पाँचों पांडव माता कुंती के साथ वारणावत जाने लगे तो विदुर ने युधिष्ठिर को गोपनीय भाषा में दुर्योधन की चाल समझा दी। वहाँ कुछ दिन पांडव पुरोचन द्वारा निश्चित किए गए घरों में ठहरे। जब लाख का भवन तैयार हो गया तो पुरोचन उन्हें वहाँ ले गया। पांडवों ने जब पुरोचन द्वारा बनवाए गए भवन में प्रवेश किया तो युधिष्ठिर को विदुर की बात याद आ गई। युधिष्ठिर ने इस भवन को ध्यान से देखा तो उन्हें पता चल गया कि यह भवन जल्दी आग लगने वाली वस्तुओं से बनाया गया है। उन्होंने भीम को यह भेद बता दिया तथा सभी भाइयों और माँ को सावधान रहने के लिए कहा। कुछ दिनों बाद विदुर का भेजा हुआ सुरंग बनाने वाला कारीगर युधिष्ठिर के पास आया। उसने गुप्त रूप से कुछ दिनों में ही लाख के भवन के नीचे एक सुरंग बना दी, जिससे पांडव इस भवन से सुरक्षित बाहर निकल सकते थे। पुरोचन ने अपना आवास लाख के घर के द्वार पर ही बनाया था फिर भी उसे सुरंग के विषय में कुछ भी मालूम न हुआ।
पुरोचन ने पांडवों को समाप्त करने का निश्चय किया। युधिष्ठिर उसके व्यवहार से यह बात समझ गए। उन्होंने माता कुंती को कह कर उसी रात एक बड़े भोज का आयोजन किया। सब खा-पीकर सो गए। पुरोचन भी सो गया। आधी रात के समय भीम ने उस भवन में कई जगह आग लगा दी तथा पाँचों पांडव और कुंती सुरंग के रास्ते भवन से बाहर निकल गए। वारणावत के लोगों ने इस दुर्घटना की सूचना हस्तिनापुर भेजी तो धृतराष्ट्र और उसके पुत्रों ने पांडवों की मृत्यु पर शोक मनाया और गंगा के किनारे जाकर उन्हें जलांजलि दी। किंतु विदुर को विश्वास था कि पांडव बचकर निकल गए होंगे। उन्होंने शोकग्रस्त पितामह भीष्म को अपने प्रबन्धों के बारे में बताकर उन्हें चिंता नहीं करने को कहा|
महल से निकलकर रात भर जगे रहने और चिंता के कारण थके भाइयों और माता को भीम ने अपने शरीर पर लाद लिया। जंगल को पार करके वे सभी गंगा किनारे पहुँचे। वहाँ विदुर द्वारा भेजी गई नाव मिली। उन्होंने उस नाव में बैठकर गंगा पार की। अगले दिन शाम तक चलते ही रहे। माता कुंती और अन्य पांडव थककर चूर हो गए थे। उन्हें चक्कर आ रहे थे। केवल भीम ही ठीक था। किसी प्रकार मुसीबतों से बचते हुए उन लोगों ने जंगल को पार किया|
वे लोग ब्राह्मण ब्रह्मचारियों का वेश धारण कर एकचक्रा नगरी में एक ब्राह्मण के घर रहने लगे। वे वहाँ भिक्षा माँग कर गुजारा कर रहे थे। इतने से भीख से भीम की भूख नहीं मिटती थी। उसने एक कुम्हार की मिट्टी खोदने में मदद करके उससे एक बड़ी भारी हाँडी बनवा ली। भीम उसी हाँडी को लेकर भीख माँगने निकलता तो उसके विशाल शरीर और बड़ी भारी हाँडी देखकर बच्चे हँसते थे।
एक दिन जब चारों भाई भीख माँगने गए हुए थे तो भीम घर पर माता कुंती के साथ ही रहा। इतने में ब्राह्मण के घर से रोने की आवाज़ आई। माता कुंती अन्दर गईं तो ब्राह्मण, उसकी पत्नी, उसकी पुत्री व पुत्र की बात सुनकर उन्होंने व्यथित होकर ब्राह्मण से दु:ख का कारण पूछा। ब्राह्मण ने बताया कि इस नगरी के समीप ही एक गुफा में बकासुर नाम का राक्षस रहता है। वह जनता पर बहुत अत्याचार करता है। अत: राजा से निराश जनता ने बकासुर से समझौता कर लिया है कि नगर-निवासी बारी-बारी से एक आदमी और खाने की चीजें हर सप्ताह भेज दिया करेंगे। इस सप्ताह उस राक्षस का भोजन व एक आदमी भेजने की बारी मेरे परिवार की है। मैंने सोचा है कि परिवार सहित ही मैं राक्षस के पास चला जाऊँ। कुंती ने भीम से सलाह करके ब्राह्मण को कहा कि आप यह चिंता छोड़ दीजिए। मेरा एक बेटा आज राक्षस के पास भोजन लेकर चला जाएगा।
यह सुनकर ब्राह्मण ने ऐसा करने से मना किया साथ ही भीम को भेजने के प्रस्ताव को सुनकर युधिष्ठिर ने भी कुंती पर क्रोध किया। कुंती ने युधिष्ठिर को समझाया। भीम गाड़ी में भोजन सामग्री लेकर राक्षस की गुफा पर पहुँच गया। वह बैठकर भोजन करने लगा। जब राक्षस भूख से व्याकुल होकर बाहर निकला तो उसने भोजन करते हुए भीम को देखा और उसपर झपट पड़ा| जब भीम पर कोई असर न हुआ तो उसने एक पेड़ उखाड़ कर भीम को मारा। भीम ने उसे ठोकरें मार कर गिरा दिया और बाद में उसे मुँह के बल गिराकर उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी। भीम ने राक्षस को मार दिया| भीम उसकी लाश को नगर के द्वार तक घसीट कर लाया और माता कुंती को सारी बात बताई|
कठिन शब्दों के अर्थ -
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