प्रश्न 1. सूर्य के सामने कौन नृत्य करता है?
सूर्य के सामने बादल, रंगीन नर्तकियों के समान, नृत्य करता है।
प्रश्न 2. समुद्र किस प्रकार दहाड़ता है?
समुद्र, एक वीर की तरह दहाड़ता है।
प्रश्न 3. रत्नाकर और कंगूरा का शब्दार्थ बताइए।
रत्नाकर - रत्नों की खान।
कंगूरा – गूंबद
प्रश्न 4. कवि प्रकृति के नूतन रूप को देख कर क्या प्रकट करना चाहता है?
कवि प्रकृति के नूतन रूप को देखकर, प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य, प्रकट करना चाहता है। कवि कहता है, कि प्रकृति का सौंदर्य बहुत ही अद्भुत है।
प्रश्न 5. सागर के तट पर खड़ा कवि, क्या देखता है?
सागर के तट पर खड़ा कवि, सूर्य का उदित रूप देखता है।
प्रश्न 6. कौन नीले गगन और समुद्र का, कोना- कोना देखना चाहता है ?
पथिक, नीले गगन और समुद्र का कोना-कोना देखना चाहता है। पथिक का मन, बादलों पर बैठ कर सारे नील गगन में घूमने को करता है। पथिक समुद्र के लहरों पर सवार होके समुद्र का कोना-कोना भी देखना चाहता है।
प्रश्न 7. सूर्य के प्रकाश से बनी सड़क, कैसी प्रतीत होती है?
सूर्य के प्रकाश से बनी सड़क, सुनहरी प्रतीत होती है। वह सड़क ऐसी प्रतीत होती है के सूर्य की किरणे मिलकर एक चौड़ी सड़क का निर्माण कर रही हो, जो मानो लक्ष्मी का स्वागत कर रही हों।
प्रश्न 8. कवि, प्रकृति को चित्रकार के रूप में क्यों वर्णित करते हैं?
कवि, प्रकृति को चित्रकार के रूप में इसलिए वर्णित करते हैं क्योंकि, प्रकृति पूरी दुनिया को अंधेरे से ढककर, आसमान में तारे छिटकती हैं। इसलिए कवि ने प्रकृति को चित्रकार के रूप में वर्णित किया है।
प्रश्न 9. कौन सी प्राकृतिक क्रियाएं, मानवीय प्रक्रिया को दर्शाती है?
प्रकृति द्वारा ऐसी बहुत क्रियाएं होती है जो कि मानवीय प्रक्रिया को दर्शाती है। जैसे कि प्रकृति के प्यार पर चांद को हंसना, पेड़ों द्वारा खुद को फूलों से सजाकर उत्सव मनाना, इत्यादि सभी प्राकृतिक क्रियाएं हैं जो मानवीय प्रक्रिया को दर्शाती है।
प्रश्न 10. सूर्य के उदित रूप को देखकर, कवि क्या कहता है?
सूर्य के उदित रूप को देखकर, कवि कहते हैं कि, जब समुद्र के जल की सतह से सूर्य का अधूरा प्रतिबिंब उभरता है तो ऐसा लगता है, कि जैसे लक्ष्मी के स्वर्ण मंदिर का कंगूरा है।
प्रश्न 11. सूर्योदय का वर्णन कैसे किया गया है?
कविता में, कवि के द्वारा, सूर्योदय का बहुत ही सुंदर वर्णन किया गया है। सूर्योदय का सुंदर वर्णन करते हुए, कवि ने लिखा है, कि समुद्र तल से उगते हुए सूर्य का अधूरा बिंब, अपनी प्रातः कालीन आभा के कारण बहुत ही मनोहर दिख रहा है। कवि आगे कहते हैं, कि सूर्य को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है, कि जैसे वह मंदिर का कंगूरा हो। समुद्र में, सूर्य के कारण, फैली लालिमा लक्ष्मी मंदिर के समान लग रही है। सूर्य के प्रकाश के द्वारा फैली चमक, ऐसा प्रतीत हो रही है- मानो, वह लक्ष्मी का स्वागत कर रही हो।
प्रश्न 12. कवि ने रात्रि का वर्णन कैसे किया है?
कवि ने रात्रि के सौंदर्य का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। कवि लिखते हैं, कि अंधेरी रात में जब आसमान में तारे टिमटिमाते हैं तो ऐसा लगता है, मानो दुनिया के स्वामी मंद मंद मुस्कुराते हुए, तट पर खड़े होकर, आकाशगंगा से मधुर गीत गाते हैं। रात्रि के सौंदर्य का वर्णन करने के लिए कवि ने लिखा है :-
“ सस्मित वदन जगत का स्वामी, मृदु गति से आता हैं।
तट पर खड़ा, गगन गंगा के मधुर गीत गाता है।”
कवि कहते हैं ,कि आकाश में तारों के द्वारा जो सौंदर्य देखने को मिलता है, उसे देखकर इस संसार को बनाने वाले स्वामी, खुशी से गीत गाते हैं।
प्रश्न 13. कवि समुद्र के सौंदर्य को क्या कहते हैं?
कवि, समुद्र के सौंदर्य को एक प्रेम कहानी की तरह देखते हैं। कवि कहते हैं, कि समुद्र के तट का सौंदर्य इतना मनमोहक है, कि यह किसी प्रेम कहानी की तरह प्रतीत होता है। कवि का कहना है, कि समुद्र तट से प्रकृति का दृश्य, इतना सुंदर है ,कि ऐसा लगता है, कि कोई प्रेम कहानी चल रही हो और कवि उस कहानी को अपने शब्दों में व्यक्त करना चाहते है। कवि प्रकृति के सौंदर्य का आनंद पूरी दुनिया के साथ साझा करना चाहते हैं।
प्रश्न 14. पथिक कविता का सारांश बताइए।
पथिक कविता में, कवि ने, एक ऐसे पथिक का वर्णन किया है जो प्रकृति के सौंदर्य से प्रभावित होकर, वही बसना चाहता है। वह संसार के दुखों से विरक्त हो चुका है। उसे प्रकृति का सौंदर्य सच्चा लगता है और इसी कारण से वह प्रकृति के पास रहना चाहता है। पथिक, साधुओं की बातों से प्रभावित होकर देश सेवा का प्रण लेता है। वह सागर की सुंदरता से भी मोहित है। प्रकृति का सौंदर्य उसे कोई प्रेम कहानी की तरह प्रतीत होती है। कवि ने इस कविता की रचना में प्रेम, भाषा तथा कल्पना का संयोग किया हैं।
प्रश्न 15. “ प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर, रंग बिरंग निराला।…………कोने- कोने मे लहरों पर बैठे फीरु जी भर के।” इन पंक्तियों का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
इन पंक्तियों में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। इन पंक्तियों में खड़ी बोली एवं मुक्तक छंद है। यह एक संगीतात्मक पंक्ति है। नीचे नील, नीलगगन में अनुप्रास अलंकार है। इन पंक्तियों में कुछ तत्सम शब्दों का भी प्रयोग किया गया है जैसे प्रतिक्षण, नूतन आदि।
प्रश्न 16. “ प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर, रंग बिरंग निराला।…………. कोने- कोने मे लहरों पर बैठे फीरु जी भर के।” इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उपयुक्त पंक्तियों के माध्यम से, कवि ने दुनिया के दुखों से दुखी पथिक की संवेदना और भावनाओं को दर्शाया है। कवि कहते हैं, कि आसमान में बादल सूर्य के सामने अलग-अलग रूप बनकर, इधर उधर भटकते रहते हैं। जिसके कारण, यह रंग बिरंगे बादल नृत्य करते हुए, प्रतीत होते हैं। कवि का मन है कि, इन बादलों पर बैठकर, वह नीले आकाश तथा नीले समुद्र के बीच विचरण करें। आगे कवि कहते हैं, कि समुद्र गर्जना कर तथा हवाई, मलय पर्वत से सुगंध लेकर आ रही है। यह दृश्य, कवि के मन को पूरी तरह से मोह ले रहा है और कवि की इच्छा है, कि वह समुद्र की लहरों पर बैठकर, समुद्र के कोने- कोने को देखे।
प्रश्न 17. “निकल रहा है जलनिधि……. …. . . . अनुराग भरी कल्याणी।” इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
इन पंक्तियों द्वारा कवि ने सूर्य के सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि कहते हैं, कि समुद्र के सतह से सूर्य ऐसे निकलता है, कि आधा सूर्य जल के नीचे रहता है और आधा सूर्य जल के ऊपर। इसलिए कवि कहते हैं, कि सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है। सूर्य की लालिमा, भगवान लक्ष्मी के स्वर्ण मंदिर का कंगूरा लगती है। समुद्र के तल से निकलती हुई सूर्य की किरणे , ऐसी प्रतीत होती हैं, जैसे वह भगवान लक्ष्मी के स्वागत के लिए सड़क बना रही हो। समुद्र की गर्जना भय रहित, मजबूत तथा गंभीर है। प्रकृति का यह सौंदर्य, कवि को प्रसन्न कर देता है। प्रकृति का यह सुंदर दृश्य का कोई मुकाबला नहीं है।
प्रश्न 18. “ जब गंभीर तम, अद्धत दिशा में, जग को ढक लेता है।………
फूल सांस लेकर, सुख की सनद महक उठते हैं।” इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने आकाश गंगा की सुंदरता एवं ईश्वर गीत से प्रसन्न, प्रकृति की सुंदरता का वर्णन किया है। कवि कहते हैं, कि रात्रि में आकाश में चमकते तारे बिखरे हुए रहते हैं। तारों का सौंदर्य देख कर, ईश्वर समुद्र तट पर खड़े होकर आकाश गंगा के सौंदर्य की गीत गाते हैं। ईश्वर के इस कार्य से चाँद मुग्ध हो जाता है और खुद को सजाने लगता है। सभी वृक्ष अपने तनों को फूलों तथा पत्तों से सजा लेते हैं। फूल प्रसन्नता से महकने लगते हैं तथा पक्षी प्रसन्नता से चहकने लगते हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने स्वयं के प्रति प्रकृति प्रेम को दर्शाया है।
प्रश्न 19. “वन, उपवन, गिरी, सानू, कुंज मे मेघ बरस पड़ते हैं। .. अहा! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है।” इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहते हैं ,कि प्रकृति को देखकर ऐसा लगता है जैसे कि, वह कोई प्रेम लीला कर रही हैं। प्रकृति का दृश्य बहुत ही मनमोहक है। प्रकृति का दृश्य किसी प्रेम कहानी की तरह प्रतीत होती है। कवि कहते हैं, कि प्रकृति के प्रेम लीला को देखकर मेघ बरसने लगते हैं। यह सब देख कर, पथिक भावुक हो जाता है और उसके आंखों से आंसू बहने लगते हैं। वह अपनी प्रेमिका से कहता है, कि समुद्र की लहरें, आकाश, पेड़ तथा पर्वतों का दृश्य बहुत मनमोहक और सुंदर है। प्रकृति को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह एक प्रेम कहानी है जो बहुत ही मधुर, पवित्र और मंत्रमुग्ध है। कभी कहते हैं, कि पथिक यह सब देखकर चाहता है कि यह प्रेम कहानी पूरे विश्व में फैले। प्रकृति का जो आनंद है, वह पूरे देश में फैले। प्रकृति जैसी पवित्रता पूरे विश्व में फैले जिससे शांति आए।
प्रश्न 20. “ निकल रहा है जलनिधि तल पर दिनकर बिना अधूरा।… … रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण सड़क अति प्यारी।” इन पंक्तियों में प्रयुक्त शिल्प सौंदर्य बताइए।
इन पंक्तियों में कवि ने अद्भुत कल्पनाओं का वर्णन किया है। कवि ने प्राकृतिक दृश्यों का मानवीकरण किया है, जैसे रत्नाकर। इन पंक्तियों में अनुप्रास एवं उत्प्रेक्षा अलंकारो का प्रयोग किया गया है। ‘कमला के कंचन’ में अनुप्रास तथा ‘कमला के कंचन मंदिर का मानो कात कंगूरा’ मे उत्प्रेक्षा अलंकार है। कवि ने इन पंक्तियों द्वारा सुंदर कल्पनाओं का वर्णन किया है। उदाहरण स्वरूप देख सकते हैं, कि कवि ने लिखा है, ‘समुद्र की लहरों के उठने से बनने वाला दृश्य , लक्ष्मी का मंदिर लगता है तथा सूर्य के किरणों से, लक्ष्मी का स्वागत करने वाला सड़क प्रतीत होता है।’ इन पंक्तियों में प्रयोग कि गयी भाषा खड़ी बोली है तथा तत्सम शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
|
Explore Courses for Humanities/Arts exam
|