Class 7 Exam  >  Class 7 Notes  >  Hindi (Bal Mahabharat Katha) Class 7  >  Summary: धृतराष्ट्र की चिंता

Summary: धृतराष्ट्र की चिंता | Hindi (Bal Mahabharat Katha) Class 7 PDF Download

सार

जब पांडव द्रौपदी के साथ वन जाने लगे तो धृतराष्ट्र ने विदुर से पूछा कि पांडु के बेटे और द्रौपदी कैसे जा रहे हैं, मुझे बताओ। विदुर ने बताया कि युधिष्ठिर अपना चेहरा कपड़े से ढककर, भीम अपनी दोनों भुजाओं को देखते हुए, अर्जुन हाथ में ली हुई बालू को बिखेरते हुए, नकुल और सहदेव अपने सारे शरीर पर धूल लगाए हुए तथा द्रौपदी आँसू बहाती हुई, युधिष्ठिर के पीछे जा रही है। यह सुनकर धृतराष्ट्र चिंतित हो गए।

विदुर धृतराष्ट्र से बार-बार संधि के लिए आग्रह करते रहते थे। एक दिन विदुर की बातों से तंग आकर धृतराष्ट्र ने उन्हें भी पांडवों के पास चले जाने के लिए कह दिया। दुःखी विदुर अपने रथ पर बैठकर जंगल में पांडवों के पास पहुंच गए।

धृतराष्ट्र को अहसास हुआ कि उन्होंने विदुर को भगाकर भारी भूल की है। उन्होंने संजय को विदुर को समझा-बुझाकर वापस लाने के लिए भेजा। संजय ने पांडवों के आश्रम में रह रहे विदुर को हस्तिनापुर लौट चलने के लिए कहा। उसने उन्हें बताया कि धृतराष्ट्र अपनी भूल पर पछता रहे हैं। यदि आप न लौटे तो वे अपने प्राण त्याग देंगे। यह सुनकर विदुर हस्तिनापुर लौट आए। धृतराष्ट्र ने उन्हें गले लगाकर क्षमा माँगी।

एक बार महर्षि मैत्रेय धृतराष्ट्र के दरबार में आए तो धृतराष्ट्र ने उनसे पांडवों के विषय में पूछा। धृतराष्ट्र ने कुरु जंगल में रहने वाले पांडवों की कुशल क्षेम पूछी। महर्षि मैत्रेय ने बताया कि पांडवों से काम्यक वन में भेंट हुई थी। उनसे हस्तिनापुर में घटित चौसर प्रसंग को सुनकर ही मैं आपके पास आया हूँ। महर्षि मैत्रेय ने धृतराष्ट्र को कहा कि उनके तथा भीष्म के होते हुए पांडवों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं होना चाहिए था। उन्होंने वहाँ उपस्थित दुर्योधन को भी समझाया कि अपनी भलाई के लिए तुम पांडवों से संधि कर लो। दुर्योधन कुछ नहीं बोला परंतु मुसकुराते हुए अपनी जाँघ पर हाथ ठोकता रहा। इस पर महर्षि ने क्रोधित होकर कहा कि दुर्योधन तुम्हें अपने घमंड का फल अवश्य ही भोगना पड़ेगा।

हस्तिनापुर में हुई घटना की सूचना मिलते ही श्रीकृष्ण पांडवों से मिलने वन में ही पहुँचे। उनके साथ कैकेय, भोज और वृष्टि जाति के नेता, चेदिराज धृष्टकेतु आदि भी थे। श्रीकृष्ण को देखते ही द्रौपदी रोने लगी| उसने कहा कि इस तरह अपमानित होने के बाद मेरा जीना ही बेकार है। श्रीकृष्ण ने उसे समझाया कि तुम्हारा अपमान करने वालों का अंत होगा और तुम साम्राज्ञी के पद पर सुशोभित होगी। धृष्टद्युम्न ने भी बहन को सांत्वना दी। श्रीकृष्ण अपने साथ सुभद्रा व अभिमन्यु को लेकर द्वारका को लौट गए। धृष्टद्युम्न द्रौपदी के पुत्रों को लेकर पांचाल देश लौट गए।

शब्दार्थ -

  • अनुसरण =पीछे चलना
  • प्रबल = तेज़
  • आग्रह = अनुरोध
  • अंत:पुर = महल में रानियों के रहने का स्थान
  • काल = समय
  • उतावली = जल्दी में
  • ढिठाई = बेशर्मी
  • अविरल = निरन्तर
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