प्रश्न 1: राजसूय यज्ञ का ठाट-बाट तथा पांडवों की यश समृद्धि का दुर्योधन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: राजसूय यज्ञ का ठाट-बाट तथा पांडवों की यश समृद्धि का स्मरण ही दुर्योधन के मन को खाए जा रहा था। वह ईर्ष्या की जलन से बेचैन हो रहा था।
प्रश्न 2: दुर्योधन के कहने पर धृतराष्ट्र पांडवों को चौसर के खेल में बुलाने के लिए क्यों मान गए?
उत्तर: अपने बेटे पर उनका असीम स्नेह उनकी कमज़ोरी थी और यही कारण था कि उन्होंने बेटे की बात मान ली।
प्रश्न 3: जुए के खेल के संबंध में विदुर की क्या राय थी?
उत्तर: जुए के खेल के संबंध में विदुर बोले - “राजन, सारे वंश का इससे नाश हो जाएगा। इसके कारण हमारे कुल के लोगों में आपसी मनमुटाव और झगड़े-फसाद होंगें। इसकी भारी विपदा हम पर आएगी।”
प्रश्न 4: शकुनि ने दुर्योधन को पांडवों पर विजय पाने का कौन सा उपाय बताया?
उत्तर: शकुनि ने कहा - “दुर्योधन को चौसर के खेल का बड़ा शौक है। पर उसे खेलना नहीं आता है। हम उसे खेलने के लिए न्यौता दें, तो युधिष्ठिर अवश्य मान जाएगा। तुम तो जानते ही हो कि मैं मँजा हुआ खिलाड़ी हूँ। तुम्हारी ओर से मैं खेलूँगा और युधिष्ठिर को हराकर उसका सारा राज्य और ऐश्वर्य, बिना युद्ध के आसानी से छीन कर तुम्हारे हवाले कर दूँगा।”
प्रश्न 5: युद्ध की संभावना ही मिटा देने के उद्देशय से युधिष्ठिर ने क्या शपथ ली?
उत्तर: युद्ध की संभावना ही मिटा देने के उद्देशय से युधिष्ठिर ने शपथ ली कि "आज से तेरह बरस तक मैं अपने भाइयों या किसी और बंधु को बुरा-भला नहीं कहूँगा। सदा अपने भाई-बंधुओं की इच्छा पर ही चलूँगा। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा, जिससे आपस में मनमुटाव होने का डर हो, क्योंकि मनमुटाव के कारण ही झगड़े होते हैं। इसलिए मन से क्रोध को एकबारगी निकाल दूँगा। दुर्योधन और दूसरे कौरवों की बात कभी न टालूँगा। हमेशा उनकी इच्छानुसार काम करूँगा।”
प्रश्न 6: शकुनि ने दुर्योधन को किस प्रकार सांत्वना दिया?
उत्तर: शकुनि ने दुर्योधन को सांत्वना देते हुए कहा - "बेटा दुर्योधन! इस तरह मन छोटा क्यों करते हो? आखिर पांडव तुम्हारे भाई ही तो हैं। उनके सौभाग्य पर तुम्हें जलन नहीं होनी चाहिए। न्यायपूर्वक जो राज्य उनको प्राप्त हुआ है, उसी का तो उपभोग वे कर रहे हैं। पांडवों ने किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं हैं। जिस पर उनका अधिकार था, वही उन्हें मिला है। अपनी शक्ति से प्रयत्न करके यदि उन्होंने अपना राज्य तथा सत्ता बढ़ा ली है, तो तुम जी छोटा क्यों करते हो? और फिर पांडवों की शक्ति और सौभाग्य से तुम्हारा क्या बिगड़ता है? तुम्हें कमी किस बात की है? द्रोणाचार्य, अश्वथामा तथा कर्ण जैसे महावीर तुम्हारे पक्ष में हैं। यही नहीं, बल्कि मैं, भीष्म, कृपाचार्य, जयद्रथ, सोमदत्त सब तुम्हारे साथ हैं। इन साथियों की सहायता से तुम सारे संसार पर विजय पा सकते हो। फिर दुःख क्यों करते हो?"
प्रश्न 7: किसने किससे कहा?
(i) “चौसर का खेल कोई हमने तो ईजाद किया नहीं है। यह तो हमारे पूर्वजों का ही चलाया हुआ है।”
उत्तर: दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से कहा।
(ii) “राजन, सारे वंश का इससे नाश हो जायेगा।”
उत्तर: विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा।
(iii) "युद्ध की तो बात ही न करो। वह खतरनाक काम है। तुम पांडवों पर विजय पाना चाहते हो, तो युद्ध के बजाए चतुराई से काम लो।”
उत्तर: शकुनि ने दुर्योधन से कहा।
(iv) “बेटा! यों चिंतित और उदास क्यों खड़े हो? कौन सा दुख तुमको सता रहा है?”
उत्तर: शकुनि ने दुर्योधन से कहा।
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1. शकुनि का प्रवेश क्या है? |
2. शकुनि किसके द्वारा लिखा गया था? |
3. शकुनि की कहानी क्या है? |
4. शकुनि में पात्रों के बारे में क्या है? |
5. शकुनि का प्रवेश क्यों महत्वपूर्ण है? |
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