प्रश्न-1: युधिष्ठिर ने सात्यकि के प्रसंग में धृष्टद्युम्न से क्या कहा?
उत्तर: युधिष्ठिर धृष्टद्युम्न से बोले-“द्रुपद-कुमार! आपको अभी जाकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण करना चाहिए, नहीं तो डर है कि कहीं आचार्य के हाथों सात्यकि का वध न हो जाए।"
प्रश्न-2: धृष्टद्युम्न ने भीमसेन को क्या विश्वास दिलाया?
उत्तर: धृष्टद्युम्न ने कहा- "तुम किसी प्रकार का चिंता न करो और निश्चित होकर जाओ। विश्वास रखो कि द्रोण मेरा वध किए बिना युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सकेंगे।"
प्रश्न-3: जब युधिष्ठिर को पता चला कि सात्यकि पर संकट आया हुआ है, तब उन्होंने क्या किया?
उत्तर: जब युधिष्ठिर को पता चला कि सात्यकि पर संकट आया हुआ है, तब वह अपने आसपास के वीरों से बोले-“कुशल योद्धा, नरोत्तम और सच्चे वीर सात्यकि आचार्य द्रोण के बाणों से बहुत ही पीड़ित हो रहे हैं। चलो, हम लोग उधर चलकर उस वीर महारथी की सहायता करें।"
प्रश्न-4: धृष्टद्युम्न के किस चाल के कारण कौरव सेना तीन हिस्सों में बँटकर कमजोर पड़ गई?
उत्तर: धृष्टद्युम्न ने सोचा कि जयद्रथ की रक्षा करने हेतु यदि द्रोण भी चले गए, तो अनर्थ हो जाएगा। इस कारण द्रोणाचार्य को रोके रखने के इरादे से उसने द्रोण पर लगातार आक्रमण जारी रखा। धृष्टद्युम्न की इस चाल के कारण कौरव-सेना तीन हिस्सों में बँटकर कमजोर पड़ गई।
प्रश्न-5: सात्यकि ने धृष्टद्युम्न को भीष्म के बाण से किस प्रकार बचाया?
उत्तर: द्रोण ने क्रोध में आकर एक अत्यधिक पैना बाण चलाया। वह पांचालकुमार के प्राण ही ले लेता, यदि सात्यकि का बाण उसे बीच में ही पुनः न काट देता। अचानक सात्यकि के बाण रोक लेने पर द्रोण का ध्यान उसकी ओर चला गया। इसी बीच पांचाल-सेना के रथसवार धृष्टद्युम्न को वहाँ से हटा ले गए।
प्रश्न-6: युधिष्ठिर ने सात्यकि और अर्जुन के प्रसंग में भीमसेन से क्या कहा?
उत्तर: युधिष्ठिर बोले- “भीम, मेरा कहा मानो तो तुम भी अर्जुन के पास चले जाओ और सात्यकि तथा अर्जुन का हालचाल मालूम करो। इसके लिए जो कुछ करना ज़रूरी हो, वह करके वापस आकर मुझे सूचना दो। मेरा कहना मानकर ही सात्यकि अर्जुन की सहायता को कौरव-सेना से युद्ध करता हुआ गया है। यदि तुम उनको कुशलपूर्वक पाओ तो सिंहनाद करना। मैं समझ लूंगा कि सब कुशल है।"
प्रश्न-7: भीमसेन धृष्टद्युम्न से क्या बोले?
उत्तर: वह धृष्टद्युम्न से बोले –“आचार्य द्रोण के इरादे से तो आप परिचित हैं ही। किसी-न-किसी तरह भ्राता युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने का उनका प्रण है। राजा की रक्षा करना ही हमारा प्रथम कर्तव्य है। जब वह स्वयं मुझे जाने की आज्ञा दे रहे हैं, तो उसका भी पालन करना मेरा धर्म हो जाता है। इस कारण भ्राता युधिष्ठिर को आपके ही भरोसे पर छोड़कर जा रहा हूँ। इनकी भली-भाँति रक्षा कीजिएगा।"
प्रश्न-8: श्रीकृष्ण के पांचजन्य की ध्वनि को सुनकर युधिष्ठिर ने सात्यकि से क्या कहा और सात्यकि ने उसका क्या उत्तर दिया?
उत्तर: श्रीकृष्ण के पांचजन्य की ध्वनि को सुनकर युधिष्ठिर चिंतित हो गए और सात्यकि को तुरंत अर्जुन की सहायता को चले जाने को कहा। इस पर सात्यकि ने बड़ी नम्रता से युधिष्ठिर से कहा कि "द्रोण की प्रतिज्ञा तो आप जानते ही हैं। अत: आपकी रक्षा की ज़िम्मेदारी महाराज, वासुदेव और अर्जुन मुझ पर डाल गए हैं। मैं उनकी बात को कैसे टालूँ? आप अर्जुन की ज़रा भी चिंता न करें। अर्जुन को कोई नहीं जीत सकता।”
प्रश्न-9: भीम के सिंहनाद का क्या असर हुआ?
उत्तर: अर्जुन को सुरक्षित देखते ही भीमसेन ने सिंहनाद किया। भीम का सिंहनाद सुनकर श्रीकृष्ण और अर्जुन आनंद के मारे उछल पड़े और उन्होंने भी जोरों से सिंहनाद किया। इन सिंहनादों को सुनकर युधिष्ठिर बहुत ही प्रसन्न हुए। उनके मन से शोक के बादल हट गए।
प्रश्न-10: दुर्योधन मैदान छोड़कर क्यों भाग खड़ा हुआ और इस पर द्रोण ने उसे क्या समझाया?
उत्तर: जिस स्थान पर अर्जुन और जयद्रथ का युद्ध हो रहा था, दुर्योधन भी वहाँ आ पहुँचा मगर थोड़ी ही देर में बुरी तरह हारकर मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ। इस पर द्रोण ने दुर्योधन से कहा- "बेटा दुर्योधन, तुम्हें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। तुम जयद्रथ की सहायता के लिए जाओ और वहाँ जो कुछ करना आवश्यक हो, वह करो।"
प्रश्न-11: कर्ण ने माता कुंती को दिए हुए वचन को कैसे निभाया?
उत्तर: भीम विलक्षण युद्ध करने लगा। मैदान में जो रथ के पहिए, घोड़े, हाथी आदि पड़े हुए थे, उन्हीं को उठा-उठाकर वह कर्ण पर फेकता गया, जिससे उसे क्षणभर भी आराम न मिल पाया। उस समय कर्ण चाहता, तो वह भीम को आसानी से मार सकता था, पर निहत्थे भीम को उसने मारना नहीं चाहा। माता कुंती को दिया हुआ वचन भी उसे याद था कि वह अर्जुन के अतिरिक्त और किसी को युद्ध में न मारेगा।
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1. कुंती कौन थीं? |
2. कुंती का पूरा नाम क्या था? |
3. कुंती की विवाहित स्थिति कैसी थी? |
4. कुंती ने कितने पुत्रों को जन्म दिया था? |
5. कुंती किस प्रकार की माता थीं? |
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