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सूरदास के पद NCERT Solutions | Hindi Class 8 PDF Download

पाठ 15 - सूरदास के पद, हिंदी, वसंत, भाग- III

(NCERT Solutions Chapter 15 - Surpad Ke Pad, Class 8, Hindi Vasant III)

प्रश्न अभ्यास

पदों से

प्रश्न 1. बालक श्रीकृष्ण किस लोभ के कारण दूध पीने के लिए तैयार हुए?
उत्तर

बालक श्रीकृष्ण अपनी चोटी बलराम जी की चोटी की तरह मोटी और बड़ी करना चाहते थे इस लोभ के कारण वे दूध पीने के लिए तैयार हुए चूँकि उनकी माता यशोदा बताया की दूध पीने से उनकी चोटी बलराम भैया की तरह हो जाएगी।
प्रश्न 2. श्रीकृष्ण अपनी चोटी के विषय में क्या-क्या सोच रहे थे?
उत्तर

श्रीकृष्ण बलराम भैया की तरह लम्बी, मोटी चोटी चाहते हैं। उनके अनुसार नहाते वक्त जैसे बलराम भैया की चोटी नागिन जैसी लहराती है वह भी उसी प्रकार की चोटी चाहते हैं और इसी विषय में सोचा करते हैं।
प्रश्न 3. दूध की तुलना में श्रीकृष्ण कौन-से खाद्य पदार्थ को अधिक पसंद करते हैं?
उत्तर

दूध की तुलना में श्रीकृष्ण को माखन-रोटी अधिक प्रिय है।
प्रश्न 4. 'तैं ही पूत अनोखौ जायौ'- पंक्तियों में ग्वालन के मन के कौन-से भाव मुखरित हो रहे हैं?
उत्तर

यहाँ पर ग्वालन के हृदय में यशोदा के लिए ईर्ष्या की भावना व क्रोध के भाव मुखरित हो रहे हैं। जहाँ वे एक तरफ कृष्ण का यशोदा पुत्र होने की वजह से ईर्ष्या से ग्रसित हैं वहीं दूसरी और उसके द्वारा चोरी व सारा माखन खाने से क्रोधित हैं। इसलिए वह यशोदा माता को उलाहना दे रही हैं।
प्रश्न 5. मक्खन चुराते और खाते समय श्रीकृष्ण थोड़ा-सा मक्खन बिखरा क्यों देते हैं?
उत्तर

श्रीकृष्ण माखन चुराते समय आधा माखन खुद खाते हैं व आधा अपने सखाओं को खिलाते हैं। जिसके कारण माखन जगह-जगह ज़मीन पर गिर जाता है।
प्रश्न 6. दोनों पदों में से आपको कौन-सा पद अधिक अच्छा लगा और क्यों?
उत्तर

दोनों पदों में प्रथम पद सबसे अच्छा लगता है। क्योंकि यहाँ श्रीकृष्ण अपने बालपन के कारण माता से अनुनय-विनय करते हैं कि तुम्हारे कहने पर मैंने दूध पिया पर फिर भी मेरी चोटी नहीं बढ़ रही। उनकी माता से उनकी नाराज़गी व्यक्त करना, दूध न पीने का हट करना, बलराम भैया की तरह चोटी पाने का हट करना हृदय को बड़ा ही आनन्द देता है। ये पद श्रीकृष्ण की बाल-लीला के कारण मनोहारी जान पड़ता है जिसे सूरदास जी ने बड़े ही उत्तम ढ़ंग से प्रस्तुत किया है।
भाषा की बात
प्रश्न 1. श्रीकृष्ण गोपियों का माखन चुरा-चुराकर खाते थे इसलिए उन्हें माखन चुरानेवाला भी कहा गया है। इसके लिए एक शब्द दीजिए।
उत्तर

माखनचोर
प्रश्न 2.  श्रीकृष्ण के लिए पाँच पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर

गोविन्द, रणछोड़, वासुदेव, मुरलीधर, नन्दलाल।
प्रश्न 3. कुछ शब्द परस्पर मिलते-जुलते अर्थवाले होते हैं, उन्हें पर्यायवाची कहते हैं। और कुछ विपरीत अर्थवाले भी। समानार्थी शब्द पर्यायवाची कहे जाते हैं और विपरीतार्थक शब्द विलोम, जैसे-

पर्यायवाची-  

चंद्रमा-शशि, इंदु, राका
मधुकर-भ्रमर, भौंरा, मधुप
सूर्य-रवि, भानु, दिनकर
विपरीतार्थक- 

दिन-रात
श्वेत-श्याम
शीत-उष्ण
पाठों से दोनों प्रकार के शब्दों को खोजकर लिखिए।

उत्तर
पर्यायवाची शब्द
बेनी - चोटी
काढ़त - गुहत
बलराम - दाऊ, हलधर
मैया - जननी, माँ, माता
दूध - दुग्ध, पय, गोरस
ढोटा - सुत, पुत्र, बेटा
विपरीतार्थक शब्द
लम्बी - छोटी
स्याम - श्वेत
रात - दिन
प्रकट - ओझल
संग्रह - विग्रह
विज्ञ - अज्ञ

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FAQs on सूरदास के पद NCERT Solutions - Hindi Class 8

1. सुरदास कौन थे और उनका योगदान क्या है ?
Ans. सुरदास एक प्रसिद्ध संत कवि थे, जो 15वीं सदी में भारत में सक्रिय रहे। वे भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक माने जाते हैं। सुरदास ने भगवान कृष्ण की लीलाओं और भक्ति पर कई पद लिखे, जो सरल भाषा और भावनाओं से भरे हुए हैं। उनका योगदान भारतीय साहित्य में अद्वितीय है और उनके पद आज भी लोगों में लोकप्रिय हैं।
2. सुरदास के पदों की विशेषताएँ क्या हैं ?
Ans. सुरदास के पदों की विशेषताएँ उनकी सरलता, भावनात्मक गहराई, और भक्ति भावना हैं। उनके पदों में प्रेम, भक्ति, और भगवान के प्रति समर्पण की भावना प्रमुखता से देखने को मिलती है। वे अक्सर गेय रूप में होते हैं, जिससे उनका पाठक या श्रोता आसानी से उन्हें गा सकता है। इसके अलावा, सुरदास ने लोक भाषा का प्रयोग किया, जिससे आम जनमानस तक उनकी बात पहुँच सके।
3. सुरदास के प्रसिद्ध पद कौन से हैं ?
Ans. सुरदास के कई प्रसिद्ध पद हैं, जिनमें "मेरा मन तो वृन्दावन में है", "कन्हैया की लीला", और "राधा कृष्ण की भक्ति" शामिल हैं। इनके अलावा, "गोपियाँ और कृष्ण" पर आधारित पद भी अत्यंत लोकप्रिय हैं। ये पद उनकी भक्ति की गहराई और कृष्ण के प्रति उनके प्रेम को दर्शाते हैं।
4. सुरदास के जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख घटनाएँ क्या हैं ?
Ans. सुरदास का जीवन कई महत्वपूर्ण घटनाओं से भरा हुआ था। कहा जाता है कि उन्होंने बचपन में आँखों की रोशनी खो दी थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने भगवान कृष्ण की भक्ति में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने संत वल्लभाचार्य से भक्ति की प्रेरणा प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने अपने पदों के माध्यम से कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करना शुरू किया।
5. सुरदास की रचनाएँ किस भाषा में हैं और उनका महत्व क्या है ?
Ans. सुरदास की रचनाएँ मुख्यतः हिंदी भाषा में हैं, विशेषकर ब्रज भाषा में। उनका महत्व इस बात में है कि उन्होंने भक्ति साहित्य को एक नई दिशा दी और आम जनता के बीच धार्मिकता को फैलाने का कार्य किया। उनकी रचनाएँ न केवल भक्ति भावना को व्यक्त करती हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा को भी समृद्ध करती हैं।
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