प्रश्न-1: धृतराष्ट्र ने भीम के प्रतिमा के साथ क्या किया?
उत्तर: धृतराष्ट्र ने प्रतिमा को भीम समझकर ज़ोरों से छाती से लगाकर कस लिया और प्रतिमा चूर-चूर हो गई।
प्रश्न-2: युधिष्ठिर स्वंय को दोषी क्यों मान रहे थे और उन्होंने क्या निश्चय किया?
उत्तर: युधिष्ठिर के मन में यह बात समा गई थी कि हमने अपने बंधु-बांधवों को मारकर राज्य पाया है, इससे उनको भारी व्यथा रहने लगी। अंत में उन्होंने वन में जाने का निश्चय किया, ताकि इस पाप का प्रायश्चित हो सके।
प्रश्न-3: धृतराष्ट्र ने भीम की प्रतिमा को ज़ोर से क्यों कस लिया?
उत्तर: वृद्ध राजा ने प्रतिमा को भीम समझकर ज्योंही छाती से लगाया, त्योंही उन्हें याद हो आया कि मेरे कितने ही प्यारे बेटों को इस भीम ने मार डाला है। इस विचार के मन में आते ही धृतराष्ट्र क्षुब्ध हो उठे और उसे ज़ोरों से छाती से लगाकर कस लिया। प्रतिमा चूर-चूर हो गई।
प्रश्न-4: गांधारी ने द्रौपदी से क्या कहा?
उत्तर: गांधारी ने द्रौपदी से कहा-“बेटी, दुखी न होओ। मैं और तुम एक ही जैसी हैं। हमें सांत्वना देनेवाला कौन है? इस सबकी दोषी तो मैं ही हूँ। मेरे ही दोष के कारण आज इस कुल का सर्वनाश हुआ है। पर अब अपने को भी दोष देने से क्या लाभ?”
प्रश्न-5: श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र के पास भीमसेन के स्थान पर लोहे की एक प्रतिमा क्यों भिजवाई?
उत्तर: धृतराष्ट्र के हाव-भाव से श्रीकृष्ण ने अंदाजा लगाया कि इस समय धृतराष्ट्र पुत्र-शोक के कारण क्रोध में हैं। इससे भीम को उनके पास भेजना ठीक न होगा। अतः उन्होंने भीमसेन को तो एक तरफ़ हटा लिया और उसके स्थान पर लोहे की एक प्रतिमा दृष्टिहीन राजा धृतराष्ट्र के आगे लाकर खड़ी कर दी।
प्रश्न-6: धृतराष्ट्र शोक विह्वल क्यों हो गए? कृष्ण ने उन्हें कैसे शांत किया?
उत्तर: धृतराष्ट्र को लगा कि क्रोध में आकर मूर्खतावश उन्होंने भीम की हत्या कर दी। इस पर श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र से कहा-“राजन्, क्षमा करें। मुझे पहले ही से मालूम था कि क्रोध में आकर आप ऐसा काम करेंगे। इसलिए उस अनर्थ को टालने के लिए मैंने पहले से ही उचित प्रबंध कर रखा था। आपने जिसको नष्ट किया है, वह भीमसेन का शरीर नहीं, बल्कि लोहे की मूर्ति थी। आपके क्रोध का ताप उस पर ही उतरकर शांत हो गया। भीमसेन अभी जीवित है।”
प्रश्न-7: युद्ध में विजय पाकर भी युधिष्ठिर खुश क्यों नहीं थे? इस पर धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से क्या कहा?
उत्तर: युधिष्ठिर के मन में यह बात समा गई थी कि हमने अपने बंधु-बांधवों को मारकर राज्य पाया है, इससे उनको भारी व्यथा रहने लगी। धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को सांत्वना देते हुए बोले-“बेटा, तुम्हें इस तरह शोक विह्वल नहीं होना चाहिए। दुर्योधन ने जो मूर्खताएँ की थीं, उनको सही समझकर मैंने धोखा खाया। इस कारण मेरे सौ-के-सौ पुत्र उसी भाँति काल-कवलित हो गए, जैसे सपने में मिला हुआ धन नींद खुलने पर लुप्त हो जाता है। अब तुम्हीं मेरे पुत्र हो। इस कारण तुम्हें दुखी नहीं होना चाहिए।”
40 videos|122 docs
|
|
Explore Courses for Class 7 exam
|