Class 9 Exam  >  Class 9 Notes  >  Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij)  >  Short & Long Question Answer: उपभोक्तावाद की संस्कृति

Short & Long Question Answer: उपभोक्तावाद की संस्कृति | Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij) PDF Download

प्रश्न 1: ‘सुख की व्याख्या बदल गई है’ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

अथवा

‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के आधार पर बताइए कि कौन-सी बात सुख बनकर रह गई है?
उत्तर:
पहले लोगों को त्याग, परोपकार तथा अच्छे कार्यों से मन को जो सुख-शांति मिलती थी उसे सुख मानते थे, पर आज विभिन्न वस्तुओं और भौतिक साधनों के उपभोग को सुख मानने लगे हैं।

प्रश्न 2: हम जाने-अनजाने उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं’ -का आशय उपभोक्तावाद की संस्कृति के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
‘हम जाने-अनजाने उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं’ का आशय यह है कि वस्तुओं की आवश्यकता और उसकी गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना वस्तुओं को खरीदकर उनका उपभोग कर लेना चाहते हैं। ऐसा लगता है जैसे हम उपभोग के लिए बने हो।

प्रश्न 3: नई जीवन शैली का बाजार पर क्या प्रभाव पड़ा है? उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
नई जीवन शैली अर्थात् उपभोक्तावाद की पकड़ में आने के बाद व्यक्ति अधिकाधिक वस्तुएँ खरीदना चाहता है। इस कारण बाज़ार विलासिता की वस्तुओं से भर गए हैं तथा तरह-तरह की नई वस्तुओं से लोगों को लुभा रहे हैं।

प्रश्न 4: पुरुषों का झुकाव सौंदर्य प्रसाधनों की ओर बढ़ा है। उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पुरुष पहले प्रायः तेल और साबुन से काम चला लेते थे परंतु उपभोक्तावाद के प्रभाव के कारण उनका झुकाव सौंदर्य प्रसाधनों की ओर बढ़ा है। अब वे आफ्टर शेव और कोलोन का प्रयोग करने लगे हैं।

प्रश्न 5: ‘व्यक्तियों की केंद्रिकता’ से क्या तात्पर्य है? ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘व्यक्ति की केंद्रिकता’ का तात्पर्य है-अपने आप तक सीमित होकर रह जाना। अर्थात् व्यक्ति पहले दूसरों के सुख-दुख को अपना समझता था तथा उसे बाँटने का प्रयास करता था परंतु अब स्वार्थवृत्ति के कारण उन्हें दूसरों के दुख से कोई मतलब नहीं रह गया है।

प्रश्न 6: संस्कृति की नियंत्रक शक्तियाँ कौन-सी हैं। आज उनकी स्थिति क्या है?
उत्तर:
कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं जो भारतीय संस्कृति पर नियंत्रण करती हैं। ये शक्तियाँ हैं- धर्म, परंपराएँ, मान्यताएँ, रीति-रिवाज, आस्थाएँ पूजा-पाठ आदि हैं। नई जीवन शैली के कारण लोगों का इनसे विश्वास उठता जा रहा है और ये शक्तियाँ कमजोर होती जा रही हैं।

प्रश्न 7: लोग उपभोक्तावादी संस्कृति अपनाते जा रहे हैं। इसका क्या परिणाम हो रहा है?
उत्तर:
नई संस्कृति के प्रभाव स्वरूप लोगों द्वारा उपभोग को ही सबकुछ मान लिया गया है। विशिष्ट जन सुख साधनों का खूब उपयोग कर रहे हैं जबकि सामान्य जन इसे ललचाई नजरों से देख रहे हैं। इस कारण सामाजिक दूरियाँ बढ़ रही हैं तथा सुख शांति नष्ट हो रही है।

प्रश्न 8: ‘सांस्कृतिक अस्मिता’ क्या है? ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ का इस पर क्या असर पड़ा है?
उत्तर:
‘सांस्कृतिक अस्मिता’ का अर्थ है-हमारी सांस्कृतिक पहचान अर्थात् हमारे जीने, खान-पान, रहन-सहन, सोचने-विचारने आदि के तौर-तरीके जो हमें दूसरों से अलग करते हैं तथा जिनसे हमारी विशिष्ट पहचान बनी है। उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण सांस्कृतिक अस्मिता कमजोर होती जा रही है।

प्रश्न 9: विज्ञापन हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है?

अथवा

विज्ञापनों की अधिकता का हमारे जीवन शैली पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विज्ञापनों की भाषा बडी ही आकर्षक और भ्रामक होती है। आज उत्पाद को बेचने के लिए हमारे चारों ओर विज्ञापनों का जाल फैला है। इसके प्रभाव में आकर हम विज्ञापित वस्तुओं का उपयोग करने लगे हैं। अब वस्तुओं के चयन में गुणवत्ता पर ध्यान न देकर विज्ञापनों को आधार बनाया जाता है।

प्रश्न 10: समाज में बढ़ती अशांति और आक्रोश का मूलकारण आप की दृष्टि में क्या है? उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज में बढ़ती अशांति और आक्रोश का मूल कारण उपभोक्तावादी संस्कृति को अपनाना है। पश्चिमी जीवन शैली को बढाने वाली तथा दिखावा प्रधान होने के कारण विशिष्ट जन इसे अपनाते हैं और महँगी वस्तुओं के उपयोग को प्रतिष्ठा का प्रतीक मानते हैं जबकि कमजोर वर्ग इसे ललचाई नजरों से देखता है।

प्रश्न 11: ‘खिड़की-दरवाजे खुले रखने के लिए किसने कहा था? इसका अर्थ भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीयों द्वारा अंधाधुंध पाश्चात्य जीवन शैली अपनाने के संबंध में गांधी जी ने कहा था कि हमें अपनी बुधि-विवेक से सोच-विचार कर पश्चिमी जीवन शैली के उन्हीं आंशों को अपनाना चाहिए जो हमारी भारतीय संस्कृति के लिए घातक सिद्ध न हों। हमें भारतीय संस्कृति को बचाए रखना है।

प्रश्न 12: उपभोक्तावादी संस्कृति के विभिन्न दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। आप उनका उल्लेख करते हुए इनसे बचने के उपाय बताइए।
उत्तर:
उपभोक्तावादी संस्कृति उपभोग और दिखावे की संस्कृति है। लोगों ने इसे बिना सोचे-समझे अपनाया ताकि वे आधुनिक कहला सकें। इस संस्कृति का दुष्परिणाम सामाजिक अशांति में वृधि, समरसता में कमी विषमता आदि रूपों में सामने आने लगा है। इस कारण सामाजिक मर्यादाएँ टूटने लगी हैं, नैतिक मानदंड कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं और लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति के दुष्परिणाम से बचने के लिए-

  • भारतीय संस्कृति को अपनाए रखना चाहिए।
  • आधुनिक बनने के चक्कर में पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए।
  • दिखावे की प्रवृत्ति से बचना चाहिए।
  • आवश्यकतानुसार एवं गुणवत्ता को ध्यान में रखकर वस्तुएँ खरीदनी चाहिए।


प्रश्न 13: गांधी जी उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रति क्या विचार रखते थे? वे किस संस्कृति को श्रेयस्कर मानते थे?
उत्तर:
गांधीजी भारत के लिए उपभोक्तावादी संस्कृति को अच्छा नहीं मानते थे। यह संस्कृति मानवीय गुणों का नाश करती है, लोगों में स्वार्थवृत्ति और आत्मकेंद्रिता बढ़ाती है, जिससे लोगों में परोपकार त्याग, दया, सद्भाव समरसता जैसे गुणों का अभाव होता जा रहा है। सुख-सुविधाओं का अधिकाधिक उपयोग और दिखावा करना मानो इस संस्कृति का लक्ष्य बनकर रह गया है। सुख-शांति का इससे कोई सरोकार ही नहीं है। इससे हमारी नींव कमज़ोर हो रही है जिससे भारतीय संस्कृति के लिए खतरा एवं चुनौती उत्पन्न हो गई है। गांधी जी भारतीय संस्कृति को श्रेयस्कर मानते थे जो मनुष्यता को बढ़ावा देती है।

प्रश्न 14: उपभोक्तावादी संस्कृति का व्यक्ति विशेष पर क्या प्रभाव पड़ा है? उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्तावादी संस्कृति ने व्यक्ति विशेष को गहराई तक प्रभावित किया है। व्यक्ति इसके चमक-दमक और आकर्षण से बच नहीं पाया है। व्यक्ति चाहता है कि वह अधिकाधिक सुख-साधनों का प्रयोग करे। इसी आकांक्षा में वह वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के वश में हो गया है। इससे उसके चरित्र में बदलाव आया है। विज्ञापनों की अधिकता से व्यक्ति उन्हीं वस्तुओं को प्रयोग कर रहा है जो विज्ञापनों में बार-बार दिखाई जाती है। व्यक्ति महँगी वस्तुएँ खरीदकर अपनी हैसियत का प्रदर्शन करने लगा है।

प्रश्न 15: उपभोक्तावादी संस्कृति का अंधानुकरण हमारी संस्कृति के मूल तत्वों के लिए कितना घातक है? ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्तावादी संस्कृति और भारतीय संस्कृति में कोई समानता नहीं है। यह संस्कृति भोग एवं दिखावा को बढ़ावा देती है। जबकि भारतीय संस्कृति त्याग एवं परोपकार को बढ़ावा देती है। इस तरह हमारी संस्कृति के मूल तत्वों पर प्रहार हो रहा है। इसके अलावा-स्वार्थवृत्ति, आत्म केंद्रितता लाभवृत्ति को बढ़ावा उपभोक्तावादी संस्कृति की देन है। अब हम दिखावे के चक्कर में पड़कर त्योहारों और विभिन्न कार्यक्रमों में महँगे उपहार देकर अपनी हैसियत जताने लगे हैं। इसके अलावा इन उपहारों और कार्डों को खुद न देकर कोरियर आदि से भेजने लगे हैं। हमारे ये कार्य-व्यवहार भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को नष्ट करते हैं।

The document Short & Long Question Answer: उपभोक्तावाद की संस्कृति | Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij) is a part of the Class 9 Course Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij).
All you need of Class 9 at this link: Class 9
17 videos|159 docs|33 tests

Top Courses for Class 9

17 videos|159 docs|33 tests
Download as PDF
Explore Courses for Class 9 exam

Top Courses for Class 9

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Short & Long Question Answer: उपभोक्तावाद की संस्कृति | Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij)

,

Objective type Questions

,

Free

,

Summary

,

Sample Paper

,

Important questions

,

Short & Long Question Answer: उपभोक्तावाद की संस्कृति | Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij)

,

Short & Long Question Answer: उपभोक्तावाद की संस्कृति | Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij)

,

Semester Notes

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Exam

,

video lectures

,

Viva Questions

,

past year papers

,

study material

,

ppt

,

pdf

,

mock tests for examination

,

practice quizzes

,

MCQs

,

Extra Questions

,

shortcuts and tricks

;