Class 6 Exam  >  Class 6 Notes  >  Hindi (Vasant) Class 6  >  Summary: झांसी की रानी

Summary: झांसी की रानी | Hindi (Vasant) Class 6 PDF Download

सारांश

प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई द्वारा दिखाए गए अदम्य शौर्य का उल्लेख किया है। उस युद्ध में लक्ष्मीबाई ने अपनी अद्भुत युद्ध कौशल और साहस का परिचय देकर बड़े-बड़े वीर योद्धाओं को भी हैरान कर दिया था। उनकी वीरता और पराक्रम से उनके दुश्मन भी प्रभावित थे। उन्हें बचपन से ही तलवारबाज़ी, घुड़सवारी, तीरंदाजी और निशानेबाज़ी का शौक था।

वह बहुत छोटी उम्र में ही युद्ध-विद्या में पारंगत हो गई थीं। अपने पति की असमय मृत्यु के बाद उन्होंने एक कुशल शासक की तरह झाँसी का राजपाट सँभाला तथा अपनी अंतिम साँस तक अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजों से अत्यंत वीरता से लड़ती रहीं। उनके पराक्रम की प्रशंसा उनके शत्रु भी करते थे।

भावार्थ

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि किस तरह उन्होंने गुलाम भारत को आज़ाद करवाने के लिए हर भारतीय के मन में चिंगारी लगा दी थी। रानी लक्ष्मी बाई के साहस से हर भारतवासी जोश से भर उठा और सबके मन में अंग्रेजों को दूर भगाने की भावना पैदा होने लगी। 1857 में उन्होंने जो तलवार उठाई थी यानी अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी थी, उससे सभी ने अपनी आज़ादी की कीमत पहचानी थी।

कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथाएँ उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पंक्तियों में लेखिका ने कहा है कि कानपुर के नाना साहब ने बचपन में ही रानी लक्ष्मीबाई की अद्भुत प्रतिभा से प्रभावित होकर, उन्हें अपनी मुँह-बोली बहन बना लिया था। नाना साहब उन्हें युद्ध विद्या की शिक्षा भी दिया करते थे। लक्ष्मीबाई बचपन से ही बाकी लड़कियों से अलग थीं। उन्हें गुड्डे-गुड़ियों के बजाय तलवार, कृपाण, तीर और बरछी चलाना अच्छा लगता था।

Summary: झांसी की रानी | Hindi (Vasant) Class 6

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने बताया है कि लक्ष्मीबाई व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, लड़ाई का अभ्यास तथा दुर्ग तोड़ना इन सब खेलों में माहिर थीं। मराठाओं की कुलदेवी भवानी उनकी भी पूजनीय थीं। वे वीर होने के साथ-साथ धार्मिक भी थीं।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने लक्ष्मीबाई के झाँसी के राजा श्री गंगाधर राव के साथ विवाह का उल्लेख किया है। उनकी जोड़ी को शिव-पार्वती और अर्जुन-चित्रा की उपमा दी गई है। उनके आने से झाँसी में ख़ुशियाँ और सौभाग्य आ गया था।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

प्रस्तुत पक्तियों में लक्ष्मीबाई के जीवन के कठिन समय का वर्णन किया गया है, जिसमें उनके पति की असमय मृत्यु के बाद रानी अत्यंत दुखी थीं। उनके कोई संतान भी नहीं थी। वे झाँसी को संभालने के लिए बिल्कुल अकेली रह गई थीं।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में यह बताया गया है कि झाँसी के राजा की असमय मृत्यु के बाद उस समय के अंग्रेज़ अधिकारी डलहौजी को झांसी को हड़पने का अच्छा अवसर मिल गया था। उसने अपनी सेना को अनाथ हो चुकी झाँसी पर कब्ज़ा जमाने के लिए भेज दिया था।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में कवयित्री बता रही हैं कि अंग्रेज़ लोग भारत में व्यापारी बनकर आए थे और फिर धीरे-धीरे उन्होने यहाँ के सभी बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं और रानियों से दया और सहायता की भीख माँगकर, उनका ही राज्य हड़प लिया था। परंतु लक्ष्मीबाई अन्य राजा-रानियों से विपरीत थीं और उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी एक महारानी की तरह झाँसी को सँभाला।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में उन सभी राज्यों की चर्चा की गई है, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा हड़प लिया गया था, जो कि निम्न हैं– दिल्ली, लखनऊ, बिठुर, नागपुर, उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक, सिंध प्रांत, पंजाब, बंगाल और मद्रास। अर्थात् ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा था, जहाँ बेईमान अंग्रेज़ों ने अपना अधिकार नहीं जमाया हो।

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपुर के ज़ेवर ले लो’ ‘लखनऊ के लो नौलख हार’।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में क्रूर अंग्रेज़ों की निर्लज्जता का वर्णन है कि कैसे वे लोग सभी राजाओं तथा नवाबों की हत्या के बाद, वहाँ के राज्य तो हड़पते ही थे, साथ ही साथ वे उनकी रानियों और बेगमों की इज़्ज़त से भी खिलवाड़ करते थे। चाहे वह लखनऊ की बेगम हों, या कलकत्ता और नागपुर की रानियाँ। उनके कपड़े और ज़ेवर तक छीन कर नीलाम कर दिए जाते थे और अब उनका अगला कदम झाँसी की ओर था।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में बताया गया है कि चाहे वो गरीब हो या अमीर, सभी के मन में अंग्रेज़ों के लिए विद्रोह की चिंगारी धधक रही थी। सभी सैनिक नाना साहब, पेशवा जी के नेतृत्व में युद्ध करने को तैयार थे। साथ में उनकी मुँहबोली बहन लक्ष्मीबाई ने भी हार ना मानकर, उनके साथ अंग्रेज़ों से लड़ने का निर्णय कर लिया था।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में यह बताया गया है कि विद्रोह की चिंगारी देश के हर राज्य से सुलग रही थी, चाहे वो झाँसी हो या लखनऊ। दिल्ली, मेरठ, कानपुर तथा पटना राज्यों के राजाओं ने भी इसमें अपना पूरा साथ दिया। साथ ही साथ जबलपुर और कोल्हापुर जैसे बड़े शासकों ने भी सन 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में हमारे स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने और शहीद होने वाले कई बड़े वीरों का उल्लेख किया गया है। नाना धुंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवर सिंह, तथा सैनिक अभिराम आदि ऐसे ही वीर और साहसी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने युद्ध में दुश्मनों से जमकर संघर्ष किया था।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वन्द्व असमानों में।
ज़ख्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में इन सभी वीरों के अलावा वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का परिचय है। झाँसी में हुए युद्ध में जब लेफ्टिनेंट वॉकर अंग्रेज़ों की तरफ से युद्ध करने आए, तो उनसे लड़ने के लिए अकेली झाँसी की रानी ही काफी थीं। उन्होंने दोनों हाथों में तलवारें लेकर रण-चंडी की तरह वॉकर पर प्रहार किया। इस प्रहार से वो बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया तथा रानी के शौर्य बल से वह भी अचंभित रह गया।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में रानी की वीरता का अद्भुत वर्णन है। कवयित्री ने बताया है कि वे सौ मील घोड़े पर बैठकर अंग्रेज़ों को खदेड़ती हुईं यमुना तट तक ले आईं और अंग्रेज़ वहाँ रानी से पराजित हुए। परंतु यहाँ पर उनके घोड़े ने वीरगति प्राप्त कर ली अर्थात् उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद उन्होंने ग्वालियर पर भी अपना अधिकार जमाया, जहाँ के राजा सिंधिया ने अंग्रेज़ों डर से उनसे मित्रता कर ली थी और अपनी राजधानी को छोड़कर वहाँ से चले गए थे।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में यह बताया गया है कि अब जनरल स्मिथ ने सेना की कमान संभाल ली थी। रानी लक्ष्मीबाई का साथ देने के लिए उनकी दो सहेलियाँ काना और मंदरा युद्ध मैदान में उतर गई थीं। इन तीनों ने अपनी वीरता और साहस के दम पर कई अंग्रेज़ सैनिकों की लाशें बिछा दी थी। परंतु तभी पीछे से जनरल ह्यूरोज ने आकर रानी को घेर लिया था और यहीं रानी उसके शिकंजे में फँस गई थीं।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में बताया गया है कि रानी जैसे-तैसे बचते हुए दुश्मनों के बीच से निकल कर बाहर आ ही गई थीं, लेकिन अचानक उनके सामने एक चौड़ा नाला आ गया। उनका घोड़ा नया होने के कारण उसे पार नहीं कर पाया और वहीं अड गया। बस यहीं शत्रुओं ने मौका देखकर अकेली रानी पर कई वार पर वार किए और झाँसी की रानी ने यहीं अपनी अंतिम साँस तक लड़ते हुए वीर-गति प्राप्त की।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में रानी की दिव्यता का वर्णन है कि रानी अब परलोक सिधार चुकी थीं, परन्तु उनके चेहरे पर सूरज के जैसी चमक छाई हुई थी। उनकी उम्र केवल तेईस साल थी, इतनी छोटी-सी उम्र में वह एक अवतारी-नारी की तरह आकर हम सभी देशवासियों को जीवन का सही मार्ग दिखा गई थीं। क्रांति की चिंगारी का बीज सही मायनों में उन्होंने ही देशवासियों के मन में बोया था।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

प्रस्तुत पक्तियों में कवयित्री कहती है कि रानी का यह बलिदान सभी देशवासी हमेशा याद रखेंगे। चाहे दुश्मन अपनी वीरता का परचम लहरा रहा हो या फिर वो अपनी तोप के गोलों से झाँसी को ही मिटा दे, लेकिन झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हमारे मन में हमेशा बसी रहेंगी। चाहे उनका कोई स्मारक ना बने, लेकिन वो वीरता और साहस का एक उदाहरण बनकर हमारे इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिए अमर रहेंगी।

शब्दार्थ

  1. ह्ओक्‌र - विशेष
  2. ह्उप्रणम्‌ - आत्मसमर्पण
  3. श्र्लोक्‌ - पूजा
  4. श्रालोक्‌ - दर्शन
  5. श्र्पलम्‌ - फल
  6. श्र्दृ - देखने वाला
  7. श्र्वदयम्‌ - दिल
  8. श्र्विद्या - विद्या
  9. श्रुच्चलम्‌ - सत्य
  10. श्रुदीपः - दीपक
  11. श्रुव्रत - नियम
The document Summary: झांसी की रानी | Hindi (Vasant) Class 6 is a part of the Class 6 Course Hindi (Vasant) Class 6.
All you need of Class 6 at this link: Class 6
28 videos|163 docs|43 tests

Top Courses for Class 6

FAQs on Summary: झांसी की रानी - Hindi (Vasant) Class 6

1. झांसी की रानी कौन थी?
Ans. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और महान वीरांगना थीं।
2. झांसी की रानी के युद्ध किस साल हुआ था?
Ans. झांसी की रानी का युद्ध 1857 में भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हुआ था।
3. झांसी की रानी को किस योद्धा के रूप में जाना जाता है?
Ans. झांसी की रानी को 'भारतीय महासागर की एकल लक्ष्मी' के रूप में जाना जाता है।
4. झांसी की रानी की मृत्यु कैसे हुई थी?
Ans. झांसी की रानी की मृत्यु ग्वालियर के युद्ध के दौरान हुई थी।
5. झांसी की रानी का युद्ध किस किस के साथ हुआ था?
Ans. झांसी की रानी का युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और झांसी के विरोधी राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था।
28 videos|163 docs|43 tests
Download as PDF
Explore Courses for Class 6 exam

Top Courses for Class 6

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

mock tests for examination

,

MCQs

,

practice quizzes

,

Objective type Questions

,

Summary: झांसी की रानी | Hindi (Vasant) Class 6

,

Summary: झांसी की रानी | Hindi (Vasant) Class 6

,

Summary

,

past year papers

,

video lectures

,

Important questions

,

Summary: झांसी की रानी | Hindi (Vasant) Class 6

,

Free

,

Previous Year Questions with Solutions

,

study material

,

shortcuts and tricks

,

pdf

,

Extra Questions

,

Sample Paper

,

Semester Notes

,

ppt

,

Exam

,

Viva Questions

;