प्रश्न 1: सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका किस वेशभूषा में गए थे?
उत्तर: जिस समय सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका गए थे, उस समय न तो उनके सिर पर पगड़ी थी और न ही शरीर पर कुर्ता । वह जगह-जगह से फटी हुई धोती और गमछा पहने हुए थे । उनके पैरों में जूते भी नहीं थे।
प्रश्न 2: सुदामा अपने साथ लाए उपहार को श्री कृष्ण को देने में संकोच क्यों कर रहे थे?
उत्तर: सुदामा जब कृष्ण से मिलने द्वारिका जा रहे थे तब उनकी पत्नी ने कृष्ण के लिए उपहार स्वरूप थोड़े-से चावल एक पोटली में बाँधकर दिए थे। द्वारका पहुँचकर जब सुदामा ने कृष्ण का शाही वैभव तथा ऐशो-आराम देखा तो उन्होंने कृष्ण जैसे बड़े राजा के लिए चावल जैसा तुच्छ उपहार देना उचित न समझा। इसलिए वे संकोच कर रहे थे।
प्रश्न 3: श्री कृष्ण ने सुदामा के साथ सच्चे मित्र का कर्तव्य किस तरह निभाया?
उत्तर: श्री कृष्ण को सुदामा की दयनीय हालत देखकर उनकी गरीबी का पता चल गया था। उन्होंने सुदामा की मदद अप्रत्यक्ष रूप से की क्योंकि वह सुदामा को कुछ देकर अपनी ही नजरों में नीचा नहीं करना चाहते थे। कृष्ण ने सुदामा के दो मुट्ठी चावल खाते ही दो लोको की धन-दौलत दे डाली थी, लेकिन सुदामा इससे बिल्कुल अनजान थे। श्रीकृष्ण ने ऐसा करके सच्चा मित्र होने का प्रमाण दिया।
प्रश्न 4: “वैसोई राज समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधों परयो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो।।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, सोचत ही सब गाँव मझायो।
पूँछत पाँडे फिरे सब सों, पर झोपरी को कहुँ खोज न पायो।”
उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ लिखिए।
उत्तर: कवि ने उपरोक्त पंक्तियों द्वारा श्री कृष्ण द्वारा सुदामा को धन-धान्य से परिपूर्ण कर देने का वर्णन किया है। कवि बताते हैं कि सुदामा ने अपने गाँव में जाकर देखा कि वहाँ द्वारका जैसा ही ठाठ-बाट है, वैसा ही राज-समाज है। वहाँ उसी प्रकार के हाथी-घोड़े थे, जैसे द्वारका में थे। इससे उनके मन में भ्रम छा गया। सुदामा को लग रहा था कि वे भूलकर फिर से द्वारका ही लौट आए हैं। वे शायद रास्ता भूल गए हैं। वहाँ भी द्वारका जैसे भव्य महल बने हुए थे। सुदामा के मन में उन भवनों को देखने का लालच आ रहा था। यही सोचकर वे गाँव के बीच में चले गए। वहाँ जाकर सुदामा ने सभी से अपनी झोंपड़ी के बारे में पूछा पर वे अपनी झोंपड़ी को खोज नहीं पाए। वास्तव में उनकी झोंपड़ी के स्थान पर श्री कृष्ण की कृपा से भव्य महल दिखाई दे रहे थे। उनका पूरा गाँव ही अलौकिक आभा से चकाचौंध हो रहा था, जिनके कारण सुदामा भ्रमित हो रहे थे। श्री कृष्ण ने उनकी बिना बताए ही सहायता कर दी थी।
प्रश्न 5: “वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात।।”
उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ लिखिए।
उत्तर: कवि के अनुसार, सुदामा सोच रहे हैं कि जब वे कृष्ण के यहाँ पहुँचे थे, तब तो उन्होंने बड़ी प्रसन्नता दिखाई थी, वे उठकर गले मिले थे और सुदामा को बहुत आदर भी दिया था। पर विदाई के अवसर पर इस तरह खाली हाथ भिजवाने की बात सुदामा को कुछ समझ नहीं आ रही थी। वास्तव में कृष्ण ने सुदामा को उनके दो मुट्ठी चावल खाते ही दो लोकों की धन-दौलत दे डाली थी, जिससे सुदामा बिल्कुल अनजान थे।
प्रश्न 6: द्वारपाल ने श्री कृष्ण को सुदामा के बारे में क्या बताया?
उत्तर: द्वारपाल ने महल के अंदर जा कर श्री कृष्ण को बताया कि हे प्रभु! बाहर महल के द्वार पर एक गरीब व्यक्ति खड़ा हुआ है। बहुत ही दयनीय अवस्था में है और वह आपके बारे में पूछ रहा है। उसके सिर पर न तो पगड़ी है और न ही शरीर पर कोई कुरता है। वह फटी हुई धोती और गमछा पहने हुए है। उसके पैरों में जूते भी नहीं हैं। द्वारिका नगरी के सुन्दर महलों को बहुत ही हैरानी की दृष्टि से देख रहा है। वह आपसे मिलना चाहता है और अपना नाम सुदामा बता रहा है।
प्रश्न 7: श्री कृष्ण ने सुदामा के दुख को महादुख क्यों कहा था?
उत्तर: जब कृष्ण ने सुदामा के विषय में सुना तो दौड़कर बाहर आए तथा सुदामा को बेहाल देखा। श्री कृष्ण ने सुदामा के बिवाइयों से भरे पैर से कांटे खोज कर निकाले । सुदामा का ऐसा हाल देख कर श्री कृष्ण दया से रो पड़े और प्रेम से बोले कि मेरे परम मित्र तुमसे अलग होना मेरे लिये महादुख था।
प्रश्न 8: श्री कृष्ण ने सुदामा से अपनी पिछली आदत न छोड़ पाने की बात क्यों कही?
उत्तर: श्री कृष्ण ने जब देखा कि सुदामा अपने साथ लाए उपहार स्वरूप चावल की पोटली उनसे छिपा रहे है। तब कृष्ण सुदामा पर ताना मारते हुए कहते हैं कि जैसे बचपन में गुरु माँ द्वारा दिए गए चने मुझे न देकर खुद खा लिए थे, वैसे ही वह अब भी उनके तोहफे को उन्हें क्यों नहीं दे रहें है। क्या उनकी पिछली आदत नहीं छूटी है जो भाभी द्वारा भेजा तोहफा छिपा रहे हैं।
प्रश्न 9: “कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत।।
भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पर नींद न आवत।
कै जुरतों नहिं कोदो-सवाँ, कहँ प्रभु के परताप ते दाख न भावत।।”
उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ लिखिए।
उत्तर: कवि ने उपरोक्त पंक्तियों द्वारा श्री कृष्ण द्वारा सुदामा को धन-धान्य से परिपूर्ण कर देने का वर्णन किया है। कवि बताते हैं कि कहाँ तो सुदामा के पास टूटी-फुटी सी फूस की झोंपड़ी थी और कहाँ अब स्वर्ण-महल सुशोभित हो रहे हैं। पहले तो सुदामा के पैरों में जूतियाँ तक नहीं होती थीं और कहाँ अब उनके महल के द्वार पर महावत के साथ हाथी खड़े रहते हैं अर्थात् सवारी के साधन उपलब्ध हैं। पहले कठोर धरती पर रात काटनी पड़ती थी, कहाँ अब सुकोमल सेज पर नींद नहीं आती है। कहाँ पहले तो यह हालत थी कि उन्हें खाने के लिए घटिया किस्म के चावल भी उपलब्ध नहीं थे और कहाँ अब प्रभु की कृपा से उन्हें किशमिश-मुनक्का उपलब्ध हैं। फिर भी वे अच्छे नहीं लगते।
प्रश्न 10: “घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज-समाज।
हौं आवत नाहीं हुतौ, वाही पठयो ठेलि।।
अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि।।”
उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ लिखिए।
उत्तर: कवि के अनुसार, सुदामा कृष्ण के बचपन को याद करके सोचते हैं कि यह वही कृष्ण है जो थोड़ी सी माँगने के लिए घर-घर हाथ फैलाया करता था, भला वह उन्हें क्या देंगे? सुदामा तो पहले ही से माखनचोर कृष्ण को जानते थे, पर उनकी पत्नी ने ही उन्हें जिद करके यहाँ भेजा था। सुदामा बहुत नाराज थे और सोच रहे थे कि अब जाकर वे अपनी पत्नी से कहेंगे कि बहुत धन मिल गया है अब इसे सँभालकर रखो। वे यहाँ आना नहीं चाहते थे। अब हालत यह थी कि जो चावल वे माँग कर लाए थे, वह भी कृष्ण ने ले लिए थे। बदले में खाली हाथ वापसी हुई।
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