Table of contents |
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पाठ परिचय |
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पाठ का सार |
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मुख्य विषय |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दावली |
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"मेरे संग की औरतें" मृदुला गर्ग द्वारा लिखा गया एक संस्मरण है,जिसमें लेखिका ने अपनी चार पीढ़ियों की महिलाओं के व्यक्तित्व, विचारों और जीवन जीने के तरीकों पर गहराई से ध्यान दिया है। लेखिका ने अपनी नानी, माँ, और बहनों के अनुभवों को साझा करते हुए यह दर्शाया है कि परंपरागत तरीके से जीने वाली महिलाएँ भी अपनी सोच और कार्यों से समाज में बदलाव ला सकती हैं। इस संस्मरण में परंपरा और आधुनिकता के संतुलन, आत्मनिर्भरता, महिलाओं की भूमिका, संघर्ष और धैर्य की महत्ता, और अकेलेपन में शक्ति का महत्व बताया गया है। लेखिका की नानी, माँ और बहनें सभी ने अपने-अपने तरीके से जीवन जीने की राह चुनी और परिवार और समाज में अपनी पहचान बनाई।
अपने लेख की शुरुआत लेखिका कुछ इस तरह से करती हैं कि उनकी एक नानी थी जिन्हें उन्होंने कभी नहीं देखा क्योंकि नानी की मृत्यु मां की शादी से पहले हो गई थी। लेखिका कहती हैं कि इसीलिए उन्होंने कभी अपनी 'नानी से कहानियां' तो नहीं सुनीं, मगर 'नानी की कहानियां' पढ़ी जरूर और उन कहानियों का अर्थ उनकी समझ में तब आया, जब वो बड़ी हुई।
लेखिका ने अपनी नानी के बारे में बहुत कुछ सुना था। लेखिका की नानी अनपढ़, परंपरावादी और पर्दा-प्रथा वाली औरत थीं। उनके नाना ने तो विवाह के बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय से बैरिस्ट्री पास की और विदेशी शान-शौकत से जिंदगी बिताने लगे, परंतु नानी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अत: नानी ने अपनी पुत्री की शादी की ज़िम्मेदारी अपने पति के एक मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारे लाल शर्मा को सौंप दी कि वे अपनी बेटी की शादी आज़ादी के सिपाही से करवाना चाहती हैं। अत: लेखिका की माँ की शादी एक स्वतंत्रता सेनानी से हुई।
वे अब खादी की साड़ी पहना करती थीं, जो उनके लिए असहनीय थी। लेखिका ने अपनी माँ को कभी भारतीय माँ जैसी नहीं देखा था। वे घर-परिवार और बच्चों के खान-पान आदि में ध्यान नहीं देती थीं। उन्हें पुस्तकें पढ़ने और संगीत सुनने का शौक था। उनमें दो गुण मुख्य थे-पहला, कभी झूठ न बोलना और दूसरा, वे एक की गोपनीय बात को दूसरे पर जाहिर नहीं होने देती थीं। इसी कारण उन्हें घर में आदर तथा बाहरवालों से दोस्ती मिलती थी।
लेखिका की परदादी को लीक से हटकर चलने का शौक था। उन्होंने मंदिर में जाकर विनती की कि उनकी पतोहू का पहला बच्चा लड़की हो। उनकी यह बात सुनकर लोग हक्के-बक्के से रह गए थे। ईश्वर ने उनके घर में पाँच पूरी कन्याएँ भेज दीं।
एक बार घर के सभी लोग घर से बाहर एक बरात में गए हुए थे और घर में जागरण था। अत: लेखिका की दादी शोर मचने की वजह से दूसरे कमरे में जाकर सोई हुई थीं। तभी चोर ने सेंध लगाई और उसी कमरे में घुस आया। परदादी की नींद खुल गई। उन्होंने चोर से एक लोटा पानी माँगा। बूढ़ी दादी के हठ के आगे चोर को झुकना पड़ा और वह कुएँ से पानी ले आया। परदादी ने आधा लोटा पानी खुद पिया और आधा लोटा पानी चोर को पिला दिया और कहा कि अब हम माँ-बेटे हो गए। अब तुम चाहे चोरी करो या खेती करो। उनकी बात मानकर चोर चोरी छोड़कर खेती करने लगा।
लेखिका की बहनों में कभी इस हीन-भावना की बात नहीं आई कि वे एक लड़की हैं।पहली लड़की जिसके लिए परदादी ने मन्नत माँगी थी वह मंजुला भगत थीं। दूसरे नंबर की लड़की खुद लेखिका मृदुला गर्ग (घर का नाम उमा) थीं। तीसरी बहन का नाम चित्रा और उसके बाद रेणु और अचला नाम की बहनें थीं। इन पाँच बहनों के बाद एक भाई राजीव था।
लेखिका का भाई राजीव हिंदी में और अचला अंग्रेजी में लिखने लगी और रेणु विचित्र स्वभाव की थी। वह स्कूल से वापसी के समय गाड़ी में बैठने से इनकार कर देती थी और पैदल चलकर ही पसीने से तर होकर घर आती थी। उसके विचार सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ़ थे। वह बी०ए० पास करना भी उचित नहीं मानती थी। लेखिका की तीसरी बहन चित्रा को पढ़ने में कम तथा पढ़ाने में अधिक रुचि थी। इस कारण उसके शिष्यों से उसके कम अंक आते थे। उसने अपनी शादी के लिए एक नज़र में लड़का पसंद करके ऐलान किया कि वह शादी करेगी तो उसी से और उसी के साथ उसकी शादी हुई।
अचला, सबसे छोटी बहन, पत्रकारिता और अर्थशास्त्र की छात्रा थी। उसने पिता की पसंद से शादी कर ली थी और उसे भी लिखने का रोग था। सभी ने शादी का निर्वाह भली-भाँति किया। लेखिका शादी के बाद बिहार के एक कस्बे, डालमिया नगर में रहने लगीं। वहीं पर वहाँ की औरतों के साथ उन्होंने नाटक भी किए। इसके बाद मैसूर राज्य के कस्बे, बागलकोट में रहीं। वहाँ लेखिका ने अपने बलबूते पर प्राइमरी स्कूल खोला, जिसमें उनके और अन्य अफसरों के बच्चों ने अपनी पढ़ाई की तथा भिन्न-भिन्न शहरों के अलग-अलग विद्यालयों में दाखिला लिया। विद्यालय खोलकर लेखिका ने दिखा दिया कि वे अपने प्रयास में कभी असफल नहीं हो सकतीं। परंतु लेखिका स्वयं को अपनी छोटी बहन रेणु से कमतर आँकती थीं। वह एक अन्य घटना का स्मरण करते हुए लिखती हैं कि दिल्ली में 1950 के अंतिम दौर में नौ इंच तेज बारिश हुई तथा चारों तरफ़ पानी भर गया था। रेणु की स्कूल-बस नहीं आई थी। सबने कहा कि स्कूल बंद होगा, अतः वह स्कूल न जाए किंतु वह नहीं मानी। अपनी धुन की पक्की वह दो मील पैदल चलकर स्कूल गई और स्कूल बंद होने पर वापस लौटकर आई। लेखिका मानती हैं कि अपनी धुन में मंजिल की ओर चलते जाने का और अकेलेपन का कुछ और ही मज़ा होता है।
अध्याय का मुख्य विषय प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव और गाँव व शहर के जीवन में उसके अनुभवों के अंतर पर केंद्रित है। बाढ़ के समय गाँव के लोगों की दयनीय स्थिति और उनके संघर्ष का सजीव चित्रण किया गया है।
इस संस्मरण से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें परंपरा और आधुनिकता का संतुलन बनाए रखना चाहिए, आत्मनिर्भर बनकर अपने सपनों को पूरा करना चाहिए, और महिलाओं को अपनी आवाज उठाने का अधिकार है। इसके साथ ही, जीवन में कठिनाइयों का सामना धैर्य और संघर्ष के साथ करना चाहिए, और कभी-कभी अकेले चलने से भी सफलता मिल सकती है।
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1. "मेरे संग की औरतें" पाठ का मुख्य विषय क्या है? | ![]() |
2. इस पाठ से हमें कौन सी महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है? | ![]() |
3. "मेरे संग की औरतें" में किस प्रकार की महिलाएं शामिल हैं? | ![]() |
4. क्या इस पाठ में किसी विशेष घटना का उल्लेख किया गया है? | ![]() |
5. "मेरे संग की औरतें" का पाठ किस प्रकार की भाषाशैली में लिखा गया है? | ![]() |