ललघद ने अपने वाखों के माध्यम से उस समय समाज में व्याप्त धार्मिक आडंबरों का खुलकर विरोध किया। |
Card: 8 / 20 |
ललघद का मानना था कि भवसागर से पार जाने के लिए सच्चे कर्म ही सहायक सिद्ध होते हैं। |
Card: 10 / 20 |
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इस विचार से यह दर्शाया गया है कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है और हमें किसी व्यक्ति से भेदभाव नहीं करना चाहिए। |
Card: 12 / 20 |
प्रस्तुत पाठ में कवयित्री के कितने वाखों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है? |
Card: 13 / 20 |
कवयित्री ने ईश्वर प्राप्ति हेतु किए जाने वाले प्रयासों की व्यर्थता का उल्लेख किया है। |
Card: 16 / 20 |
इसका अर्थ है कि भोग विलासिता में डूबे रहने से कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि त्याग करने से ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होगा। |
Card: 18 / 20 |
ज्ञानी को स्वयं के अंदर झांककर अपने आप को जानना चाहिए, यही ईश्वर से पहचानने का एकमात्र साधन है। |
Card: 20 / 20 |