यह कविता हरिवंशराय बच्चन जी ने लिखी है। इस कविता में एक छोटा सा चूजा चिड़िया के बारे में है। वह बहुत जल्दी से उड़ना चाहता है ताकि वह पूरी दुनिया को देख सके और इसके बारे में जान सके। इस चूजे का नाम है चुरुंगुन। चुरुंगुन अपने घोंसले से बाहर निकलता है और डालियों और पत्तियों को देखता है। जब पत्तियाँ सरसराती हैं तो उसे लगता है कि वे एक दूसरे से बातें कर रही हैं। उसे लगता है कि वह उड़ना सीख लिया है। लेकिन जब वह अपनी माँ से पूछता है कि क्या उसे उड़ना आ गया है, तो उसकी माँ कहती है कि नहीं, यह सिर्फ उसकी सोच का भ्रम है।
चुरुंगुन एक डाली से दूसरी डाली पर कूदता है और फूलों और कलियों को देखता है। जब वह पेड़ के नीचे झांकता है, तो उसे जड़ों के बारे में पता चलता है। जब वह फिर से पूछता है कि क्या उसे उड़ना आ गया है, तो उसकी माँ कहती है कि यह सिर्फ उसकी भ्रमनिश्चयक शक्ति है।
अपने आसपास की दुनिया को जानने और समझने के लिए चुरुंगुन कुछ फल खाता है और कुछ को नीचे गिरा देता है। इस तरह से उसे अभी-अभी ताजगी से पके और अपके फलों की पहचान हो जाती है। उसे लगता है कि वह मस्ती के लिए अपने साथी चूजों को अपने रास्ते पर देख रहा है। वह अपनी माँ से अपना सवाल दोहराता है, लेकिन उसे फिर से वही जवाब मिलता है कि उसे उड़ने में थोड़ा समय लगेगा।
अब चुरुंगुन थोड़ा बड़ा हो चुका है। अब वह एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर भी चल सकता है। कभी-कभी वह धरती पर जाकर दाना भी चुगता है। लेकिन फिर भी उसकी माँ कहती है कि उसे अभी ठीक से उड़ना नहीं आया है।
अब चुरुंगुन को ऐसा लगता है कि नीला आसमान उसे लगातार बुला रहा है। उसे लगता है कि उसके अंदर से कोई ताकत कह रही है कि जोर लगा के उड़ जा और पंख फड़फड़ाते हुए बस उड़ता रहे। इस बार जब वह अपनी माँ से पूछता है कि क्या उसे उड़ना आ गया है, तो उसकी माँ का जवाब अलग होता है। उसकी माँ कहती है कि हाँ, उसके शरीर में ताकत आ चुकी है और उसके पंख इतने मजबूत हो चुके हैं कि वह उड़ने का पूरा आनंद ले सकता है।
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