प्रश्न 1: लेखक को बाढ़ से घिरने का पहली बार अनुभव कब और कहाँ हुआ?
उत्तर: लेखक को बाढ़ से घिरने का पहली बार अनुभव सन् 1967 ई० में पटना में हुआ था। तब वहाँ लगातार अट्ठारह घंटे वर्षा हुई थी। इस वर्षा के कारण पुनपुन नदी का पानी पटना के राजेंद्रनगर, कंकड़बाग आदि निचले क्षेत्रों में घुस गया था। लेखक इसी क्षेत्र में रहता था, इसलिए उसने बाढ की इस विभीषिका को एक आम शहरी आदमी के रूप में भोगा था।
प्रश्न 2: लेखक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से किस प्रकार जुड़ा हुआ था?
उत्तर: लेखक का जन्म परती क्षेत्र अर्थात् जहाँ की भूमि खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती, वहाँ हुआ था। अन्य क्षेत्रों में बाढ़ आने पर लोग उनके क्षेत्र की ओर आते थे। उस समय वह ब्वॉय स्काउट, स्वयंसेवक, राजनीतिक कार्यकर्ता अथवा रिलीफ़ वर्कर की हैसियत से बाढ़ पीड़ित लोगों के लिए काम करता था। उस समय वह बाढ़ से पीड़ित लोगों की मानसिकता को समझने की कोशिश करता था। बाढ़ में संबंधित कई बातों का वर्णन लेखक ने अपने साहित्य में भी किया है।
प्रश्न 3: 'इस जल प्रलय में' पाठ में लेखक का गांव किस क्षेत्र में था?
उत्तर: 'इस जल प्रलय में' पाठ में लेखक का गांव बिहार राज्य के ऐसे क्षेत्र में था जहां प्रतिवर्ष पश्चिम, पूर्व और दक्षिण' की कोसी, महानंदा, गंगा की बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह सावन, भादो में आकर वहां शरण लेते थे।
प्रश्न 4: मनिहारी में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए लेखक द्वारा क्या ले जाना आवश्यक था?
उत्तर: सन् 1947 ई० में लेखक गुरुजी अर्थात् सतीनाथ भादुड़ी के साथ गंगा की बाढ़ से पीड़ित मनिहारी क्षेत्र के लोगों की सहायता के लिए नाव पर गया। वहाँ लोगों के पैरों की उँगलियाँ पानी में रहने के कारण सड़ गई थीं तथा उनके तलवों में भी घाव हो गए थे, जिसके इलाज के लिए सबने इनसे ‘पकाही घाव’ की दवा माँगी। इसके अतिरिक्त उन लोगों को किरासन तेल और दियासलाई की भी ज़रूरत होती थी। इसलिए लेखक इन तीनों वस्तुओं को बाढ़ पीड़ितों में बाँटने के लिए अपनी नाव पर अवश्य रखता था।
प्रश्न 5: जिन लोगों का बाढ़ से पहली बार सामना होता है, उनकी बाढ़ के पानी को लेकर कैसी उत्सुकता होती है?
उत्तर: लेखक ने वैसे तो बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बहुत काम किया था, परंतु सन् 1967 में पटना में लेखक को बाढ़ के अनुभव से गुज़रना पड़ा। लोगों में बाढ़ के पानी को लेकर उत्सुकता थी। वह उसका जायजा लेने के लिए मौके पर पहुँचना चाहते थे। इसलिए लोग मोटर, स्कूटर, ट्रैक्टर, मोटर साइकिल, ट्रक, टमटम, साइकिल, रिक्शा आदि पर बैठकर पानी देखने जा रहे थे। जो लोग पानी देखकर लौट रहे थे, उनसे पानी देखने जाने वाले पूछते कि पानी कहाँ तक आ गया है? जितने लोग होते उतने ही सवालों के जवाबों में पानी आगे बढ़ता जाता था। सबकी जुबान पर एक ही बात होती थी कि पानी आ गया है; घुस गया; डूब गया; बह गया।
प्रश्न 6: बाढ़ वाले दिन गाँधी मैदान का दृश्य कैसा था? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: बाढ़ वाले दिन सब तरफ पानी ही पानी था। गाँधी मैदान में पानी भर गया था। पानी की तेज़ धाराओं में दीवारों पर लगे लाल-पीले रंग के विज्ञापनों की परछाइयाँ रंगीन साँपों के समान लग रही थीं। हज़ारों की संख्या में लोग गाँधी मैदान की रेलिंग के सहारे खड़े पानी की तेज धाराओं को इस प्रकार उत्सुकता से देख रहे थे, जैसे कि दशहरे के दिन रामलीला के ‘राम’ के रथ की प्रतीक्षा करते हैं। गाँधी मैदान में होने वाले आनंद उत्सव, सभा-सम्मेलन और खेलकूद की यादों को गेरुए रंग के पानी ने ढक लिया था। वहाँ की हरियाली भी धीरे-धीरे पानी में विलीन हो रही थी। यह सब देखना लेखक के लिए एक नया अनुभव था।
प्रश्न 7: इस जल प्रलय में पाठ का क्या संदेश है?
उत्तर: इस जल प्रलय में पाठ का संदेश यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को पारस्परिक सहयोग की भावना से रहना चाहिए। खुद समस्याओं से उबरने के साथ साथ दूसरों को भी समस्याओं से उबारने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य के साथ-साथ जीव-जंतुओं से प्रेम करना चाहिए।
प्रश्न 8: 'इस जल प्रलय' पाठ में राजेंद्र नगर के चौराहे पर मैगजीन की दुकानें खुली देखते ही लेखक के मन में क्या विचार आया?
उत्तर: 'इस जल प्रलय में' पाठ में जब लेखक राजेंद्र नगर चौराहे से गुजरा तो उसे मैगजीन की दुकान खुली हुई दिखी। लेखक ने सोचा कि एक सप्ताह की साहित्यिक पुस्तकें एक साथ खरीद लें।
प्रश्न 9: पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने बाढ़ पर क्या-क्या लिखा है?
उत्तर: लेखक ने सबसे पहले हाई स्कूल में बाढ़ पर एक लेख लिखा था, जिस पर उसे प्रथम पुरस्कार मिला था। बड़े होने पर उसने धर्मयुग में ‘कथा – दशक’ के अंतर्गत बाढ़ की पुरानी कहानी को नए रूप के साथ लिखा था। लेखक ने जय गंगा (1947), कोसी (1948), हड्डियों का पुल (1948) आदि छोटे-छोटे रिपोर्टाज लिखे हैं। उन्होंने अपने उपन्यासों में बाढ़ की विनाशलीला के अनेक चित्र अंकित किए हैं।
प्रश्न 10: सन् 1967 में पुनपुन नदी के पानी के राजेंद्रनगर में घुस आने पर वहाँ के सजे-धजे युवक-युवतियों ने क्या किया था?
उत्तर: सन् 1967 में जब पुनपुन नदी का पानी राजेंद्रनगर में आ गया था, तब वहाँ के कुछ सजे-धजे युवक-युवतियों ने नौका विहार करने का मन बनाया। वे नौका में बैठकर स्टोव पर केतली चढ़ाकर कॉफी बना रहे थे; साथ में बिस्कुट थे तथा ट्रांजिस्टर पर फ़िल्मी गाने बज रहे थे। एक लड़की कोई सचित्र पत्रिका पढ़ रही थी। जब यह नौका लेखक के ब्लॉक के पास पहुँची, तो छतों पर खड़े लड़कों ने इन पर छींटाकसी करके उन्हें वहाँ से भगा दिया।
प्रश्न 11: परमान नदी की बाढ़ में डूबे हुए मुसहरों की बस्ती में जब लेखक राहत सामग्री बाँटने गया, तो वहाँ कैसा दृश्य था?
उत्तर: परमान नदी की बाढ़ में डूबे हुए मुसहरों की बस्ती में लेखक ने राहत सामग्री बाँटने के लिए जब जाते हैं, तो वहाँ एक भयानक दृश्य देखते हैं। वहाँ की महिलाएँ अपने बच्चों को दूध पिला रहीं हैं, लेकिन उनके पास कोई दूध नहीं है। उनके होंठ सूखे पड़े हैं और बच्चों के मुखों से आंसू बह रहे हैं। उनके दृष्टिकोण से विचलित होकर लेखक वहाँ से चले जाते हैं, लेकिन उनके मन में उन दुखद दृश्यों का आभास बना रहता है।
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