। इस संस्था का उद्देश्य था देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना। अपने महान् उद्देश्यों के बावजूद इस संस्था के पास साधनों का नितांत अभाव था। रामन् इस संस्था की प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए शोधकार्य करते। यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था, जिसमें एक साधक दफ़्तर में कड़ी मेहनत के बाद बहू बाज़ार की इस मामूली-सी प्रयोगशाला में पहुँचता और अपनी इच्छाशक्ति के ज़ोर से भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने के प्रयास करता।
प्रश्न 1: रामन् का पहला शोध पत्र किसमें प्रकाशित हुआ?
(क) टाइम्स अखबार में
(ख) फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में
(ग) फेमिना मैगजीन में
(घ) रिसर्चगेट में
उत्तर: (ख) फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में
प्रश्न 2: रामन् सरकारी काम से समय मिलते ही बहु बाजार क्यों जाते थे?
(क) ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस’ की प्रयोगशाला में शोध करने
(ख) सब्जी खरीदने
(ग) शोध हेतु उपकरण लाने
(घ) इनमे से कोई नहीं
उत्तर: (क) ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस’ की प्रयोगशाला में शोध करने
प्रश्न 3: ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला की स्थापना किसने की?
(क) सर सीवी रमन ने
(ख) सर आशुतोष मुखर्जी
(ग) डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने
(घ) ए.जी. जोशी ने
उत्तर: (ग) डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने
प्रश्न 4: ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला का क्या उद्देश्य था?
(क) अच्छे वैज्ञानिक तैयार करना
(ख) वैज्ञानिक चेतना का विकास करना
(ग) अग्रेजों के लिए आधुनिक तकनीकी विकसित करना
(घ) भारतीयों को शिक्षित करना
उत्तर: (ख) वैज्ञानिक चेतना का विकास करना
3. गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
उस ज़माने के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी को इस प्रतिभावान युवक के बारे में जानकारी मिली। उन्हीं दिनों कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का नया पद सृजित हुआ था। मुखर्जी महोदय ने रामन् के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार कर लें। रामन् के लिए यह एक कठिन निर्णय था। उस ज़माने के हिसाब से वे एक अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे, जिसके साथ मोटी तनख्वाह और अनेक सुविधाएँ जुड़ी हुई थीं। उन्हें नौकरी करते हुए दस वर्ष बीत चुके थे। ऐसी हालत में सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओं वाली विश्वविद्यालय की नौकरी में आने का फ़ैसला करना हिम्मत का काम था।
रामन् सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं को छोड़ सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी में आ गए। रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
प्रश्न 1: रामन् कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कब नियुक्त हुए?
(क) 1915
(ख) 1916
(ग) 1917
(घ) 1918
उत्तर: (ग) 1917
प्रश्न 2: रामन् के समक्ष किसने कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद का प्रस्ताव रखा?
(क) अरिंदम घोष
(ख) सुभाष चन्द्र बोस
(ग) सर आशुतोष मुखर्जी
(घ) इनमे से कोई नहीं
उत्तर: (ग) सर आशुतोष मुखर्जी
प्रश्न 3: रामन् ने किसका अध्ययन किया?
(क) ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का
(ख) पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की
(ग) न्यूटन के गति विषयक नियमों का
(घ) इनमे से कोई नहीं
उत्तर: (क) ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का
प्रश्न 4: सर आशुतोष मुखर्जी कौन थे?
(क) अर्थशास्त्री
(ख) शिक्षाशास्त्री
(ग) भुगोलविद
(घ) नेता
उत्तर: (ख) शिक्षाशास्त्री
4. गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंजनी रंग के प्रकाश में होती है। बैंजनी के बाद क्रमश: नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। इस प्रकार लाल-वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है।
रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। इसका पहला परिणाम तो यह हुआ कि प्रकाश की प्रकृति के बारे में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन के पूर्ववर्ती वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे, मगर आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीत्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने बुलेट से की और इन्हें “फोटॉन’ नाम दिया। रामन् के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन यह साफ़तौर पर प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीत्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है।
रामन् की खोज की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। पहले इस काम के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था। यह मुश्किल तकनीक है और गलतियों की संभावना बहुत अधिक रहती है। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर, पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है।
प्रश्न 1: एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा किस रंग की होती है?
(क) लाल
(ख) पीला
(ग) बैगनी
(घ) नीला
उत्तर: (ग) बैगनी
प्रश्न 2: एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे कम ऊर्जा किस रंग की होती है?
(क) लाल
(ख) पीला
(ग) बैगनी
(घ) नीला
उत्तर: (क) लाल
प्रश्न 3: फोटान की खोज किसने की?
(क) आइंस्टाइन
(ख) प्लांक ने
(ग) सर सीवी रमन ने
(घ) न्यूटन ने
उत्तर: (क) आइंस्टाइन
प्रश्न 4: रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी किस में काम आता था?
(क) पदार्थ की अणु और परमाणु की सरंचना का पता लगाने में
(ख) किरणों के अपवर्तन में
(ग) रंगों के संश्लेषण में
(घ) इनमे से कोई नहीं
उत्तर: (क) पदार्थ की अणु और परमाणु की सरंचना का पता लगाने में
5. गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
रामन् प्रभाव की खोज ने रामन् को विश्व के चोटी के वैज्ञानिकों की पंक्ति में ला खड़ा किया। पुरस्कारों और सम्मानों की तो जैसे झड़ी-सी लगी रही। उन्हें सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। ठीक अगले ही साल उन्हें विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार-भौतिकी में नोबेल पुरस्कार-से सम्मानित किया गया। उन्हें और भी कई पुरस्कार मिले, जैसे रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार आदि। सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वे नोबेल पुरस्कार पानेवाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। उनके बाद यह पुरस्कार भारतीय नागरिकता वाले किसी अन्य वैज्ञानिक को अभी तक नहीं मिल पाया है। उन्हें अधिकांश सम्मान उस दौर में मिले जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। उन्हें मिलने वाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास दिया। विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने एक नयी भारतीय चेतना को जाग्रत किया।
भारतीय संस्कृति से रामन् को हमेशा ही गहरा लगाव रहा। उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को हमेशा अक्षुण्ण रखा। अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी उन्होंने अपने दक्षिण भारतीय पहनावे को नहीं छोड़ा। वे कट्टर शाकाहारी थे और मदिरा से सख्त परहेज़ रखते थे। जब वे नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए तो वहाँ उन्होंने अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन किया। बाद में आयोजित पार्टी में जब उन्होंने शराब पीने से इनकार किया तो एक आयोजक ने परिहास में उनसे कहा कि रामन् ने जब अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन कर हमें आह्वादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, तो रामन् पर अल्कोहल के प्रभाव का प्रदर्शन करने से परहेज क्यों?
रामन् का वैज्ञानिक व्यक्तित्व प्रयोगों और शोधपत्र-लेखन तक ही सिमटा हुआ नहीं था। उनके अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्हें अपने शुरुआती दिन हमेशा ही याद रहे।
प्रश्न 1: रामन् को रॉयल सोसायटी की सदस्यता कब मिली?
(क) 1924
(ख) 1929
(ग) 1954
(घ) 1967
उत्तर: (क) 1924
प्रश्न 2: रामन् को सर की उपाधि कब मिली?
(क) 1924
(ख) 1929
(ग) 1954
(घ) 1967
उत्तर: (ख) 1929
प्रश्न 3: रामन् को विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार-भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से कब सम्मानित किया गया?
(क) 1924
(ख) 1929
(ग) 1927
(घ) 1930
उत्तर: (घ) 1930
प्रश्न 4: रामन् को भारत रत्न कब मिला?
(क) 1924
(ख) 1929
(ग) 1954
(घ) 1967
उत्तर: (ग) 1954
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