Table of contents |
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परिचय |
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मुख्य विषय |
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पात्र चित्रण |
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सारांश |
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नैतिक शिक्षा |
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कठिन शब्दों के अर्थ |
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इस कहानी में महादेवी वर्मा ने एक मोर की कहानी के माध्यम से प्रकृति और जीवों के प्रति अपनी संवेदनशीलता व्यक्त की है। वह मोर उनके घर के आंगन में आता है और धीरे-धीरे उसके साथ एक गहरा संबंध बन जाता है। महादेवी जी मोर की मासूमियत और उसकी प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित होती हैं। कहानी में मोर का नाम नीलकंठ रखा गया है और उसे अपना एक परिवार का सदस्य मानकर उसका ख्याल रखा जाता है। कहानी मोर के जीवन के संघर्षों, उसके प्रति इंसानों के व्यवहार और उसकी स्वतंत्रता की चाहत को व्यक्त करती है।
कहानी का मुख्य विषय प्रकृति प्रेम और जीवों के प्रति करुणा है। यह कहानी हमें यह संदेश देती है कि हम जीवों से प्रेम और संवेदनशीलता के साथ पेश आएं और उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करें।
इस कहानी में मुख्य पात्र हैं:
एक बार लेखिका अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौटते समय बड़े मियाँ चिड़ियावाले वाले के यहाँ से मोर-मोरनी के दो बच्चे उठा लाई। घर पहुँचकर घर वालों ने उन बच्चों को देखा तो सभी ने एक स्वर में कहा कि लेखिका को ठग लिया गया है क्योंकि ये मोर नहीं तीतर के बच्चे हैं। इस पर लेखिका चिढ़कर उन बच्चों को अपने पढ़ाई वाले कमरे में ले आईं। बच्चे लेखिका के कमरे में इधर-उधर घूमते रहे। जब वे लेखिका से कुछ ही दिनों में घुल-मिल गए तो वे लेखिका की ओर अपना ध्यान आकर्षित करने के लिए हरकतें करने लगे। अब वे जैसे ही थोड़े बड़े हुए लेखिका ने अन्य पशु-पक्षियों के साथ उन्हें भी जालीघर में रख दिया। धीरे-धीरे दोनों बड़े होकर सुंदर मोर-मोरनी में बदल गए।
मोर के सिर की कलगी बड़ी, चमकीली और चोंच तीखी हो गई थी। गर्दन लंबी नीले-हरे रंग की थी। पंखों में भी चमक आने लगी थी। मोरनी का विकास मोर के समान सौन्दर्यपूर्ण नहीं था परन्तु फिर भी वह मोर की उपयुक्त सहचारिणी थी। लेखिका ने मोर की नीली गरदन के कारण उसका नाम रखा नीलकंठ और मोरनी हमेशा नीलकंठ की छाया की तरह उसके साथ रहने के कारण उसका नाम राधा रखा गया।
नीलकंठ लेखिका के चिड़ियाघर का स्वामी बन गया। जब कोई पक्षी नीलकंठ की बात न मानता तो वह चोंच के प्रहारों से उसे दंड देता था। एक बार एक साँप ने खरगोश के बच्चे को अपने मुँह में दबा लिया था। नीलकंठ ने अपने चोंच के प्रहार से उस साँप के न केवल टुकड़े कर दिए बल्कि पूरी रातभर उस नन्हें खरगोश के बच्चे को पंखों में दबाए गर्मी देता रहा।
वसंत पर मेघों की साँवली छाया छाने पर नीलकंठ अपने इन्द्रधनुषी पंखों को फैलाकर एक सहजात लय ताल में नाचता रहता। लेखिका का को उसका यूँ नृत्य करना बड़ा अच्छा लगता था। अनेक विदेशी महिलाओं ने तो उसकी मुद्राओं को अपने प्रति सम्मान समझकर उसे ‘परफेक्ट जेंटलमैन’ की उपाधि ही दे दी थी। नीलकंठ और राधा को वर्षा ऋतु ही अच्छी लगती थी। उन्हें बादलों के आने से पहले ही उसकी सूचना मिल जाती थी और फिर बादलों की गडगडाहट, वर्षा की रिमझिम और बिजली की चमक के साथ ही उसके नृत्य का वेग भी बढ़ता ही जाता।
एक दिन लेखिका किसी कार्यवश बड़े मियाँ की दुकान से गुजरी तो एक मोरनी जिसके पंजें टूटे थे सात रुपए देकर खरीद लाई। मरहमपट्टी के बाद एक ही महीने में वह ठीक हो गई और डगमगाती हुई चलने लगी। इसी डगमगाने के कारण लेखिका ने उसका नाम कुब्जा रखा। उसे भी जालीघर पहुँचा दिया गया। कुब्जा नाम के अनुरूप ही उसका स्वभाव भी सिद्ध हुआ। नीलकंठ और राधा को साथ रहने ही न देती। उसने अपने चोंच के प्रहार से राधा की कलगी और पंख तोड़ दिए। नीलकंठ उससे दूर भागता था पर वह नीलकंठ के साथ ही रहना चाहती थी। यहाँ तक कि कुब्जा ने राधा के दोनों अंडे भी तोड़ दिए थे। इस कारण राधा और नीलकंठ की प्रसन्नता का अंत हो गया। लेखिका को लगा कुछ दिनों में सबकुछ ठीक हो जाएगा। परन्तु ऐसा न हुआ।
तीन-चार महीने के बाद एक सुबह लेखिका ने नीलकंठ को मरा हुआ पाया। न उसे कोई बीमारी हुई थी और न ही उसके शरीर पर कोई चोट के निशान थे। लेखिका ने उसे अपनी शाल में लपेटकर संगम में प्रवाहित कर दिया। नीलकंठ के न रहने पर राधा कई दिन तक कोने में बैठी नीलकंठ का इन्तजार करती रही। इसके विपरीत कुब्जा ने उसके न रहने पर उसकी खोज आरंभ कर दी थी। एक दिन लेखिका की अल्सेशियन कुतिया कजली कुब्जा के सामने पड़ गई आदत अनुसार उसने अपने चोंच से कजली पर प्रहार कर दिया। इस पर कजली ने भी उसकी गर्दन पर अपने दाँत लगा दिए। कुब्जा का इलाज करवाया गया परन्तु वह ठीक न हो पाई और उसकी भी मृत्यु हो गई। राधा अब भी नीलकंठ की प्रतीक्षा कर रही है। बादलों को देखते ही वह अपनी केका ध्वनि से उसे बुलाती है।
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Summary: नीलकंठ
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"नीलकंठ" की कहानी से हमें नेतृत्व, साहस, और सामर्थ्य का महत्व समझाया जाता है। नीलकंठ के चरित्र के माध्यम से, हमें सीख मिलती है कि किसी भी परिस्थिति में संघर्ष करना, और अपने साथी की रक्षा करना कितना महत्वपूर्ण है। उनकी कहानी से हमें समय के साथ संघर्ष करने का साहस, समर्थन करने की आवश्यकता, और साथी के प्रति वफादारी का महत्व समझाया जाता है।
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1. नीलकंठ की कहानी का मुख्य संदेश क्या है ? | ![]() |
2. नीलकंठ का नाम किस कारण से रखा गया है ? | ![]() |
3. इस कहानी में नैतिक शिक्षा क्या मिलती है ? | ![]() |
4. नीलकंठ की कहानी में कौन से कठिन शब्द शामिल हैं और उनके अर्थ क्या हैं ? | ![]() |
5. नीलकंठ की कहानी का सारांश क्या है ? | ![]() |