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Important Questions and Answers: Meera Ke Pad | Hindi Class 11 - Humanities/Arts PDF Download

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मीरा किस बात को बेकार मानती है ? 

मीरा सुख दुख से परिपूर्ण, इस संसार को बेकार मानती है।


प्रश्न 2. मीरा को विष किसने दिया था?

मीरा को जान से मारने के लिए, उनके पति राणा ने उन्हे विष दिया था।


प्रश्न 3. मीरा किसके भक्ति में नाची थी? 

मीरा मदमस्त होकर श्री कृष्ण की भक्ति में पाँव में घुंघरू बाँध के नाची थी।


प्रश्न 4. कानि तथा नयत का शब्दार्थ बताइए। 

कानि: मर्यादा
न्यात: कुटुंब के लोग


प्रश्न 5. भक्ति का विलोम बताइए। 

भक्ति : अभक्ति


लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 6. मीरा के ससुराल में क्या करना मर्यादा का उल्लंघन माना जाता था?

मीरा की शादी शाही परिवार में हुई थी और शाही परिवार की महिलाओं के लिए पर्दा प्रथा और पुरुषों के सामने आना आदि जैसे कई रीतियों का पालन करना अनिवार्य था। महिलाओं का मंदिरों में जाना और भजन-कीर्तन में भाग लेने की अनुमति नहीं थी। स्त्री द्वारा ये सब करने पर मर्यादा का उलंघन माना जाता था।


प्रश्न 7. "मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई......... जल सींचि सींचि, प्रेम-बलि बोयी" इन पंक्तियों का आशय बताइए। 

इन पंक्तियों में मीराबाई कहती है कि, श्रीकृष्ण ही उनके लिए सब कुछ है। कृष्ण से बढ़कर उनके लिए और कोई नहीं है। श्री कृष्ण के सर पर मोर पंख है, मनमोहक स्वरूप के श्री कृष्ण, इन्ही को मैं अपना पति परमेश्वर मान चुकी हूँ। श्रीकृष्ण के भक्ति में मैं पारिवारिक और सांसारिक सभी मर्यादाओं को भूल गयी हूँ। अब मेरा कोई क्या कर सकता है,मुझे किसी का भय नही । मैं साधुओं से ज्ञान प्राप्त करती हूँ, तथा श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम के अश्रुओं से इस प्रेम रूपी बेल को सींचा है।


प्रश्न 8. कृष्ण भक्ति में मीरा क्या करती थी? 

कृष्ण भक्ति में मीरा सब सुध-बुध खोकर, पैरों में घुंघरू बांधकर मग्न होकर नाचती थी। वह हर समय कृष्ण की याद में रहती थी। सांसारिक और पारिवारिक मोह माया से दूर,मीरा ने खुद को सिर्फ श्री कृष्ण की भक्ति में लिप्त कर लिया था। उन्हें संसार में श्री कृष्ण के अतिरिक्त और किसी से कोई मतलब नही था।


प्रश्न 9. "पग घुंघरू बाधि मीरा नाची....... ...सहज मिल अविनासी" इन पंक्तियों के शिल्प सौन्दर्य बताइए। 

इन पंक्तियों में, राजस्थानी ब्रजभाषा का प्रयोग बेहद मनोरम ढंग से किया गया है, तथा भक्ति रस है। यह पंक्तियाँ लयात्मक तथा संगीतात्मक है। इस पंक्ति में "कहै कुल" में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है। पूर्ण पंक्ति सहज और सरल है। 


प्रश्न 10. “अब त बलि फैलि गयी, दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही" इन पंक्तियों का शिल्प सौन्दर्य बताइए। 

इन पंक्तियों में, राजस्थानी ब्रजभाषा का सहज और सरल प्रयोग है तथा भक्ति रस है। ये पंक्तियां संगीतात्मक हैं। 'प्रेम-बेली' में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है। 


लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 11. सांसारिक मोह में फसे लोंगो को देखकर मीरा क्या करती है? 

सांसारिक मोह में फंसे लोंगो को देखकर मीरा रोती है। मीरा देखती है कि,संसार के लोग मोह में लिप्त हैं और उनका जीवन व्यर्थ जा रहा है। लोग अपने अनमोल जीवन को व्यर्थ की चीज़ों में गवा रहे हैं। मीरा सांसारिक सुख और दुख को बेकार मानती है। वह यह देखकर रोती है कि, पूरी दुनिया सांसारिक सुख और दुख को सच मानती है, और सांसारिक अथवा पारिवारिक बंधनों में फस कर, वास्तविक्ता से दूर होती जा रही है।


प्रश्न 12. कृष्ण के किस रूप कि मीरा भक्ति करती है?

कृष्ण की भक्ति मीरा अपने पति परमेश्वर के रूप में करती है। मीरा कृष्ण को अपना सबकुछ मानते हुए उनकी पूजा और आराधना करती है। कृष्ण के जिस रूप की मीरा आराधना कर रही हैं वह मनमोहक है अथवा कष्टों को दूर करने वाला है। जिसे देखकर किसी का भी मन परिवर्तित हो सकता है। वे पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली पर धारण किए हुए हैं, और अपने सिर पर मोर मुकुट सुशोभित किए हुए है।


प्रश्न 13. मीरा के अनुसार कृष्ण किस प्रकार कि भक्ति से प्राप्त होते हैं?

मीरा कहती हैं कि, कृष्ण को पाने के लिए सच्चे मन से तथा सरल भाव से भक्ति करनी चाहिए। छल कपट और घृणा भाव से कोई भी कृष्ण को नही पा सकता। मीरा कृष्ण के लिए कहती है 'सहज मिले अविनासी' अर्थात कृष्ण अविनाशी और अमर हैं। उन्हें पाने के लिए सच्चे मन से सरल भक्ति करनी होगी और बस भगवान इस भक्ति से प्रसन्न होकर भक्त से मिलते हैं। उन्हें प्रेम और श्रद्धा के अलावा और कुछ नहीं चाहिए।


प्रश्न 14. मीरा की कृष्ण भक्ति देखकर लोग मीरा को क्या कहते हैं? 

मीरा की कृष्ण भक्ति देखकर लोग मीरा को बावरी कहते हैं। क्योंकि मीरा कृष्ण भक्ति में सुध-बुध खो बैठी है। मीरा को समाज की परम्परा और मर्यादा का कोई भी ध्यान नहीं है। वह कहती हैं,मेरा अब कोई क्या कर सकता है, उन्हे किसी का भय नहीं। कृष्ण की भक्ति में लीन होकर मीरा ने राज परिवार छोड़ दिया और लोक निंदा सहन किया। मीरा मंदिर-मंदिर में घूम कर भजन और नृत्य किया करती थी। भक्ति की यह सीमा, मीरा के बावलेपन को दर्शाती है।


प्रश्न 15. मीरा का संक्षिप्त परिचय दीजिये। 

मीरा का जन्म 1498 में मारवाड़ रियासत के कुडकी गाँव में हुआ था। वह कृष्ण कि बहुत बड़ी उपासक थी, तथा कृष्ण को ही अपना पति मानती थी। मीरा श्री कृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानती थी, तथा श्री कृष्ण की भक्ति में उन्होने अपना घर परिवार सबका त्याग कर दिया। वह सदैव कृष्ण भक्ति में लीन रहती थी। मीरा के बारें में अनेकों लोककथाएं प्रचलित हैं। मीरा को सामाजिक निंदा भी सहना पड़ा। उनकी प्रमुख रचनाएँ मीरा पदावली तथा नरसीजी-रो-माहेरो है। इनकी मृत्यु 1546 में हो गयी थी।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 16. मीरा के ससुराल वाले मीरा को जहर क्यों देते हैं, तथा जहर का मीरा पर क्या असर होता है?

मीरा के ससुराल वाले मीरा को इसलिए जहर दे देते हैं क्योंकि, उन्हें लोक लाज की चिंता होती है, और मीरा लोक लाज की सारी सीमाएं लांघ कर, बिना किसी डर के कृष्ण कि भक्ति अपने पति परमेश्वर के रूप में करती है। ससुराल द्वारा दिए गए विष का उनपर कोई असर नहीं होता है। वह बिल्कुल स्वस्थ रहती है, जिससे सभी आश्चर्य चकित रह जाते हैं। मीरा राज परिवार की बहू थी। उनके पति और ससुराल वाले उनकी कृष्ण की भक्ति को मर्यादा और लाज के नाम पर कलंक के रूप में देखते हैं। मीरा किसी को ज़रा सा भी नही भाती थी। इसी कारण मीरा के पति राणा ने उनके पास विष का प्याला भेजा जिसको मीरा ने हँसते-हँसते पी लिया।


प्रश्न 17. पति द्वारा भेजे विष के प्याले को पीने के बाद भी मीरा पर कोई असर क्यों नहीं हुआ?

पति द्वारा भेजे विष के प्याले को पीने के बाद भी उनपर कोई असर इसलिए नही होता है क्योंकि वह कृष्ण कि भक्ति में लीन रहती हैं। व्यर्थ की सांसारिकता और मोह-माया में फंसे नादान और मुर्ख प्राणी ये भी नहीं समझते की मीरा कृष्णा भक्ति में पूर्णतया लीन है। वह खुद को पूर्ण रूप से समर्पित कर चुकी है। किसी विष का उनपे कोई असर नहीं होता है। मीरा की कृष्ण भक्ति के कारण उनके पति राणा उनके लिए विष का प्याला भेजते हैं जिसे मीरा ख़ुशी ख़ुशी पी लेती है। उस विष का उन पर कोई असर नहीं होता है। यह संसार यह बात नहीं समझ सकता कि, प्रभु भक्ति में लीन व्यक्ति का समाज कोई नुकसान नहीं कर सकता, और मीरा तो पूरे मन से श्री कृष्ण की हो चुकी थी।


प्रश्न 18. कृष्ण भक्ति में मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?

कृष्ण कि भक्ति में मीरा को विभिन्न प्रकार कि कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मीरा के कृष्ण-भक्ति या कृष्ण प्रेम को समाज और उनके परिवार ने बहुत गलत और गंदे तरीके से देखा था। मीरा को सबसे पहले परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा। मीरा को कृष्ण भक्ति से रोकने के लिए अनगिनत प्रयास किए गए। समाज के लोगों ने ताना मारा और उनके चरित्र पर सवाल उठाया। उनके पति द्वारा उन्हें मारने का भी प्रयास किया गया। इस तरह मीरा को कृष्णा का प्रेम पाने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया गया। समाज ने उन्हें लज्जा रहित स्त्री कहा,  उन्हें विरादरी से बाहर कर दिया गया, परन्तु कोई भी प्रयास सफल नहीं हुआ। समाज के सारे प्रयास व्यर्थ गए।


प्रश्न 19. मीरा के ससुराल के लोगों ने यह क्यों कहा कि मीरा ने लोक लाज छोड़ दिया है?

मीरा के ससुराल के लोगों ने कहा कि मीरा ने लोक लाज छोड़ दिया है क्योंकि कृष्ण भक्ति में लीन मीरा वह सभी कार्य करती थी जो समाज के गरिमा के अनुकूल नहीं था। प्रत्येक समाज की अपनी गरिमा होती है और जब कोई व्यक्ति इसके विपरीत कार्य करता है तो इसे नियमों का उल्लंघन माना जाता है। मीरा का विवाह शाही परिवार में हुआ था। शाही परिवार की महिलाओं के लिए पर्दा प्रथा और पुरुषों के सामने आना आदि जैसे कई रीतियों का पालन करना अनिवार्य था। स्त्रियों को मंदिरों में जाना और भजन-कीर्तन में भाग लेने की अनुमति नहीं थी । मीरा झूठी मर्यादाओं को लांघ कर कृष्ण की भक्ति में लीन हो गयी। मंदिरों में जाना, सत्संग करना तथा साधु संतो के साथ बैठ कर ज्ञान प्राप्त करती थी। इसी सन्दर्भ में मीरा के ससुराल के लोगों ने कहा कि मीरा ने लोक लाज छोड़ दिया है।


प्रश्न 20. कृष्ण की भक्ति ने मीरा पर क्या प्रभाव डाला?

मीरा सामाजिक मोह-माया से दूर सिर्फ कृष्ण की भक्ति में लीन थी । समाज के अन्य लोगों की तरह मीरा सांसारिक स्नेह और माया को वास्तविक नहीं मानती थी। मीरा के लिए धन, संपत्ति और अन्य भौतिक सुख कोई मायने नहीं रखते थे। कृष्ण की भक्ति में खोई मीरा ने सारे भौतिक सुखों का त्याग कर दिया था। कृष्ण की भक्ति में लीन हो कर मीरा मंदिरों में भजन-कीर्तन करती, नाचती और साधु-संतों के साथ उठती बैठती थी । समाज के लोग उसे बावरी कहते थे, लेकिन उनकी बातों से मीरा को कोई फर्क नहीं पड़ता था।

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FAQs on Important Questions and Answers: Meera Ke Pad - Hindi Class 11 - Humanities/Arts

1. What is the significance of Meera Ke Pad in the field of humanities and arts?
Ans. Meera Ke Pad holds great importance in the field of humanities and arts as it is a collection of devotional poems written by the renowned poet-saint Meera Bai. These poems reflect Meera's deep spiritual connection with Lord Krishna and her journey of devotion. These literary works not only have artistic value but also provide insights into the religious and social context of the time.
2. How many poems are there in Meera Ke Pad?
Ans. Meera Ke Pad consists of a collection of approximately 200 poems composed by Meera Bai. These poems are written in various forms such as pad, bhajan, and doha, expressing her devotion and love for Lord Krishna.
3. What themes are explored in Meera Ke Pad?
Ans. Meera Ke Pad explores various themes such as divine love, devotion, surrender, and the longing for union with God. The poems also touch upon the challenges faced by Meera Bai due to societal norms and her unwavering faith in Lord Krishna.
4. How do Meera Ke Pad contribute to the preservation of cultural heritage?
Ans. Meera Ke Pad plays a significant role in preserving cultural heritage as they are a testimony to the rich literary and spiritual traditions of medieval India. These poems have been passed down through generations, and their popularity has contributed to the continued celebration of Meera Bai's devotion and her impact on Indian culture.
5. What is the relevance of Meera Ke Pad in contemporary society?
Ans. Meera Ke Pad continues to be relevant in contemporary society as they inspire people to explore their spiritual side and foster a sense of devotion. The poems teach valuable lessons of love, faith, and perseverance, which can be applied in modern-day life. Additionally, Meera Bai's courage in defying societal norms serves as an inspiration for individuals seeking to break free from societal constraints and follow their own path of devotion.
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