इस कविता के माध्यम से कवि ने यही स्पष्ट करने की कोशिश की है कि गुलामी में भले ही आपको सभी सुख – सुविधाएँ क्यों न उपलब्ध हो और आजादी को जिन्दगी में भले ही कष्ट ही कष्ट क्यों न हो , फिर भी सभी आजादी को ही चुनना पसंद करेंगे। प्रस्तुत कविता में कवि ने पिंजरे में कैद पक्षियों की मनोदशा का वर्णन किया है।
‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी की एक बहुत ही अद्भुत कविता है। इस कविता में कवि हमें पक्षियों के माध्यम से मनुष्य जीवन में आज़ादी का मूल्य बताना चाहता है। प्रस्तुत कविता में कवि पिंजरे में बंद पक्षी की व्यथा का वर्णन करते हुआ कहते हैं कि पक्षी खुले और आज़ाद आसमान में उड़ने वाले प्राणी हैं , पिंजरे के अंदर बंद होकर न तो वे खुशी से गाना गा पाएँगे और न ही खाना और पानी पी पाएँगे।
आज़ाद होने की चाह में जब वे अपने नरम पंख फडफ़ड़ाएंगे तो पिंजरे की सोने की सलाखों से टकराकर उनके पंख टूट जाएँगे। पक्षियों को बहता हुआ पानी अर्थात नदियों , झरनों का पानी पीना पसंद है। उसके लिए पिंजरे में सोने की कटोरी में रखा हुआ पानी और मैदा को खाने से अच्छा वे भूखे – प्यासे मर जाएँगे क्योंकि उन्हें उस सोने की कटोरी में रखा हुआ पानी और मैदा से कहीं अच्छा नीम का कड़वा फल लगता है। क्योंकि वे उसे आजादी के साथ खा सकते हैं। सोने की जंजीरों से बने पिंजरे में बंद कर दिए जाने के कारण पक्षी अपनी उड़ने की कला और रफ़्तार , सब कुछ भूल गए हैं।
हम पंछी उन्मुक्त गगन केअब तो वे केवल सपने में ही पेड़ों की ऊँची डालियों में झूला झूल सकते हैं। इस पिंजरे में कैद होने से पहले पक्षी की इच्छा थी कि वह नीले आसमान की सीमा तक उड़ते चला जाए। वह अपनी सूरज की किरणों के जैसी लाल चोंच को खोल कर तारों के समान अनार के दानों को चुग लें। यह सब पक्षी की मात्र कल्पना है ,क्योंकि वह पिंजरों के बंधन में कैद है।
कविता में पक्षी अपने मन की बात को हम तक पहुंचाने का प्रयास भी कर रहा है। वह कहता है की अगर वह आजाद होता तो क्षितिज को पार करने के लिए अपने प्राणों का त्याग करने से भी पीछे नहीं हटता। प्रस्तुत कविता में पक्षी उसे पिंजरे में कैद करने वाले व्यक्ति से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि भले ही वह पक्षी को पेड़ पर टहनियों के घोसले में न रहने दें और चाहे उसके रहने के स्थान को भी नष्ट कर दे। परन्तु जब भगवान ने उसे पंख दिए है , तो उसकी उड़ान में रुकावट ना डाले।
हम पंछी उन्मुक्त गगन केसम्पूर्ण कविता का आशय यह है कि पक्षी को गुलामी में मिलने वाली सुख -सुविधाओं और देखभाल से कही अच्छी कठिन आजादी लग रही है। वह आजाद हो कर बहता पानी पीना चाहता है , कड़वा नीम का फल खाना चाहता है , क्षितिज तक अपने साथियों संग प्रतिस्पर्धा करना चाहता है। इसी कारण वह अंत में प्रार्थना कर रहा है कि यदि उसे भगवान् ने उड़ने के लिए पंख दिए हैं तो उसे खुले आसमान में आजादी के साथ उड़ने दिया जाए।
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