Class 9 Exam  >  Class 9 Notes  >  Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan)  >  Previous Year Questions: रैदास के पद

Previous Year Questions: रैदास के पद | Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

Very Short Answer Type Questions

प्रश्न 1: रैदास ने चकोर पक्षी का उदाहरण किस संदर्भ में दिया है?  [2025]
उत्तर: 
रैदास ने चकोर पक्षी का उदाहरण भक्त के प्रभु के प्रति अनन्य प्रेम और एकाग्रता को दर्शाने के लिए दिया है, जैसे चकोर चाँद को एकटक निहारता है।

प्रश्न 2: कवि ने स्वयं को पानी मानकर प्रभु को क्या माना है? ‘रैदास के पद’ के आधार पर लिखिए।  [2024]
उत्तर: 
कवि ने स्वयं को पानी मानकर प्रभु को चंदन माना है।

प्रश्न 3: कवि स्वयं को क्या-क्या बताता है?  [2023]
उत्तर:
 कवि स्वयं को पानी, मोर, चकोर, बाती, धागा और दास बताता है।

प्रश्न 4: कवि रैदास कैसी भक्ति करना चाहता है?  [2021]
उत्तर:
 कवि रैदास ऐसी भक्ति करना चाहता है, जिसमें वह सदा प्रभु का दास बना रहे और प्रभु के साथ सुहागे की तरह सोने में मिलकर एकाकार हो जाए।

प्रश्न 5: तुम घन बन हम मोरा-ऐसी कवि रैदास ने क्यों कहा है?  [2020]
उत्तर: 
रैदास अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं, जिन्हें अपने आराध्य को देखने से असीम खुशी मिलती है। कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि वन में रहने वाला मोर बादलों को देखकर प्रसन्न होता है, जैसे कवि अपने आराध्य को देखकर खुश होता है।

Short Answer Type Questions

प्रश्न 1: रैदास ईश्वर के साथ किन-किन रूपों में एकाकार हो गए हैं? [2024]
उत्तरः रैदास ईश्वर के साथ चंदन-पानी, घन-मोर, चाँद-चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा और सोना-सुहागा रूपों में एकाकार हो गए हैं।
व्याख्यात्मक हल:
रैदास की आत्मा परमात्मा के प्रेम में उसी तरह एकाकार हो गई है, जैसे चंदन की सुगंध पानी में, मोर का आनंद घन (बादल) में, चकोर का प्रेम चाँद में, बाती की ज्योति दीपक में, धागे की उपयोगिता मोती में और सुहागे की शुद्धता सोने में समा जाती है। ये सभी एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।

प्रश्न 2: रैदास की भक्ति में कौन-सा भाव उभरकर आया है? उनकी कविता से प्रमाण दीजिए।  [2022]
उत्तरः दास्यमान, प्रमाण -‘तुम स्वामी हम दासा’
व्याख्यात्मक हल:
रैदास की भक्ति दास्य भाव की है, जिसमें वे स्वयं को प्रभु का दास और प्रभु को स्वामी मानते हैं। वे कहते हैं, "तुम स्वामी हम दासा," जो उनकी प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण और नम्रता को दर्शाता है।

प्रश्न 3: अनेक साधु-सन्तों के नाम लेकर कवि क्या स्पष्ट करना चाहते हैं? [2021]
उत्तरः अनेक साधु सन्तों के नाम लेकर कवि ईश्वर की दयालुता को स्पष्ट करना चाहते हैं। वे निम्न कोटि के व्यक्तियों को भी अपनी कृपा से उच्च पद प्रदान करते हैं। वे दीनदुखियों के सहायक हैं।
व्याख्यात्मक हल:
रैदास इन संतों का उदाहरण देकर यह दर्शाते हैं कि ईश्वर जाति-भेद से परे हैं और अपनी कृपा से निम्न वर्ग के भक्तों, जैसे नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन को भी समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाते हैं, जो उनकी दयालुता और समदर्शी स्वभाव को प्रकट करता है।


प्रश्न 4: रैदास के इन पदों का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।  [2020] 
उत्तरः रैदास के दो पद संकलित हैं। दोनों पदों में ईश्वर के गुणों का बखान करके उसका गुणगान किया गया है। प्रथम पद में ईश्वर को महान् एवं स्वयं को उसका दास बताया है। दूसरे पद में प्रभु को अछूतों, गरीबों तथा दीनों का उद्धारक बताया गया है प्रभु अपनी कृपा से अछूतों को भी समाज में सम्मानजनक पद दिलवा देता है। हमें उसी ईश्वर की पूजा-उपासना करनी चाहिए।

Long Answer Type Questions

प्रश्न 1: कवि रैदास ने अपने पद के माध्यम से तत्कालीन समाज का चित्रण किस प्रकार किया है?  [2025]
उत्तरः 

  • कवि रैदास ने अपने पद ‘ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै’ में सामाजिक छुआछूत एवं भेदभाव की तत्कालीन स्थिति का अत्यंत मार्मिक एवं यथार्थ चित्र खींचा है।
  • उन्होंने अपने पद में कहा है कि गरीब एवं दीन-दुखियों पर कृपा बरसाने वाला एकमात्र प्रभु है।
  • उन्होंने ही एक ऐसे व्यक्ति के माथे पर छत्र रख दिया है, राजा जैसा सम्मान दिया है, जिसे जगत के लोग छूना भी पसंद नहीं करते।
  • समाज में निम्न जाति एवं निम्न वर्ग के लोगों को तिरस्कारपूर्ण दृष्टि से देखा जाता था, ऐसे समाज में प्रभु ही उस पर द्रवित हुए।
  • कवि द्वारा नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन आदि संत कवियों का दिया गया उदाहरण दर्शाता है कि लोग निम्न जाति के लोगों के उच्च कर्म पर विश्वास भी मुश्किल से करते थे।

प्रश्न 2: कवि रैदास अन्य कवियों जैसे नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना एवं सैन की चर्चा क्यों करते हैं?  [2023]
उत्तरः कवि रैदास ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन जैसे निम्न वर्ग के संतों का उल्लेख इसलिए किया है ताकि यह स्पष्ट हो कि ईश्वर की कृपा से निम्न जाति या वर्ग के लोग भी भवसागर से पार होकर सम्मान और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। ये उदाहरण ईश्वर की दयालुता, समदर्शिता और सर्वशक्तिमानता को दर्शाते हैं, जो भेदभाव से परे सभी भक्तों का उद्धार करते हैं। कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि भक्ति के माध्यम से कोई भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 3: रैदास के पदों के माध्यम से हमें क्या संदेश मिलता है?  [2022]
उत्तरः रैदास के पदों से हमें यह संदेश मिलता है कि ईश्वर ही हर असंभव कार्य को संभव करने का सामथ्र्य रखता है। ईश्वर सदैव श्रेष्ठ और सर्वगुण सम्पन्न रहा है। अतः हमें उस भगवान की शरण में जाना चाहिए क्योंकि वही हमें इस संसार रूपी सागर से पार लगा सकता है। ईश्वर ने जात-पात, अमीर-गरीब के भेदभाव को न मान ऐसे-ऐसे अछूतों का उद्धार किया है जिन्हें समाज ने ठुकरा दिया था। अतः हमें ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए।

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FAQs on Previous Year Questions: रैदास के पद - Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan)

1. रैदास कौन थे और उनका योगदान क्या था?
Ans. रैदास एक प्रसिद्ध संत और कवि थे, जो 15वीं शताब्दी में भारत में जन्मे। उन्होंने भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और जातिवाद के खिलाफ अपने पदों के माध्यम से समता और भाईचारे का संदेश फैलाया। उनके पदों में भक्ति, प्रेम और समाज सुधार की बातें हैं।
2. रैदास के पदों की विशेषताएँ क्या हैं?
Ans. रैदास के पदों की विशेषताएँ सरल भाषा, गहन भावनाएँ और सामाजिक समरसता के प्रति जागरूकता हैं। उनके पदों में प्रेम, भक्ति और मानवता की बात की गई है, जो जनसामान्य के लिए आसानी से समझ में आती हैं।
3. रैदास के पदों का साहित्यिक महत्व क्या है?
Ans. रैदास के पद भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके पदों ने न केवल भक्ति साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के विचारों को भी प्रेरित किया। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और समाज की समस्याओं पर विचार करने का अवसर देती हैं।
4. रैदास के पदों में किस प्रकार की धार्मिकता का प्रदर्शन होता है?
Ans. रैदास के पदों में एक अद्वितीय प्रकार की धार्मिकता का प्रदर्शन होता है, जिसमें सभी धर्मों और जातियों के बीच समानता की बात की गई है। उन्होंने अपनी रचनाओं में ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति को प्राथमिकता दी और जाति-व्यवस्था के खिलाफ खड़े हुए।
5. रैदास के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?
Ans. रैदास के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि प्रेम, समानता और मानवता सबसे महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने यह सिखाया कि जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी का मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए। उनके विचार आज भी समाज में सामंजस्य और भाईचारे की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
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