महाभारत के महाकाव्य में, सत्यवती के पुत्र चित्रांगद की वीरता और उनके स्वेच्छाचारी स्वभाव की कहानी प्रमुख है। चित्रांगद की मृत्यु के बाद, उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर की गद्दी मिली। इस दौरान भीष्म ने राज्य का कार्यभार संभाला। विचित्रवीर्य के विवाह की चिंता में भीष्म ने काशिराज की कन्याओं के स्वयंवर में भाग लिया और तीनों राजकुमारियों को जीतकर हस्तिनापुर लाया। यह कहानी मुख्यतः अंबा के संघर्ष और बदले की भावना को केंद्र में रखती है।
सत्यवती के पुत्र चित्रांगद वीर थे लेकिन स्वेच्छाचारी भी। एक युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई और उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य राजा बने। भीष्म ने उनके बालिग होने तक राज-काज संभाला। जब विचित्रवीर्य विवाह योग्य हुए, तो भीष्म ने काशिराज की कन्याओं के स्वयंवर में भाग लिया और तीनों राजकुमारियों अंबा, अंबिका, और अंबालिका को जीतकर हस्तिनापुर लाए।
अंबा शाल्व राजा को मन से अपना पति मान चुकी थी और भीष्म ने उसे शाल्व के पास भेजा, पर शाल्व ने उसे अस्वीकार कर दिया। विचित्रवीर्य ने भी अंबा से विवाह करने से इंकार कर दिया। निराश अंबा ने भीष्म से विवाह की प्रार्थना की, पर भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा का हवाला देकर मना कर दिया। अंबा ने छह साल तक कष्ट झेला और अंत में परशुराम से मदद मांगी। परशुराम ने भीष्म से युद्ध किया, पर हार माननी पड़ी।
अंबा ने तपस्या करके शिखंडी नामक पुरुष रूप धारण कर लिया। कुरुक्षेत्र के युद्ध में शिखंडी अर्जुन के रथ के आगे बैठा। भीष्म ने अंबा को पहचान लिया और उस पर वार करना अनुचित समझा। अर्जुन ने शिखंडी को आगे करके भीष्म को हराया, जिससे अंबा का बदला पूरा हुआ।
इस कहानी के प्रमुख विषय हैं:
नारी शक्ति और स्वतंत्रता: अंबा की कहानी नारी शक्ति और स्वतंत्रता का प्रतीक है। उसने अपने सम्मान और अधिकार के लिए संघर्ष किया, तपस्या की, और अंत में बदला लिया।
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